अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी 9 से 16 अक्टूबर तक भारत दौरे पर हैं। यह 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद भारत द्वारा किसी तालिबान नेता का पहला उच्चस्तरीय स्वागत है। इस दौरे के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने उनसे मुलाकात की और अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के प्रति भारत की प्रतिबद्धता जताई। साथ ही उन्होंने काबुल में भारत का दूतावास फिर से खोलने का ऐलान भी किया।

चार वर्ष बाद राजनयिक संबंधों की बहाली:
चार साल बाद भारत और अफगानिस्तान के बीच राजनयिक संबंध फिर बहाल किए गए हैं। 2021 में तालिबान और तत्कालीन अफगान सरकार के बीच लड़ाई के कारण भारत ने काबुल में अपने दूतावास का दर्जा घटा दिया था और छोटे शहरों में वाणिज्य दूतावास बंद कर दिए थे। हिंसा के कारण दूतावास कर्मियों को निकालने के लिए भारत ने सैन्य विमान भेजे थे, और उन्हें वापस लाने के लिए 15 और 16 अगस्त 2021 को दो C-17 परिवहन विमानों ने उड़ान भरी।

हालाँकि, 2022 में व्यापार, चिकित्सा सहायता और मानवीय सहायता की सुविधा के लिए एक छोटा मिशन खोला था। लेकिन राजनयिक संबंधों की फिर से बहाली भारत की पड़ोस कूटनीति में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
दिल्ली स्थित अफगान दूतावास में झंडा फहराने पर रोक:
दिल्ली में हुई विदेश मंत्री एस. जयशंकर और अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की बैठक में किसी भी देश का झंडा इस्तेमाल नहीं किया गया। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता नहीं दी है। इसी वजह से भारत ने तालिबान को अफगान दूतावास में अपना झंडा फहराने की अनुमति भी नहीं दी है। दूतावास में अभी भी “इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान” का झंडा फहराया जाता है- यह वही शासन था जिसका नेतृत्व अपदस्थ राष्ट्रपति अशरफ गनी कर रहे थे। यह व्यवस्था अब तक जारी है।
इससे पहले भी तालिबान के झंडे को लेकर कई बार चर्चा हो चुकी है। जनवरी में दुबई में विदेश सचिव विक्रम मिसरी और मुत्ताकी की बैठक के दौरान भी न तो भारतीय तिरंगा और न ही तालिबान का झंडा फहराया गया था।
पहले भी तालिबान शासन में भारत ने बंद की थी दूतावास:
1996 से 2001 के बीच जब तालिबान पहली बार सत्ता में आया था, तब भारत ने उनके साथ किसी भी तरह की बातचीत करने से इनकार कर दिया और उनके शासन को मान्यता नहीं दी। उस समय तालिबान सरकार को सिर्फ पाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने मान्यता दी थी।
भारत, जो पहले सोवियत समर्थित नजीबुल्लाह सरकार का समर्थन करता था, ने तालिबान के आने के बाद काबुल में अपना दूतावास बंद कर दिया था। भारत का मानना था कि तालिबान पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों का समर्थन प्राप्त संगठन है।
इसके बजाय, भारत ने तालिबान के विरोध में लड़ रहे “नॉर्दर्न अलायंस” समूह का समर्थन किया। बाद में 2001 में अमेरिका के नेतृत्व में तालिबान को सत्ता से हटाने के बाद भारत ने फिर से काबुल में अपना दूतावास खोला और अफगानिस्तान के विकास में एक अहम साझेदार बन गया। भारत ने वहां बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, शिक्षा और जल परियोजनाओं में 3 अरब डॉलर से ज्यादा का निवेश किया।
भारत के विदेश मंत्री ने कहा,
यह यात्रा दोनों देशों के संबंध मजबूत करने का एक कदम है। उन्होंने व्यक्तिगत मुलाकात के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि इससे नजरिया बदलता है और साझा हित समझ में आते हैं। विदेश मंत्री ने पहलगाम आतंकी हमले के दौरान अफगानिस्तान के समर्थन को भी सराहनीय बताया और कहा कि आतंकवाद के सभी रूपों से लड़ने के लिए प्रयासों का समन्वय करना जरूरी है। दोनों देश इस मुद्दे पर मिलकर काम करेंगे।
