30 अक्टूबर 2025 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने न्यायमूर्ति सूर्यकांत को भारत के 53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया। 24 नवंबर 2025 को पदभार ग्रहण करते हुए, वह न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की जगह लेंगे. यह नियुक्ति केवल एक संवैधानिक औपचारिकता नहीं है यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण क्षण है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत हरियाणा से भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश होंगे, जो एक छोटे गांव से सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचने की असाधारण यात्रा को दर्शाता है।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
10 फरवरी 1962 को हिसार जिले के पेटवर गांव में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत का परिवार कानून या अदालतों से जुड़ा नहीं था। उनके पिता मदन गोपाल शर्मा एक संस्कृत शिक्षक थे और उनकी माता गृहिणी थीं। चार भाइयों और एक बहन में सबसे छोटे, सूर्यकांत ने गांव के स्कूल में पढ़ाई की, जहां कक्षाओं में बेंच तक नहीं थीं.
उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज, हिसार से हुई और कानून में स्नातकोत्तर डिग्री महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से 1984 में प्राप्त की. यह महत्वपूर्ण है कि न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने 2011 में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से अपनी मास्टर डिग्री हासिल की जब वे पहले से ही पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के जज थे। उन्होंने इस डिग्री में प्रथम श्रेणी प्रथम आए.
कानूनी पेशे में एंट्री
1984 में, सूर्यकांत हिसार की जिला अदालत में वकील के रूप में पंजीकृत हुए।
1985 में वरिष्ठ वकील अरुण के. जैन के मामलों को संभालने लगे और अपने स्वयं के मामले भी लेने लगे.
1990 के दशक तक, सूर्यकांत चंडीगढ़ के कानूनी हलकों में एक स्थापित नाम बन गए थे। संवैधानिक कानून और सेवा मामलों में उनकी विशेषज्ञता ने उन्हें हजारों अन्य वकीलों से अलग किया। 2001 में, उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया।
हरियाणा के सबसे युवा अधिवक्ता जनरल
2000 में, 38 वर्ष की आयु में, सूर्यकांत को हरियाणा के अधिवक्ता जनरल के रूप में नियुक्त किया गया। वह राज्य के सबसे युवा अधिवक्ता जनरल बने। 4 वर्षों की अवधि के लिए, उन्होंने संवैधानिक और प्रशासनिक कानून पर अपनी गहरी समझ का प्रदर्शन किया।
2004 में, 42 वर्ष की आयु में, उन्हें पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के स्थायी जज के रूप में उन्नत किया गया यह उस न्यायालय में सबसे युवा नियुक्तियों में से एक था।.
उच्च न्यायालय में प्रभावशाली कार्यकाल (2004-2018)
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में 14 वर्षों की अवधि में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अनेक महत्वपूर्ण निर्णय दिए।
2007 से 2011 तक, वह राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) की गवर्निंग बॉडी के सदस्य रहे, जिससे उन्हें कानूनी सहायता और न्याय में सुलभता के प्रति गहरी प्रतिबद्धता मिली।
इसी अवधि में, उन्होंने “जसवीर सिंह” निर्णय दिया, जिसमें पंजाब सरकार को जेल सुधार समिति बनाने का निर्देश दिया गया। इस निर्णय ने कैदियों के नागरिक अधिकारों, विशेष रूप से पति-पत्नी और परिवार के सदस्यों के साथ मिलने के अधिकार को स्वीकार किया।
2018 में, उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। लेकिन यह पद अधिक समय तक नहीं था।
2019 में, उनके प्रभाव और कानूनी विद्वत्ता के कारण, उन्हें सर्वोच्च न्यायालय में उन्नत किया गया।
सर्वोच्च न्यायालय में युगांतरकारी निर्णय (2019-2025)
सर्वोच्च न्यायालय में 6 वर्षों की अवधि में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने 300 से अधिक बेंचों पर सेवा की है और भारतीय संवैधानिक कानून को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
महत्वपूर्ण निर्णय में भूमिका
- अनुच्छेद 370 निर्णय: न्यायमूर्ति सूर्यकांत उस बेंच का हिस्सा थे जिसने 2019 में जम्मू-कश्मीर से विशेष दर्जा हटाने के फैसले को बरकरार रखा।
- निन्दा कानून स्थगन: उन्होंने उस आदेश में भाग लिया जिसमें औपनिवेशिक निन्दा कानून के तहत नई FIR दर्ज करने पर रोक लगाई गई, जब तक इसकी समीक्षा न हो जाए।
- चुनावी बांड रद्द: चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित करने वाली बेंच में भी वे शामिल थे। अदालत ने इसे पारदर्शिता और सूचना के अधिकार के खिलाफ माना।
- पेगासस स्पाइवेयर केस: पेगासस मामले में उन्होंने माना कि राष्ट्रीय सुरक्षा महत्वपूर्ण है, लेकिन व्यक्तिगत गोपनीयता की अनदेखी नहीं हो सकती।
- लैंगिक समानता: महिला सरपंच के मामले में लैंगिक पूर्वाग्रह की ओर इशारा किया और बार एसोसिएशनों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण का निर्देश दिया।
53वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में चुनौतियां
न्यायमूर्ति सूर्यकांत का कार्यकाल 15 महीनों का होगा, जो 9 फरवरी 2027 तक चलेगा। यह अवधि लंबी नहीं है, लेकिन इसमें बेहद महत्वपूर्ण काम हैं।
90,000 पेंडिंग मामलों की समस्या
सर्वोच्च न्यायालय में वर्तमान में 90,000 से अधिक मामले लंबित हैं – यह एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने स्पष्ट कहा है कि यह उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
निष्कर्ष:
न्यायमूर्ति सूर्यकांत की यात्रा केवल एक व्यक्तिगत सफलता की कहानी नहीं है – यह भारतीय न्यायपालिका की एक कहानी है। एक छोटे गांव से एक छोटे शहर की अदालत तक, फिर उच्च न्यायालय, फिर सर्वोच्च न्यायालय, और अब सर्वोच्च न्यायालय की बागडोर यह यात्रा दिखाती है कि योग्यता, कड़ी मेहनत, और बुद्धिमत्ता कहां तक पहुंच सकती है।
