गांधी की अहिंसा और सांप्रदायिक सद्भाव के आदर्श उनकी हत्या के 75 साल बाद भी प्रासंगिक हैं
राष्ट्र ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को उनकी 75वीं पुण्यतिथि (30 जनवरी 1948) पर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस दिन को शहीद दिवस के रूप में भी मनाया जाता है।
स्वतंत्रता संग्राम में गांधीजी की भूमिका:
भारत के बाहर:
नटाल विरोध – गांधी ने भारतीय प्रतिरोध का आयोजन किया, अदालतों में भारत विरोधी कानूनों का मुकाबला किया और औपनिवेशिक सरकार के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया।
पंजीकरण प्रमाणपत्रों के खिलाफ सत्याग्रह
यह दक्षिण अफ्रीका में था कि महात्मा गांधी ने पहली बार अहिंसक विरोध की विशिष्ट तकनीकों को सत्याग्रह के रूप में जाना।
भारत में:
चंपारण सत्याग्रह (1917)
अहमदाबाद मिल हड़ताल (1918)
खेड़ा सत्याग्रह (1918)
रोलेट सत्याग्रह
खिलाफत और असहयोग आंदोलन
सविनय अवज्ञा आन्दोलन
मैकडोनाल्ड पुरस्कार के खिलाफ विरोध
भारत छोड़ो आंदोलन
निष्कर्ष:
जब हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो आइए हम यह भी याद करें कि अहिंसा, समावेश और सांप्रदायिक सद्भाव के गांधीवादी मूल्यों ने भारत को बंदूक की नली के बजाय बैलेट बॉक्स के माध्यम से महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन प्राप्त करने वाले एक अद्वितीय लोकतंत्र की स्थापना करने में सक्षम बनाया।