कर्नाटक हाई कोर्ट ने बुधवार को इलॉन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X की केंद्र सरकार के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस एम. नागप्रसन्ना ने कहा कि सोशल मीडिया कंटेंट पर नियंत्रण बेहद जरूरी है, खासकर महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे मामलों में। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत में काम करने वाली सभी सोशल मीडिया कंपनियों को यहां के कानूनों का पालन करना अनिवार्य है और देश का डिजिटल बाजार ऐसा खेल का मैदान नहीं हो सकता, जहां कोई भी जानकारी कानूनों की अनदेखी करते हुए फैलायी जाए।
कर्नाटक हाई कोर्ट का यह आदेश एलन मस्क की कंपनी ”एक्स” के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है क्योंकि भारत उसके लिए बड़ा बाजार है।

एक्स के टेकडाउन आदेश पर कंपनी पहुंची कोर्ट:
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X ने मार्च में भारत सरकार के खिलाफ याचिका दायर की थी। कंपनी का आरोप था कि सरकारी अफसर प्लेटफॉर्म पर कंटेंट ब्लॉक कर रहे हैं और इसके लिए आईटी एक्ट की धारा 79(3)(B) का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है। एक्स का कहना था कि इस तरह के आदेश केवल आईटी एक्ट की धारा 69A के तहत तय प्रक्रिया से ही दिए जा सकते हैं।
अपनी याचिका में एक्स ने भारत के सख्त इंटरनेट नियमन को चुनौती दी थी और केंद्र सरकार के “सहयोग पोर्टल” की वैधता पर भी सवाल उठाए थे। यह पोर्टल एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है, जिसका इस्तेमाल इंटरमीडिएरीज़ (बीच के सेवा प्रदाता) को कंटेंट हटाने के आदेश भेजने के लिए किया जाता है।
कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक्स की याचिका को खारिज किया
कर्नाटक हाई कोर्ट ने एक्स की याचिका को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि सोशल मीडिया को नियंत्रित करना हर देश की जरूरत है और अमेरिका सहित सभी देश इसे लागू करते हैं। अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि एक्स अमेरिका में टेकडाउन आदेशों को मानता है, तो भारत में भी ऐसा करने से इनकार नहीं कर सकता।
भारत में भारत का कानून मानना होगा- HC
कंपनी ने अमेरिकी कानूनों का हवाला देते हुए कहा कि वह वैश्विक स्तर पर अपनी नीतियों के अनुसार काम करती है. कर्नाटक हाई कोर्ट ने कहा कि एक्स अमेरिका में वहां के कानूनों का पालन करता है लेकिन भारत में लागू टेकडाउन आदेशों को मानने से मना कर रहा है. कोर्ट ने कहा कि जो भी प्लेटफॉर्म यहां काम कर रहा है, सभी को यहां के नियमों का पालन करना होगा.
अमेरिकी कानून को भारत पर थोपा नहीं जा सकता‘
मामले की सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता वर्चुअल रूप से पेश हुए। सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने कहा, सूचना और संचार को कभी भी अनियंत्रित और अनियमित नहीं छोड़ा जा सकता है, जब से तकनीक विकसित हुई है, सभी को विनियमित किया गया है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 (2) के तहत प्रतिबंधों से घिरा हुआ है। अमेरिकी न्यायशास्त्र को भारतीय विचारधारा में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता।
सहयोग पोर्टल पर भी हाई कोर्ट की प्रतिक्रिया:
अदालत ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार जिम्मेदारी से जुड़ा हुआ है। यदि इसे बिना नियमन लागू किया जाए, तो यह अराजकता को जन्म दे सकता है। कोर्ट ने माना कि ‘सहयोग पोर्टल’ का मकसद साइबर अपराध रोकना और सुरक्षित डिजिटल वातावरण सुनिश्चित करना है।
केंद्र ने इस पर क्या कहा था?
सरकार ने अदालत में तर्क दिया कि संविधान का अनुच्छेद 19(2) केवल भारतीय नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, न कि विदेशी कंपनियों या गैर-नागरिकों को। इसलिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X को इस आधार पर छूट नहीं मिल सकती। केंद्र ने साफ कहा कि भारत में काम करने वाली हर कंपनी को देश के कानूनों और नियमों का पालन करना ही होगा।
‘सहयोग’ पोर्टल क्या है?
