भारत ने ई-कॉमर्स नियमों में ‘मूल देश’ फ़िल्टर का प्रस्ताव रखा: कंज्यूमर मिनिस्ट्री ने ड्राफ्ट किया नियम, मेड इन इंडिया को मिलेगा बढ़ावा..

भारत सरकार ने ऑनलाइन खरीदारी को अधिक पारदर्शी और उपभोक्ता हितैषी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल की है। प्रस्ताव के तहत अब अमेज़न, फ्लिपकार्ट, मीशो, नाइका और फर्स्टक्राई जैसे सभी ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर बेचे जाने वाले प्रत्येक पैकेज्ड उत्पाद के साथ उसके “मूल देश” अर्थात वह उत्पाद किस देश में निर्मित हुआ है, का फ़िल्टर अनिवार्य रूप से प्रदर्शित करना होगा।

 

सरकार ने इस प्रस्ताव पर अमेज़न और फ्लिपकार्ट सहित अन्य हितधारकों से 22 नवंबर, 2025 तक टिप्पणियाँ आमंत्रित की हैं। यह कदम उत्पाद जानकारी की जांच को आसान बनाएगा और नियमों के उल्लंघन की पहचान में मदद करेगा।

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सरकार के इस पहल का उद्देश्य:

 

इस पहल का मकसद लोगों को यह साफ़ जानकारी देना है कि वे जो सामान खरीद रहे हैं, वह किस देश में बना है। इससे ग्राहकों को सही जानकारी मिलेगी और वे सोच-समझकर खरीदारी कर पाएंगे। साथ ही, यह कदम भारतीय कंपनियों और स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देगा। सरकार का कहना है कि इससे खरीदारी आसान और पारदर्शी होगी, उपभोक्ताओं का समय बचेगा, और ‘मेक इन इंडिया’ व ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी योजनाओं को मजबूती मिलेगी।

 

मंत्रालय ने क्या कहा ?

उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने कहा कि यह प्रस्ताव कानूनी माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) (द्वितीय) संशोधन नियम, 2025 का हिस्सा है। मंत्रालय ने बताया कि भारत में ऑनलाइन बेचे जाने वाले कई उत्पाद जैसे; इलेक्ट्रॉनिक्स, कपड़े और घरेलू सामान या तो विदेश से आयात किए जाते हैं या देश में असेंबल होते हैं, इसलिए यह नियम उपभोक्ताओं को सही जानकारी देने की दिशा में एक अहम कदम है।

 

विधिक माप विज्ञान (पैकेज्ड कमोडिटीज) संशोधन नियम, 2025:

यह अधिनियम चिकित्सा उपकरणों से जुड़े नियमों को और स्पष्ट और एकसमान बनाता है। इस बदलाव से पुराने विधिक माप विज्ञान नियम, 2011 को चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 के अनुसार बनाया गया है, ताकि उपभोक्ताओं को सही जानकारी मिले और नियमों में भ्रम न रहे।

 

मुख्य बातें:

  • चिकित्सा उपकरणों की पैकिंग पर लिखे जाने वाले लेबल, फ़ॉन्ट आकार और डिज़ाइन अब चिकित्सा उपकरण नियम, 2017 के अनुसार तय होंगे।
  • इन उपकरणों के लिए अब पैकेज पर मुख्य पैनल पर जानकारी देना ज़रूरी नहीं होगा, बल्कि जानकारी 2017 के नियमों के हिसाब से दी जाएगी।

 

क्यों महत्वपूर्ण है यह प्रस्ताव ?

यह प्रस्ताव इसलिए भी अहम है क्योंकि हाल ही में अमेरिका ने कुछ भारतीय निर्यातों पर टैरिफ बढ़ाकर 50% कर दिया है, जिससे भारत के छोटे उद्योगों, कारीगरों और हस्तशिल्प, वस्त्र व चमड़े के सामान से जुड़े व्यवसायों पर असर पड़ा है। इस कदम से उन लोगों पर दबाव बढ़ गया है जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। ऐसे समय में सरकार का यह प्रस्ताव देश में बने उत्पादों को बढ़ावा देने और लोगों को स्थानीय सामान खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने में मदद करेगा। इससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी योजनाओं को भी मजबूती मिलेगी।

 

भारतीयों को कितना फायदा ?

