ताइवान को लेकर जापान की प्रधानमंत्री साने ताकाइची के हालिया बयान के बाद पूर्वी एशिया में तनाव बढ़ गया है। इसी बीच चीन ने जापान-नियंत्रित सेनकाकू द्वीपसमूह (जिसे वह दियाओयू कहता है) के पास अपने कोस्टगार्ड जहाज भेजे हैं। इसी कारण चीन के विदेश मंत्रालय ने सोमवार को कहा कि ताइवान को लेकर बढ़ते तनाव के बीच, चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग की दक्षिण अफ्रीका में आगामी जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान जापानी प्रधानमंत्री से मिलने की कोई योजना नहीं है।
ताइवान पर जापान की चेतावनी से बिगड़े रिश्ते
पिछले हफ्ते ताकाइची ने संसद में कहा था कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है और यह हमला जापान की सुरक्षा के लिए खतरा बनता है, तो जापान अपनी सेल्फ-डिफेंस फोर्सेज को तैनात कर सकता है। यह बयान जापान की “रणनीतिक अस्पष्टता” (Strategic Ambiguity) नीति से अलग माना जा रहा है, जिसके जरिए टोक्यो अब तक ताइवान मुद्दे पर खुला रुख लेने से बचता रहा था।
ताकाइची ने कहा- “ताइवान में लड़ाई, युद्धपोतों की तैनाती या बल प्रयोग की स्थिति जापान के अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है। इसलिए हमें सबसे खराब स्थिति का भी अनुमान लगाना चाहिए।”
चीन ने कड़ा विरोध दर्ज कराया
चीन ने इस बयान को “बहुत गंभीर और भड़काऊ” बताया, जापान के राजदूत को तलब किया और ताकाइची से बयान वापस लेने की मांग की।
ओसाका में चीन के वाणिज्य दूत सू जिन ने सोशल मीडिया पर बेहद कड़ा बयान देते हुए लिखा- “जो गंदा सिर बीच में डालेगा, उसे काटना ही पड़ेगा।”
उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे और अन्य जापानी नेताओं के ताइवान को लेकर दिए गए बयानों को भी “चीन के आंतरिक मामलों में दखल” बताया।
सेनकाकू के पास चीनी कोस्टगार्ड की गतिविधि
चीन के कोस्टगार्ड ने बयान जारी किया- “दियाओयू द्वीपसमूह के जलक्षेत्र में हमारा गश्ती अभियान पूरी तरह वैध है। हम अपने अधिकारों की रक्षा कर रहे हैं।”
यह वही द्वीप हैं जिन्हें जापान सेंकाकू द्वीप कहता है और प्रशासनिक रूप से नियंत्रित करता है, जबकि चीन उन पर दावा करता है।
सेनकाकू द्वीप विवाद परिचय: सेनकाकू द्वीप विवाद पूर्वी चीन सागर में स्थित आठ निर्जन द्वीपों को लेकर जापान और चीन के बीच चल रहा क्षेत्रीय विवाद है।
दोनों देश इन द्वीपों पर स्वामित्व का दावा करते हैं। अवस्थिति: ये आठों निर्जन द्वीप पूर्वी चीन सागर में स्थित हैं।
सामरिक महत्त्व: सेनकाकू द्वीप क्षेत्र की अहमियत कई कारणों से बढ़ जाती है-
इन कारणों से यह विवाद एशिया-प्रशांत क्षेत्र में भू-राजनीतिक तनाव का केंद्र बना हुआ है।
जापान का दावा: जापान का कहना है कि सेनकाकू द्वीप उसके नानसेई शोटो द्वीपसमूह का हिस्सा हैं। 1. 1951 की सैन फ्रांसिस्को संधि में जापान ने ताइवान और अन्य द्वीपों का दावा छोड़ा था। 2. इस संधि के तहत नानसेई शोटो द्वीप अमेरिका के अधीन गया और 1971 में इसे जापान को वापस लौटा दिया गया। 3. जापान के अनुसार सेनकाकू इन द्वीपों का हिस्सा है, इसलिए इस पर उसका स्वामित्व बनता है। 4. चीन ने इस संधि पर उस समय कोई आपत्ति नहीं जताई थी। 5. जापान का कहना है कि चीन ने तेल संसाधनों की खोज (1970 के दशक) के बाद ही दावा करना शुरू किया। हाल ही में दक्षिण जापान की एक स्थानीय परिषद ने क्षेत्र का नाम टोंकशीरो से टोंकशीरो सेनकाकू करने का प्रस्ताव मंज़ूर किया था, जिसे जापान अपने प्रशासनिक अधिकार का प्रमाण मानता है।
