Nvidia ने घोषणा की है कि वह अपने इमिग्रेंट कर्मचारियों के लिए नए $100,000 H-1B वीज़ा आवेदन शुल्क का भुगतान करेगा। यह निर्णय ट्रम्प प्रशासन के हालिया कार्यकारी आदेश के बाद आया है, जिसने विदेशी प्रतिभा को रोजगार देने की लागत को काफी बढ़ा दिया है।
कंपनी ने कहा कि यह कदम अपने अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों का समर्थन करने और कुशल प्रतिभा तक पहुँच सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है, ताकि बढ़ती वित्तीय और नियामक बाधाओं के बावजूद उनकी भर्ती में किसी तरह की बाधा न आए।

एनवीडिया के निर्णय का उद्देश्य:
- प्रतिभा बनाए रखने के उद्देश्य से: Nvidia के सीईओ जेंसन हुआंग ने अपने कर्मचारियों को आश्वस्त करते हुए एक आंतरिक मेमो जारी किया कि कंपनी H-1B वीज़ा को स्पॉन्सर करना जारी रखेगी और इसके सभी संबंधित शुल्कों का भुगतान करेगी।
- सीईओ का व्यक्तिगत दृष्टिकोण: हुआंग, जो स्वयं एक इमिग्रेंट हैं, ने इमिग्रेशन की Nvidia की सफलता में अहम भूमिका को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कंपनी, “दुनिया भर के प्रतिभाशाली सहयोगियों द्वारा बनाई गई, इमिग्रेशन के बिना संभव नहीं होती”।
- तकनीकी उद्योग पर व्यापक प्रभाव: नई H-1B वीज़ा शुल्क नीति ने तकनीकी उद्योग में चिंता पैदा कर दी है, जो विदेशी प्रतिभा पर भारी निर्भर है, खासकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे क्षेत्रों में। अन्य टेक लीडर्स, जैसे OpenAI के सैम ऑल्टमैन, ने भी इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।
- नीति पर प्रतिक्रिया: हुआंग ने इस नीति को “वीजा दुरुपयोग को रोकने की दिशा में एक अच्छा कदम” बताया, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि उच्च शुल्क कुछ वैश्विक प्रतिभाओं के लिए “अमेरिकी सपना और दूर” कर सकता है। छोटे कंपनियां और स्टार्टअप्स डर व्यक्त कर रहे हैं कि इस शुल्क के कारण वे प्रतिभा को बाज़ार में बनाए रखने में महंगे साबित हो सकते हैं।
अमेरिका ने H-1B वीज़ा की फीस बढ़कर $1 लाख की:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसके तहत H-1B वीज़ा की वार्षिक आवेदन फीस बढ़ाकर $100,000 (लगभग 88 लाख रुपये) कर दी गई है। यह वीज़ा उन कुशल विदेशी कर्मचारियों के लिए है जो सीमित समय (आमतौर पर तीन साल) के लिए अमेरिका में कानूनी रूप से काम करना चाहते हैं। अमेरिकी टेक्नोलॉजी कंपनियां इस वीज़ा कार्यक्रम का सबसे ज्यादा उपयोग करती हैं।
राष्ट्रपति ट्रंप के आदेश के अनुसार यह नई फीस 21 सितंबर 2025 से लागू होगी।
H-1B वीज़ा की नई लागत का विवरण:
- पहले औसतन फीस: लगभग 6 लाख रुपये (तीन साल के लिए)
- अब फीस: लगभग 88 लाख रुपये प्रति वर्ष, यानी तीन साल के लिए 2.64 करोड़ रुपये
- छह साल के लिए कुल शुल्क: 5.28 करोड़ रुपये, यानी खर्च लगभग 50 गुना बढ़ गया
नीति का मकसद क्या है?
राष्ट्रपति ट्रंप का कहना है कि इस नीति का उद्देश्य कंपनियों को अमेरिकी नागरिकों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित करना है। उन्होंने कहा,
“अगर आप किसी को प्रशिक्षण देने जा रहे हैं, तो आप अमेरिका के किसी महान विश्वविद्यालय से हाल ही में स्नातक हुए छात्रों को प्रशिक्षण दें। अमेरिकियों को प्रशिक्षित करें। हमारे देश के लोगों की नौकरी लेने के लिए बाहरी लोगों को लाना बंद करना होगा।”
एच1बी वीजा क्या है?
एच1बी वीजा एक अमेरिकी वीज़ा प्रोग्राम है जो अमेरिकी कंपनियों को विशेष कौशल वाले विदेशी कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने की अनुमति देता है। यह वीज़ा आम तौर पर तीन साल के लिए जारी किया जाता है और छह साल तक बढ़ाया जा सकता है।
एच-1बी वीज़ा के लिए पात्र कौन हैं?
