इज़रायल ने बुधवार को 100-किलोवाट क्षमता वाला नया लेज़र डिफेंस सिस्टम ‘Iron Beam’, जिसे आधिकारिक रूप से “Eitan’s Light” कहा जा रहा है, का अनावरण किया। यह सिस्टम 2025 के अंत तक ऑपरेशनल हो सकता है।
रक्षा मंत्रालय के अनुसार, कम लागत वाला यह सिस्टम मौजूदा डिफेंस लेयर्स आयरन डोम, डेविड्स स्लिंग और एरो सिस्टम के साथ काम करेगा और देश को अतिरिक्त सुरक्षा परत प्रदान करेगा।
रक्षा मंत्री इस्राइल कैट्ज़ ने बयान में कहा कि यह प्रणाली “तेज़ और सटीक अवरोधन बेहद कम लागत पर सुनिश्चित करती है, जो हमारी मौजूदा रक्षा प्रणालियों से जुड़कर खतरे के समीकरण को बदल देगी।” हालांकि, इंटरसेप्शन की दर का खुलासा अभी नहीं किया गया है। गौरतलब है कि हाल ही में लेबनान में हुई झड़पों के दौरान, हिज़्बुल्लाह द्वारा दागे गए लगभग 30 से 40 ड्रोन को Iron Beam ने सफलतापूर्वक रोक लिया था।

इज़रायल की लेज़र शील्ड: छोटे खतरों का तेज़ समाधान-
Iron Beam का लक्ष्य छोटे और निकट-रेंज खतरों- जैसे रॉकेट, मोर्टार, UAV और निम्न-उड़ान विमान को रोकना है। इससे महंगे किनेटिक इंटरसेप्टर्स पर निर्भरता घटेगी और रक्षा कवरेज बढ़ेगी। इज़रायल के रक्षा मंत्रालय की अनुसंधान इकाई (DDR&D), इज़रायली वायु सेना, Rafael और Elbit Systems के संयुक्त प्रयास से विकसित इस प्रणाली ने हाल ही में दक्षिण इज़रायल में कई सप्ताह तक चले कठोर युद्ध-अनुकरण परीक्षण पूरे किए।
यह कैसे काम करता है:
- लेज़र किरण प्रकाश की गति के निकट गति से यात्रा करती है, इसलिए पारंपरिक इंटरसेप्टर मिसाइलों की तुलना में हमले का सामना करने के लिए प्रतिक्रिया-समय बहुत कम होता है।
- लॉन्च के तुरंत बाद ही लेज़र बीम लक्ष्य पर लगाकर उसे गर्म कर देता है; निकट दूरी के रॉकेट या ड्रोन को हवा में ही निष्क्रिय किया जा सकता है।
- लेज़र प्रणाली लगातार तेज़ी से फायर कर सकती है, जिससे एक साथ या क्रमवार कई लक्ष्यों पर हमला करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- Iron Beam जैसा सिस्टम कम मार्जिनल लागत पर इंटरसेप्शन प्रदान करता है, प्रति शॉट लागत पारंपरिक तोपखाने या मिसाइलों से काफी कम हो सकती है।
- यह सबसे स्थानीय, शॉर्ट-रेंज लेज़र रक्षा प्रणालियों की श्रेणी में आता है और जमीनी वाहनों पर लगाया जा सकता है। उपयोग किए जाने वाले पावर-लेवल अलग-अलग होते हैं (उदाहरण के लिए, 10 किलोडब्ल्यू से लेकर उच्च-पावर सिस्टम तक), जिनके अनुसार रेंज और प्रभाव बदलते हैं।
आधुनिक युद्ध के लिए गेम-चेंजर:
यह प्रणाली Elbit Systems और Rafael Advanced Defense Systems ने संयुक्त रूप से विकसित की है। Rafael के चेयरमैन यूवल स्टेनिट्ज़ ने Iron Beam को आधुनिक युद्ध के परिदृश्य के लिए “गेम-चेंजर” बताया। वही Elbit के सीईओ बेजहलेल माचलिस ने कहा कि कंपनी आगे हवाई लेज़र तकनीक पर भी काम कर रही है, जो वायु रक्षा क्षमताओं में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकती है।