चीन का दावा: चीन का कहना है कि-
चीन इसे ऐतिहासिक और भौगोलिक आधार पर अपना अधिकार मानता है। |
चीन ने नागरिकों को जापान यात्रा से रोका; जापान के शेयर गिरे
चीन ने अपने नागरिकों को जापान की यात्रा न करने की सलाह दी है।
इसके बाद जापान ने कहा कि बीजिंग “उचित कदम उठाए”, हालांकि उसने यह नहीं बताया कि उसका मतलब क्या है।
यात्रा चेतावनी के बाद-
- जापान के पर्यटन और रिटेल सेक्टर के शेयरों में गिरावट दर्ज की गई।
- तीन चीनी एयरलाइंस ने कहा कि जापान जाने वाले यात्री अपनी टिकटें मुफ्त में कैंसिल या रीबुक करा सकते हैं।
तनाव कम करने के लिए बातचीत की तैयारी
जापान के विदेश मंत्रालय के एशिया-ओशिनिया विभाग के प्रमुख मासाआकि कनाई मंगलवार को चीन के अधिकारी लियू जिनसोंग से मुलाकात करेंगे।
जापान का कहना है कि-
- ताकाइची की टिप्पणी नीति परिवर्तन नहीं है
- चीन को ऐसे कदम नहीं उठाने चाहिए जो तनाव और बढ़ा दें
ताइवान के आसपास चीन की सैन्य गतिविधि बढ़ी
ताइवान ने कहा है कि हाल के दिनों में उसके आसपास-
- चीनी लड़ाकू विमानों
- युद्धपोतों
की गतिविधि में तेज बढ़ोतरी हुई है। ताइवान का आरोप है कि बीजिंग लगातार दबाव बढ़ाने की कोशिश कर रहा है।
चीन-ताइवान संघर्ष:चीन और ताइवान के बीच विवाद एशिया की सबसे गंभीर भू-राजनीतिक तनावों में से एक है। यह विवाद केवल दो क्षेत्रों के बीच राजनीतिक मतभेद नहीं, बल्कि इतिहास, पहचान, सैन्य रणनीति और अंतरराष्ट्रीय शक्ति-संतुलन से जुड़ा हुआ है। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
1. ताइवान पर चीन-जापान का नियंत्रण · ताइवान पर पहले किंग राजवंश (चिंग) का शासन था। · 1895 में पहले चीन-जापान युद्ध में चीन की हार के बाद ताइवान जापान को सौंप दिया गया। · द्वितीय विश्व युद्ध (1945) में जापान की हार के बाद ताइवान चीन के नियंत्रण में लौट आया। 2. चीनी गृहयुद्ध और दो सरकारों का निर्माण · 1927-1950 के गृहयुद्ध में कुओमिन्तांग (राष्ट्रवादी पार्टी) और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के बीच संघर्ष हुआ। · 1949 में कम्युनिस्टों की जीत के बाद: o कुओमिन्तांग ताइवान भाग गए और रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) की सरकार ताइवान में स्थापित हुई। o मुख्य भूमि पर कम्युनिस्टों ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की स्थापना की। 3. दोनों का दावा: कौन है ‘सही चीन’? · PRC (बीजिंग) और ROC (ताइपे) दोनों ही खुद को पूरे चीन की वैध सरकार बताते रहे। · PRC कहता है-“ताइवान चीन का हिस्सा है, अलग देश नहीं।” एक-चीन नीति· PRC इस बात पर ज़ोर देता है कि दुनिया सिर्फ एक चीन को माने-और वह चीन बीजिंग द्वारा नियंत्रित PRC है। · ताइवान को वह केवल एक “विद्रोही प्रांत” मानता है जिसे किसी समय मुख्य भूमि के साथ मिलना ही होगा (ज़रूरत पड़े तो बलपूर्वक)। अंतरराष्ट्रीय मान्यता· अमेरिका सहित अधिकांश देश आधिकारिक रूप से PRC को चीन की वैध सरकार मानते हैं और “वन-चाइना