हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने H-1B वीजा संबंधी एक नया नियम लागू करने की घोषणा की है, जिसके तहत कंपनियों को विदेशी कर्मचारियों को प्रायोजित करने के लिए H-1B वीज़ा प्रोग्राम के अंतर्गत हर साल 1,00,000 डॉलर का शुल्क देना होगा ताकि उच्च कौशल वाले प्रतिभाओं को प्राथमिकता दी जा सके।
H-1B वीज़ा प्रोग्राम क्या है?
- परिचय: H-1B वीज़ा एक अस्थायी कार्य अनुमति है जो विदेशी नागरिकों को संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने और काम करने की अनुमति देता है। इसे 1990 के इमिग्रेशन एक्ट के अंतर्गत शुरू किया गया था। यह एक गैर-आप्रवासी वीज़ा है जिसे ऐसे पेशेवरों के लिए बनाया गया है जिनके पास तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता वाले क्षेत्रों में विशेषज्ञता होती है। इन क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, वित्त, स्वास्थ्य सेवा, गणित और शिक्षा शामिल हैं।
- उद्देश्य: इस वीज़ा कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी श्रम बाज़ार में उस कमी को पूरा करना है जहाँ घरेलू कुशल श्रमिकों की संख्या सीमित है। विदेशी कुशल श्रमिकों को कंपनियों में काम करने का अवसर देकर यह कार्यक्रम नवाचार और उत्पादकता को बढ़ावा देता है। यह वैश्विक प्रतिभा और अमेरिकी कंपनियों के बीच सहयोग का मार्ग प्रशस्त करता है।
- पात्रता: आवेदकों के पास न्यूनतम स्नातक डिग्री या उससे उच्च डिग्री होना आवश्यक है। कुछ मामलों में कार्य अनुभव को शैक्षिक योग्यता के बराबर माना जा सकता है। इसमें प्रायोजक नियोक्ता को यह साबित करना होता है कि जिस पद के लिए भर्ती की जा रही है वह विशेष कौशल की मांग करता है और स्थानीय श्रमबल से आसानी से पूरा नहीं हो सकता।
- आवेदन प्रक्रिया: इस वीज़ा के लिए आवेदन करने हेतु नियोक्ता को सबसे पहले श्रम शर्त आवेदन (LCA) श्रम विभाग से दाखिल करना होता है। जब यह आवेदन स्वीकृत हो जाता है, तो नियोक्ता को फॉर्म I-129 अमेरिकी नागरिकता और आप्रवासन सेवा (USCIS) में दाखिल करना होता है। यदि यह फॉर्म स्वीकृत हो जाता है तो आवेदक को अमेरिकी वाणिज्य दूतावास में साक्षात्कार देना होता है। इसके बाद आवेदक इस वीज़ा के लिए पात्र माना जाता है।
- विशेषताएँ: H-1B वीज़ा की कुछ खास बातें इसे अन्य वीज़ा कैटेगरी से अलग बनाती हैं।
- यह वीज़ा सामान्यतः प्रारंभिक तीन वर्षों के लिए दिया जाता है, जिसे अधिकतम छह वर्षों तक बढ़ाया जा सकता है।
- इस वीज़ा के लिए आवेदक को अनिवार्य रूप से किसी अमेरिकी नियोक्ता का प्रायोजन प्राप्त होना चाहिए। व्यक्ति स्वयं आवेदन नहीं कर सकता।
- इसमें वीज़ा धारक अपने जीवनसाथी और बच्चों को H-4 वीज़ा श्रेणी में अमेरिका ला सकता है।
- यदि नया नियोक्ता आवेदन करता है तो वीज़ा धारक नियोक्ता में बदलाव कर सकता है।
- इस वीजा के आधार पर अमेरिकी कंपनियाँ जैसे गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और एप्पल हजारों वीज़ा धारकों को रोजगार देती हैं।
- इस वीज़ा की वार्षिक सीमा तय है। वर्तमान में यह सीमा 65,000 वीज़ा प्रति वर्ष है। इसके अतिरिक्त 20,000 वीज़ा उन आवेदकों के लिए आरक्षित हैं जिनके पास अमेरिकी संस्थानों से उच्च डिग्री है।
- इसमें आवेदन प्रक्रिया में लॉटरी प्रणाली का उपयोग किया जाता है, जिसमें यादृच्छिक रूप से चयन कर स्वीकृति दी जाती है।
यह निर्णय क्यों लिया गया?
