भारत का पहला जहाज-से-जहाज LNG बंकरिंग केंद्र अब केरल के विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह पर बनने जा रहा है। अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन (APSEZ) और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (BPCL) ने इस परियोजना के लिए साझेदारी की है। यह केंद्र पारंपरिक समुद्री ईंधन के बजाय LNG (liquefied natural gas) का इस्तेमाल बढ़ावा देगा, जिससे जहाजों से होने वाले कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।
पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्ग के पास स्थित यह बंदरगाह भारत को वैश्विक समुद्री ऊर्जा परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका देगा। यह कदम भारत को अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) के डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों के अनुरूप आगे बढ़ाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बंदरगाह मंत्री वी.एन. वासवन ने कहा,
केरल ने विझिनजाम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के माध्यम से एक और गौरवपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने राज्य और राष्ट्र दोनों के लिए इस परियोजना के महत्व पर जोर दिया।
LNG बंकरिंग से क्या तात्पर्य है?
LNG बंकरिंग का मतलब है जहाज़ों में तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) को ईंधन के रूप में भरना। बंकरिंग स्टेशन वह जगह होती है जहाँ जहाज़ों में ईंधन डाला जाता है — जैसे पारंपरिक समुद्री ईंधन या अब आधुनिक और पर्यावरण-अनुकूल LNG।
ऐसे स्टेशन समुद्री परिवहन के लिए बहुत ज़रूरी हैं क्योंकि ये ईंधन आपूर्ति की सुरक्षा, विश्वसनीयता और दक्षता सुनिश्चित करते हैं। LNG के उपयोग से जहाजों से होने वाले प्रदूषण में भारी कमी आती है।
बंकरिंग के विभिन्न प्रकार:
- ट्रक-से-जहाज (Truck-to-Ship): यह सबसे आम तरीका है। इसमें LNG से भरे ट्रक को एक लचीली पाइप से जहाज़ से जोड़ा जाता है और ईंधन भरा जाता है। यह तरीका छोटे जहाज़ों के लिए उपयुक्त है क्योंकि इसमें कम खर्च आता है।
- जहाज-से-जहाज (Ship-to-Ship): इस तरीके में एक जहाज़ से दूसरे जहाज़ में LNG भरा जाता है। यह काम बंदरगाह के पास, लंगर पर या समुद्र में भी किया जा सकता है। समुद्र में बंकरिंग के लिए यह तरीका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है। हालांकि, इसके लिए खास परमिट की ज़रूरत होती है क्योंकि LNG को खतरनाक माल माना जाता है।
- किनारे से जहाज तक (Shore-to-Ship): इसमें LNG को सीधे बंदरगाह के टर्मिनल या स्टोरेज टैंक से पाइपलाइन के ज़रिए जहाज़ में भरा जाता है। इस प्रक्रिया में बड़े लोडिंग आर्म्स का इस्तेमाल होता है, जिससे ईंधन भरने की गति और दक्षता दोनों बढ़ जाती हैं।
LNG बंकरिंग के दौरान होने वाले खतरे:
- रिसाव और फैलाव: LNG स्थानांतरण के समय पाइप या कनेक्शन से गैस का रिसाव हो सकता है, जिससे खतरा बढ़ जाता है।
- त्वचा पर जलन या ठंड से चोट: LNG बहुत ठंडी गैस होती है। इसके संपर्क में आने से त्वचा पर क्रायोजेनिक जलन या शीतदंश (फ्रॉस्टबाइट) हो सकता है।
- आग और विस्फोट का खतरा: अगर गैस किसी वजह से लीक होकर हवा में फैल जाए और आग के संपर्क में आए, तो विस्फोट हो सकता है।
- बंकर लाइन का दूषित होना: पाइपलाइन में अशुद्धियां या पुराने ईंधन के अवशेष मिल जाने से संचालन प्रभावित हो सकता है।
- ऑक्सीजन की कमी: बंद या सीमित जगहों में LNG गैस के फैलने से ऑक्सीजन का स्तर घट सकता है, जिससे चालक दल के सदस्यों को सांस लेने में कठिनाई या बेहोशी का खतरा होता है।
अश्विनी गुप्ता और राहुल टंडन के बीच समझौता ज्ञापन:
अडानी पोर्ट्स एंड एसईजेड (APSEZ) के CEO अश्विनी गुप्ता और BPCL के गैस व्यवसाय प्रमुख राहुल टंडन ने समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए। इस मौके पर BPCL के विपणन निदेशक शुभंकर सेन, वित्त निदेशक जी.आर. वेत्सा, औद्योगिक और वाणिज्यिक व्यवसाय प्रमुख मनोज मेनन, AVPPL के CEO प्रदीप जयरामन और APSEZ की व्यवसाय विकास प्रमुख एना जग्गा समेत कई वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।
APSEZ और BPCL के बीच यह समझौता कितना अहम?
