ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 2025 में रिकॉर्ड 106 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जिसका मुख्य कारण यह है कि आयात, निर्यात की तुलना में कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है।
भारत–चीन व्यापार संबंध में वर्तमान रुझान
- द्विपक्षीय व्यापार: हाल के वर्षों में भारत–चीन व्यापार ने राजनीतिक तनावों के बावजूद तेज़ गति दिखाई है। वित्त वर्ष 2023–24 में दोनों देशों के बीच वस्तु व्यापार लगभग 118.4 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। इस अवधि में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बना और उसने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया। हालांकि, 2024–25 में तस्वीर थोड़ी बदली। भारत का निर्यात घटा जबकि आयात में तेज़ बढ़ोतरी जारी रही। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत का व्यापार घाटा करीब 99.2 अरब डॉलर तक पहुँच गया, जो किसी भी एक देश के साथ भारत के सबसे बड़े घाटों में से एक है।
- आयात–निर्यात अंतर: भारत और चीन के व्यापार में आयात और निर्यात का अंतर लगातार बढ़ता गया है। 2021 में भारत ने चीन से लगभग 87.7 अरब डॉलर का आयात किया, जबकि निर्यात करीब 23 अरब डॉलर रहा। इसके बाद निर्यात में गिरावट देखी गई। 2025 तक निर्यात के लगभग 17.5 अरब डॉलर रहने का अनुमान है, जो पुराने स्तर से काफी कम है। इसके विपरीत, आयात बढ़कर 123.5 अरब डॉलर के आसपास पहुँचने का अनुमान है। हालांकि जनवरी से अक्टूबर 2025 के बीच कुछ महीनों में निर्यात में सुधार दिखा और नवंबर 2025 में निर्यात में उल्लेखनीय उछाल दर्ज किया गया।
- चीन से आयात के प्रमुख क्षेत्र: भारत का चीन पर आयात निर्भरता कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में बहुत अधिक है। लगभग 80 प्रतिशत आयात केवल चार बड़े वर्गों से आता है। इनमें इलेक्ट्रॉनिक्स, मशीनरी, ऑर्गेनिक केमिकल्स और प्लास्टिक शामिल हैं। इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भारत चीन से मोबाइल फोन के पुर्जे, इंटीग्रेटेड सर्किट, लैपटॉप, सोलर मॉड्यूल, फ्लैट पैनल डिस्प्ले, लिथियम-आयन बैटरी और मेमोरी चिप्स आयात करता है। ये सभी भारत की औद्योगिक और डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए अहम हैं।
- चीन को भारत से निर्यात: चीन को भारत का निर्यात मूल्य और विविधता दोनों में सीमित बना हुआ है। पारंपरिक रूप से भारत ने लौह अयस्क, कपास, समुद्री उत्पाद, पेट्रोलियम उत्पाद और कुछ इंजीनियरिंग सामान चीन को भेजे हैं। हालांकि 2025 में कुछ महीनों में निर्यात बढ़ा, लेकिन सालाना स्तर पर यह अभी भी 2021 के 23 अरब डॉलर के शिखर से काफी नीचे है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत को चीन के लिए अधिक मूल्यवर्धित और विविध उत्पाद विकसित करने की आवश्यकता है।
भारत–चीन व्यापार घाटा बढ़ने के प्रमुख कारण
- इलेक्ट्रॉनिक्स आयात पर अत्यधिक निर्भरता: भारत और चीन के बीच बढ़ते व्यापार घाटे की सबसे बड़ी वजह इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में आयात पर भारी निर्भरता है। जनवरी से अक्टूबर 2025 के बीच भारत ने चीन से लगभग 38 अरब डॉलर के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद मंगाए। इनमें मोबाइल फोन के पुर्जे (8.6 अरब डॉलर), इंटीग्रेटेड सर्किट (6.2 अरब डॉलर), लैपटॉप (4.5 अरब डॉलर), सोलर सेल और मॉड्यूल (3 अरब डॉलर) तथा लिथियम-आयन बैटरियाँ (2.3 अरब डॉलर) शामिल रहीं।
