प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशीप समिट में कहा कि ‘हिंदू विकास दर’ शब्द औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है। यह अभिव्यक्ति पुराने दशकों में भारत की धीमी आर्थिक प्रगति को देश के लोगों की आस्था और पहचान से जोड़ती थी।
प्रधानमंत्री ने कहा, “जब देश की वृद्धि दर 2-3 प्रतिशत के आसपास संघर्ष कर रही थी, तब हिंदू विकास दर शब्द का प्रयोग किया जाता था। इस शब्द के माध्यम से हमारी संपूर्ण सभ्यता को अनुत्पादकता और निर्धनता का ठप्पा लगा दिया गया। उस समय किसी को यह सांप्रदायिक नहीं लगा।”
इस शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
द न्यू ऑक्सफोर्ड कंपेनियन टू इकोनॉमिक्स इन इंडिया के अनुसार, अर्थशास्त्री राज कृष्ण ने यह शब्द गढ़ा था। उनका उद्देश्य भारत की लंबे समय तक चली 3.5 प्रतिशत की मामूली विकास दर की ओर ध्यान आकर्षित करना था। सरकारों के बदलने, युद्धों, अकालों और अन्य संकटों के बावजूद यह दर स्थिर बनी रही, जिसे कृष्ण ने एक सांस्कृतिक घटना माना।
अर्थशास्त्री पुलप्रे बालकृष्णन ने अपने निबंध में राज कृष्ण को शिकागो में प्रशिक्षित और राजनीतिक रूप से दक्षिणपंथी विचारधारा वाला बताया, जो उस दौर की कांग्रेस सरकारों की नीतियों से भिन्न सोच रखते थे।
क्या नेहरू युग जिम्मेदार था?
प्रोफेसर बालकृष्णन ने नेहरू काल (1951-64) की विकास दर का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि औपनिवेशिक शासन (1900-1946) के दौरान जीडीपी और प्रति व्यक्ति जीडीपी वृद्धि दर 0.9% और 0.1% थी, जो 1950-1964 के दौरान बढ़कर 4.1% और 1.9% हो गई।
इसी अवधि में भारत की 4.1% जीडीपी वृद्धि चीन के 2.9% से अधिक थी, हालांकि कोरिया के 6.1% से कम थी। तुलनात्मक रूप से, अमेरिका, ब्रिटेन और जापान ने 1820 से 1992 के बीच क्रमशः 3.6%, 1.9% और 2.8% जीडीपी वृद्धि हासिल की।
प्रोफेसर बालकृष्णन का तर्क है कि राज कृष्ण का यह दावा कि भारत 1970 के दशक तक 100 अर्थव्यवस्थाओं से नीचे था, प्रति व्यक्ति जीडीपी पर आधारित था, जो नेहरू युग की उपलब्धियों को छिपाता है। जनसंख्या वृद्धि औपनिवेशिक काल के 0.8% वार्षिक से बढ़कर नेहरू युग में 2% हो गई थी। यदि जनसंख्या वृद्धि औपनिवेशिक दर पर रहती, तो प्रति व्यक्ति आय वृद्धि 3% से अधिक होती।
1982 में कृष्ण ने स्वीकार किया कि भारत की क्षमता-निर्माण और आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रगति भविष्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण थी। उन्होंने कहा कि धातुकर्म, यांत्रिक, रासायनिक, ऊर्जा और परिवहन क्षेत्रों में पर्याप्त क्षमता निर्माण के कारण ही भारत आत्मनिर्भरता का दावा कर सकता है।
कब पार की गई यह वृद्धि दर?
