सितंबर 2025 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 8 साल के निचले स्तर पर

हाल ही में, भारत की खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर 2025 में 1.54% पर पहुँच गई, जो पिछले 8 वर्षों का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतों पर बढ़ते दबाव में कमी और आवश्यक खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति में सुधार का संकेत देती है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्थिति घरेलू उपभोक्ता खर्च और आर्थिक गतिविधियों के लिए सकारात्मक है।

India's retail inflation at 8-year low in September 2025

भारत में खुदरा मुद्रास्फीति में ऐतिहासिक गिरावट

 

  • भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सितंबर 2025 का महीना महत्वपूर्ण रहा, क्योंकि इस महीने खुदरा मुद्रास्फीति दर घटकर केवल 1.54% पर पहुंच गई। यह आंकड़ा देश में आठ वर्षों के भीतर सबसे निचला स्तर है। इससे पहले जून 2017 में इतनी कम मुद्रास्फीति दर्ज की गई थी। 
  • सितंबर 2025 की तुलना यदि अगस्त 2025 से की जाए, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि मुद्रास्फीति अगस्त के 2.07% से गिरकर 1.54% तक पहुंच चुकी है। यह लगातार चौथा महीना है, जब खुदरा मुद्रास्फीति में कमी का रुझान देखने को मिला है। 
  • पिछले वर्ष के आँकड़ों के अनुसार, सितंबर 2024 में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति 5.49% दर्ज की गई थी। एक वर्ष में यह गिरावट यह दर्शाती है कि आपूर्ति श्रृंखला में सुधार, कृषि उत्पादन का विस्तार, और नीतिगत प्रबंधन की दक्षता ने बाजार को संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई है। 
  • राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा जारी आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कीमतों का दबाव घटा है। आंकड़े के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर केवल 1.07% रही, जबकि शहरी इलाकों में यह थोड़ी अधिक 2.04% दर्ज की गई। ग्रामीण भारत में कीमतें और भी स्थिर हैं, जिससे वहां के परिवारों को आवश्यक वस्तुओं की खरीद में आसानी हुई है। 
  • इसके अनुसार जहां ईंधन और बिजली दर अगस्त 2025 में 2.43% थी, वहीं सितंबर में घटकर 1.98% रह गई है। इसका सीधा लाभ घरों को मिला है, क्योंकि ऊर्जा और परिवहन से जुड़ी लागतों में कमी आने से परिवारों की उपयोगिता व्यय कम हुई है। 
  • एक्सपर्ट्स के अनुसार, यदि यह प्रवृत्ति आने वाले महीनों तक बनी रहती है, तो यह भारतीय उपभोक्ताओं के लिए राहतकारी संकेत होगा। इससे ब्याज दरों में स्थिरता बनी रहेगी, जिससे ऋण लेना सस्ता होगा।

 

भारतीय रिज़र्व बैंक की मुद्रास्फीति नीति

 

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) देश की आर्थिक स्थिरता का सबसे महत्वपूर्ण स्तंभ है, जो मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने और विकास को प्रोत्साहित करने के दोहरे उद्देश्य के साथ कार्य करता है। 
  • भारत में मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए RBI ने मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण (Inflation Targeting Framework) को अपनाया है, जो मौद्रिक नीति का आधार स्तंभ बन चुका है। इस नीति के तहत RBI का मध्यम अवधि का लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) पर आधारित मुद्रास्फीति को 4% पर बनाए रखना है, जिसमें ±2% की सहनशीलता सीमा तय की गई है। अर्थात् मुद्रास्फीति दर आदर्श रूप से 2% से 6% के बीच रहनी चाहिए।
  • इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक कई मौद्रिक उपकरणों का प्रयोग करता है, जिनमें रेपो दर, रिवर्स रेपो दर, और नकद आरक्षित अनुपात (CRR) प्रमुख हैं। जब अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति बढ़ने लगती है, तब RBI रेपो दर में वृद्धि करता है, ताकि बैंकों के लिए उधारी महंगी हो जाए। इससे बाजार में मुद्रा प्रवाह कम होता है और कीमतों पर नियंत्रण पाया जाता है। 
  • हाल ही में, अक्टूबर 2025 में आयोजित मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee – MPC) की बैठक में RBI ने अपनी नीतिगत रेपो दर को यथावत बनाए रखने का निर्णय लिया था। यह फैसला इस तथ्य को ध्यान में रखकर लिया गया कि सितंबर 2025 में देश में खुदरा मुद्रास्फीति आठ वर्षों के न्यूनतम स्तर 1.54% पर पहुंच चुकी थी।
  • इस बैठक के दौरान RBI ने वित्त वर्ष 2025–26 (FY2025–26) के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को भी संशोधित किया। अगस्त 2025 में यह अनुमान 3.1% लगाया गया था, लेकिन अक्टूबर तक इसे घटाकर 2.6% कर दिया गया। यह परिवर्तन खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट, आपूर्ति श्रृंखला के सुधार, और कृषि उत्पादन में मजबूती के आधार पर किया गया है। 
  • रिज़र्व बैंक का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2026 के अधिकांश हिस्से में मुद्रास्फीति निम्न स्तर पर बनी रहेगी। RBI के अनुसार, दूसरी और तीसरी तिमाही (Q2 और Q3) में मुद्रास्फीति लगभग 1.8% रहने की संभावना है, जबकि चौथी तिमाही (Q4) में यह दर 4% के आसपास रह सकती है। 