एच-1बी वीज़ा एक नियोक्ता प्रायोजित (Employer-Sponsored) वीज़ा है। इसका अर्थ यह है कि वीज़ा आवेदन की फीस और प्रक्रिया नियोक्ता द्वारा पूरी की जाती है, न कि कर्मचारी द्वारा।
पात्रता की मुख्य शर्तें:
- नियोक्ता आवेदन करेगा: कर्मचारी की ओर से नियोक्ता ही वीज़ा के लिए आवेदन करता है।
- कौशल और योग्यता: नियोक्ता को साबित करना होता है कि कर्मचारी उनके व्यवसाय या संगठन के लिए आवश्यक कौशल और उपयुक्तता रखता है।
- विशेष व्यवसाय: आमतौर पर यह वीज़ा उन क्षेत्रों के लिए दिया जाता है जिनमें विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, जैसे:
- इंजीनियरिंग (Engineering)
- जीव विज्ञान (Life Sciences)
- भौतिक विज्ञान (Physical Sciences)
- गणित (Mathematics) और व्यापार प्रबंधन (Business Management)
अस्थायी वीज़ा और नवीनीकरण:
- H-1B वीज़ा अस्थायी (Temporary) है और शुरू में तीन साल के लिए मान्य होता है।
- नवीनीकरण के लिए स्टाम्पिंग की आवश्यकता होती है, जिसके लिए वीज़ा धारक को भारत या अन्य देश में जाकर वीज़ा स्टाम्प कराना पड़ता है।
एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम कब शुरू हुआ?
एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम की शुरुआत 1990 में हुई थी और इसे अमेरिका के आव्रजन अधिनियम (Immigration Act) के तहत बनाया गया। यह कार्यक्रम अमेरिकी कंपनियों को विदेशी कुशल कर्मचारियों को नौकरी देने की अनुमति देता है।
कोटा और अवधि:
- अमेरिका सरकार हर साल विभिन्न कंपनियों को 65,000–85,000 H-1B वीज़ा प्रदान करती है।
- इसके अतिरिक्त, अमेरिकी एडवांस डिग्रीधारकों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा दिए जाते हैं।
- यह वीज़ा तीन साल के लिए मान्य होता है और इसे अगले तीन वर्षों के लिए नवीनीकृत (Renew) किया जा सकता है।
लाभ और सांख्यिकीय तथ्य:
- इस कार्यक्रम का सबसे बड़ा लाभ भारतीय कर्मचारियों को मिला है, जो पूरे वीज़ा कोटे का लगभग 73 प्रतिशत हासिल कर लेते हैं।
- H-1B वीज़ा के माध्यम से अमेरिकी कंपनियां विदेशी कुशल कर्मचारियों को अपनी टीम में शामिल कर सकती हैं और तकनीकी उद्योग में वैश्विक प्रतिभा का लाभ उठा सकती हैं।
देश | प्रतिशत |
भारत | 73% |
चीन | 12% |
कनाडा | 1% |
फिलिपींस | 1% |
द. कोरिया | 1% |
अन्य देश | 12% |
ट्रम्प ने एच-1बी वीज़ा शुल्क क्यों बढ़ाया?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीज़ा की आवेदन शुल्क वृद्धि कई कारणों से की है, जिनमें प्रमुख हैं:
- STEM क्षेत्रों में रोजगार और श्रमिक असंतुलन: विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) क्षेत्रों में 2000-2019 के बीच नौकरियों में केवल5 प्रतिशत वृद्धि हुई, जबकि कामगारों की संख्या 12 लाख से बढ़कर 25 लाख हो गई।
- एच-1बी प्रणाली में हेरफेर: कई आईटी कंपनियों ने H-1B वीज़ा प्रणाली का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया, जिससे कंप्यूटर और तकनीकी क्षेत्रों में अमेरिकी श्रमिकों को नुकसान पहुंचा।
- एच-1बी में आईटी कर्मचारियों की बढ़ती हिस्सेदारी: 2003 में H-1B कर्मचारियों में आईटी पेशेवरों का हिस्सा 32 प्रतिशत था, जो पिछले पांच वित्तीय वर्षों में औसतन 65 प्रतिशत से अधिक हो गया।
- आउटसोर्सिंग और नौकरियों का देश से बाहर जाना: कुछ बड़े H-1B नियोक्ता लगातार आईटी आउटसोर्सिंग कंपनियां बन रहे हैं, जिससे अमेरिकी नौकरियों का देश से बाहर स्थानांतरण हो रहा है।
