प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने आज संसद में तीन अहम विधेयक पेश किए। इन विधेयकों में एक ऐसा प्रावधान शामिल है, जिसके तहत यदि किसी प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, मुख्यमंत्री या किसी राज्य अथवा केंद्र शासित प्रदेश के मंत्री को गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रखा जाता है, तो उन्हें पद से हटाना अनिवार्य होगा। लोकसभा में यह प्रस्ताव केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पेश किया। अब इस बिल को जेपीसी में भेज दिया गया है।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में जिन तीन विधेयकों को पेश किया, वे भारतीय राजनीति और संवैधानिक व्यवस्था में बड़ा बदलाव ला सकते हैं। इनमें 130वां संविधान संशोधन विधेयक, जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन संशोधन विधेयक और संघ राज्य क्षेत्र सरकार संशोधन विधेयक शामिल हैं।
इन विधेयकों का मुख्य प्रावधान यह है कि यदि कोई प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री गंभीर आपराधिक मामले में लगातार 30 दिनों तक गिरफ्तार या हिरासत में रहता है, तो उसे पद से हटाना अनिवार्य होगा। यह कार्यवाही राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
तीनों बिल इस प्रकार हैं:
- पहला बिल: 130वां संविधान संशोधन बिल 2025 यह केंद्र और सभी राज्य सरकारों पर लागू होगा।
- दूसरा बिल: गवर्नमेंट ऑफ यूनियन टेरिटरीज (संशोधन) बिल 2025- यह केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) के लिए है।
- तीसरा बिल: जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) बिल 2025- यह विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर पर लागू होगा।
अब तक ऐसी कोई बाध्यता नहीं थी, जिसके चलते कई मामले जैसे दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी की गिरफ्तारी के बावजूद वे पद पर बने रहे। नए प्रावधान के लागू होने पर ऐसी स्थिति की पुनरावृत्ति पर रोक लग सकेगी।
31वें दिन स्वत: पदमुक्त होने का प्रावधान
- यदि कोई मंत्री लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहता है, तो 31वें दिन मुख्यमंत्री की सलाह पर उपराज्यपाल द्वारा पद से हटा दिया जाएगा।
- यदि मुख्यमंत्री इस पर संज्ञान नहीं लेते, तो अगले दिन वह मंत्री स्वत: पद से मुक्त हो जाएगा।
- इसी तरह का तंत्र केंद्र और राज्यों दोनों के लिए प्रस्तावित है। इसका मतलब यह है कि यदि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री भी लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहते हैं, तो 31वें दिन स्वत: पदमुक्त कर दिए जाएंगे।
बिल का उद्देश्य:
विधेयक का मुख्य उद्देश्य संवैधानिक नैतिकता की रक्षा करना और जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों पर विश्वास बनाए रखना है।
विवरण में कहा गया है कि निर्वाचित नेता जनता की आशाओं और आकांक्षाओं के प्रतीक होते हैं। हालांकि, वर्तमान संवैधानिक ढांचे में ऐसा कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, जिसके तहत किसी प्रधानमंत्री या मंत्री को गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार या लगातार हिरासत में रहने पर पद से हटाया जा सके।
विधेयक में यह अपेक्षा जताई गई है कि सत्ता में बैठे मंत्रियों का चरित्र और आचरण निष्कलंक होना चाहिए और वह किसी भी प्रकार के संदेह से परे हों। गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे, गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए मंत्री न केवल संवैधानिक नैतिकता और सुशासन के सिद्धांतों को कमजोर करते हैं, बल्कि जनता के बीच उनके प्रति संवैधानिक विश्वास और भरोसे को भी आघात पहुँचाते हैं।

विपक्ष का विरोध:
प्रस्तावित विधेयकों को लेकर विपक्ष ने केंद्र सरकार पर राजनीतिक लाभ के लिए विधायी प्रक्रिया के दुरुपयोग का आरोप लगाया है।
कांग्रेस पार्टी ने कहा कि यह विधेयक बिहार में राहुल गांधी की “वोटर अधिकार रैली” से जनता का ध्यान भटकाने की एक साज़िश है।
- कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा “गृह मंत्री अमित शाह के ये बिल और कुछ नहीं बल्कि राहुल गांधी की धमाकेदार वोटर अधिकार यात्रा से ध्यान हटाने की हताश कोशिश है।
- वहीं, कांग्रेस नेता और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने भी बिल का विरोध करते हुए इसे विपक्षी दलों को निशाना बनाने का हथियार बताया। उन्होंने एक्स पर लिखा
“कैसा दुष्चक्र! गिरफ्तारी के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं। विपक्षी नेताओं की बेहिसाब गिरफ्तारियां हो रही हैं। नया कानून मुख्यमंत्री या मंत्रियों को गिरफ्तारी के तुरंत बाद पद से हटाने का प्रावधान करता है। यह विपक्ष को अस्थिर करने का सबसे आसान तरीका है पक्षपाती केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी मुख्यमंत्रियों को गिरफ्तार करने के लिए उकसाना और उन्हें चुनावी मैदान में हराने में विफल रहने के बावजूद मनमाने ढंग से हटाना। जबकि सत्तारूढ़ दल के मुख्यमंत्रियों पर कभी कोई कार्रवाई नहीं होती।”
हालांकि हंगामे के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने इन बिलों को जेपीसी में भेजने की सिफारिश की है।
जेपीसी (JPC) क्या है?
जेपीसी का पूरा नाम ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (संयुक्त संसदीय समिति) है। इसे उन मामलों पर गहराई से चर्चा और जांच करने के लिए बनाया जाता है जिनमें सामान्य संसदीय प्रक्रिया पर्याप्त नहीं होती।
जेपीसी के प्रकार:
- अस्थायी कमेटी: किसी विशेष मुद्दे पर गठित की जाती है और उसका कार्यकाल तय समय के लिए होता है।
- स्टैंडिंग कमेटी: स्थायी रूप से काम करने वाली समिति, जिसका कार्यकाल नियमित रूप से चलता है।
जेपीसी के कार्य:
- किसी भी व्यक्ति या संस्था से पूछताछ करना और उन्हें पेश होने के लिए बुलाना।
- समिति अपनी रिपोर्ट स्पीकर को सौंपती है, और अंतिम निर्णय स्पीकर लेते हैं।
- सरकार अगर यह महसूस करे कि जेपीसी की रिपोर्ट देश की सुरक्षा के लिए खतरा है, तो इसे रोक सकती है।
जेपीसी में सदस्य:
- जेपीसी का गठन स्पीकर करते हैं। इसमें लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य शामिल होते हैं, इसमे लोकसभा के सदस्यों की संख्या राज्यसभा के सदस्यों से दोगुनी होती है, आमतौर पर 15 सदस्यों वाली जेपीसी बनाई जाती है।
- जिस पार्टी के सांसद अधिक होते हैं, उसके सदस्य भी जेपीसी में ज्यादा शामिल होते हैं।