धराली की तबाही कितनी भीषण थी, ISRO की सैटेलाइट तस्वीरों में दिखी बर्बादी

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जनपद स्थित धराली गांव में मंगलवार को अचानक आई बाढ़ ने अभूतपूर्व तबाही मचाई, जिसने सम्पूर्ण देश को गहरे आघात में डाल दिया। तीव्र गति से आए सैलाब ने सम्पूर्ण गांव को मलबे में तब्दील कर दिया। प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार, अब भी कई व्यक्तियों के मलबे में दबे होने की आशंका है। प्रभावित क्षेत्र में राहत एवं बचाव कार्य जारी है।

प्राप्त दृश्यों एवं प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, बाढ़ के कारण भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ है, जिससे स्थानीय निवास, व्यापारिक प्रतिष्ठान एवं बुनियादी संरचनाएं गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुई हैं। वर्तमान स्थिति को दृष्टिगत रखते हुए, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने क्षेत्र की उपग्रहीय छवियों के माध्यम से स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत किया है।

ISRO द्वारा 8 अगस्त को जारी रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि 5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली और समीपवर्ती हर्षिल गांवों में उच्च तीव्रता वाली फ्लैश फ्लड (अचानक आई बाढ़) की घटना ने अनेक भवनों को पूर्णतः ध्वस्त कर दिया। इसके अतिरिक्त, नदी के प्रवाह में भी उल्लेखनीय परिवर्तन देखा गया है। लगभग 20 हेक्टेयर क्षेत्र मलबे से प्रभावित पाया गया है।

ISRO की सहयोगी इकाई, राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (NRSC) द्वारा Cartosat-2S उपग्रह से प्राप्त उच्च-रिज़ॉल्यूशन छवियों का विश्लेषण कर आपदा के प्रभाव का विस्तृत आकलन किया गया है। रिपोर्ट में बताया गया है कि आपदा से उत्पन्न विनाश स्थानीय पारिस्थितिक संतुलन तथा मानव जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है।

36 करोड़ घन मीटर मलबे का हिमस्खलन बना बाढ़ का कारण

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली गांव में मंगलवार को आई भीषण बाढ़ का कारण केवल भारी वर्षा नहीं था। प्रारंभिक भूवैज्ञानिक विश्लेषण इस आपदा के पीछे एक और अधिक जटिल तथा विनाशकारी प्रक्रिया की ओर संकेत करता है, हिमनद तलछटी निक्षेपों (glacial sediment deposits) का विशालकाय पतन, जो संभवतः ऊँचे पर्वतीय ढलानों में प्रतिगामी विखंडन (retrogressive slope failure) के कारण हुआ।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा जारी उपग्रह चित्रों और भू-स्थानिक विश्लेषण के आधार पर विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि इस घटना में लगभग 36 करोड़ घन मीटर मलबे का हिमस्खलन हुआ। यह परिमाण लगभग 1.4 लाख ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूलों के बराबर है, जिसमें कीचड़, चट्टानें और हिमनद मलबा अत्यंत तीव्र गति से नीचे की ओर गिरा।

हिमस्खलन की प्रक्रिया और प्रभाव

रिपोर्ट के अनुसार, यह हिमस्खलन अस्थिर हिमोढ़ और हिमनद-नदी निक्षेपों के एकाएक ढहने से प्रारंभ हुआ, जिसने खीरगाड धारा के माध्यम से तेज़ी से धराली गांव को प्रभावित किया।

मिनटों में तबाही

इस विनाशकारी तरंग ने कुछ ही सेकंड में धराली क्षेत्र में कम से कम 20 से अधिक भवनों को ध्वस्त कर दिया और चार लोगों की मृत्यु की पुष्टि हुई है। स्थानीय प्रशासन और आपदा प्रबंधन बल राहत एवं बचाव कार्य में लगे हुए हैं, हालांकि स्थल की दुर्गमता कार्यों में बाधा उत्पन्न कर रही है।

आपदा प्रबंधन में ISRO की भूमिका: उपग्रह तकनीक और नवाचारों का उपयोग

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) देश में आपदाओं के प्रभावी प्रबंधन हेतु अपने पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों (Earth Observation Satellites) और अत्याधुनिक तकनीकों की सहायता से अंतरिक्ष से वास्तविक समय में घटनाओं और आपदाओं की निगरानी करता है। विभिन्न प्रकार के ऑप्टिकल और रडार सेंसर से सुसज्जित उपग्रह उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाली छवियाँ और डेटा प्रदान करते हैं, जो आपदा मूल्यांकन, योजना निर्माण और त्वरित राहत कार्यों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होते हैं।