अर्थशास्त्री बलदेव राज नायर ने 2006 में तर्क दिया कि भारत ने 1991 के उदारीकरण सुधारों से बहुत पहले ही हिंदू विकास दर को पार कर लिया था। उदारीकरण विकास को तेज करता है, लेकिन 1980 के दशक के आंतरिक सुधारों का भी बड़ा योगदान था।
1956 से 1975 के बीच भारत की औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि 3.4% थी। हालांकि, 1981 से 1991 के बीच यह औसत 5.8% थी, जो 1991 के संकट और सुधारों से एक दशक पहले की बात है। अर्विंद विरमानी और अर्विंद पनगढ़िया जैसे अर्थशास्त्रियों ने 1980 या 1980 के दशक को महत्वपूर्ण मोड़ माना है।
नायर का तर्क है कि पहला उदारीकरण चरण 1975 में ही शुरू हो गया था। 1976-2006 तक जीडीपी वृद्धि औसतन 5.6% रही, जो हिंदू विकास दर से काफी ऊपर थी।
प्रधानमंत्री मोदी के मुख्य बिंदु
शनिवार को हिंदुस्तान टाइम्स लीडरशीप समिट में प्रधानमंत्री ने कहा कि जब भारत की विकास दर 2-3% थी, तो कुछ बुद्धिजीवियों ने इसे हिंदू विकास दर कहा और देश की धीमी अर्थव्यवस्था का कारण हिंदू संस्कृति को ठहराया।
मोदी ने कहा, “आज भारत विश्व की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है, परंतु वही लोग अब इस शब्द का उल्लेख नहीं करते।”
प्रधानमंत्री की आठ प्रमुख बातें:
- वैश्विक विश्वास में भारत की भूमिका: जब विश्व में अनिश्चितता और मंदी की बात होती है, तब भारत विकास की कहानी लिख रहा है। हाल ही में भारत के जीडीपी आंकड़े आए जिनमें 8% से अधिक वृद्धि दिखी। यह केवल संख्या नहीं, बल्कि मजबूत आर्थिक संकेत है कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का विकास चालक बन रहा है।
- बैंकों में अदावी राशि: देश में लोगों के 78 हजार करोड़ रुपए बैंक खातों में बिना दावे के पड़े हैं। इसी प्रकार बीमा कंपनियों में 48 हजार करोड़ रुपए अदावी हैं। यह अधिकतर गरीब परिवारों का धन है। सरकार अब विशेष शिविर लगाकर वास्तविक हकदारों को खोज रही है।
- औपनिवेशिक मानसिकता: अंग्रेजों ने लंबे समय तक शासन करने के लिए भारतीयों में हीनभावना का संचार किया। भारतीय पारिवारिक संरचना को पुराना कहा, पोशाक का उपहास उड़ाया, त्योहारों को तर्कहीन बताया और भारतीय आविष्कारों का मजाक उड़ाया। पीढ़ी दर पीढ़ी यह सिलसिला चलता रहा और भारतीयों का आत्मविश्वास कमजोर होता गया।
- कानूनी सुधार और ऋण सुविधा: देश में ऐसे प्रावधान थे जहां छोटी गलतियों को गंभीर अपराध माना जाता था। सरकार ने कानून लाकर उन्हें अपराध की श्रेणी से हटाया। पहले 1000 रुपए के ऋण के लिए भी बैंक गारंटी चाहिए थी। अब 37 लाख तक गारंटी मुक्त ऋण मिलता है, जिससे युवाओं को उद्यमी बनने का अवसर मिल रहा है।
- कम मुद्रास्फीति मॉडल: जी-7 देशों की अर्थव्यवस्था औसतन 1.5% के आसपास है। इन परिस्थितियों में भारत कम मुद्रास्फीति वाला मॉडल बना है। एक समय था जब लोग अधिक महंगाई की चिंता जताते थे, आज वे कम होने की बात करते हैं।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में निजीकरण: भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र पहले सरकारी नियंत्रण में था, अब इसे निजी क्षेत्र के लिए खोल दिया गया है। ग्यारह दिन पहले हैदराबाद में स्काईरूट कैंपस का उद्घाटन हुआ। यह भारत की निजी अंतरिक्ष कंपनी है जो विक्रम-1 रॉकेट बना रही है।
- राष्ट्रहित में सुधार: एक समय था जब भारत में सुधार स्वार्थ के कारण या संकट को संभालने के लिए होते थे। आज ये देशहित में होते हैं। देश के हर क्षेत्र में निरंतर सुधार हो रहे हैं। हमारा उद्देश्य राष्ट्र प्रथम का है।
- अप्रयुक्त क्षमता का उपयोग: भारत की क्षमता का बड़ा हिस्सा लंबे समय तक अप्रयुक्त रहा। पूर्वी भारत, गांव, नारी शक्ति, छोटे शहर, युवा शक्ति और समुद्री अर्थव्यवस्था का उपयोग पहले के दशकों में नहीं हो पा रहा था। अब पूर्वी भारत में आधुनिकीकरण पर निवेश हो रहा है, गांवों में आधुनिक सुविधाएं पहुंच रही हैं, और किसान एफपीओ बनाकर बाजार से जुड़ रहे हैं।
निष्कर्ष:
हिंदू विकास दर का इतिहास जटिल है। यह शब्द भले ही आर्थिक विश्लेषण के लिए गढ़ा गया हो, लेकिन इसने भारत की सांस्कृतिक पहचान पर सवाल उठाए। आज भारत तेज आर्थिक विकास के साथ वैश्विक मंच पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभर रहा है।