इस कदम से भारतीय विक्रेताओं और छोटे कारोबारियों को बड़ा फायदा होगा। पहले कई विदेशी उत्पाद अधूरी या अस्पष्ट जानकारी के साथ ऑनलाइन बिकते थे, जिससे भारतीय निर्माताओं को कम पहचान मिलती थी। अब ‘मूल देश’ फ़िल्टर आने से ग्राहकों को साफ़ पता चलेगा कि सामान भारत में बना है या बाहर। इससे लोग भारतीय ब्रांडों को जानबूझकर चुन सकेंगे।

यह नियम छोटे और मध्यम उद्योगों (SMEs) को अपनी “मेड इन इंडिया” पहचान के साथ बाज़ार में आगे बढ़ने में मदद करेगा। जब ग्राहकों को किसी उत्पाद की उत्पत्ति पता होती है, तो उनका भरोसा भी बढ़ता है। इस तरह यह पहल स्थानीय व्यवसायों को मजबूत बनाएगी और सोच-समझकर खरीदारी को बढ़ावा देगी।

 

आइए जानते है ई-कॉमर्स के बारे में:

ई-कॉमर्स यानी इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स का मतलब है इंटरनेट के जरिए सामान और सेवाओं की खरीद-बिक्री करना। इसमें ऑनलाइन शॉपिंग, डिजिटल पेमेंट और सामान की डिलीवरी जैसी सभी गतिविधियां शामिल होती हैं। ई-कॉमर्स से लोग देश-विदेश में कहीं से भी आसानी से लेन-देन कर सकते हैं। यह तरीका तकनीक के साथ लगातार बदल रहा है और आज की डिजिटल अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा बन गया है।

 

ई-कॉमर्स के मुख्य प्रकार:

  • B2C (बिज़नेस टू कंज्यूमर): जब कोई कंपनी सीधे ग्राहकों को सामान या सेवाएं बेचती है। जैसे: अमेज़न, फ्लिपकार्ट, बिगबास्केट
  • B2B (बिज़नेस टू बिज़नेस): जब एक व्यवसाय दूसरे व्यवसाय को सामान या सेवाएं बेचता है। जैसे: इंडियामार्ट, उड़ान
  • C2C (कंज्यूमर टू कंज्यूमर): जब ग्राहक किसी ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के ज़रिए दूसरे ग्राहकों को अपना सामान बेचते हैं। जैसे: OLX, Quikr
  • C2B (कंज्यूमर टू बिज़नेस): जब व्यक्ति कंपनियों को अपनी सेवाएं या उत्पाद देते हैं। जैसे: अपवर्क, फाइवर (जहां फ्रीलांसर काम करते हैं)
  • D2C (डायरेक्ट टू कंज्यूमर): जब कोई ब्रांड बिना किसी बिचौलिए के सीधे ग्राहकों को उत्पाद बेचता है। जैसे: मामाअर्थ, बोट, लेंसकार्ट

 

भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र:

भारत का ई-कॉमर्स क्षेत्र बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। इसकी वृद्धि का कारण है- इंटरनेट और स्मार्टफोन का बढ़ता इस्तेमाल, लोगों की खरीदारी की आदतों में बदलाव, और सरकार की सहायक नीतियाँ।

 

वर्तमान स्थिति: 2024 में भारत का ई-कॉमर्स बाजार लगभग 125 अरब डॉलर का था, जो देश के कुल खुदरा बाजार का करीब 7% हिस्सा है। आने वाले सालों में यह हिस्सा और बढ़ेगा।

 

भविष्य के अनुमान:

  • 2026: 163 अरब डॉलर
  • 2030: 345 अरब डॉलर
  • 2035: 550 अरब डॉलर

 

भारत में ई-कॉमर्स से जुड़ी सरकारी पहलें:

  • FDI नीति: B2B और मार्केटप्लेस मॉडल में 100% विदेशी निवेश की अनुमति।
  • राष्ट्रीय ई-कॉमर्स नीति: व्यापार में आसानी, पारदर्शिता और निर्यात बढ़ाने के लिए नया नियामक ढांचा तैयार किया जा रहा है।
  • ONDC: खुला डिजिटल नेटवर्क जो उपभोक्ताओं और छोटे व्यापारियों को जोड़ता है।
  • उपभोक्ता संरक्षण नियम 2020: कंपनियों को उत्पाद का मूल देश और सूची निर्धारण के मानदंड बताने होंगे।
  • डिजिटल इंडिया और इंडिया स्टैक: डिजिटल सेवाओं और ई-कॉमर्स को बढ़ावा देने के लिए तकनीकी ढांचा उपलब्ध कराया गया है।
  • भारतनेट परियोजना: ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट कनेक्टिविटी बढ़ाकर ई-कॉमर्स पहुंच मजबूत की जा रही है।

 

निष्कर्ष:

यह प्रस्ताव ई-कॉमर्स में पारदर्शिता और उपभोक्ता विश्वास बढ़ाने की दिशा में अहम कदम है। “मूल देश” फ़िल्टर से लोगों को सोच-समझकर खरीदारी करने में मदद मिलेगी और घरेलू उत्पादों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे ‘मेक इन इंडिया’ और ‘वोकल फॉर लोकल’ जैसी पहलें मजबूत होंगी।