भारतीय बाजार में नकली फुटवियर का बढ़ता खतरा: बिर्कनस्टॉक की कानूनी कार्रवाई

भारत में उपभोक्ता बाजार का तेजी से विस्तार हो रहा है, जिसके साथ-साथ ब्रांडेड और डिजाइनर उत्पादों की मांग भी बढ़ी है। इसी बढ़ती मांग के चलते बाज़ार में नकली  वस्तुओं की मौजूदगी भी सामने आ रही है, जो कभी-कभी असली उत्पादों की हूबहू नकल करती हैं।

इसी संदर्भ में हाल ही में जर्मनी की जानी-मानी फुटवियर कंपनी बर्केंस्टॉक (Birkenstock) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की। इसमें आरोप लगाया गया कि आगरा और दिल्ली के कुछ निर्माता और व्यापारी उसकी पंजीकृत डिज़ाइनों की नकल कर सैंडल बना रहे हैं। कोर्ट ने इस पर कार्रवाई करते हुए छापे डलवाए और बड़ी संख्या में नकली सैंडल जब्त किए। साथ ही, अस्थायी रोक भी लगाई गई ताकि इनकी आगे बिक्री और निर्माण रोका जा सके। यह मामला भारत में डिज़ाइन उल्लंघन और नकली उत्पादों से जुड़ी चुनौतियों को उजागर करता है।

क्या है मामला ?

मई 2025 में प्रतिष्ठित जर्मन फुटवियर कंपनी बिर्कनस्टॉक (Birkenstock) ने दिल्ली हाई कोर्ट में एक दीवानी मुकदमा दायर किया, जिसमें दिल्ली और आगरा के चार व्यापारियों, चार फैक्ट्रियों और दो व्यक्तियों पर उसके पंजीकृत डिज़ाइनों की हूबहू नकल कर सैंडल बनाने और बेचने का आरोप लगाया गया।

कोर्ट ने शिकायत को गंभीरता से लेते हुए लोकल कमिश्नरों की नियुक्ति की, जिन्होंने संबंधित व्यापारिक और औद्योगिक ठिकानों पर छापेमारी की। इस दौरान बड़ी संख्या में नकली बिर्कनस्टॉक सैंडल जब्त किए गए। दिल्ली हाई कोर्ट ने आरोपियों को अस्थायी रूप से ऐसे किसी भी डिज़ाइन के फुटवियर के निर्माण और बिक्री पर रोक (Temporary Injunction) लगा दी है। मामले की अगली सुनवाई 6 अक्टूबर 2025 को निर्धारित की गई है। 

 

आइए जानते है, बिर्कनस्टॉक के बारे में-

स्थापना और इतिहास: बिर्कनस्टॉक की शुरुआत वर्ष 1774 में जर्मनी में हुई थी, जब जोहान एडम बिर्कनस्टॉक नामक एक मोची ने अपने आरामदायक फुटवियर डिज़ाइन से एक नई सोच की नींव रखी। यह कंपनी दुनिया की सबसे पुरानी फुटवियर ब्रांड्स में से एक मानी जाती है।

विशेषता और पहचान

  • बिर्कनस्टॉक को मुख्यतः इसकेआर्थोपेडिक डिजाइन वाले सैंडल के लिए जाना जाता है।
  • इसके सैंडल्स की सबसे खास बात है इनकाकॉर्क और लेटेक्स से बना फुटबेड, जो पहनने वाले के पैर के अनुरूप ढल जाता है और आरामदायक सपोर्ट देता है।
  • कंपनी का उद्देश्य है कि जूते न केवल फैशनेबल हों, बल्किस्वस्थ और टिकाऊ भी हों।

उत्पाद रेंज: बिर्कनस्टॉक सिर्फ सैंडल तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अब जूते, स्लीपर्स, फुटकेयर प्रोडक्ट्स और यहां तक कि मैट्रेस और बेड सिस्टम्स भी बनाने लगी है।

ग्लोबल पहचान:

  • बिर्कनस्टॉक के उत्पाद आज 100 से अधिक देशों में बेचे जाते हैं।
  • यह ब्रांड सस्टेनेबिलिटीइको-फ्रेंडली प्रोडक्शन और क्लासिक डिज़ाइन के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है।