कंपनियों का कहना है कि यह हथियार निकट दूरी से आने वाले रॉकेट या ड्रोन हमलों को कम खर्च पर हवा में ही नष्ट कर देगा, जिससे तात्कालिक बचाव-क्षमता में वृद्धि होगी।
इज़रायल के पास है, आयरन डोम (Iron Dome) जैसी मिसाइल रक्षा प्रणाली:
इज़रायल के पास पहले से आयरन डोम (Iron Dome) जैसी रक्षा प्रणाली है। आयरन डोम एक मिसाइल रक्षा प्रणाली है जिसे इज़रायल ने विकसित किया है। इसका मुख्य उद्देश्य है कम दूरी की रॉकेट और तोपखाने से दागी गई गोलाबारी को हवा में ही नष्ट करना, ताकि वे आबादी वाले इलाकों या सैन्य ठिकानों को नुकसान न पहुँचा सकें।
कब किया गया था, तैनाती:
यह प्रणाली पहली बार 2011 में परिचालन में आई। तब से अब तक इसने इज़रायल के शहरों और सैन्य ठिकानों को हजारों रॉकेट हमलों से बचाया है। इज़रायल की सबसे बड़ी चुनौती गाज़ा से हमास और लेबनान से हिज़्बुल्लाह की ओर से लगातार दागे जाने वाले रॉकेट रहे हैं। हालिया हमास हमले भी इसी खतरे की ताज़ा मिसाल हैं।
इज़रायल को क्यों पड़ी थी, आयरन डोम की ज़रूरत?
इज़रायल पर बार-बार होने वाले रॉकेट हमलों ने इसे असुरक्षित बना दिया था। खासकर गाज़ा पट्टी से दागे जाने वाले छोटे रॉकेट कई बार शहरों में तबाही मचाते थे। इन्हीं हमलों से निपटने के लिए आयरन डोम तैयार किया गया।
आज यह प्रणाली डेविड्स स्लिंग (David’s Sling) और एरो (Arrow) जैसी अन्य लंबी दूरी की मिसाइल रक्षा प्रणालियों के साथ मिलकर इज़रायल की बहु-स्तरीय एयर डिफेंस स्ट्रैटेजी का हिस्सा है।
आयरन डोम कैसे काम करता है?
आयरन डोम एक अत्याधुनिक मिसाइल रक्षा प्रणाली है, जो दुश्मन द्वारा दागे गए रॉकेटों को हवा में ही नष्ट कर देती है। इसका संचालन इस तरह होता है:
- रडार सक्रिय होता है: सिस्टम सबसे पहले रॉकेट या गोले को ट्रैक करता है और उसकी दिशा, गति और स्थान की जानकारी जुटाता है।
- कंट्रोल सेंटर (BMC) निर्णय लेता है: बैटल मैनेजमेंट एंड कंट्रोल सिस्टम यह तय करता है कि रॉकेट आबादी वाले इलाके पर गिरेगा या नहीं।
- इंटरसेप्टर मिसाइल दागी जाती है: अगर खतरा होता है तो तमीर (Tamir) नामक इंटरसेप्टर मिसाइल लॉन्च की जाती है, जो रॉकेट को हवा में ही खत्म कर देती है।
सीमाएँ और चुनौतियाँ:
हालाँकि आयरन डोम को बेहद सफल माना जाता है, लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह हर परिस्थिति में कारगर नहीं है।
- सैचुरेशन अटैक: अगर दुश्मन एक साथ कई दिशाओं से भारी संख्या में रॉकेट दाग दे, तो सिस्टम दबाव में आ सकता है।
- लागत का मुद्दा: एक तमीर इंटरसेप्टर की कीमत काफी ज़्यादा है, जबकि दुश्मन के रॉकेट सस्ते होते हैं।
इज़रायल के आयरन डोम की तरह भारत भी बना रहा अपना ‘आयरन ड्रोम’:
इज़रायल का आयरन डोम, डेविड स्लिंग और ऐरो मिसाइल डिफेंस सिस्टम दुनिया भर में अपनी सफलता के लिए जाने जाते हैं। अब भारत भी इसी राह पर चलते हुए तीन-स्तरीय मिसाइल रक्षा ढाल खड़ी करने में जुट गया है। इन प्रणालियों के तैनात हो जाने के बाद भारत किसी भी हवाई हमले की स्थिति में और भी मज़बूती से जवाब देने में सक्षम होगा।
