राजस्थान के चूरू में जगुआर फाइटर जेट क्रैश, इस साल अब तक तीसरी दुर्घटना

भारतीय वायुसेना के जगुआर फाइटर जेट्स लंबे समय से देश की वायु सीमाओं की रक्षा में अहम भूमिका निभाते आ रहे हैं। हालांकि, हाल के वर्षों में इन विमानों से जुड़े तकनीकी समस्याओं और हादसों की बढ़ती घटनाएं चिंता का विषय बन चुकी हैं।  इसी कड़ी में, 9 जुलाई 2025 को राजस्थान के चूरू जिले में एक और गंभीर हादसा सामने आया, जब दोपहर करीब 12:40 बजे एक जगुआर फाइटर जेट क्रैश हो गया। इस हादसे में दो वीर पायलट – स्क्वॉड्रन लीडर लोकेंद्र सिंह सिंधु (44) और फ्लाइट लेफ्टिनेंट ऋषिराज (23) – शहीद हो गए।

घटनास्थल पर विमान का मलबा बड़े इलाके में फैल गया। भारतीय वायुसेना ने इस दुखद दुर्घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी गठित कर दी है। इस साल 2025 में तीसरी बार जगुआर विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ है, जो इस फ्लीट की तकनीकी विश्वसनीयता और भविष्य को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है।

एक ही वर्ष में तीसरी बार दुर्घटनाग्रस्त हुआ जगुआर, विश्वसनीयता पर उठे सवाल

भारतीय वायुसेना का जगुआर लड़ाकू विमान, जो दशकों से सेवा में है, एक बार फिर हादसे का शिकार हुआ है। वर्ष 2025 में यह तीसरी बार है जब यह विमान क्रैश हुआ है, जिससे इसकी तकनीकी विश्वसनीयता और उड़ान क्षमता को लेकर गहरे सवाल खड़े हो गए हैं।

पहला हादसा: अंबाला, 7 मार्च 2025

7 मार्च को एक एंग्लो-फ्रेंच SEPECAT जगुआर ग्राउंड अटैक विमान अंबाला के पास एक नियमित प्रशिक्षण उड़ान के दौरान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इस घटना में पायलट समय रहते सुरक्षित रूप से बाहर निकलने में सफल रहा, लेकिन हादसे ने जगुआर जैसे पुराने विमानों की तकनीकी स्थिति और उड़ान जोखिमों को उजागर कर दिया।

दूसरा हादसा: जामनगर, 3 अप्रैल 2025

इसके ठीक एक महीने बाद, 3 अप्रैल को गुजरात के जामनगर में एक और जगुआर जेट गंभीर तकनीकी खराबी के चलते दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना में फ्लाइट लेफ्टिनेंट सिद्धार्थ यादव शहीद हो गए। उन्होंने दुर्घटनाग्रस्त विमान को घनी आबादी वाले इलाके से दूर ले जाकर अनेक नागरिकों की जान बचाई, और अपने साथी पायलट को भी समय रहते सुरक्षित बाहर निकाल दिया। अपनी वीरता के बावजूद, वह स्वयं विमान से बाहर नहीं निकल सके और उनका बलिदान पूरे देश के लिए एक मार्मिक क्षण बन गया।

इन दोनों घटनाओं के बाद भी तीसरा हादसा—9 जुलाई को चूरू में—जगुआर विमानों की वर्तमान उड़ान-स्थितियों को लेकर चिंताओं को और भी गहरा करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इन पुराने विमानों की जगह अब तकनीकी रूप से उन्नत और अधिक सुरक्षित विमानों को शामिल करना जरूरी हो गया है।

भारतीय वायुसेना द्वारा इन सभी घटनाओं की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के माध्यम से विस्तृत जांच की जा रही है, ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों से बचा जा सके।

 

पहले जानेंक्या है जगुआर विमान?