 

खुदरा मुद्रास्फीति में कमी के मुख्य कारण

 

  • सबसे पहला और प्रमुख कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेज गिरावट रहा। सितंबर 2025 में खाद्य मुद्रास्फीति दर -2.28% दर्ज की गई, जिस कारण अधिकांश आवश्यक वस्तुओं के दाम पिछले वर्ष की तुलना में सस्ते हुए। विशेष रूप से सब्जियों की कीमतों में 21% से अधिक की कमी देखी गई, जिसने समग्र मुद्रास्फीति को नीचे लाने में सबसे बड़ा योगदान दिया। इसके अलावा, दालों, फलों और खाद्य तेलों की कीमतों में भी लगातार गिरावट दर्ज की गई, जिससे आम उपभोक्ताओं को बड़ी राहत मिली। 
  • दूसरा महत्वपूर्ण कारण अनुकूल बेस इफेक्ट (Favorable Base Effect) का माना जा सकता है। पिछले वर्ष यानी सितंबर 2024 में भारत में खुदरा मुद्रास्फीति 5.49% के उच्च स्तर पर थी। इस कारण, जब 2025 के आंकड़े की तुलना 2024 से की गई, तो मुद्रास्फीति का वर्तमान स्तर सांख्यिकीय रूप से कम दिखाई दिया। इसे ही बेस इफेक्ट माना जाता है, अर्थशास्त्र में यह एक स्वाभाविक सांख्यिकीय घटना मानी जाती है, जो उच्च आधार वर्ष के कारण आगामी वर्षों में वृद्धि या गिरावट को तुलनात्मक रूप से अधिक या कम प्रदर्शित करती है।
  • तीसरा और सबसे स्थायी कारण आपूर्ति प्रबंधन में सुधार है। इस वर्ष देश के अधिकांश हिस्सों में दक्षिण-पश्चिम मानसून का प्रदर्शन अनुकूल रहा, जिससे कृषि उत्पादन में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई। विशेष रूप से खरीफ फसलों की पैदावार बढ़ने से बाजार में अनाज, दालें और सब्जियों की उपलब्धता बनी रही। इसके अलावा, जलाशयों में पर्याप्त जलस्तर और अनाज के बफर स्टॉक प्रबंधन ने कीमतों को नियंत्रित रखा। सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में लॉजिस्टिक नेटवर्क मजबूत करने, भंडारण क्षमता बढ़ाने और कटाई के बाद होने वाले नुकसान (post-harvest losses) को कम करने के प्रयासों ने बाजार में वस्तुओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित की।
  • इसके साथ ही, ईंधन और ऊर्जा की कीमतों में कमी ने भी मुद्रास्फीति को नीचे लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सितंबर 2025 में इस श्रेणी की मुद्रास्फीति दर 1.98% तक गिर गई, जो अगस्त के 2.43% से कम थी। यह कमी मुख्यतः वैश्विक कच्चे तेल के दामों में स्थिरता और घरेलू ईंधन करों में कमी का परिणाम रही। इससे बाजार में खुदरा वस्तुओं के दाम नियंत्रित रहे और औद्योगिक क्षेत्र को भी राहत मिली।
  • अन्य प्रभावी कारण सरकारी नीतिगत सुधारों का रहा। सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में जीएसटी दरों के सरलीकरण (GST rationalisation), आवश्यक वस्तुओं पर करों में कमी, और सप्लाई साइड सुधारों जैसे कदम उठाए हैं। साबुन, पैक्ड फूड, और वाहनों जैसी रोज़मर्रा की वस्तुओं पर कर कम करने से उत्पादन लागत में गिरावट आई और मूल्य दबाव कम हुआ। इसके अलावा, राजकोषीय नीति और मौद्रिक नीति के बीच बेहतर समन्वय ने भी मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में मदद की।

 

भारत में मुद्रास्फीति की स्थिरता को बनाए रखने में आने वाली चुनौतियाँ

 