 

बिर्कनस्टॉक की लोकप्रियता:

बिर्कनस्टॉक सैंडल अपने कॉर्क फूटबेड और मिनिमलिस्ट डिज़ाइन के लिए पहचाने जाते हैं। इनकी लोकप्रियता 2023 की फिल्म Barbie में मार्गोट रोबी द्वारा पहने जाने के बाद और बढ़ गई।

 

भारत में फर्स्ट कॉपीका चलन:

भारत लंबे समय से नकली फैशन उत्पादों का एक प्रमुख निर्माण और उपभोग बाज़ार रहा है। हैंडबैग से लेकर जूते-चप्पलों तक, ‘फर्स्ट कॉपी’ या ‘ड्यूप्स’ अब न केवल स्ट्रीट मार्केट बल्कि ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया पर भी बड़ी मात्रा में बिकते हैं।

भारत में बड़ी जनसंख्या ब्रांडेड फैशन अपनाने की इच्छा रखती है, लेकिन कीमत-संवेदनशीलता के चलते नकली लेकिन आकर्षक उत्पादों की भारी मांग बनी रहती है। OECD और EUIPO की 2022 की रिपोर्ट में भारत को चीन, तुर्की और UAE के साथ विश्व स्तर पर नकली उत्पादों का प्रमुख स्रोत बताया गया।

  • CRISIL और ASPAकी 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 31% उपभोक्ताओं ने स्वीकार किया कि वे जानबूझकर नकली उत्पाद खरीदते हैं। इनमें कपड़े और जूते सबसे आम हैं।
  • रिपोर्ट यह भी बताती है किभारत के रिटेल मार्केट का लगभग 25-30% हिस्सा नकली वस्तुओं का है।

 

भारतीय कारीगरों और पारंपरिक शिल्प पर प्रभाव

भारत में नकली उत्पादों की समस्या केवल ब्रांड अधिकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह स्थानीय कारीगर समुदायों के सामने भी नई चुनौतियाँ खड़ी करती है।

  • आगराजैसे पारंपरिक चमड़ा केंद्र और कोल्हापुर जैसे शिल्पकेंद्रों का उपयोग अक्सर हूबहू नकली उत्पाद बनाने में किया जाता है।
  • जहांबड़े ब्रांड जैसे Birkenstock कानूनी लड़ाई लड़ सकते हैं, वहीं छोटे कारीगर समुदाय अपने डिज़ाइनों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रक्षा करने में असमर्थ होते हैं।
  • हाल काप्राडा द्वारा कोल्हापुरी डिज़ाइन का बिना श्रेय उपयोग इस बात को दर्शाता है कि भारतीय शिल्पकार कितने असुरक्षित हैं।

 

प्राडा और कोल्हापुरी चप्पल विवाद:

क्या हुआ? इटली के लग्ज़री फैशन ब्रांड प्राडा (Prada) ने हाल ही में मिलान फैशन वीक 2026 में अपने मेन्स कलेक्शन में कोल्हापुरी स्टाइल की चप्पलों को शामिल किया। इन चप्पलों की कीमत लगभग ₹1.2 लाख थी। हालांकि, इस प्रदर्शन में प्राडा ने चप्पलों को केवल “चमड़े के सैंडल” कहकर पेश किया और उनके भारतीय मूल या सांस्कृतिक महत्व का कोई उल्लेख नहीं किया।

इस अनदेखी को लेकर पश्चिमी महाराष्ट्र के पारंपरिक कारीगरों और सांस्कृतिक संगठनों ने कड़ी आलोचना की। कोल्हापुरी चप्पलें, जिन्हें 2019 में GI टैग मिला था, महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर मानी जाती हैं।

प्रतिक्रिया और सुधार: आलोचनाओं के बाद, प्राडा की छह सदस्यीय वरिष्ठ टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया। उन्होंने स्थानीय कारीगरों से मुलाकात कर कोल्हापुरी चप्पलों के इतिहास, डिज़ाइन और निर्माण प्रक्रिया को समझा। प्राडा ने यह वादा किया कि वे भविष्य में ऐसी गलती नहीं दोहराएंगे और कोल्हापुरी चप्पलों को वैश्विक स्तर पर उचित मान्यता दिलाने में सहयोग करेंगे।

महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष ललित गांधी के अनुसार, प्राडा ने आश्वासन दिया है कि वे स्थानीय भारतीय कारीगर समुदायों के साथ साझेदारी बढ़ाएंगे और सांस्कृतिक जुड़ाव को प्राथमिकता देंगे। इसके तहत, प्राडा ने “Made in India” कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित लिमिटेड एडिशन कलेक्शन लॉन्च करने की भी इच्छा जताई है।

 

कोल्हापुरी चप्पलें: महाराष्ट्र और कर्नाटक की विरासत

कोल्हापुरी चप्पलें मुख्य रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर, सांगली, सतारा, सोलापुर और कर्नाटक के कुछ हिस्सों में बनती हैं। ये पूरी तरह हस्तनिर्मित (handcrafted) होती हैं और इनमें चमड़ाधागा और पारंपरिक तकनीकों का इस्तेमाल होता है, न कील का प्रयोग होता है, न सिंथेटिक सामग्री का।

इन चप्पलों की सबसे बड़ी खूबी है इनका आरामदायक होना और लंबे समय तक टिकाऊ रहना। यही कारण है कि जब प्राडा की टीम ने कोल्हापुर का दौरा किया, तो वे कारीगरों की इस बारीकी और गुणवत्ता को देखकर चकित रह गए

 

कीमत में विरोधाभास: भारत में ये चप्पलें आमतौर पर ₹400 से ₹1000 तक में मिलती हैं, लेकिन प्राडा ने इन्हें अपने मिलान फैशन वीक 2026 में शामिल कर इनकी कीमत ₹1.25 लाख तक रख दी, जिससे मूल कारीगरों और सांस्कृतिक समुदायों में असंतोष पैदा हुआ।

नाम और पहचान का सफर: कोल्हापुरी चप्पलों को पहले कापशी, पायटान, बक्कलनाली और कच्छकडी जैसे नामों से जाना जाता था, यह नाम उन गांवों के आधार पर थे जहां ये बनती थीं।
1960 के दशक के बाद इन चप्पलों की मांग में तेजी आई और अंततः 2019 में इन्हें GI टैग प्राप्त हुआ, जो इनकी भौगोलिक और सांस्कृतिक विशिष्टता को मान्यता देता है।

 

भारत में कानूनी ढांचा और क्रियान्वयन की चुनौतियाँ

भारत में Trademark Act, 1999 और Designs Act, 2000 जैसे कानून ब्रांडों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करते हैं।

  • इनके तहतअस्थायी रोक और नकली वस्तुओं की जब्ती जैसे उपाय संभव हैं।
  • लेकिनव्यापक अनौपचारिक बाजार और डिजिटल प्लेटफार्मों के चलते इन कानूनों का प्रभावी क्रियान्वयन कठिन हो गया है।
  • कानूनी प्रक्रियालंबी, महंगी और जटिल है, जिससे अक्सर बड़े ब्रांडों को लाभ मिलता है, जबकि छोटे कारीगर पीछे रह जाते हैं।

 

निष्कर्ष:

बिर्कनस्टॉक मामले में भारत में नकली डिज़ाइनों के निर्माण और बिक्री पर सवाल उठे, जिससे ब्रांड की पहचान और बाज़ार को नुकसान पहुंचा। वहीं प्राडा के मामले में भारत की पारंपरिक कला को बिना श्रेय उपयोग किए जाने पर सांस्कृतिक असम्मान और कारीगरों के हक़ की बहस छिड़ गई। दोनों ही घटनाएं यह दर्शाती हैं कि चाहे नकली उत्पादों का निर्माण हो या पारंपरिक डिज़ाइनों का वैश्विक मंच पर उपयोग, आज के समय में सिर्फ फैशन ही नहीं, बल्कि नैतिकता, अधिकार और पहचान भी चर्चा के केंद्र में हैं।

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