‘सहयोग पोर्टल’ को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2024 में लॉन्च किया। इसका उद्देश्य आपत्तिजनक या अवैध कंटेंट को ब्लॉक करने की प्रक्रिया को तेज़ बनाना है। इस पोर्टल का संचालन इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C) करता है।
गृह राज्य मंत्री बंदी संजय कुमार ने 26 मार्च को राज्यसभा में बताया कि यह पोर्टल आईटी एक्ट, 2000 की धारा 79(3)(b) के तहत अधिकृत एजेंसियों को नोटिस भेजने में मदद करता है, जिससे किसी भी अवैध कंटेंट, डेटा या लिंक को हटाना या ब्लॉक करना आसान हो सके।
इंडियन साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर I4C की कार्रवाई:
I4C ने अब तक 3,962 Skype IDs और 83,668 WhatsApp अकाउंट ब्लॉक किए हैं, जिन्हें डिजिटल अरेस्ट जैसे अपराधों में इस्तेमाल किया जा रहा था। 7.81 लाख सिम कार्ड और 2,08,469 IMEIs भी पुलिस की रिपोर्ट पर ब्लॉक किए गए हैं।
क्या है, इस पोर्टल का मकसद:
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह पोर्टल अधिकृत एजेंसियों, IT Intermediaries और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं (ISPs) को एक प्लेटफॉर्म पर लाता है।
- अब एजेंसियां सीधे नोटिस भेज सकती हैं या कोर्ट के आदेश के तहत कार्रवाई कर सकती हैं।
- इसका फायदा यह है कि समय पर और समन्वित तरीके से ऑनलाइन उल्लंघनों पर कार्रवाई हो पाती है।
आपत्तिजनक कंटेंट को फ्लैग करना
- केंद्र या राज्य पुलिस, या कोई अधिकृत एजेंसी इस पोर्टल पर आपत्तिजनक कंटेंट को फ्लैग करके ब्लॉक करने का अनुरोध कर सकती है।
- अगर मामला सोशल मीडिया/IT Intermediaries का है, तो नोटिस सीधे उन्हीं तक जाता है।
- अगर मामला ISPs का है, तो यह नोटिस पहले DoT (Department of Telecommunications) तक जाता है और फिर DoT इसे ISPs तक भेजता है।
- सभी संबंधित पक्षों को एक राष्ट्रीय डैशबोर्ड पर कार्रवाई की स्थिति दिखाई जाएगी।
- IT कंपनियों को यह अधिकार है कि वे जरूरत पड़ने पर अधिक जानकारी या सबूत मांग सकें।
न्यायपालिका की भूमिका:
- दिसंबर 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने Shabana vs Govt of NCT Delhi केस में सहयोग पोर्टल के इस्तेमाल पर जोर दिया।
- कोर्ट ने कहा कि आईटी एक्ट की धारा 79(3)(b) के तहत अवैध कंटेंट हटाने के लिए पोर्टल का उपयोग होना चाहिए।
- अदालत ने IT कंपनियों को आदेश दिया कि वे पोर्टल पर अनिवार्य रूप से ऑनबोर्ड हों और अपनी स्थिति अगली सुनवाई में बताएं।
कौन जुड़ चुका है पोर्टल से?
अब तक 15 बड़े IT Intermediaries इस पोर्टल से जुड़ चुके हैं, इनमें शामिल हैं: Josh, Quora, Telegram, Apple, Google, Amazon, YouTube, PI Data Centre, Sharechat आदि।
31 राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों ने भी अपने अधिकारियों को नामित करके पोर्टल पर ऑनबोर्ड कर लिया है।
ग्रोक बना चर्चा का केंद्र:
फरवरी 2025 में एलन मस्क की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंपनी xAI ने घोषणा की कि उसका नवीनतम चैटबॉट ग्रोक 3 अब सबके लिए मुफ्त उपलब्ध होगा। इसके बाद से ही ग्रोक लगातार सुर्खियों में बना हुआ है। यह चैटबॉट न केवल एक अलग ऐप के रूप में बल्कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (X) पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है। भारत में लोगों ने इसे लेकर दिलचस्प और चुनौतीपूर्ण सवाल पूछने शुरू किए, जिनमें राजनीतिक और सामाजिक संरचना से जुड़े संवेदनशील मुद्दे भी शामिल थे। ग्रोक ने इन सवालों पर बिना किसी फिल्टर के सीधे जवाब दिए, जिससे विवाद और बढ़ गया।
ग्रोक का यह अनफ़िल्टर्ड नेचर लोगों को चौंकाने वाला लगा। इसकी वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी तक पर सवालों की बौछार होने लगी और चैटबॉट के कई सनसनीखेज जवाब चर्चा का केंद्र बन गए।
हालांकि, एआई चैटबॉट्स लंबे समय से नैतिक सवालों और डेटा उपयोग को लेकर जांच के दायरे में रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे चैटबॉट कभी-कभी गलत या अनुचित जानकारी दे सकते हैं क्योंकि वे लगातार सीखने की प्रक्रिया में रहते हैं।
ध्यान देने योग्य है कि ग्रोक को 2023 में मस्क द्वारा स्थापित कंपनी xAI ने विकसित किया था। इसे खास तौर पर ओपनएआई के ChatGPT और गूगल के Gemini जैसे मुख्यधारा के एआई मॉडल्स के विकल्प के रूप में डिज़ाइन किया गया है।
निष्कर्ष:
कर्नाटक हाई कोर्ट का फैसला साफ़ करता है कि भारत में काम करने वाली हर सोशल मीडिया कंपनी को भारतीय कानूनों का पालन करना ही होगा। कोर्ट ने एक्स (X) की याचिका खारिज करते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार अराजकता की छूट नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी से जुड़ा है।