भारत-कनाडा खुफिया सहयोग फिर से शुरू हुआ

भारत और कनाडा ने हाल ही में खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान फिर से शुरू करके द्विपक्षीय भरोसे को मजबूत करने की दिशा में एक अहम कदम उठाया है। लंबे विराम के बाद बहाल हुई यह प्रक्रिया उन चुनौतियों पर संयुक्त रूप से प्रतिक्रिया देने की क्षमता बढ़ाती है, जो अंतरराष्ट्रीय अपराध, चरमपंथ और संवेदनशील सूचनाओं की निगरानी से जुड़ी हैं। नई पहल से यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों की सरकारें भविष्य में सुरक्षा तथा कानून प्रवर्तन से जुड़े सहयोग को अधिक प्रभावी बनाना चाहती हैं।

India-Canada intelligence cooperation resumes

भारत–कनाडा खुफिया सहयोग के हालिया आयाम

  • भारत और कनाडा के बीच सुरक्षा संवाद का नया चरण ऐसे समय शुरू हुआ है, जब दोनों देश द्विपक्षीय संबंधों को व्यावहारिक रूप से आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। हाल की बैठकों और संवादों से स्पष्ट हुआ कि दोनों पक्ष अब सुरक्षा समन्वय को पहले से अधिक पारदर्शी रूप में तैयार कर रहे हैं।
  • यह प्रक्रिया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है। सितंबर 2025 में कनाडा की नेशनल सिक्योरिटी एंड इंटेलिजेंस एडवाइज़र नथाली जी. द्रूआँ नई दिल्ली आईं। उनकी भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ विस्तृत बैठक हुई, जिसमें खुफिया सूचनाओं के आदान–प्रदान को संस्थागत ढांचे में व्यवस्थित करने पर विशेष चर्चा हुई।
  • द्रूआँ के कनाडा लौटने के बाद भी बातचीत का सिलसिला जारी रहा। ओटावा में भारत के उच्चायुक्त दिनेश पटनायक ने दिसंबर 2025 की शुरुआत में कनाडा के पब्लिक सेफ्टी मंत्री गैरी आनंदसंगरी से मुलाकात की। इस बैठक में दोनों पक्षों ने कानून प्रवर्तन से जुड़े साझा एजेंडे की समीक्षा की और उन क्षेत्रों पर सहमति बनाई जिन्हें प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • संस्थागत स्तर पर भी बातचीत लगातार चल रही है। कनाडा की रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) और भारत की नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (NIA) नियमित रूप से वर्चुअल संवाद करती हैं। इन सत्रों में ऑपरेशनल तरीकों, सूचनाओं के सुरक्षित आदान–प्रदान, और फील्ड-लेवल समन्वय पर काम किया जाता है। 
  • दोनों देश संगठित अपराध समूहों की गतिविधियों पर करीबी नजर रख रहे हैं। इसके साथ ही आतंकवादी नेटवर्क, हथियारों की अवैध आवाजाही और ड्रग तस्करी जैसे विषय लगातार समीक्षा में हैं। भारतीय अधिकारियों का मानना है कि वास्तविक परिणाम तभी मिलेंगे जब दोनों देशों की जांच और सुरक्षा संस्थाएं एक-दूसरे की कार्यप्रणाली को समझें और अधिक तालमेल के साथ काम करें।

 