APSEZ और BPCL के बीच यह समझौता बहुत अहम है क्योंकि इससे भारत में टिकाऊ और पर्यावरण अनुकूल बंदरगाह विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- अडानी पोर्ट्स के CEO अश्विनी गुप्ता के अनुसार, यह साझेदारी हरित और भविष्य के लिए तैयार समुद्री सुविधाएं बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- BPCL अपनी तकनीकी विशेषज्ञता और अनुभव का इस्तेमाल करके अंतरराष्ट्रीय स्तर की एलएनजी बंकरिंग सेवाएं देगा, जिससे यह परियोजना सुरक्षित, भरोसेमंद और कुशल तरीके से काम कर सकेगी।
नेट-ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य का प्रत्यक्ष समर्थन:
यह पहल भारत के 2070 तक नेट-ज़ीरो उत्सर्जन के लक्ष्य को सीधे तौर पर समर्थन देती है। इससे देश पर्यावरण-अनुकूल समुद्री तकनीक अपनाने में अग्रणी बन जाएगा। विझिंजम की यह सुविधा शुरू होने के बाद पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार बंदरगाह ढांचे का एक वैश्विक उदाहरण बनेगी और पूरे क्षेत्र में कम कार्बन वाले समुद्री ईंधनों के इस्तेमाल को बढ़ावा देगी।
विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के बारे में:
विझिंजम भारत का पहला गहरे पानी वाला ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह है, जिसे कंटेनर और विभिन्न प्रकार के माल (कार्गो) संभालने के लिए बनाया गया है। यह बंदरगाह सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर बनाया गया है, जिसमें डिजाइन, निर्माण, वित्त, संचालन और बाद में हस्तांतरण (DBFOT) का ढांचा अपनाया गया है।
उद्देश्य:
इसका मुख्य उद्देश्य भारत की विदेशी बंदरगाहों पर निर्भरता को कम करना है, क्योंकि अभी लगभग 75% ट्रांसशिपमेंट कार्गो विदेशों में हैंडल होता है। देश के भीतर ही इस काम को करने से हर साल भारत को करीब 200 से 220 मिलियन अमेरिकी डॉलर की बचत हो सकती है।
विझिंजम की भौगोलिक स्थिति महत्वपूर्ण:
विझिंजम की भौगोलिक स्थिति इसे एक खास रणनीतिक फायदा देती है। यह यूरोप, फारस की खाड़ी, दक्षिण-पूर्व एशिया और सुदूर पूर्व को जोड़ने वाले व्यस्त पूर्व-पश्चिम शिपिंग मार्ग से सिर्फ 10 समुद्री मील (करीब 19 किमी) की दूरी पर है। इस कारण यह बंदरगाह प्राकृतिक रूप से ट्रांसशिपमेंट और ईंधन भरने के केंद्र के रूप में काम करता है। भारत के सुदूर दक्षिणी छोर पर स्थित होने के कारण यह बंदरगाह देश के पूर्वी और पश्चिमी दोनों तटों पर मौजूद प्रमुख बंदरगाहों से भी आसानी से जुड़ा हुआ है।
भारत का बंदरगाह क्षेत्र:
7,517 किमी लंबी तटरेखा के साथ भारत एक प्रमुख समुद्री राष्ट्र है। समुद्री परिवहन भारत के कुल व्यापार का लगभग 95% मात्रा और 70% मूल्य संभालता है, जो इसे देश की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बनाता है।
बंदरगाहों का वर्गीकरण:
प्रमुख बंदरगाह: भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह हैं, जबकि वधावन और गैलेथिया को नए प्रमुख बंदरगाहों के रूप में प्रस्तावित किया गया है। इनका संचालन बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय (MoPSW) द्वारा किया जाता है और ये “लैंडलॉर्ड पोर्ट मॉडल” पर काम करते हैं।
- मुंबई बंदरगाह: सबसे बड़ा प्राकृतिक बंदरगाह
- कोलकाता बंदरगाह: सबसे पुराना और एकमात्र नदी बंदरगाह
- एन्नोर बंदरगाह: भारत का एकमात्र निगमित बंदरगाह
गैर-प्रमुख (लघु) बंदरगाह: देश में 200 से अधिक छोटे बंदरगाह हैं, जिनका संचालन राज्य सरकारें करती हैं। इनका विकास आमतौर पर PPP(Public-Private Partnership) मॉडल के तहत किया जाता है और ये भारतीय बंदरगाह अधिनियम, 1908 के अनुसार संचालित होते हैं।
बंदरगाह क्षेत्र के लिए प्रमुख सरकारी पहलें:
- सागरमाला कार्यक्रम (2015): बंदरगाह आधुनिकीकरण, बेहतर कनेक्टिविटी, औद्योगिक क्लस्टर और तटीय विकास पर फोकस। साथ ही 5.5 लाख करोड़ रुपये से अधिक की 800+ परियोजनाएँ शुरू की गईं है।
- समुद्री अमृत काल विज़न 2047: 2047 तक भारत को वैश्विक समुद्री शक्ति बनाना, बंदरगाह क्षमता बढ़ाना, जल परिवहन को प्रोत्साहन और हरित विकास इसका लक्ष्य है।
- राष्ट्रीय रसद पोर्टल (समुद्री): एक डिजिटल प्लेटफॉर्म जो लॉजिस्टिक हितधारकों को जोड़ता है और बंदरगाह संचालन में पारदर्शिता व दक्षता लाता है।
- सागर मंथन: बंदरगाह प्रदर्शन की निगरानी के लिए वास्तविक समय डैशबोर्ड।
- सागर-सेतु ऐप: जहाजों की आवाजाही, कार्गो और वित्तीय जानकारी का रियल-टाइम अपडेट देकर व्यापार को आसान बनाता है।
निष्कर्ष:
विझिंजम अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह पर प्रस्तावित यह जहाज-से-जहाज LNG बंकरिंग केंद्र भारत के समुद्री क्षेत्र में एक ऐतिहासिक बदलाव का प्रतीक है। यह न केवल देश की पर्यावरण-अनुकूल ऊर्जा नीति को गति देगा, बल्कि भारत को वैश्विक समुद्री व्यापार में एक टिकाऊ और जिम्मेदार शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।