पॉलिसी” स्वीकार करते हैं। · लेकिन वे ताइवान के साथ अनौपचारिक लेकिन मजबूत संबंध रखते हैं- o व्यापार o हथियार o सांस्कृतिक संबंध o रक्षा सहयोग (अमेरिका विशेष रूप से) ताइवान की अपनी पहचान· ताइवान आज एक पूर्ण लोकतंत्र, अपना संविधान, अपनी सेना और स्वतंत्र सरकार रखता है। · कई सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में लोग खुद को “ताइवानी” मानते हैं, “चीनी” नहीं। · इससे दोनों के बीच राजनीतिक दूरी और बढ़ गई है। क्रॉस-स्ट्रेट संबंध: उतार-चढ़ाव का इतिहास· कभी तनाव और सैन्य खतरे · कभी व्यापार-सहयोग और वार्ता · हाल के वर्षों में चीन का रुख और सख्त होता गया- o सैन्य अभ्यास o मिसाइलें o युद्धपोत o ताइवान की हवाई सीमा का उल्लंघन सैन्य खतरेचीन ने कई बार कहा है कि “यदि शांतिपूर्ण समाधान विफल हुआ, तो हम बलपूर्वक ताइवान को एकीकृत कर सकते हैं।” इसके लिए चीन: · नौसेना का विस्तार कर रहा · मिसाइल क्षमताएँ बढ़ा रहा · एयरफोर्स का आधुनिकीकरण कर रहा यह जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के लिए चिंता का विषय है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्थिति· अधिकांश देश चीन से संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते। · साथ ही वे ताइवान के लोकतंत्र और सुरक्षा को भी समर्थन देते हैं। · इस संतुलन के कारण ताइवान मुद्दा हमेशा से संवेदनशील बना रहता है। ताइवान का सामरिक महत्व (Strategic Importance)1. भू-राजनीतिक महत्व· ताइवान पश्चिमी प्रशांत के सबसे रणनीतिक स्थलों में से एक है। · यह चीन, जापान और फिलीपींस के पास स्थित है। · दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया दोनों की सुरक्षा के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। 2. सैन्य महत्व· ताइवान पर नियंत्रण का मतलब- o चीन पश्चिमी प्रशांत में गहरी सैन्य पहुँच बना लेता। o अमेरिका के सहयोगी जापान और दक्षिण कोरिया पर दबाव बढ़ जाता। o अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति को बड़ा झटका लगता। 3. आर्थिक महत्वताइवान दुनिया का सेमीकंडक्टर हब है: · दुनिया के 60% से अधिक चिप्स · दुनिया के 90% से अधिक एडवांस्ड चिप्स यहीं बनते हैं इसलिए: · ताइवान पर हमला वैश्विक सप्लाई चेन को हिला देगा · ऑटो, मोबाइल, क्लाउड, AI-हर क्षेत्र प्रभावित होगा |
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- ताइवान पर चीन-जापान का नियंत्रण
- ताइवान पर पहले किंग राजवंश (चिंग) का शासन था।
- 1895 में पहले चीन-जापान युद्ध में चीन की हार के बाद ताइवान जापान को सौंप दिया गया।
- द्वितीय विश्व युद्ध (1945) में जापान की हार के बाद ताइवान चीन के नियंत्रण में लौट आया।
- चीनी गृहयुद्ध और दो सरकारों का निर्माण
- 1927-1950 के गृहयुद्ध में कुओमिन्तांग (राष्ट्रवादी पार्टी) और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (CPC) के बीच संघर्ष हुआ।
- 1949 में कम्युनिस्टों की जीत के बाद:
- कुओमिन्तांग ताइवान भाग गए और रिपब्लिक ऑफ चाइना (ROC) की सरकार ताइवान में स्थापित हुई।
- मुख्य भूमि पर कम्युनिस्टों ने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (PRC) की स्थापना की।
- दोनों का दावा: कौन है ‘सही चीन’?
