चाबहार पोर्ट पर भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों से6महीने के लिए छूट, भारत के लिए बड़ी राहत-

अमेरिका ने ईरान के चाबहार बंदरगाह पर लगे अपने प्रतिबंधों से भारत को छह महीने के लिए छूट दे दी है। भारत के विदेश मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि की। यह छूट 29 अक्टूबर, 2025 से लागू मानी जाएगी।

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने अपनी साप्ताहिक प्रेस वार्ता में बताया, ‘ईरान में चाबहार बंदरगाह के लिए हमें अमेरिकी प्रतिबंधों से छह महीने की छूट दी गई है।’ पिछले महीने, डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने ईरान में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण चाबहार बंदरगाह के संबंध में 2018 के प्रतिबंधों में छूट को रद्द करने के अपने फैसले की घोषणा की थी।

Chabahar Port

चाबहार बंगरगाह पर क्या थे अमेरिकी प्रतिबंध?

चाबहार बंदरगाह पर अमेरिका ने एक आदेश जारी कर कहा था कि वो 29 सितंबर से इस बंदरगाह को चलाने, पैसे देने या उससे जुड़े किसी काम में शामिल कंपनियों पर जुर्माना लगाएगा। हालांकि ट्रंप प्रशासन ने इस छूट को बाद में बढ़ाकर 27 अक्टूबर तक बढ़ा दिया था। अब इन प्रतिबंधों पर 6 महीने के लिए फिर से छूट दे दी गई है।

 

चाबहार पर अमेरिकी छूट: भारत-अमेरिका रिश्तों में नरमी का संकेत-

चाबहार बंदरगाह परियोजना पर अमेरिका द्वारा दी गई छह महीने की छूट भारत-अमेरिका संबंधों में बढ़ती नरमी का स्पष्ट संकेत मानी जा रही है। रूस से कच्चा तेल खरीदने को लेकर दोनों देशों के बीच हाल के महीनों में तनाव देखा गया था, लेकिन अब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम ने रिश्तों को नया सकारात्मक मोड़ दिया है।

विदेश मंत्रालय की प्रेस वार्ता में यह जानकारी दी गई कि अमेरिका ने चाबहार परियोजना को प्रतिबंधों से अस्थायी रूप से मुक्त कर दिया है। यह निर्णय न केवल भारत की ऊर्जा और व्यापारिक आवश्यकताओं के प्रति अमेरिकी समझ को दर्शाता है, बल्कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग को भी गहरा करने वाला कदम साबित हो सकता है।

 

चाबहार पोर्ट के बारे मे:

चाबहार पोर्ट दक्षिण-पूर्वी ईरान में स्थित है, ओमान की खाड़ी के किनारे, और यह ईरान का एकमात्र महासागरीय बंदरगाह है। यह दो अलग-अलग बंदरगाहों- शाहिद कलंतरी और शाहिद बेहेश्ती से मिलकर बना है। चाबहार पोर्ट पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर से केवल लगभग 170 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है।

स्थान और रणनीतिक महत्व:

चाबहार बंदरगाह, ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत के मक़रान तट पर स्थित है और यह सीधे हिंद महासागर तक पहुंच वाला ईरानी बंदरगाह है। अफगानिस्तान और मध्य एशियाई देशों जैसे तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान के करीब होने के कारण इसे इन भूमि-रुद्ध देशों का “गोल्डन गेट” कहा जाता है। बंदरगाह ज़हेदान से लगभग 700 किलोमीटर दूर है, जो प्रांत की राजधानी है।

चाबहार पोर्ट न केवल ईरान के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत और मध्य एशियाई देशों के लिए भी एक रणनीतिक और आर्थिक कनेक्टिविटी हब के रूप में कार्य करता है।

 

चाबहार पोर्ट का विकास:

चाबहार पोर्ट का विकास सबसे पहले 1973 में ईरान के अंतिम शाह द्वारा प्रस्तावित किया गया था, लेकिन 1979 की ईरानी क्रांति के कारण यह कार्य स्थगित हो गया। पोर्ट का पहला चरण 1983 में ईरान-इराक युद्ध के दौरान खोला गया, जब ईरान ने समुद्री व्यापार को फारस की खाड़ी के पोर्ट्स की बजाय पाकिस्तानी सीमा की ओर स्थानांतरित करना शुरू किया, ताकि इराकी एयर फ़ोर्स के हमलों के जोखिम को कम किया जा सके।

 

चाबहार पोर्ट परियोजना में भारत की भागीदारी:

भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना में भूमिका दो दशकों से अधिक पुरानी है और यह केवल एक आर्थिक पहल नहीं, बल्कि रणनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण रही है।

  • 2002 में शुरुआत: भारत की चाबहार में दिलचस्पी पहली बार 2002 में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तर की चर्चाओं के दौरान सामने आई, जब भारत ने ईरान के साथ पश्चिमी तट पर रणनीतिक पहुंच के विकल्प तलाशने शुरू किए।
  • 2003 में नई दिल्ली घोषणा: तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और ईरान के राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी के बीच नई दिल्ली घोषणा (New Delhi Declaration) पर हस्ताक्षर हुए, जिसमें चाबहार बंदरगाह को प्रमुख परियोजनाओं में शामिल किया गया।
  • अमेरिकी दबाव और धीमी प्रगति: 2000 के दशक के मध्य में भारत-अमेरिका संबंधों के बढ़ने और अमेरिका द्वारा ईरान को “Axis of Evil” में शामिल किए जाने के बाद, भारत ने इस परियोजना को धीमी गति से आगे बढ़ाया ताकि वाशिंगटन के साथ संबंधों पर नकारात्मक असर न पड़े।
  • 2015 में नई शुरुआत: भारत और ईरान ने एक MoU पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत भारत ने चाबहार के शहीद बेहेश्ती टर्मिनल को विकसित करने का वादा किया। इसी वर्ष JCPOA (परमाणु समझौते) के बाद ईरान पर लगे प्रतिबंधों में ढील आई, जिससे परियोजना को नई गति मिली।
  • 2016 का त्रिपक्षीय समझौता: भारत, ईरान और अफगानिस्तान ने एक त्रिपक्षीय ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर स्थापित करने पर सहमति दी, जिससे अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए भारत का वैकल्पिक व्यापार मार्ग तैयार हुआ।
  • 2018 से भारतीय संचालन: इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) ने शहीद बेहेश्ती टर्मिनल का संचालन संभाल लिया, जिससे भारत की ईरान के इस सामरिक बंदरगाह में औपचारिक भूमिका शुरू हुई।

इस प्रकार, चाबहार बंदरगाह परियोजना न केवल भारत-ईरान सहयोग का प्रतीक है, बल्कि यह भारत की “सेंट्रल एशिया एक्सेस स्ट्रैटेजी” और चीन के “वन बेल्ट, वन रोड” पहल के मुकाबले एक महत्वपूर्ण रणनीतिक जवाब भी है।

 

चाबहार बंदरगाह का महत्व:

  • वैकल्पिक व्यापार मार्ग: गुजरात के कांडला बंदरगाह से लगभग 550 नौटिकल मील (करीब 1,000 किमी) की दूरी पर स्थित चाबहार भारत को पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अफगानिस्तान, मध्य एशिया और यूरोप तक सीधी पहुंच प्रदान करता है।
  • आर्थिक द्वार: यह बंदरगाह भारत के लिए मध्य एशिया के संसाधन-संपन्न बाजारों तक पहुंच का मार्ग खोलता है, जिससे व्यापार, निवेश और रोजगार सृजन के नए अवसर उत्पन्न होते हैं।
  • रणनीतिक प्रभाव: पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह (जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे का हिस्सा है) के निकट स्थित चाबहार भारत को क्षेत्र में एक मजबूत रणनीतिक स्थिति देता है और इसे चीन-पाकिस्तान के प्रभाव का संतुलन साधने में मदद करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा: चाबहार के माध्यम से भारत ईरान और पश्चिम एवं मध्य एशिया के ऊर्जा स्रोतों तक पहुंच बना सकता है, जिससे ऊर्जा आपूर्ति स्थिर और विविध हो सकेगी।
  • क्षेत्रीय संपर्क: चाबहार-ज़ाहेदान रेल लाइन भारत को अफगानिस्तान की “गारलैंड हाईवे” से जोड़ती है, जो हेरात, कंधार, काबुल और मजार-ए-शरीफ जैसे प्रमुख शहरों तक सड़क मार्ग से पहुंच प्रदान करती है।
  • अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC): यह बंदरगाह भारत, ईरान और रूस द्वारा शुरू किए गए INSTC का एक अहम हिस्सा है, जो भारत और यूरोप के बीच माल ढुलाई की लागत और समय को काफी कम करने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • परिवहन एवं लॉजिस्टिक केंद्र: समुद्र, रेल और सड़क मार्गों से जुड़ा चाबहार बंदरगाह भविष्य में एक प्रमुख परिवहन हब बनने की दिशा में है, जो मध्य एशिया के स्थल-रुद्ध देशों को वैश्विक व्यापार मार्गों से जोड़ता है।

 

चाबहार बंदरगाह परियोजना की प्रमुख चुनौतियाँ

  • अमेरिकी प्रतिबंध: ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। कई बार इन प्रतिबंधों में छूट दी गई है, लेकिन समय-समय पर अमेरिका इन्हें वापस ले लेता है। इससे विदेशी निवेश को खतरा होता है और बैंकिंग तथा भुगतान की व्यवस्था जटिल हो जाती है।
  • क्षेत्रीय तनाव: पश्चिम एशिया में लगातार बढ़ता क्षेत्रीय तनाव, खासकर ईरान और इज़राइल के बीच, इस परियोजना के सुचारू संचालन में बाधा डालता है। यह तनाव विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने में भी एक बड़ी समस्या है।
  • प्रतिस्पर्धा: चाबहार को चीन द्वारा समर्थित पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है। चीन की भारी आर्थिक निवेश और इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएँ, जैसे चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), चाबहार की तुलना में एक मजबूत विकल्प के रूप में उभरती हैं।
  • बुनियादी ढाँचे का धीमा विकास: बंदरगाह से जुड़े रेल और सड़क मार्गों का विकास धीमी गति से हो रहा है। उदाहरण के लिए, चाबहार से ज़ाहेदान तक की महत्वपूर्ण रेलवे लाइन अभी भी अधूरी है, जिससे बंदरगाह की पूरी क्षमता का उपयोग नहीं हो पा रहा है।
  • राजनीतिक अस्थिरता: ईरान के भीतर की राजनीतिक अस्थिरता और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक परिस्थितियाँ परियोजना की निरंतरता और स्थायित्व को प्रभावित करती हैं।

 

इस छूट का महत्व क्या है?

चाबहार पोर्ट भारत के भू-राजनीतिक और आर्थिक हितों की दृष्टि से अत्यंत अहम है। यह न केवल पाकिस्तान पर भारत की निर्भरता को समाप्त करता है, बल्कि अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधी व सुरक्षित पहुंच भी प्रदान करता है। अमेरिकी प्रतिबंधों से छह महीने की छूट मिलने के बाद अब भारत को बंदरगाह पर उपकरणों की खरीद, निवेश और संचालन में किसी प्रकार की अड़चन का सामना नहीं करना पड़ेगा।

अमेरिका का यह निर्णय भारत की कूटनीतिक सफलता के रूप में देखा जा रहा है। इससे भारत के अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक हितों को नई गति मिलेगी और दक्षिण एशिया से लेकर मध्य एशिया तक क्षेत्रीय संपर्क और सहयोग के नए रास्ते खुलेंगे। यदि यह छूट आगे स्थायी रूप से बढ़ाई जाती है, तो चाबहार पोर्ट भारत की विदेश नीति की एक मजबूत धुरी बन जाएगा, जो “एक्ट वेस्ट” नीति का प्रमुख केंद्र बिंदु साबित हो सकता है।

 

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