जापानी प्रधानमंत्री इशिबा शिगेरू ने दिया इस्तीफा, संसदीय चुनावों में हार के कारण था दबाव-

जापान के प्रधानमंत्री इशिबा शिगेरु ने रविवार को अपने पद से इस्तीफे की घोषणा की। उन्होंने नवंबर 2024 में पीएम पद की शपथ ली थी, लेकिन केवल दस महीने बाद ही उन्हें पद छोड़ना पड़ा। 68 वर्षीय इशिबा ने सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) से आपातकालीन नेतृत्व चुनाव कराने की अपील की है।

 

इशिबा का इस्तीफा उस समय सामने आया है, जब वे घरेलू राजनीति में लगातार चुनौतियों और दबाव से गुजर रहे थे। जुलाई में हुए उच्च सदन के चुनाव में पार्टी की हार के बाद से ही एलडीपी के भीतर उन्हें तीखी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। माना जा रहा है कि पार्टी में संभावित विभाजन और बढ़ते असंतोष को रोकने के लिए इशिबा ने इस्तीफा देना ही उचित समझा।

प्रधानमंत्री इशिबा पर बढ़ा दबाव, आखिरकार दिया इस्तीफा-

 

पिछले साल अक्टूबर में इशिबा शिगेरु ने जापान के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था। उस समय उन्होंने मंहगाई से निपटने, पार्टी में सुधार और बड़े बदलावों के वादे किए थे। लेकिन सत्ता पर आने के बाद से ही उन्हें लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा। खासतौर से एलडीपी पर लगे राजनीतिक फंडिंग घोटाले के आरोपों ने उनकी मुश्किलें और बढ़ा दीं।

 

क्या थे इस्तीफे के कारण:

प्रधानमंत्री बनने के कुछ ही समय बाद सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) और उसकी सहयोगी पार्टी ने निचले सदन के चुनाव में बहुमत खो दिया।

इसके बाद जुलाई में जापानी संसद के ऊपरी सदन में कुल 248 सीटें हैं। इशिबा के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास पहले से 75 सीटें थीं। बहुमत बनाए रखने के लिए कम से कम 50 नई सीटों की ज़रूरत थी, मगर उन्हें केवल 47 सीटें हासिल हो सकीं। इनमें से 39 सीटें LDP के खाते में आईं। यह नतीजा प्रधानमंत्री इशिबा के लिए लगातार दूसरी बड़ी हार थी, लगातार मिली चुनावी हार के बाद इशिबा पर इस्तीफे का दबाव तेज हो गया।

 

पार्टी के भीतर असंतोष:

नतीजों के बाद एलडीपी के भीतर ‘इशिबा को हटाओ’ मुहिम शुरू हो गई। कई सांसदों और नेताओं ने उनके नेतृत्व पर सवाल खड़े करने लगे, जिससे उनकी स्थिति और कमजोर हो गई। अंततः बढ़ते असंतोष और राजनीतिक दबाव के बीच इशिबा ने पद छोड़ने का फैसला किया।

 

अमेरिकी टैरिफ से जनता की नाराजगी

जापान में बढ़ती महंगाई और अमेरिका के ऊंचे टैरिफ को लेकर जनता में असंतोष था। यही वजह सत्तारूढ़ गठबंधन के खिलाफ माहौल बनाने में अहम रही और चुनावी नतीजों पर असर डाला।

हालांकि इसी महीने इशिबा ने अमेरिका के साथ डील की और इस समझौते के तहत जापानी ऑटोमोबाइल पर टैरिफ 25% से घटाकर 15% कर दिया गया। निवेशकों ने इसे जापान की ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए बड़ा फायदा माना, लेकिन यह डील उनकी छवि को बदलने में इसका कोई खास प्रभाव नहीं डाला।

 

पूर्व प्रधानमंत्री ने दी इशिबा को इस्तीफे की सलाह:

पूर्व प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने सोमवार को होने वाले मतदान से पहले इशिबा को पद छोड़ने की सलाह दी थी। हालांकि शुरुआती दौर में इशिबा ने अपने पद पर बने रहने का रुख अपनाया था। इशिबा का कहना था कि ऐसे समय में नेतृत्व में बदलाव जापान के लिए सही नहीं होगा, क्योंकि देश कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है। इनमें अमेरिका के टैरिफ और उसके आर्थिक असर, लगातार बढ़ती कीमतें और क्षेत्रीय तनाव जैसी बड़ी समस्याएँ शामिल हैं।

 

जापान में सत्ता परिवर्तन: कार्यकाल अधूरा छोड़ने की परंपरा:

जापानी राजनीति में प्रधानमंत्री का इस्तीफा असामान्य नहीं है। चुनावी हार, संसद में समर्थन खोना या किसी बड़े संकट की स्थिति में नेतृत्व पर उठे सवाल अक्सर प्रधानमंत्री को कार्यकाल पूरा होने से पहले ही पद छोड़ने के लिए मजबूर कर देते हैं। हाल के दशकों में कई नेताओं ने इसी परंपरा का अनुसरण किया है।