भारत–कनाडा के बीच खुफिया सहयोग निलंबन की पृष्ठभूमि

  • घटना और विवाद: जून 2023 में ब्रिटिश कोलंबिया के सरी क्षेत्र में एक सिख गुरुद्वारे के बाहर निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई। वह कनाडा का नागरिक था और लंबे समय से खालिस्तान समर्थक गतिविधियों से सार्वजनिक रूप से जुड़ा रहा था। उसकी मौत ने कनाडा में व्यापक आक्रोश पैदा किया।
  • कनाडा के आरोप: सितंबर 2023 में कनाडा के प्रधानमंत्री ने संसद में यह कहते हुए गंभीर बयान दिया कि उनके पास ऐसे “विश्वसनीय संकेत” हैं, जिनसे भारत सरकार से जुड़े तत्वों की इस हत्या में भूमिका की संभावना दिखती है। कनाडा का कहना था कि यह दावा मानव स्रोतों, निगरानी तंत्र और सिग्नल इंटेलिजेंस से प्राप्त जानकारी पर आधारित था, जिसमें भारत के राजनयिकों के संदर्भ भी शामिल बताए गए।
  • कूटनीतिक तनाव: इन आरोपों के सार्वजनिक होने के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच संबंध तेजी से बिगड़ गए। कनाडा ने भारत के वरिष्ठ राजनयिकों को देश से बाहर जाने का आदेश दिया। भारत ने भी समान स्तर पर कदम उठाते हुए कनाडाई राजनयिकों को निष्कासित किया और यह मुद्दा उठाया कि कनाडा लंबे समय से अलगाववादी और उग्रवादी तत्वों को अनदेखा कर रहा है।
  • वीज़ा निलंबन: तनाव बढ़ने के बाद भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए वीज़ा सेवाएँ अस्थायी रूप से रोक दीं। साथ ही, कनाडा में रहने वाले भारतीयों और दूतावास कर्मियों के लिए नई सुरक्षा सलाह जारी की गई, जिनमें “भारत-विरोधी गतिविधियों” और संभावित खतरों का उल्लेख किया गया। 
  • भारत की चिंता: भारतीय एजेंसियों ने लंबे समय से यह मुद्दा उठाया था कि कनाडा में ऐसे समूह सक्रिय हैं जो प्रतिबंधित अलगाववादी आंदोलन से जुड़े हैं। भारत ने दावा किया कि कई बार दी गई चेतावनियों और प्रत्यर्पण अनुरोधों को पर्याप्त गंभीरता नहीं मिली। इन अनसुलझे मुद्दों ने विवाद को और गहरा किया।
  • द्विपक्षीय संबंधों पर असर: इस कूटनीतिक टकराव ने केवल खुफिया सहयोग को ही प्रभावित नहीं किया, बल्कि व्यापार वार्ताएँ, वीज़ा प्रक्रियाएँ, राजनयिक उपस्थिति और कानून प्रवर्तन सहयोग भी लगभग ठप हो गया। दोनों देशों के बीच ट्रांसनेशनल अपराधों पर संयुक्त प्रयासों में कमी आई और संचार चैनल गंभीर रूप से सीमित हो गए।

 

भारत–कनाडा खुफिया एवं सुरक्षा सहयोग

  • कानूनी ढांचा: भारत और कनाडा ने आपराधिक न्याय सहयोग के लिए कई दशक पहले ही औपचारिक संरचना विकसित कर ली थी। 1987 में दोनों देशों ने प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर किए, जिससे भगोड़ों को सौंपने और अपराधियों के विरुद्ध कार्रवाई में पारस्परिक सहायता के प्रावधान सुनिश्चित हुए। इसके बाद आपसी कानूनी सहायता संधि (MLAT) स्थापित हुई, जिसे 1998 में लागू किया गया। इस व्यवस्था के तहत दोनों राष्ट्र कानूनी दस्तावेज़ साझा करने, जांच में सहयोग करने और सीमा पार अपराधों से जुड़े मामलों में औपचारिक अनुरोध भेजने में सक्षम हुए।
  • आतंकवाद-निरोधी सहयोग: 1997 में दोनों देशों ने आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्यकारी समूह (Joint Working Group on Counter Terrorism) की स्थापना की। इस मंच ने दोनों सरकारों को हिंसक उग्रवाद, आतंकवादी नेटवर्क और सीमा पार खतरों पर समन्वित रूप से प्रतिक्रिया देने को सक्षम कर दिया। इस व्यवस्था के अंतर्गत खुफिया जानकारी के आदान-प्रदान, जोखिम आकलन, और साझा खतरे की पहचान को व्यवस्थित रूप से आगे बढ़ाया गया।
  • 2018 में आधुनिक सहयोग ढाँचे की स्थापना: फरवरी 2018 में भारत और कनाडा ने आतंकवाद और हिंसक चरमपंथ से निपटने के लिए एक औपचारिक सहयोग रूपरेखा पर हस्ताक्षर किए। यह दस्तावेज़ दोनों देशों को वैश्विक सुरक्षा वातावरण में उभर रही चुनौतियों—जैसे आतंकवाद वित्तपोषण, ऑनलाइन कट्टरता, संगठित अपराध और अंतरराष्ट्रीय आपराधिक नेटवर्क—का संयुक्त रूप से सामना करने के लिए स्पष्ट दिशा देता है। 
  • कानून प्रवर्तन एजेंसियों के बीच संचालनात्मक सहयोग: सहयोग के इन समझौतों का प्रभाव कानून प्रवर्तन स्तर पर भी दिखाई देता रहा। जनवरी 2020 में रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (RCMP) का एक दल भारत आया, जहाँ उसने भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के साथ आतंकवाद-निरोधी रणनीतियों और साझा खतरों पर विस्तृत बातचीत की। इसके बाद नवंबर 2021 में भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने कनाडा का दौरा किया। इस यात्रा का उद्देश्य आतंकवादी गतिविधियों, संगठित नेटवर्क और ट्रांसनेशनल अपराधों पर बेहतर तालमेल बनाना था।

 