भारत का स्वदेशी ‘आयरन ड्रोम’
भारत की मिसाइल ढाल में शामिल होंगे:
- एमआर-एसएएम (Medium Range Surface-to-Air Missile) – भारत-इज़रायल की संयुक्त परियोजना, जो 55–60 किमी तक दुश्मन के हवाई लक्ष्यों को मार गिराने में सक्षम है।
- क्यूआर-एसएएम (Quick Reaction Surface-to-Air Missile) – 30 किमी की दूरी तक कई लक्ष्यों को एक साथ भेदने की क्षमता रखता है।
- वीएसएचओआरएडीएस (Very Short Range Air Defence System) – 6–7 किमी दूरी पर उड़ते ड्रोन और लो-एल्टीट्यूड खतरों को मिनटों में ढेर कर सकता है।
हालिया सफल परीक्षण
- एमआर-एसएएम: ओडिशा के एपीजे अब्दुल कलाम द्वीप से अप्रैल 2025 में लगातार चार सफल परीक्षण हुए। उच्च गति वाले हवाई लक्ष्यों को नष्ट कर यह सिस्टम अब रेजीमेंट्स में शामिल होने की तैयारी में है।
- क्यूआर-एसएएम: सितंबर 2022 में भारतीय सेना के मूल्यांकन परीक्षण पास किए, अब यह सेना के लिए पूरी तरह तैयार है।
- वीएसएचओआरएडीएस: 2 फरवरी 2025 को लगातार तीन सफल परीक्षणों में कम ऊँचाई पर उड़ते लक्ष्यों को मार गिराया।
ड्रोन से निपटने के लिए डी-4 सिस्टम:
मिसाइल रक्षा ढाल के साथ-साथ डीआरडीओ ने डी-4 काउंटर ड्रोन सिस्टम भी विकसित किया है। 27 मार्च को घोषित यह स्वदेशी प्रणाली अब देश के कई बड़े शहरों और संवेदनशील संस्थानों में तैनात की जा रही है।
भारत की बढ़ती सामरिक ताक़त: इन सभी प्रणालियों का एक साथ संचालन भारत को दुश्मन के किसी भी हवाई हमले, ड्रोन हमले या मिसाइल बरसात का जवाब देने में सक्षम बनाएगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह भारत के लिए वैसा ही गेम-चेंजर साबित होगा जैसा आयरन डोम ने इज़रायल के लिए किया।
भारत के पास आयरन बीम (Iron Beam) जैसी तकनीक भी है:
भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने 30 किलोवाट क्षमता वाला लेजर हथियार विकसित किया है, जो अब सेना में तैनाती के लिए तैयार है। इससे भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिनके पास अग्रिम लेजर-सक्षमता मौजूद है।
मुख्य क्षमताएँ-
- प्रभावी दूरी: लगभग 5 किलोमीटर तक ड्रोन, हेलीकॉप्टर और मिसाइल जैसे निकट-रेंज हवाई खतरों को निष्क्रिय कर सकता है।
- बहुउद्देशीय उपयोग: जमीन और नौसैनिक प्लेटफॉर्म दोनों पर तैनात किया जा सकता है।
- इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमता: विरोधी कम्युनिकेशन और सैटेलाइट सिग्नलों पर जामिंग करने की संभावनाएँ।
- पोर्टेबिलिटी और तैनाती: हवाई जहाज, रेलवे, सड़क या समुद्र मार्ग द्वारा शीघ्र स्थानांतरित और तैनात किया जा सकता है।
- सेंसिंग व लक्ष्यीकरण: 360-डिग्री सेंसर प्रणाली द्वारा सटीक निशाना।
- मॉड्यूलर डिजाइन: विभिन्न सैन्य आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलन योग्य।
रणनीतिक महत्व: यह प्रणाली पारंपरिक किनेटिक इंटरसेप्टर्स पर निर्भरता घटाकर रक्षात्मक कवरेज को मजबूत करेगी और सीमित लागत पर उच्च-आवृत्ति वाले खतरों का प्रभावी जवाब देने में सक्षम बनेगी।