- दवा उद्योग में एपीआई पर निर्भरता: भारत दुनिया में जेनरिक दवाओं का बड़ा उत्पादक है, लेकिन इसके लिए जरूरी कच्चे माल यानी एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स (APIs) का बड़ा हिस्सा चीन से आता है। खासकर एंटीबायोटिक एपीआई के मामले में चीन लगभग पूरी आपूर्ति करता है। वैकल्पिक स्रोतों की कमी के कारण भारतीय दवा कंपनियों को चीनी आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भर रहना पड़ता है। यह स्थिति दवा क्षेत्र की मजबूती के बावजूद व्यापार संतुलन को प्रभावित करती है।
- मशीनरी और पूंजीगत वस्तुओं की जरूरत: भारत के औद्योगिक और अवसंरचना विकास में मशीनरी और पूंजीगत सामान की भूमिका अहम है। 2025 में चीन से मशीनरी आयात का मूल्य लगभग 25.9 अरब डॉलर रहा। इसमें औद्योगिक ट्रांसफॉर्मर (2.1 अरब डॉलर) जैसे उपकरण प्रमुख रहे। घरेलू स्तर पर इन वस्तुओं का पूर्ण विकल्प उपलब्ध न होने से उद्योगों को आयात पर निर्भर रहना पड़ता है। इस कारण मशीनरी आयात लगातार बढ़ता है और व्यापार घाटे में स्थायी योगदान देता है।
- चीनी उत्पादों की मूल्य प्रतिस्पर्धा: चीन की उत्पादन क्षमता, बड़े पैमाने पर विनिर्माण और कुशल आपूर्ति श्रृंखला उसे मूल्य के स्तर पर बढ़त देती है। यही वजह है कि इलेक्ट्रॉनिक पुर्जे, मशीनरी घटक और रसायन कई बार भारत में बनने की तुलना में चीन से मंगाना सस्ता पड़ता है। भारतीय व्यवसाय लागत कम रखने के लिए अक्सर चीनी उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं। यह आर्थिक व्यवहार भी व्यापार घाटे को बढ़ाता है।
- व्यापार आँकड़ों में असंगति: ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) की रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन के व्यापार आँकड़ों में अंतर देखा गया है। भारतीय आयात के आँकड़े, चीन के निर्यात आँकड़ों से कम दिखाई देते हैं। इससे अंडर-इनवॉयसिंग की आशंका बनती है। यह मामला सीमा शुल्क अधिकारियों के लिए जांच का विषय है, क्योंकि ऐसी असंगतियाँ वास्तविक व्यापार घाटे को और बढ़ा सकती हैं।
भारत द्वारा व्यापार असंतुलन कम करने के लिए अपनाई गई नीतिगत पहलें
- पीएलआई योजना का विस्तार: भारत ने आयात निर्भरता घटाने के लिए उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजना को अपनी मुख्य नीति बनाया है। ₹1.97 लाख करोड़ के कुल प्रावधान के साथ यह योजना 14 प्रमुख क्षेत्रों में लागू है। इसका उद्देश्य घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना, लागत कम करना और विदेशी आपूर्ति पर निर्भरता घटाना है। इस नीति से कई क्षेत्रों में निवेश और रोजगार दोनों बढ़े हैं।
- इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में स्थानीयकरण: इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में चीन की मजबूत पकड़ को कमजोर करने के लिए सरकार ने अप्रैल 2025 में ₹22,919 करोड़ के नए प्रोत्साहन स्वीकृत किए। इनका फोकस मोबाइल, सेमीकंडक्टर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट्स के घरेलू उत्पादन पर है। इससे भारत में मूल्य श्रृंखला विकसित हो रही है और आयात बिल में कमी आने की उम्मीद है।
- नवीकरणीय ऊर्जा में आत्मनिर्भरता: स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए सरकार ने स्पष्ट नीति अपनाई है। जून 2026 से सभी नवीकरणीय परियोजनाओं में देश में बनी सोलर सेल से तैयार मॉड्यूल का उपयोग अनिवार्य किया गया है। यह कदम चीन से होने वाले सोलर आयात पर लगभग 82.7% निर्भरता को घटाने की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