भारत–कनाडा खुफिया सहयोग का सामरिक महत्व

  • इंडो-पैसिफिक में नियम आधारित व्यवस्था का समर्थन: कनाडा की इंडो-पैसिफिक रणनीति में भारत एक महत्वपूर्ण साझेदार है। दोनों देशों के बीच खुफिया सहयोग इस दृष्टि को मजबूत करता है, क्योंकि इससे क्षेत्रीय स्थिरता को सुरक्षित करने की क्षमता बढ़ती है। समुद्री मार्गों की सुरक्षा, अवैध गतिविधियों पर निगरानी और बड़े शक्ति प्रतिद्वंद्वियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने में संयुक्त तैयारी विकसित होती है। यह सामरिक समन्व मुक्त और नियम-आधारित इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को भी सुदृढ़ करता है।
  • सीमापार अपराधों और उग्रवाद पर संयुक्त प्रतिक्रिया: भारत और कनाडा दोनों ऐसी चुनौतियों का सामना करते हैं जिनका संचालन कई देशों में फैले आपराधिक एवं उग्रवादी नेटवर्क करते हैं। सूचना आदान-प्रदान और खुफिया साझेदारी से इन नेटवर्कों की पहचान, उनके मार्गों का विश्लेषण और उनकी गतिविधियों को बाधित करने में अधिक प्रभावी सहयोग बनता है। आतंकवाद और संगठित अपराध जैसी समस्याओं पर संयुक्त कार्रवाई दोनों देशों की आंतरिक सुरक्षा को सीधे मजबूत करती है।
  • प्रवासी समुदाय की सुरक्षा और निगरानी: कनाडा में भारतीय मूल की बड़ी आबादी रहती है और यह समुदाय दोनों देशों को जोड़ने वाला महत्वपूर्ण सामाजिक पुल है। खुफिया सहयोग से सरकारें उन तत्वों की निगरानी कर पाती हैं जो प्रवासी समुदाय का उपयोग हिंसक या आपराधिक गतिविधियों के लिए करना चाहते हैं। यह प्रक्रिया भारत के लिए आंतरिक सुरक्षा जोखिमों को कम करती है और कनाडा में बसे भारतीय मूल के लोगों के लिए सुरक्षित वातावरण सुनिश्चित करती है। 
  • आर्थिक और रणनीतिक संबंधों के लिए आधार निर्माण: सुरक्षा स्थिरता किसी भी मजबूत आर्थिक साझेदारी की बुनियाद होती है। जब दो देशों के बीच विश्वसनीय खुफिया सहयोग मौजूद रहता है, तो व्यापारिक निवेश, तकनीकी सहयोग और सामरिक क्षेत्रों में साझेदारी का माहौल और अधिक विश्वसनीय बनता है। सुरक्षा संबंधों की स्थिरता से व्यापारिक जोखिम कम होते हैं और दीर्घकालिक आर्थिक योजनाओं में विश्वास बढ़ता है।

 

भारत–कनाडा संबंधों में उभरती चुनौतियाँ

  • खालिस्तानी उग्रवाद से जुड़ी जटिलताएँ: भारत लंबे समय से यह आग्रह करता रहा है कि कनाडा में कुछ समूह ऐसे माहौल का लाभ उठाते हैं जहाँ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर भारत-विरोधी और विभाजनकारी विचारों को प्रोत्साहन मिलता है। दूसरी ओर, कनाडा की कानूनी और राजनीतिक संरचना इन गतिविधियों को लोकतांत्रिक अधिकारों के दायरे में देखने की प्रवृत्ति रखती है, जिससे दोनों देशों की प्राथमिकताओं में असमानता दिखाई देती है।
  • व्यापारिक प्रगति में संरचनात्मक बाधाएँ: द्विपक्षीय व्यापार अभी भी अपनी वास्तविक क्षमता से काफी पीछे है। इसका कारण दोनों देशों में मौजूद जटिल नीतिगत ढाँचे, श्रम कानूनों की कठोरता और बाजार सुरक्षा जैसे अवरोध हैं। राजनयिक तनाव जब बढ़ता है, तो निवेशकों के बीच अनिश्चितता पैदा होती है, जिससे दीर्घकालिक आर्थिक साझेदारी पर प्रभाव पड़ रहा है।
  • वीज़ा और प्रवासन से जुड़े व्यवधान: कनाडा में भारतीय छात्रों और पेशेवरों की बड़ी संख्या रहती है। हालिया तनावों के कारण वीज़ा प्रक्रियाएँ धीमी हुईं, नियम कठोर हुए और अस्वीकृति दर बढ़ गई है। इससे भारतीय समुदाय में चिंता और असुरक्षा का वातावरण बना।
  • बहुपक्षीय मंचों पर मतभेद: G20, G7 और कॉमनवेल्थ जैसे मंचों पर दोनों देश सामान्यतः नियम आधारित व्यवस्था का समर्थन करते हैं, लेकिन चीन के प्रति दृष्टिकोण और रूस–यूक्रेन संघर्ष जैसे मुद्दों पर उनकी नीतियाँ अलग-अलग हैं। राजनयिक विवाद इन वैश्विक सहयोगों को और कमजोर करता है।

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