एचएएल भारत की तीसरी रॉकेट निर्माता कंपनी बनी

कुछ समय पहले तक भारत में रॉकेट बनाना सिर्फ इसरो (ISRO) जैसी सरकारी संस्थाओं तक ही सीमित था। देश का पूरा अंतरिक्ष कार्यक्रम सरकार के नियंत्रण में चलता था और निजी कंपनियों की इसमें कोई खास भूमिका नहीं थी। लेकिन जब स्काईरूट एयरोस्पेस (हैदराबाद) और अग्निकुल कॉसमॉस (चेन्नई) जैसे स्टार्टअप्स ने देश में निजी स्तर पर रॉकेट्स तैयार करने शुरू किए — तो भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में निजीकरण की एक नई लहर आई।

🔹यह दिखाता है कि अब स्पेस टेक्नोलॉजी सिर्फ सरकारी संस्थाओं तक सीमित नहीं रही।

लेकिन अब इसी कड़ी में एक और नाम जुड़ गया है — हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड का।  हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड को भारत का स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) बनाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है। यह कॉन्ट्रैक्ट उसे ISRO और IN-SPACe ने संयुक्त रूप से दिया है। इसका मतलब अब इसरो, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) को स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) की तकनीक हस्तांतरित करेगा। इसी के साथ HAL अब स्काईरूट और अग्निकुल के बाद भारत की तीसरी रॉकेट निर्माता कंपनी बन गई है।

🔹 कितने में HAL ने कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया -

  • HAL ने 511 करोड़ रुपये की सबसे बड़ी बोली लगाकर यह कॉन्ट्रैक्ट जीता है। इसके लिए बेंगलुरु की अल्फा डिजाइन और हैदराबाद की भारत डायनामिक्स लिमिटेड (BDL) भी रेस में थीं। लेकिन अंत मे HAL ने यह कॉन्ट्रैक्ट जीत लिया।

🔹 ISRO करेगा SSLV तकनीक का ट्रांसफर, HAL बनाएगा 6 से 12 रॉकेट प्रतिवर्ष:

  • अब अगले दो वर्षों तक ISRO, HAL को SSLV की पूरी तकनीक ट्रांसफर करेगा। इस दौरान HAL को दो प्रोटोटाइप रॉकेट बनाने होंगे और इसरो की सप्लाई चेन का उपयोग करना होगा। हालांकि HAL को रॉकेट की डिजाइन में कोई बदलाव करने की अनुमति नहीं होगी। लेकिन दो साल बाद HAL अपनी खुद की सप्लाई चेन का चयन कर सकेगा और डिजाइन में सुधार के लिए ISRO से मार्गदर्शन ले सकेगा।

     

    HAL का लक्ष्य है कि वह हर साल 6 से 12 SSLV रॉकेट्स का उत्पादन करे, जो कि बाजार की मांग पर निर्भर करेगा। इस कदम से यह स्पष्ट हो गया है कि भारत अब न केवल अंतरिक्ष अभियानों में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्पेस लॉन्च बाजार में भी बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में है।

     

    अब समझ लेते है- स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) क्या है?

    स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा विकसित एक तीन-स्तरीय लॉन्च व्हीकल है। इसमें तीन ठोस ईंधन आधारित चरण और अंतिम चरण में तरल ईंधन आधारित वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) शामिल होता है। यह रॉकेट लगभग 34 मीटर लंबा और 2 मीटर व्यास का होता है, जिसका कुल वजन लगभग 120 टन होता है।

🔹इसकी क्षमता क्या होती है?:

    • SSLV 500 किलोग्राम तक के उपग्रह को 500 किलोमीटर की कक्षा (Low Earth Orbit) में स्थापित करने की क्षमता रखता है। इसे आंध्र प्रदेश स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (SDSC) से लॉन्च किया जा सकता है।

       

      मुख्य विशेषताएँ:

      SSLV की प्रमुख विशेषताओं में कम लागत, तेज़ लॉन्च टर्न-अराउंड समय, एक साथ कई उपग्रह ले जाने की क्षमता, मांग के अनुसार लॉन्च करने की सुविधा और न्यूनतम लॉन्च इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता शामिल हैं। इसे छोटे स्तर पर संचालित किया जा सकता है, जिससे कम संसाधनों में भी अंतरिक्ष अभियानों को अंजाम दिया जा सकता है।

       

      इसका महत्व क्या है-

      छोटे उपग्रहों का युग: पहले केवल बड़े उपग्रहों को प्राथमिकता दी जाती थी, लेकिन समय के साथ जैसे-जैसे अंतरिक्ष क्षेत्र का विस्तार हुआ, कई व्यवसाय, सरकारी एजेंसियाँ, विश्वविद्यालय और प्रयोगशालाएं अपने छोटे उपग्रह लॉन्च करने लगीं। आज अधिकतर पेलोड छोटे उपग्रहों की श्रेणी में आते हैं।

      बढ़ती मांग: पिछले 8–10 वर्षों में छोटे उपग्रहों की लॉन्चिंग की मांग तेज़ी से बढ़ी है। इसकी मुख्य वजह है डेटा, संचार, निगरानी और व्यावसायिक उपयोग के लिए स्पेस-आधारित सेवाओं की बढ़ती आवश्यकता।

      कम लागत में बड़ा काम: उपग्रह निर्माता अब महीनों तक रॉकेट में जगह का इंतजार नहीं कर सकते और न ही भारी कीमत चुका सकते हैं। इसलिए कम लागत में जल्दी-जल्दी लॉन्च की सुविधा जरूरी हो गई है। SSLV इस जरूरत को पूरा करता है।

🔹 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (Hindustan Aeronautics Limited) के बारे मे-

      • हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) भारत की एक प्रमुख एयरोस्पेस और रक्षा कंपनी है, जो भारत सरकार के स्वामित्व में है। इसका मुख्यालय बेंगलुरु (कर्नाटक) में स्थित है। एचएएल विमान, हेलीकॉप्टर, जेट इंजन और उनसे जुड़े घटकों के डिजाइन, निर्माण, रखरखाव और ओवरहाल (Overhaul) में विशेषज्ञता रखता है।

         

        इसकी स्थापना 1940 में हिंदुस्तान एयरक्राफ्ट लिमिटेड के रूप में हुई थी। वर्ष 1964 में इसका एयरोनॉटिक्स इंडिया लिमिटेड के साथ विलय हुआ और इसे नया नाम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) मिला।

         

        एचएएल भारतीय वायु सेना, सेना, नौसेना, डीआरडीओ और अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए लड़ाकू विमान, परिवहन विमान, ट्रेनर एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर और एयरो-इंजन का उत्पादन करता है। साथ ही HAL इन प्रणालियों के रखरखाव, मरम्मत और तकनीकी उन्नयन की सेवाएं भी प्रदान करता है।

         

        HAL का योगदान भारत की आत्मनिर्भर रक्षा उत्पादन नीति में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। तेजस लड़ाकू विमान, ध्रुव हेलीकॉप्टर, और आगामी AMCA जैसी परियोजनाएं इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

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