प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 और 24 जुलाई को ब्रिटेन की यात्रा में है, और इसी यात्रा के बीच भारत और ब्रिटेन के बीच बहुप्रतीक्षित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर आखिरकार मुहर भी लग गई। गुरुवार को लंदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर की मौजूदगी में इस समझौते पर औपचारिक हस्ताक्षर किए गए।
तीन साल लंबी बातचीत का परिणाम:
FTA को लेकर भारत और ब्रिटेन के बीच बातचीत की शुरुआत 13 जनवरी 2022 को हुई थी। इसके बाद 24 फरवरी 2025 को भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने बातचीत को दोबारा शुरू करने की घोषणा की थी। करीब तीन साल की सतत वार्ता और समझौतों के बाद यह ऐतिहासिक डील सफलतापूर्वक पूरी हुई।
भारतीय निर्यात को मिलेगा बड़ा फायदा: 99% उत्पादों पर नहीं लगेगा शुल्क

इस समझौते के अनुसार भारत से ब्रिटेन को भेजे जाने वाले 99% उत्पादों पर अब टैरिफ यानी आयात शुल्क या तो पूरी तरह समाप्त कर दिया जाएगा या उसे बहुत कम कर दिया जाएगा। इसका सीधा लाभ भारतीय निर्यातकों को मिलेगा। इससे ब्रिटेन में भारतीय वस्तुएं सस्ती होकर प्रतिस्पर्धी बनेंगी और भारतीय व्यापारियों के लिए नया बाजार खुलेगा।
ब्रिटिश कंपनियों को भी मिलेगा लाभ: व्हिस्की और कारें होंगी सस्ती
इस समझौते से ब्रिटेन की कंपनियों को भी भारतीय बाजार में बड़ी राहत मिलेगी। भारत ब्रिटिश व्हिस्की, कारों और अन्य हाई-एंड उत्पादों पर लगने वाले टैरिफ को 15% से घटाकर 3% तक करेगा। इससे ब्रिटेन की लक्ज़री कारें जैसे जगुआर लैंड रोवर और स्कॉच व्हिस्की भारत में कम कीमत पर उपलब्ध होंगी।
क्या है FTA और इसका महत्व
FTA यानी फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (मुक्त व्यापार समझौता) दो या अधिक देशों के बीच किया गया ऐसा समझौता होता है जिसमें व्यापारिक वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले आयात-निर्यात करों को घटाकर व्यापार को आसान बनाया जाता है। इसका उद्देश्य दोनों देशों की कंपनियों को सस्ता और प्रतिस्पर्धी बाजार मुहैया कराना होता है, जिससे उपभोक्ताओं को भी कम दाम में बेहतर सामान मिल सके।
एफटीए के फायदे
- आर्थिक विकास को बढ़ावा: मुक्त व्यापार समझौते से देश अपने प्रमुख क्षेत्रों पर फोकस कर सकते हैं, जिससे निर्यात बढ़ता है और विदेशी निवेश आता है। इससे नई नौकरियां मिलती हैं और आर्थिक गतिविधियां तेज होती हैं।
- सस्ते दामों में वस्तुएं उपलब्ध: एफटीए से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है, जिससे उपभोक्ताओं को बेहतर गुणवत्ता के उत्पाद कम कीमत में मिलते हैं। यह आम लोगों की खरीदने की ताकत को बढ़ाता है।
एफटीए के नुकसान
- घरेलू उद्योगों को नुकसान: विदेशी कंपनियों से प्रतिस्पर्धा के कारण छोटे और मध्यम घरेलू उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच सकते हैं, जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।
- श्रम और पर्यावरण पर प्रभाव: कई कंपनियां सस्ते श्रम और ढीले पर्यावरण कानूनों वाले देशों में उत्पादन शुरू कर देती हैं, जिससे बाल श्रम, शोषण और प्रदूषण जैसी समस्याएं बढ़ती हैं।
- वैश्विक निर्भरता का खतरा: अगर कोई देश किसी वस्तु का घरेलू उत्पादन बंद कर देता है और वह वस्तु वैश्विक संकट के दौरान उपलब्ध नहीं हो पाती, तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
इन वस्तुओं की कीमतों में आ सकती है गिरावट
इस डील के बाद ब्रिटेन से आयातित कई वस्तुओं की कीमतें घट सकती हैं:
- फैशन और कपड़े: ब्रिटिश ब्रांडेड कपड़ों और फैशन उत्पादों की कीमतें कम हो सकती हैं।
- फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक्स: ब्रिटेन से आने वाला फर्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक सामान अब कम टैक्स में भारत आ सकेगा।
- कारें: ब्रिटिश लक्ज़री कारें अब भारत में कम दाम में उपलब्ध हो सकती हैं।
- स्कॉच व्हिस्की और वाइन: शराब और वाइन पर टैरिफ घटने से ये पहले से सस्ती होंगी।
- रत्न और आभूषण: भारत के गहनों और रत्नों की ब्रिटेन में कीमत कम हो जाएगी, जिससे भारतीय एक्सपोर्टर्स को फायदा होगा।
भारत को इस समझौते से क्या मिलेगा?