- दवा उद्योग में आयात प्रतिस्थापन: फार्मा क्षेत्र में भारत ने अहम प्रगति की है। पेनिसिलिन-जी जैसे महत्वपूर्ण बल्क ड्रग्स का घरेलू उत्पादन शुरू कर दिया गया है। इससे चीन से आने वाले एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रीडिएंट्स (APIs) पर लगभग 70% निर्भरता कम करने में मदद मिल रही है और दवा आपूर्ति सुरक्षित बन रही है।
- राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन: 2025 में शुरू किया गया राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन (NCMM) भारत को लिथियम, सिलिकॉन और ग्रेफाइट जैसे खनिजों में आत्मनिर्भर बनाने का लक्ष्य रखता है। 2035 तक यह मिशन ईवी और सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीनी निर्यात प्रतिबंधों से सुरक्षित करने की दिशा में काम करेगा।
- व्यापार उपचारात्मक उपाय: भारत ने अनुचित व्यापार प्रथाओं से निपटने के लिए कई कदम उठाए हैं। एंटी-डंपिंग शुल्क को पाँच वर्षों के लिए स्टील, रसायन और घरेलू उत्पादों पर लागू किया गया है। BIS द्वारा गुणवत्ता नियंत्रण आदेश सख्ती से लागू किए जा रहे हैं। साथ ही 2025 में कुछ स्टील उत्पादों पर 12% सुरक्षा शुल्क का प्रस्ताव रखा गया।
- निर्यात संवर्धन और बाजार विविधीकरण: भारत चीन में अपने निर्यात के लिए गैर-शुल्क बाधाएँ हटाने पर बातचीत कर रहा है। साथ ही चीन प्लस वन रणनीति के तहत यूके, ईयू और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ एफटीए पर जोर दिया जा रहा है। संवेदनशील क्षेत्रों में चीनी एफडीआई की सख्त जांच से रणनीतिक स्वायत्तता भी सुनिश्चित की जा रही है।
घरेलू विनिर्माण और एमएसएमई पर बढ़ते व्यापार घाटे का प्रभाव
- चीन के साथ बढ़ता व्यापार घाटा भारत के घरेलू विनिर्माण तंत्र पर लगातार दबाव बना रहा है। चीन से आने वाले कम कीमत वाले उत्पाद स्थानीय बाजार में भारतीय वस्तुओं की मांग को कमजोर करते हैं। मेक इन इंडिया पहल की शुरुआत 2014 में इस उद्देश्य से हुई थी कि विनिर्माण का योगदान जीडीपी में 25 प्रतिशत तक पहुँचे। इसके बावजूद 2024–25 में यह हिस्सा लगभग 17 प्रतिशत पर ही बना हुआ है।
- चीनी आयात का सीधा असर सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर पड़ता है। भारत में 6.3 करोड़ से अधिक एमएसएमई कार्यरत हैं। 2023 के सरकारी आँकड़ों के अनुसार ये इकाइयाँ देश की लगभग 30 प्रतिशत जीडीपी और करीब 45 प्रतिशत निर्यात में योगदान देती हैं। अधिकांश एमएसएमई मूल्य-संवेदनशील क्षेत्रों में काम करती हैं। इस असंतुलन के कारण भारतीय एमएसएमई कीमत और लागत दोनों में पिछड़ जाती हैं। इससे उनकी आय, रोजगार क्षमता और दीर्घकालिक टिकाऊपन पर नकारात्मक असर पड़ता है।
आगे की राह:
बढ़ते व्यापार घाटे से निपटने के लिए भारत को तात्कालिक निर्यात बढ़त से आगे बढ़कर लंबी अवधि की प्रतिस्पर्धी विनिर्माण क्षमता पर ध्यान देना होगा। केवल आंकड़ों में सुधार पर्याप्त नहीं है। ज़रूरत इस बात की है कि देश के भीतर मजबूत उत्पादन आधार विकसित हो। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के अनुसार, भारत को महत्वपूर्ण क्षेत्रों में आयात पर निर्भरता कम करनी चाहिए। इसके लिए रिवर्स इंजीनियरिंग कार्यक्रम शुरू किए जा सकते हैं।
भविष्य की प्रतिस्पर्धा सेमीकंडक्टर, चिप्स और बैटरी निर्माण जैसे डीप-टेक क्षेत्रों में तय होगी। सरकार को इन क्षेत्रों में अनुसंधान, कौशल विकास और निजी निवेश को प्रोत्साहित करना होगा। इससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में भारत की भूमिका मजबूत होगी। सरकार की अंतर-मंत्रालयी समिति को व्यापार निगरानी और सख्त करनी होगी। आयात-निर्यात आंकड़ों में दिख रहे डेटा अंतर और संभावित अंडर-इनवॉइसिंग की गहन जाँच जरूरी है।
