बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने ब्रह्मोस एयरोस्पेस के पूर्व वरिष्ठ वैज्ञानिक निशांत अग्रवाल को जासूसी और संवेदनशील रक्षा जानकारी लीक करने के गंभीर आरोपों से मुक्त कर दिया है। निशांत अग्रवाल को 2018 में पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसियों को मिसाइल से संबंधित गोपनीय डेटा देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। छह साल से अधिक समय तक हिरासत में रहने और निचली अदालत द्वारा 14 साल की सज़ा सुनाए जाने के बाद अब उच्च न्यायालय ने उन्हें इन आरोपों से बरी कर दिया है, जिससे उनकी रिहाई का रास्ता खुल गया है।
कौन है निशांत अग्रवाल ?
निशांत अग्रवाल IIT रोपड़ से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में ग्रेजुएट हैं। पढ़ाई के बाद वे ब्रह्मोस एयरोस्पेस में इंजीनियर के रूप में शामिल हुए। अपनी तकनीकी क्षमता के कारण उन्हें जल्दी ही कई अहम जिम्मेदारियाँ मिलीं और वे मिसाइल परियोजनाओं पर काम करने वाली टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।
उत्तराखंड के रुड़की के नेहरू नगर के रहने वाले अग्रवाल ने डीआरडीओ और रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एयरोस्पेस में लगभग चार साल तक सिस्टम इंजीनियर के तौर पर काम किया।
14 साल के कठोर कारावास की हुई थी सजा:
इस साल जून में नागपुर की एक ज़िला अदालत ने निशांत अग्रवाल को सरकारी गोपनीयता अधिनियम और आईटी अधिनियम की कई धाराओं के तहत दोषी करार दिया था। अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास, 14 साल के कठोर कारावास और ₹3,000 के जुर्माने की सज़ा सुनाई थी। अदालत का मानना था कि उन्होंने दुश्मन देश के एजेंटों को गोपनीय जानकारी दी थी। अग्रवाल ने इसी फैसले के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की थी।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने क्या कहा ?
अदालत ने कहा कि निशांत अग्रवाल ने कुछ प्रोटोकॉल का उल्लंघन जरूर किया, लेकिन यह साबित नहीं हो पाया कि उन्होंने संवेदनशील जानकारी पाकिस्तान या उसकी खुफिया एजेंसियों को भेजी। इसलिए जासूसी जैसे गंभीर आरोपों से उन्हें बरी कर दिया गया। हालांकि, अदालत ने पाया कि उन्होंने गोपनीय दस्तावेज़ों को अपने निजी डिवाइस पर रखने का अपराध किया था। इसके लिए उन्हें तीन साल की सज़ा दी गई, लेकिन चूँकि वे अक्टूबर 2018 से हिरासत में हैं, इसलिए अदालत ने कहा कि उनकी सज़ा पूरी हो चुकी है।
अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल:
अभियोजन पक्ष ने दावा किया था कि अग्रवाल पाकिस्तानी एजेंटों के हनीट्रैप का शिकार हुए, जिन्होंने फेसबुक पर फर्जी महिला प्रोफाइल से उन्हें बहकाया और उनके लैपटॉप के मैलवेयर से संवेदनशील डेटा विदेश भेजा गया। लेकिन अदालत को इस बात का कोई ठोस सबूत नहीं मिला कि डेटा वास्तव में पाकिस्तान या उसके एजेंटों तक गया। सरकारी वकील संजय डोईफोडे ने भी कहा कि डेटा ट्रांसफर के दावे साबित नहीं हुए। इसलिए अदालत ने अग्रवाल को आईटी एक्ट की धारा 66(एफ) के तहत लगे आरोपों से भी बरी कर दिया।
2018 में पकड़े गए थे अग्रवाल:
अग्रवाल को अक्टूबर 2018 में सेना की खुफिया एजेंसी (MI) और उत्तर प्रदेश व महाराष्ट्र की एटीएस ने मिलकर गिरफ्तार किया था। वह ब्रह्मोस मिसाइल बनाने वाले भारत-रूस संयुक्त उद्यम BrahMos Aerospace Private Limited (BAPL) के तकनीकी अनुसंधान विभाग में काम करते थे। जांच में पाया गया कि ब्रह्मोस मिसाइल से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेज उनके निजी कंप्यूटर पर थे, जो BAPL के सुरक्षा नियमों का उल्लंघन था। गिरफ्तारी के बाद अग्रवाल को ब्रह्मोस एयरोस्पेस में अपनी नौकरी भी छोड़नी पड़ी थी।
निशांत अग्रवाल पर क्या है आरोप ?
