हाल ही में भारतीय सेना को अपाचे AH-64E अटैक हेलीकॉप्टरों की अंतिम खेप सौंपी गई। इसके साथ ही सेना का छह हेलीकॉप्टरों का पूरा ऑर्डर सफलतापूर्वक पूरा हो गया। सभी औपचारिक जांच और तकनीकी परीक्षण पूरे होने के बाद इन हेलीकॉप्टरों को जल्द ही जोधपुर स्थित 451 आर्मी एविएशन स्क्वाड्रन में शामिल किया जाएगा।
भारत–अमेरिका अपाचे AH-64E समझौता
- सौदे की पृष्ठभूमि: भारतीय सेना की एविएशन क्षमता को आधुनिक बनाने की प्रक्रिया लंबे समय से चल रही थी। इसी क्रम में वर्ष 2020 में भारत सरकार ने सेना के लिए विशेष रूप से अपाचे एएच-64ई अटैक हेलीकॉप्टर खरीदने को मंजूरी दी।
- खरीद और लागत संरचना: छह अपाचे एएच-64ई हेलीकॉप्टरों का यह सौदा अमेरिका की कंपनी बोइंग से सरकार-से-सरकार के आधार पर किया गया। इसकी कुल अनुमानित लागत लगभग 600 मिलियन अमेरिकी डॉलर रही। इस राशि में केवल हेलीकॉप्टर ही नहीं, बल्कि अत्याधुनिक हथियार प्रणाली, रडार, सेंसर, आवश्यक स्पेयर पार्ट्स और सैन्य कर्मियों का प्रशिक्षण भी शामिल है। यह सौदा सेना के लिए एक संपूर्ण पैकेज के रूप में तैयार किया गया। इससे पहले अगस्त 2017 में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने इस प्रस्ताव को सैद्धांतिक मंजूरी दी थी।
- ऑफसेट और औद्योगिक सहयोग: भारत की रक्षा खरीद नीति के तहत इस सौदे में ऑफसेट शर्तें भी रखी गईं। इन्हीं शर्तों के तहत टाटा बोइंग एयरोस्पेस लिमिटेड का गठन हुआ। इस संयुक्त उद्यम ने न केवल अपाचे कार्यक्रम को सहयोग दिया, बल्कि भारत में रक्षा एयरोस्पेस निर्माण को भी बढ़ावा मिला। इससे स्थानीय उद्योग, तकनीकी कौशल और रोजगार को मजबूती मिली।
- डिलीवरी में देरी: शुरुआती योजना के अनुसार पहले हेलीकॉप्टर 2024 के मध्य तक मिलने थे। लेकिन वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में आई बाधाओं और उत्पादन संबंधी चुनौतियों के कारण समयसीमा आगे बढ़ गई। अंततः पहला बैच जुलाई 2025 में पहुंचा और अंतिम तीन हेलीकॉप्टर 16 दिसंबर 2025 को भारत आए। इसके साथ ही सेना का ऑर्डर पूरा हुआ।
- वायुसेना पूरक सौदा: यह समझौता भारतीय वायुसेना के अपाचे सौदे से अलग है। वायुसेना ने 2015 में 22 अपाचे हेलीकॉप्टरों का अनुबंध किया था, जिनकी आपूर्ति 2020 तक पूरी हो चुकी थी। अब सेना और वायुसेना दोनों के पास अपाचे प्लेटफॉर्म है, जिससे संयुक्त अभियानों में बेहतर तालमेल संभव होगा।
AH-64E अपाचे गार्जियन का परिचय
एएच-64ई अपाचे गार्जियन दुनिया के सबसे उन्नत आक्रमण हेलीकॉप्टरों में गिना जाता है। यह केवल हमला करने वाला प्लेटफॉर्म नहीं है, बल्कि निगरानी, लक्ष्य पहचान में भी सक्षम है। आधुनिक युद्ध की जरूरतों को ध्यान में रखकर इसे बहु-भूमिका क्षमताओं के साथ तैयार किया गया है।
- निर्माता: अपाचे हेलीकॉप्टर की शुरुआत ह्यूजेस हेलीकॉप्टर्स ने की थी। बाद में यह मैकडॉनेल डगलस के अधीन गया और अंततः बोइंग कंपनी का हिस्सा बना। 1970 के दशक में अमेरिकी सेना ने एडवांस्ड अटैक हेलीकॉप्टर कार्यक्रम शुरू किया। इसी के तहत 1975 में पहला प्रोटोटाइप बनकर तैयार हुआ। 1986 में एएच-64ए सेवा में आया।
- भारतीय संदर्भ: हैदराबाद में स्थित टाटा बोइंग एयरोस्पेस लिमिटेड इस हेलीकॉप्टर के फ्यूज़लाज का निर्माण वैश्विक आपूर्ति के लिए करता है। भारतीय वायुसेना पहले से 22 अपाचे संचालित कर रही है। अब भारतीय सेना भी अपने एविएशन कॉर्प्स के लिए इन्हें शामिल कर रही है।
- वैश्विक उपयोगकर्ता: भारत के अलावा कई प्रमुख देश अपाचे गार्जियन का उपयोग करते हैं। इनमें ब्रिटेन, मिस्र, जापान, दक्षिण कोरिया, इज़राइल, सऊदी अरब, कुवैत, नीदरलैंड, कतर, ग्रीस, इंडोनेशिया, सिंगापुर और यूएई शामिल हैं।