- PRC (बीजिंग) और ROC (ताइपे) दोनों ही खुद को पूरे चीन की वैध सरकार बताते रहे।
- PRC कहता है-“ताइवान चीन का हिस्सा है, अलग देश नहीं।”
एक-चीन नीति
- PRC इस बात पर ज़ोर देता है कि दुनिया सिर्फ एक चीन को माने-और वह चीन बीजिंग द्वारा नियंत्रित PRC है।
- ताइवान को वह केवल एक “विद्रोही प्रांत” मानता है जिसे किसी समय मुख्य भूमि के साथ मिलना ही होगा (ज़रूरत पड़े तो बलपूर्वक)।
अंतरराष्ट्रीय मान्यता
- अमेरिका सहित अधिकांश देश आधिकारिक रूप से PRC को चीन की वैध सरकार मानते हैं और “वन-चाइना पॉलिसी” स्वीकार करते हैं।
- लेकिन वे ताइवान के साथ अनौपचारिक लेकिन मजबूत संबंध रखते हैं-
- व्यापार
- हथियार
- सांस्कृतिक संबंध
- रक्षा सहयोग (अमेरिका विशेष रूप से)
ताइवान की अपनी पहचान
- ताइवान आज एक पूर्ण लोकतंत्र, अपना संविधान, अपनी सेना और स्वतंत्र सरकार रखता है।
- कई सर्वे बताते हैं कि बड़ी संख्या में लोग खुद को “ताइवानी” मानते हैं, “चीनी” नहीं।
- इससे दोनों के बीच राजनीतिक दूरी और बढ़ गई है।
क्रॉस-स्ट्रेट संबंध: उतार-चढ़ाव का इतिहास
- कभी तनाव और सैन्य खतरे
- कभी व्यापार-सहयोग और वार्ता
- हाल के वर्षों में चीन का रुख और सख्त होता गया-
- सैन्य अभ्यास
- मिसाइलें
- युद्धपोत
- ताइवान की हवाई सीमा का उल्लंघन
सैन्य खतरे
चीन ने कई बार कहा है कि “यदि शांतिपूर्ण समाधान विफल हुआ, तो हम बलपूर्वक ताइवान को एकीकृत कर सकते हैं।”
इसके लिए चीन:
- नौसेना का विस्तार कर रहा
- मिसाइल क्षमताएँ बढ़ा रहा
- एयरफोर्स का आधुनिकीकरण कर रहा
यह जापान, अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के लिए चिंता का विषय है।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्थिति
- अधिकांश देश चीन से संबंध बिगाड़ना नहीं चाहते।
- साथ ही वे ताइवान के लोकतंत्र और सुरक्षा को भी समर्थन देते हैं।
- इस संतुलन के कारण ताइवान मुद्दा हमेशा से संवेदनशील बना रहता है।
ताइवान का सामरिक महत्व (Strategic Importance)
1. भू-राजनीतिक महत्व
- ताइवान पश्चिमी प्रशांत के सबसे रणनीतिक स्थलों में से एक है।
- यह चीन, जापान और फिलीपींस के पास स्थित है।
- दक्षिण चीन सागर और पूर्वी एशिया दोनों की सुरक्षा के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।
2. सैन्य महत्व
- ताइवान पर नियंत्रण का मतलब-
- चीन पश्चिमी प्रशांत में गहरी सैन्य पहुँच बना लेता।
- अमेरिका के सहयोगी जापान और दक्षिण कोरिया पर दबाव बढ़ जाता।
- अमेरिका की इंडो-पैसिफिक रणनीति को बड़ा झटका लगता।
3. आर्थिक महत्व
ताइवान दुनिया का सेमीकंडक्टर हब है:
- दुनिया के 60% से अधिक चिप्स
- दुनिया के 90% से अधिक एडवांस्ड चिप्स यहीं बनते हैं
(जैसे TSMC जैसी कंपनियाँ)
इसलिए:
- ताइवान पर हमला वैश्विक सप्लाई चेन को हिला देगा
ऑटो, मोबाइल, क्लाउड, AI-हर क्षेत्र प्रभावित होगा