जगुआर एक ग्राउंड अटैक और डीप स्ट्राइक के लिए इस्तेमाल होने वाला लड़ाकू विमान है, जिसे ब्रिटेन और फ्रांस ने मिलकर 1960 के दशक में विकसित किया था। इसे आधिकारिक रूप से SEPECAT Jaguar के नाम से जाना जाता है। भारतीय वायुसेना (IAF) ने इसे 1979 में शामिल किया और तब से यह कई अहम अभियानों में शामिल रहा है। यह ट्विन-सीटर फाइटर जेट है, जिसमें दो पायलट बैठ सकते हैं। इसकी अधिकतम गति लगभग 1700 किलोमीटर प्रति घंटा है और यह 46,000 फीट तक उड़ान भरने में सक्षम है। इसके टेकऑफ के लिए केवल 600 मीटर रनवे की जरूरत होती है, जो इसे किसी भी सीमावर्ती बेस से तेजी से ऑपरेट करने लायक बनाता है।

मुख्य विशेषताएं:

इसकी सबसे बड़ी ताकत इसका शक्तिशाली हथियार तंत्र है। इसमें दो 30mm कैनन लगे होते हैं जो हर मिनट 150 गोलियां दाग सकते हैं। विमान में कुल 7 हार्डप्वाइंट्स होते हैं—4 अंडर विंग, 2 ओवर विंग और 1 सेंटर लाइन, जिन पर यह AIM-9 Sidewinder जैसी मिसाइलें, SNEB रॉकेट, हार्पून और सी-ईगल एंटी-शिप मिसाइल, प्रेसिशन गाइडेड बम, स्मार्ट एंटी-एयरफील्ड वेपन और परमाणु हथियार तक ले जा सकता है। यह विमान 1900 किलोमीटर की रेंज में स्ट्राइक कर सकता है और इसमें 4200 लीटर ईंधन भरा जा सकता है।

भारतीय वायुसेना के पास वर्तमान में लगभग 160 जगुआर फाइटर जेट हैं, जिनमें से लगभग 30 ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। इन विमानों का निर्माण भारत में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा किया जाता है। सूरतगढ़ (राजस्थान) जैसे एयरबेस इन विमानों के प्रमुख ऑपरेशन केंद्र हैं। हालांकि हाल ही में लगातार क्रैश की घटनाओं के कारण इसकी सुरक्षा और तकनीकी स्थिति पर सवाल उठे हैं, लेकिन भारतीय वायुसेना अभी भी इन्हें इस्तेमाल कर रही है क्योंकि ये सीमित विकल्पों के चलते अब भी अपनी खासियत—कम ऊंचाई से गहरे हमले—के लिए उपयोगी साबित हो रहे हैं।

कुल मिलाकर, जगुआर आज भले ही एक उम्रदराज विमान हो, लेकिन भारतीय वायुसेना के लिए यह अब भी रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है, खासकर तब जब देश के पास आधुनिक लड़ाकू विमानों की पर्याप्त संख्या नहीं है। यही कारण है कि इसकी सर्विस को 2035-2040 तक बढ़ाने की योजना है।

किनकिन अभियानों में जगुआर ने निभाई अहम जिम्मेदारी?

  • 1984: सियाचिन में ऑपरेशन मेघदूत के दौरान सियाचिन में बढ़त बनाने और दुश्मनों के हमलों का जवाब देने के लिए भी भारत ने जगुआर तैनात किए थे।
  • 1987 से 1990: जगुआर ने श्रीलंका में भारतीय शांति बलों के मिशन को समर्थन देने के लिए कई निगरानी अभियान चलाए।
  • 1999: पाकिस्तानी आतंकियों ने जब एलओसी के करीब भारतीय क्षेत्र पर कब्जे की कोशिश की तब जगुआर के हमलों से पहाड़ी क्षेत्रों को खाली कराया गया।

 

कौन कौन से देश जगुआर फाइटर जेट्स को रिटायर कर चुके है ?