- लागत कम करने के लिए विदेशी श्रमिकों का लाभ:
- कंपनियां अपने आईटी प्रभागों को बंद कर अमेरिकी कर्मचारियों को निकाल देती हैं और कम वेतन पर विदेशी श्रमिकों को नियुक्त करती हैं।
- उन्हें H-1B वीज़ा मंजूरी मिलती है, जिसके बाद यह प्रक्रिया लगातार जारी रहती है।
H-1B वीज़ा में बदलाव का भारतीय कर्मचारियों पर असर:
H-1B वीज़ा के नियमों और आवेदन शुल्क में वृद्धि का सीधा असर भारतीय पेशेवरों पर पड़ेगा। अनुमान है कि इस बदलाव से लगभग 2,00,000 से अधिक भारतीय प्रभावित होंगे।
- 2023 में: H-1B वीज़ा लेने वालों में 1,91,000 लोग भारतीय थे।
- 2024 में: यह संख्या बढ़कर 2,07,000 हो गई।
भारत की आईटी और टेक कंपनियां हर साल हजारों कर्मचारियों को H-1B वीज़ा पर अमेरिका भेजती हैं। लेकिन इतनी ऊंची फीस अब कंपनियों के लिए कर्मचारियों को अमेरिका भेजना कम फायदेमंद बना देगी। इसका परिणाम यह हो सकता है कि कई कंपनियां अपनी भर्ती योजनाओं में संशोधन करें और कुछ विदेशी कर्मचारियों की संख्या घटा दें।
ट्रंप गोल्ड और प्लैटिनम कार्ड योजना: H-1B वीज़ा में नई पहल-
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीज़ा शुल्क में वृद्धि के साथ ही नई वीज़ा योजनाओं की भी घोषणा की है।
- ट्रंप गोल्ड कार्ड योजना: इसके तहत कोई व्यक्ति 10 लाख डॉलर (लगभग 9 करोड़ रुपये) का भुगतान करके अमेरिकी नागरिकता प्राप्त करने की प्रक्रिया में शामिल हो सकता है। कंपनियां किसी कर्मचारी को इस योजना के तहत 20 लाख डॉलर (लगभग 17 करोड़ रुपये) देकर स्पॉन्सर कर सकती हैं।
- प्लैटिनम कार्ड योजना: इसके तहत 50 लाख डॉलर (लगभग 42 करोड़ रुपये) का भुगतान किया जाएगा। योजना धारकों को पांच साल तक हर साल 270 दिन अमेरिका में रहने की अनुमति मिलेगी।
Nvidia और H-1B वीज़ा शुल्क पर CEO का बयान:
Nvidia अमेरिका की टेक इंडस्ट्री में H-1B वीज़ा का सबसे बड़ा प्रायोजक है। वर्ष 2025 में कंपनी को लगभग 1,500 H-1B वीज़ा मंजूर हुए हैं। इस चिप निर्माता कंपनी का मूल्य लगभग $4.5 ट्रिलियन है और यह वैश्विक इंजीनियरिंग और रिसर्च प्रतिभा पर भारी निर्भर है।
Nvidia के CEO जेंसन हुआंग ने पहले तो नई H-1B शुल्क वृद्धि पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी थी, लेकिन पिछले महीने एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि: “नई शुल्क प्रणाली वीज़ा प्रणाली के दुरुपयोग को समाप्त करती है, लेकिन $100,000 शुल्क शायद थोड़ा बहुत ऊँचा है।”
इस बयान से यह स्पष्ट होता है कि कंपनियां प्रतिभा बनाए रखने के लिए शुल्क बढ़ोतरी को चुनौती के रूप में देख रही हैं, खासकर तकनीकी क्षेत्रों में।
निष्कर्ष:
H-1B वीज़ा शुल्क में $100,000 की वृद्धि ने न केवल नीति पर बहस छेड़ी है, बल्कि वैश्विक प्रतिभा पर निर्भर उद्योगों में चिंता और असुरक्षा भी पैदा कर दी है। Microsoft, Amazon, Walmart जैसी बड़ी कंपनियां कुशल इंजीनियरों, विश्लेषकों और कंसल्टेंट्स को अमेरिका लाने के लिए H-1B वीज़ा पर लंबे समय से भरोसा करती रही हैं। इस उच्च शुल्क के चलते कंपनियों के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा को बनाए रखना महंगा और चुनौतीपूर्ण हो जाएगा, जिससे तकनीकी उद्योग में भर्ती, परियोजनाओं की लागत और नवाचार की गति पर असर पड़ सकता है।