- कुशल कार्यबल: इस निर्णय का मुख्य कारण सर्वोत्तम प्रतिभा को आकर्षित करना है। अमेरिका चाहता है कि कंपनियाँ केवल उन्हीं विदेशी कर्मचारियों को प्रायोजित करें जिनके पास उच्च स्तर के कौशल हों। बड़ा शुल्क तय करने से भविष्य में केवल वही नियोक्ता आगे बढ़ेंगे, जिन्हें वास्तव मे शीर्ष स्तर के विशेषज्ञों की आवश्यकता है।
- स्थानीय श्रमिकों की सुरक्षा: सरकार विदेशी कर्मचारियों और स्थानीय नौकरी चाहने वालों के बीच प्रतिस्पर्धा को कम करना चाहती है। प्रशासन चाहता है कि अमेरिकी कंपनियाँ विदेशी पेशेवरों पर निर्भर रहने के बजाय स्थानीय स्नातकों को प्राथमिकता दें।
- राजनीतिक संदर्भ: यह नीति व्यापक आप्रवासन का हिस्सा है। वर्ष 2016 से ट्रम्प प्रशासन ने कानूनी और अवैध दोनों तरह के आप्रवासन नियमों को कड़ा करने का वादा किया था। आप्रवासन को अक्सर घरेलू उद्योगों में नौकरी खोने से जोड़ा जाता रहा है। इसी संदर्भ में एच-1बी कार्यक्रम की कड़ी समीक्षा शुरू हुई है।
- वित्तीय पहलू: प्रशासन इससे अतिरिक्त राजस्व जुटाने का एक नया साधन बनाना चाहती हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प के अनुसार अब भी योग्य लोगों का स्वागत है, लेकिन अब उन्हें देश में काम करने के लिए भुगतान करना होगा। भविष्य में यह राशि घरेलू प्रशिक्षण कार्यक्रमों को समर्थन देने में उपयोग की जाएगी।
इस निर्णय का प्रभाव
- बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियाँ जैसे अमेज़न, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और एप्पल H-1बी वीज़ा की सबसे बड़ी उपयोगकर्ता हैं। वर्ष 2025 में केवल अमेज़न को ही 10,000 से अधिक अनुमोदन प्राप्त हुए है। सालाना एक लाख डॉलर शुल्क से इन कंपनियों का खर्च करोड़ों डॉलर तक बढ़ जाएगा।
- नवीन कंपनियाँ और मध्यम आकार की फर्में इस अतिरिक्त लागत को नहीं झेल पाएंगी। इससे उनकी कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उन्नत कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में अंतरराष्ट्रीय प्रतिभा को नियुक्त करने की क्षमता घट सकती है।
- वर्ष 2024 में लगभग 71% भारतीय H-1बी वीज़ा की स्वीकृति दी गई थी, जिनमें से अधिकांश अब तकनीकी क्षेत्र में काम करते हैं। लेकिन इस अतिरिक्त शुल्क से अमेरिका की तकनीकी प्रगति धीमी हो सकती है।
- अंतरराष्ट्रीय छात्र, विशेषकर भारत और चीन से, अक्सर स्नातक होने के बाद अमेरिका में बने रहने के लिए इस कार्यक्रम पर निर्भर रहते हैं। लेकिन अब इस नीति से अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दाखिले घट सकते हैं।
- अमेरिकी कंपनियाँ उच्च मूल्य वाले कार्य को विदेशों में स्थानांतरित करने का निर्णय ले सकती हैं। यदि ऐसा होता है तो यह स्थिति अमेरिका की स्थिति को चीन जैसे वैश्विक प्रतिद्वंद्वियों के मुकाबले कमजोर कर सकती है।
- श्रम सांख्यिकी ब्यूरो के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2030 तक अमेरिका को 12 लाख STEM पेशेवरों की कमी का सामना करना पड़ सकता है। अर्थात, इस नीति से स्थानीय श्रमिकों के लिए अवसर तो बढ़ेंगे, लेकिन भविष्य में श्रमिकों की कमी बनी रहेगी।