यह डील भारतीय निर्यात को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है। 2023-24 में भारत ने ब्रिटेन को लगभग 1.12 लाख करोड़ रुपए मूल्य के उत्पादों का निर्यात किया था। इस समझौते से भारतीय एक्सपोर्ट को बूस्ट मिलेगा और लाखों नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं। साथ ही, भारत को 2030 तक 1 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को हासिल करने में भी मदद मिलेगी। इस डील से भारत को विकसित देशों के बाजारों तक आसान पहुंच मिलेगी।
भारत–ब्रिटेन व्यापार संबंध:
भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्ष 2023-24 में 55 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर गया, जो दोनों देशों के बीच गहराते आर्थिक संबंधों का संकेत है। ब्रिटेन, भारत में छठा सबसे बड़ा निवेशक बनकर उभरा है, जिसका संचयी निवेश अब तक लगभग 36 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। यह निवेश आईटी, वित्तीय सेवाएं, शिक्षा और निर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि केवल ब्रिटेन ही भारत में निवेश नहीं कर रहा, बल्कि भारत भी अब ब्रिटेन में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। भारत का ब्रिटेन में संचयी निवेश लगभग 20 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि दोनों देशों के बीच आर्थिक सहयोग दोतरफा और संतुलित हो रहा है।
भारत ने अब तक किन देशों के साथ किए हैं FTA?
मार्च 2024 में भारत ने यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) के चार देशों स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन के साथ व्यापार और आर्थिक साझेदारी समझौते (TEPA) पर हस्ताक्षर किए थे। यह 2014 के बाद भारत का चौथा बड़ा मुक्त व्यापार समझौता था। इससे पहले भारत श्रीलंका, मॉरीशस और मलेशिया के साथ भी मुक्त व्यापार समझौते कर चुका है।
भारत ने दक्षिण कोरिया, जापान और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते (CEPA) लागू किए हैं। ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत का आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौता (ECTA) भी प्रभावी है। इसके अलावा भारत का आसियान (ASEAN) देशों के दस सदस्य देशों के साथ भी व्यापार समझौता है। भारत और सिंगापुर के बीच व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) और थाईलैंड के साथ ‘अर्ली हार्वेस्ट स्कीम’ या तरजीही व्यापार समझौता (PTA) भी लागू हैं।
दोनों देशों में नौकरियों की उम्मीद
भारत और ब्रिटेन दोनों में ही इस समझौते से नौकरियों में वृद्धि की संभावना है। इंडस्ट्री, लॉजिस्टिक्स और व्यापारिक क्षेत्रों में नए अवसर उत्पन्न होंगे। इससे दोनों देशों की आर्थिक विकास दर को भी गति मिलेगी।
आगे क्या प्रक्रिया होगी?
इस समझौते को अब ब्रिटेन की संसद में पेश किया जाएगा, जहाँ से औपचारिक मंजूरी मिलनी बाकी है। अनुमोदन के बाद यह समझौता कुछ महीनों में लागू कर दिया जाएगा। अनुमान है कि 2030 तक भारत और ब्रिटेन के बीच द्विपक्षीय व्यापार दोगुना होकर लगभग 120 अरब डॉलर तक पहुँच सकता है।