- इसकी खासियत:
- एएच-64ई को कठिन परिस्थितियों के लिए तैयार किया गया है। यह रेगिस्तानी इलाकों से लेकर ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में प्रभावी ढंग से काम कर सकता है। इसकी गति 150 नॉट्स से अधिक है और यह लगभग 20,000 फीट की ऊंचाई तक संचालन कर सकता है।
- हेलीकॉप्टर के रोटर के ऊपर लगा लॉन्गबो फायर कंट्रोल रडार इसकी बड़ी ताकत है। यह चारों दिशाओं में नजर रखता है। कुछ ही सेकंड में सैकड़ों लक्ष्यों की पहचान करता है और सबसे खतरनाक लक्ष्यों को प्राथमिकता देता है।
- इसकी एरोहेड लक्ष्य प्रणाली दिन और रात दोनों समय स्पष्ट दृश्य देती है। इसमें लेज़र डिज़ाइनटर भी होता है, जो सटीक हमलों में मदद करता है। हेलमेट से जुड़ी नाइट विज़न प्रणाली पायलट के सिर की दिशा के साथ तोप को घुमा सकती है। इससे कम रोशनी में भी नियंत्रण आसान हो जाता है।
- अपाचे गार्जियन नेटवर्क आधारित युद्ध के लिए तैयार किया गया है। इसमें ड्रोन को नियंत्रित करने की क्षमता भी है। इससे दुश्मन की स्थिति की पहले से जानकारी मिल जाती है।
- अपाचे की मारक क्षमता इसकी पहचान है। इसमें 30 मिमी की स्वचालित तोप लगी है। यह टैंकों पर हेलफायर मिसाइलें दाग सकता है। क्षेत्रीय लक्ष्यों के लिए रॉकेट और आत्मरक्षा के लिए हवा-से-हवा मिसाइलें भी इसमें जोड़ी जा सकती हैं।
रणनीतिक महत्व:
- भारतीय सेना के एविएशन कॉर्प्स में अपाचे हेलीकॉप्टरों का शामिल होना एक बड़ा बदलाव है। अब सेना को हर बार नजदीकी हवाई समर्थन के लिए वायुसेना पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इससे सेना अपने अभियानों की योजना स्वयं बना सकेगी। अग्रिम मोर्चों पर त्वरित निर्णय लेना आसान होगा। जमीनी और हवाई कार्रवाई के बीच बेहतर तालमेल बनेगा।
- एएच-64ई का आधुनिक संस्करण बहु-क्षेत्रीय युद्ध के लिए तैयार किया गया है। इसमें सुरक्षित डिजिटल संचार प्रणाली लगी है। यह हेलीकॉप्टर जमीन और हवा दोनों के संसाधनों से सीधे जुड़ सकता है। इससे दुश्मन की गतिविधियों की पहले जानकारी मिलती है। निगरानी और खुफिया जानकारी तुरंत साझा होती है। ऐसे में कमांडरों को युद्ध क्षेत्र की स्पष्ट तस्वीर मिलती है। इससे सही समय पर सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
- अपाचे की तकनीक केवल हमला करने तक सीमित नहीं है। यह पूरे युद्ध क्षेत्र पर नजर रखने में मदद करता है। सेंसर और रडार से मिली जानकारी सीधे सैनिकों तक पहुंचती है। इससे घात और अचानक हमलों की आशंका कम होती है। सेना को दुश्मन की ताकत और कमजोरियों का बेहतर आकलन मिलता है। इससे सैनिकों की सुरक्षा भी बढ़ती है।
- अपाचे जैसे युद्ध में परखे गए हेलीकॉप्टर की तैनाती भारत की सैन्य शक्ति को बढ़ाती है। यह पड़ोसी देशों को साफ संकेत देता है कि भारत अपनी सुरक्षा को लेकर गंभीर है। पुराने हेलीकॉप्टरों की तुलना में अपाचे तकनीक और मारक क्षमता में कहीं आगे है। इससे संभावित विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनता है। क्षेत्रीय शक्ति संतुलन में भारत की स्थिति मजबूत होती है।
- अपाचे कार्यक्रम भारत और अमेरिका के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग का प्रतीक है। यह सौदा सरकार से सरकार के बीच हुए भरोसे का परिणाम है। इससे दोनों देशों की सेनाओं के बीच सामंजस्य बढ़ता है। साझा अभ्यास और तकनीकी सहयोग आसान होता है। इसके साथ ही भारत में औद्योगिक साझेदारी को भी बढ़ावा मिलता है। स्थानीय निर्माण और रखरखाव से रोजगार और तकनीकी ज्ञान में वृद्धि होती है।