ब्रिटेन, फ्रांस, ओमान, नाइजीरिया और इक्वाडोर जैसे देश वर्षों पहले ही अपने जगुआर फाइटर जेट्स को रिटायर कर चुके हैं, लेकिन भारतीय वायुसेना अब भी इन पुराने विमानों पर निर्भर है। 1970 के दशक में शामिल किए गए इन फाइटर जेट्स को पांच दशक से ज्यादा हो चुके हैं

 

भारतीय वायुसेना में फाइटर विमान हादसों के संभावित कारण

  1. पुराने विमान का उपयोग: जगुआर जैसे विमान 1970 के दशक की तकनीक पर आधारित हैं और 45 वर्ष से अधिक पुराने हो चुके हैं। कई देशों में इन्हें सेवानिवृत्त कर दिया गया है, लेकिन भारत में अभी भी ये सक्रिय हैं, जिससे रखरखाव और पुर्जों की उपलब्धता एक बड़ी चुनौती बन गई है।
  2. तकनीकी अपग्रेड की कमी: हाल के वर्षों में हुए फाइटर प्लेन हादसों में प्रमुख कारण तकनीकी खराबी रही है। इंजन फेल होना और अन्य यांत्रिक दोष यह संकेत देते हैं कि विमानों में अत्याधुनिक तकनीक की कमी बनी हुई है।
  3. स्पेयर पार्ट्स का अभाव: कई पुराने फाइटर विमानों जैसे मिग-21 और जगुआर के आवश्यक पुर्जों का उत्पादन बंद हो चुका है। ऐसे में पुराने पुर्जों पर निर्भरता बनी हुई है, जिससे समय पर मरम्मत और रखरखाव कठिन हो जाता है।
  4. नवीनीकरण में विलंब: नए विमानों जैसे तेजस एमके-1ए को शामिल किए जाने के बावजूद पुराने विमानों को अभी तक पूरी तरह बदला नहीं गया है। इंजन अपग्रेड के प्रयास भी अपेक्षित परिणाम नहीं दे सके हैं, जिससे दुर्घटनाओं की संभावना बनी रहती है।

पायलट द्वारा इजेक्शन कर पाने के संभावित कारण

  1. तकनीकी खराबी: पहले के जगुआर हादसों की जांच में सामने आया है कि इनके इंजन (Adour Mk 804/811) में खासकर गर्म और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ताकत (थ्रस्ट) की कमी देखी गई है। यदि अचानक इंजन या कोई जरूरी सिस्टम खराब हो जाए, तो पायलट को इजेक्शन करने का समय नहीं मिल पाता।
  2. कम ऊंचाई या गति पर उड़ान: अगर विमान पहले से ही बहुत नीचे या धीमी गति पर उड़ रहा हो, तो इजेक्शन करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे हालात में, भले ही विमान में आधुनिक इजेक्शन सीट हो, पायलट के पास बच निकलने का समय बहुत कम होता है।
  3. पायलट का घायल या बेहोश होना: विमान जब तेजी से नीचे गिरता है तो उसमें पैदा होने वाले जोर (G-force) के कारण पायलट को चोट लग सकती है या वह बेहोश हो सकता है। ऐसे में पायलट इजेक्शन की प्रक्रिया शुरू नहीं कर पाता।

निष्कर्ष:

जगुआर फाइटर जेट भले ही तकनीकी रूप से पुराना हो गया हो, लेकिन वर्तमान परिदृश्य में इसकी उपयोगिता अब भी भारतीय वायुसेना के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सीमित विकल्पों, नए विमानों की देरी और स्क्वाड्रन की कमी के चलते भारतीय वायुसेना को इन विमानों की सेवा को लम्बा खींचना पड़ा है। तकनीकी अपग्रेड, DARIN नेविगेशन सिस्टम और रणनीतिक क्षमताओं की वजह से यह विमान अभी भी सीमित भूमिका में उपयोगी बना हुआ है। हालांकि बार-बार हो रहे हादसे इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं, लेकिन जब तक नए विमानों का विकल्प पूरी तरह उपलब्ध नहीं हो जाता, तब तक जगुआर भारतीय आकाश की रक्षा में अपनी जिम्मेदारी निभाता रहेगा। आने वाले वर्षों में इसके सुरक्षित और व्यवस्थित रूप से चरणबद्ध रिटायरमेंट की आवश्यकता स्पष्ट रूप से महसूस की जा रही है।