  1. पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों का संचालन

ISRO विभिन्न प्रकार के उपग्रहों का संचालन करता है, जिनमें प्रमुखतः IRS श्रृंखला के उपग्रह — जैसे CartosatRISAT इत्यादि शामिल हैं।

  • ऑप्टिकल सेंसर: दृश्य और अवरक्त प्रकाश में छवियों को कैप्चर करते हैं, जिससे घटनाओं का विस्तृत दृश्यात्मक मूल्यांकन संभव होता है।
  • रडार सेंसर (SAR): सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR) बादलों को भेदने और प्रतिकूल मौसम में भी कार्य करने की क्षमता रखता है, जिससे बाढ़, भूस्खलन, चक्रवात जैसी आपदाओं के दौरान भी सटीक डेटा प्राप्त होता है।
  1. उन्नत प्रौद्योगिकियों का प्रयोग
  • सिंथेटिक एपर्चर रडार (SAR): NISAR मिशन (NASA-ISRO संयुक्त परियोजना) SAR तकनीक के माध्यम से पृथ्वी की सतह में सूक्ष्म परिवर्तन को मापता है, जिससे ज्वालामुखीय गतिविधियों, भूजल क्षरण और भूकंप संबंधी हलचलों की पहचान होती है।
  • डीप लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI): ISRO उपग्रह डेटा के विश्लेषण में AI तकनीकों का उपयोग करता है, जिससे क्षति की स्वचालित पहचान, प्रभावित क्षेत्रों की मैपिंग, और आपदा की तीव्रता का मूल्यांकन संभव होता है।
  • भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS): ISRO, QGIS जैसे प्लेटफॉर्म का उपयोग कर उपग्रह डेटा को अन्य भौगोलिक आंकड़ों के साथ समन्वित करता है, जिससे विस्तृत मानचित्र और रिपोर्ट तैयार किए जाते हैं।
  1. आपदा प्रबंधन में ISRO का सहयोग
  • रीयल-टाइम मॉनिटरिंग: ISRO के उपग्रह देश की सतत निगरानी करते हैं, जिससे आपदा की स्थिति में लगभग वास्तविक समय में डेटा प्राप्त होता है।
  • क्षति मूल्यांकन: आपदा से पूर्व और पश्चात ली गई उपग्रह छवियों की तुलना द्वारा भवनों, सड़कों, कृषि भूमि आदि को हुई क्षति का आकलन किया जाता है।
  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: चक्रवात, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक खतरों के लिए ISRO द्वारा प्राप्त डेटा पूर्व चेतावनी तंत्र (early warning systems) को सुदृढ़ करता है, जिससे समय रहते जनसुरक्षा की कार्रवाई संभव होती है।
  • राहत अभियानों को समर्थन: उपग्रह डेटा के आधार पर प्रभावित क्षेत्रों की पहचान, प्राथमिकता निर्धारण, और संसाधनों के वितरण की योजना बनाई जाती है।
  1. प्रमुख उदाहरण
  • धराली, उत्तराखंड (फ्लैश फ्लड): ISRO ने Cartosat-2S उपग्रह की मदद से बाढ़ के प्रभाव और मलबे के प्रवाह का विश्लेषण किया।
  • म्यांमार (भूकंप): Cartosat-3 उपग्रह चित्रों से म्यांमार में आए भूकंप के पश्चात संरचनात्मक क्षति और सांस्कृतिक धरोहर स्थलों की स्थिति का मूल्यांकन किया गया।
  • वायनाड, केरल (भूस्खलन): ISRO ने RISAT SAR छवियों का उपयोग कर भूस्खलन की सीमा और उसके नदी तथा आसपास के क्षेत्र पर प्रभाव का मानचित्रण किया।
  • महा कुंभ मेला, प्रयागराज: ISRO ने प्रयागराज में आयोजित महा कुंभ मेले के दौरान विशाल जनसमूह की गतिविधियों को उपग्रह के माध्यम से कैप्चर कर ट्रैफिक, भीड़ प्रबंधन और सुविधा वितरण में सहायता की।