  • शिंजो आबे (2007, पहला कार्यकाल): आबे ने केवल एक वर्ष सत्ता में रहने के बाद संसद और जनता का समर्थन खो दिया, जिसके कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
  • यासुओ फुकुदा (2008): संसद में लगातार गतिरोध और अपनी नीतियों को लागू करने में असफल रहने पर उन्होंने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
  • युकिओ हातोयामा (2010): चुनावी वादे के अनुरूप ओकिनावा से अमेरिकी सैन्य अड्डा न हटा पाने के कारण उनका भरोसा जनता और पार्टी दोनों में कमजोर हुआ। बढ़ते विरोध के चलते उन्होंने पद त्याग दिया।
  • नाओतो कान (2011): फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के दौरान आपदा प्रबंधन में गंभीर कमियों को लेकर तीखी आलोचना हुई। इस दबाव में उन्होंने इस्तीफा देने का निर्णय लिया।
  • शिंजो आबे (2020, दूसरा कार्यकाल): जापान के सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले आबे ने स्वास्थ्य कारणों और पार्टी पर बढ़ते दबाव के चलते पद छोड़ दिया। उस समय उनकी लोकप्रियता अभी भी उच्च स्तर पर थी, लेकिन उन्होंने व्यक्तिगत और राजनीतिक जिम्मेदारी निभाई।

 

आइए जानते है, शिगेरु इशिबा के बारे में:

68 वर्षीय शिगेरु इशिबा जापान के एक बड़े राजनीतिक परिवार से आते हैं। वे साल 1986 से लगातार प्रतिनिधि सभा के सदस्य रहे हैं। अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने कई अहम पद संभाले जैसे- 2007 से 2008 तक रक्षा मंत्री, 2008 से 2009 तक कृषि और मत्स्य पालन मंत्री, और 2012 से 2014 तक सत्ताधारी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (LDP) के महासचिव के रूप में काम किया।

उनके पिता भी जापानी राजनीति की एक महत्वपूर्ण व्यक्ति रहे हैं। 1958 से 1974 तक वे तोतोरी प्रान्त के गवर्नर रहे और बाद में जापान के गृह मंत्री का पद भी संभाला। पिता के निधन के बाद राजनीति में कदम रखने वाले इशिबा ने 1986 में महज़ 29 साल की उम्र में एलडीपी से प्रतिनिधि सभा का चुनाव जीता।

लंबे अनुभव और लगातार राजनीतिक सक्रियता के बाद, 2024 में वे जापान के प्रधानमंत्री बने। लेकिन उनका कार्यकाल एक साल भी पूरा नहीं हो सका और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।

 

इशिबा के बाद जापान का अगला प्रधानमंत्री कौन बन सकता है ?

प्रधानमंत्री इशिबा शिगेरु के इस्तीफे के बाद नए नेता की तलाश शुरू हो गई है। प्रमुख दावेदार इस प्रकार हैं-

  • साने ताकाइची (64 वर्ष, LDP): साने ताकाइची पार्टी की वरिष्ठ नेता और जापान की पहली महिला पीएम बनने की प्रबल दावेदार है। आर्थिक सुरक्षा व आंतरिक मंत्री रह चुकीं है, और संविधान संशोधन और सरकारी खर्च बढ़ाने की पक्षधर भी है।
  • शिंजिरो कोइज़ुमी (44 वर्ष, LDP): पूर्व प्रधानमंत्री जुनिचिरो कोइज़ुमी के बेटे शिंजिरो कोइज़ुमी युवा चेहरे के रूप में पीएम पद की दौड़ में शामिल हैं। यदि चुने जाते हैं तो वे आधुनिक जापान के सबसे युवा प्रधानमंत्री बनेंगे। ये पूर्व पर्यावरण मंत्री, परमाणु रिएक्टर हटाने और सुधारवादी छवि के लिए जाने जाते हैं।
  • योशिमासा हयाशी (64 वर्ष, LDP): मौजूदा मुख्य कैबिनेट सचिव, रक्षा, विदेश और कृषि मंत्री रह चुके है, अंतरराष्ट्रीय अनुभव और मौद्रिक नीति के समर्थक माने जाते है।
  • योशीहिको नोडा (68 वर्ष, CDP): सबसे बड़े विपक्षी दल कांस्टीट्यूशनल डेमोक्रेटिक पार्टी (CDP) के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री योशीहिको नोडा भी संभावित नामों में शामिल हैं। प्रधानमंत्री रहते हुए उन्होंने उपभोग कर को 5% से बढ़ाकर 10% किया था।
  • युइचिरो तामाकी (56 वर्ष, DPP): डेमोक्रेटिक पार्टी फॉर द पीपल (DPP) के सह-संस्थापक युइचिरो तामाकी विपक्ष के उभरते हुए नेता हैं। वे वित्त मंत्रालय में नौकरशाह रह चुके हैं और टैक्स कटौती व छूट के जरिए लोगों की आय बढ़ाने के पक्षधर हैं।

 

निष्कर्ष: जापान की राजनीतिक स्थिति फिलहाल अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है। नया प्रधानमंत्री स्थिर जनादेश सुनिश्चित करने के लिए जल्द चुनाव कराने का विकल्प चुन सकता है। वहीं, पारंपरिक विपक्ष कमजोर दिखाई देता है, लेकिन संसेतो जैसी उभरती पार्टियों की हालिया सफलता यह दर्शाती है कि देश की राजनीति में नए विचार और दृष्टिकोण धीरे-धीरे प्रभावी हो रहे हैं।