  • खाद्य वस्तुओं की कीमतों में अस्थिरता: भारत के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में खाद्य पदार्थों का हिस्सा लगभग 50% है, इसलिए इन वस्तुओं के दामों में किसी भी प्रकार का उतार-चढ़ाव सीधे मुद्रास्फीति को प्रभावित करता है। सितंबर 2025 में भले ही खाद्य मुद्रास्फीति -2.28% रही हो, लेकिन यह स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, इसकी कोई गारंटी नहीं है। कमजोर मानसून, फसलों की खराब पैदावार, या कीटों के हमले जैसे अप्रत्याशित प्राकृतिक कारक तुरंत कीमतों को बढ़ा सकते हैं। 
  • वैश्विक तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव: भारत अपनी कच्चे तेल की 80% से अधिक आवश्यकता का आयात करता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में होने वाली कोई भी हलचल सीधे घरेलू मुद्रास्फीति पर असर डालती है। जब कच्चे तेल के दाम बढ़ते हैं, तो परिवहन, उत्पादन और ऊर्जा लागत में तेजी आती है। इससे न केवल पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ते हैं, बल्कि आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं।
  • भू-राजनीतिक जोखिम: वैश्विक व्यापार तनाव, प्रतिबंध, और टैरिफ नीतियाँ भारत की मुद्रास्फीति स्थिरता को चुनौती देती हैं। वर्ष 2025 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा भारतीय वस्तुओं पर 50% तक टैरिफ बढ़ाने के निर्णय ने निर्यात क्षेत्र पर दबाव बढ़ा दिया था। जब निर्यात घटता है, तो घरेलू उत्पादन लागत और कच्चे माल की उपलब्धता पर असर पड़ता है, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं। वैश्विक सप्लाई चेन में रुकावटें भी उद्योगों के लिए इनपुट लागत को बढ़ा देती हैं।

आइए जानते हैं: खुदरा मुद्रास्फीति क्या है?

  • खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) को आमतौर पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index – CPI) के नाम से जाना जाता है। यह उस दर को मापने का एक तरीका है, जिससे घर-परिवार अपनी दैनिक आवश्यकताओं की वस्तुएँ और सेवाएँ खरीदते समय कीमतों में होने वाले बदलाव को महसूस करते हैं।
  • भारत में खुदरा मुद्रास्फीति का संकलन और प्रकाशन राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा किया जाता है, जो सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अंतर्गत कार्य करता है। यह संस्था हर महीने ग्रामीण, शहरी और संयुक्त क्षेत्रों के लिए CPI आंकड़े जारी करती है, ताकि यह पता चल सके कि विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों पर कीमतों का क्या प्रभाव पड़ रहा है।
  • CPI का प्रमुख उद्देश्य यह आकलन करना है कि देश में जीवन-यापन की वास्तविक लागत (Cost of Living) समय के साथ कैसे बदल रही है। इसके आधार पर सरकार वेतन, पेंशन, भत्ते और महंगाई भत्ता (Dearness Allowance) जैसी नीतियों में संशोधन करती है, ताकि कर्मचारियों और पेंशनभोगियों की क्रय शक्ति बनी रहे। 
  • CPI के आंकड़े आर्थिक विश्लेषण में एक मुख्य संकेतक (Macroeconomic Indicator) की भूमिका निभाते हैं, जिनके माध्यम से मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारण और विकास दर का भी मूल्यांकन किया जाता है।
  • खुदरा मुद्रास्फीति की गणना एक स्थिर वस्तु और सेवा टोकरी (Fixed Basket of Goods and Services) की लागत की तुलना करके की जाती है। यह तुलना वर्तमान वर्ष और आधार वर्ष की कीमतों के बीच की जाती है। 
  • भारत में वर्तमान में 2012 को आधार वर्ष (Base Year) के रूप में अपनाया गया है। इसकी गणना का सूत्र है: CPI = (वर्तमान वर्ष में वस्तुओं की टोकरी की लागत / आधार वर्ष में टोकरी की लागत) × 100
  • CPI के मूल्यांकन के लिए एक मूल्यांकन टोकरी में उन वस्तुओं को शामिल किया जाता है, जो एक सामान्य भारतीय परिवार के दैनिक जीवन का प्रतिनिधित्व करती हैं।
  • इस CPI टोकरी में खाद्य और पेय पदार्थों का हिस्सा 45.86%, आवास लागत 10.07%, ईंधन और प्रकाश 6.84%, कपड़े और जूते 6.53%, पान, तंबाकू और नशे से संबंधित वस्तुएँ 2.38%, तथा अन्य विविध सेवाओं का हिस्सा 28.32% हैं।