विदेश मंत्री ने आगे कहा कि भारत अफगानिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता के प्रति पूरी तरह प्रतिबद्ध है। विदेश मंत्री जयशंकर ने अफगान विदेश मंत्री मुत्ताकी को धन्यवाद दिया क्योंकि उन्होंने भारतीय कंपनियों को अफगानिस्तान में खनन के अवसरों की तलाश के लिए आमंत्रित किया है। जयशंकर ने यह भी कहा कि भारत काबुल में अपना दूतावास फिर से खोलेगा।
अफगान विदेश मंत्री की भारत यात्रा की मुख्य बातें:
- भारत ने एक विशेष पहल के तहत अफगानिस्तान को 20 एम्बुलेंस उपहार में दीं, जो भारत के लोगों की ओर से दोस्ती और सहयोग का प्रतीक हैं।
- क्षमता निर्माण के क्षेत्र में, भारत e-ICCR छात्रवृत्ति योजना के तहत अफगान छात्रों को पढ़ाई के लिए छात्रवृत्तियाँ देता रहेगा।
- दोनों देशों ने भारत-अफगानिस्तान एयर फ्रेट कॉरिडोर के शुरू होने का स्वागत किया, जिससे दोनों देशों के बीच सीधा व्यापार और वाणिज्यिक संबंध और मजबूत होंगे।
अपनी जमीन किसी अन्य देश को देने से इंकार:
अमीर खान मुत्ताकी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा कि अफगानिस्तान बगराम एयरबेस किसी को नहीं देगा। उन्होंने दोहराया कि उनकी जमीन का इस्तेमाल किसी अन्य देश के खिलाफ नहीं होने दिया जाएगा। दरअसल, हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि अमेरिका अफगानिस्तान में बनाया गया बगराम एयरबेस वापस चाहता है। इस पर मुत्ताकी ने जवाब दिया कि अफगान लोग कभी अपनी जमीन पर किसी विदेशी सेना को बर्दाश्त नहीं करेंगे।
भारत-अफगानिस्तान स्वास्थ्य सहयोग:
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मावलवी अमीर खान मुत्ताकी की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में कई नई परियोजनाएं शुरू की जा रही हैं। इन परियोजनाओं का उद्देश्य अफगानिस्तान की स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना और दोनों देशों के बीच सहयोग को और गहरा बनाना है। इनमें शामिल हैं:
- काबुल में थैलेसीमिया केंद्र की स्थापना।
- काबुल के इंदिरा गांधी बाल स्वास्थ्य संस्थान (IGICH) में आधुनिक डायग्नोस्टिक सेंटर बनाना और हीटिंग सिस्टम को बदलना।
- काबुल के बगरामी जिले में 30 बिस्तरों वाला अस्पताल बनाना।
- काबुल में एक ऑन्कोलॉजी (कैंसर) केंद्र की स्थापना।
- काबुल में एक ट्रॉमा सेंटर का निर्माण।
- पक्तिका, खोस्त और पक्तिया प्रांतों में पाँच प्रसूति (मातृ स्वास्थ्य) क्लीनिकों का निर्माण।
मास्को प्रारूप देशों का अफगानिस्तान को समर्थन:
मंगलवार को जारी एक संयुक्त बयान में Moscow format of consultations on Afghanistan के सदस्य देशों- जिनमें भारत और पाकिस्तान जैसे प्रतिद्वंद्वी देश भी शामिल हैं- ने अफगानिस्तान को एक स्वतंत्र, एकजुट और शांतिपूर्ण देश के रूप में स्थापित करने के अपने अटूट समर्थन की पुष्टि की। इस समूह में रूस, चीन, ईरान और मध्य एशियाई देश भी शामिल हैं, जो अफगानिस्तान में अमेरिका की किसी भी वापसी का विरोध करते हैं।
निष्कर्ष:
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी की यह यात्रा भारत और अफगानिस्तान के बीच नए दौर की कूटनीतिक शुरुआत मानी जा रही है। चार वर्ष बाद काबुल में भारतीय दूतावास के पुनः खुलने की घोषणा न केवल द्विपक्षीय संबंधों में विश्वास बहाली का संकेत है, बल्कि यह क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।