निशांत अग्रवाल पर आरोप था कि वह फेसबुक पर ‘सेजल’ नाम की एक महिला प्रोफाइल के संपर्क में आए थे, जो बाद में एक जासूसी ग्रुप का हिस्सा निकली। अदालत में बताया गया कि 2017 में सेजल ने उन्हें कुछ लिंक भेजे, जिन पर क्लिक करने के बाद उन्होंने अपने निजी लैपटॉप पर तीन ऐप “Qwhisper, Chat-to-Hire और X-Trust” इंस्टॉल किए। ये ऐप असल में मैलवेयर थे, जिन्होंने उनके लैपटॉप से डेटा चुराया, जिसमें गोपनीय जानकारी भी शामिल थी।
अग्रवाल के वकील ने क्या कहा ?
अग्रवाल के वकील चैतन्य बर्वे ने दलील दी कि CERT-In के एक विशेषज्ञ ने साफ कहा था कि अग्रवाल के लैपटॉप से कोई भी जानकारी किसी बाहरी डिवाइस या किसी एजेंट को नहीं भेजी गई थी। इसलिए यह साबित नहीं होता कि उन्होंने किसी दुश्मन देश को डेटा लीक किया। उच्च न्यायालय में उनके पक्ष में वरिष्ठ वकील सुनील मनोहर और चैतन्य बर्वे ने मिलकर दलीलें रखीं। वकीलों ने यह भी कहा कि निजी डिवाइस में दस्तावेज़ मिलने के मुद्दे को आगे चुनौती दी जाएगी।
आपको बता दे की CERT-In भारत की सरकारी एजेंसी है जो साइबर सुरक्षा और हैकिंग जैसे मामलों की जांच करती है।
अन्य अधिकारियों से भी संपर्क स्थापित करना चाहता है पाकिस्तान:
अग्रवाल के वकील चैतन्य बर्वे ने अदालत में कहा कि पाकिस्तानी एजेंट सिर्फ निशांत अग्रवाल ही नहीं, बल्कि बीएपीएल के अन्य अधिकारियों से भी संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने बताया कि दो पाकिस्तानी एजेंट, जो खुद को भारतीय लड़कियाँ “नेहा शर्मा और पूजा रंजन” बताती थीं, अग्रवाल की सोशल मीडिया फ्रेंड लिस्ट में भी थीं। वकील के अनुसार, यह दुश्मन की तरफ से जानकारी निकालने की एक सोची-समझी रणनीति थी।
BAPL की मामले पर प्रतिक्रिया ?
BAPL ने कहा कि कोई भी गोपनीय डेटा चोरी नहीं हुआ था। उन्होंने बताया कि भले ही अग्रवाल के निजी डिवाइस पर कुछ जानकारी मिली थी, लेकिन उससे दुश्मन देशों को कोई फायदा नहीं हो सकता था, क्योंकि किसी भी कर्मचारी को पूरे सिस्टम तक पहुँच नहीं होती। BAPL के अनुसार, निशांत अग्रवाल संगठन में ऐसे स्तर पर थे जहाँ उन्हें बहुत महत्वपूर्ण या बेहद संवेदनशील जानकारी तक पहुँच नहीं थी। हालाँकि, कंपनी के नियम यह ज़रूर कहते हैं कि आधिकारिक सिस्टम से डेटा को निजी कंप्यूटर या मोबाइल में कॉपी नहीं किया जा सकता।
न्यूज़ रिपोर्ट्स के मुताबिक, ATS ने BAPL से क्रॉस-चेक कर यह भी पुष्टि की कि अग्रवाल के पास मिले दस्तावेज़ किसी गुप्त श्रेणी के नहीं थे। संगठन ने बताया कि उनके पास सख्त सुरक्षा व्यवस्था है, जो डेटा की अनधिकृत कॉपी या लीक को रोकती है।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (BAPL) के बारे में:
ब्रह्मोस एयरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड (BAPL) भारत और रूस की संयुक्त कंपनी है, जो मुख्य रूप से क्रूज़ मिसाइलें बनाती है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। यह कंपनी भारत के DRDO और रूस की NPO Mashinostroyenia के साथ मिलकर बनाई गई थी। कंपनी अभी 800 किलोमीटर तक मार करने वाली और 2.8 मैक की रफ्तार से चलने वाली ब्रह्मोस मिसाइल बनाती है। इसके अलावा, ब्रह्मोस-II नाम की हाइपरसोनिक मिसाइल पर भी काम चल रहा है।
‘ब्रह्मोस’ नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मोस्कवा नदी के नामों को जोड़कर बनाया गया है। कंपनी में भारत की हिस्सेदारी 50.5% है और रूस की 49.5%।
निष्कर्ष:
निशांत अग्रवाल के मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल तकनीकी साक्ष्यों के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे संवेदनशील मामलों में ठोस और प्रमाणित सबूतों की आवश्यकता कितनी अनिवार्य है। अदालत के इस फैसले ने न सिर्फ उन्हें न्याय दिलाया, बल्कि यह भी सुनिश्चित किया कि किसी व्यक्ति को केवल संदेह के आधार पर अपराधी घोषित नहीं किया जा सकता।
