भ्रष्टाचार पर निगरानी रखने वाली संस्था लोकपाल, जो वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता में काम कर रही है, इन दिनों चर्चा में है। कारण है- लोकपाल कार्यालय द्वारा सात BMW 3 सीरीज 330Li कारों की खरीद के लिए जारी की गई निविदा(tender)। 16 अक्टूबर को जारी इस टेंडर के तहत लगभग 5 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली इन लग्ज़री गाड़ियों की खरीद को लेकर लोगों में सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस नेताओं ने इस कदम की निंदा की है और इसे फिजूलखर्ची का प्रदर्शन बताया है।
आपको बता दें कि भारत के मुख्य न्यायाधीश को मर्सिडीज कार दी गई है, जबकि सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों को BMW 3 सीरीज कार दी गई है।

पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने कहा,
जब सुप्रीम कोर्ट के जज साधारण सेडान कारों का इस्तेमाल करते हैं, तो लोकपाल के अध्यक्ष और 6 सदस्यों को BMW जैसी महंगी कारों की क्या जरूरत है?
लोकपाल आंदोलन के एक सदस्य, वकील प्रशांत भूषण ने एक्स पर लिखा:
मोदी सरकार ने लोकपाल संस्था को पूरी तरह कमजोर कर दिया है। कई सालों तक इसे खाली रखा और बाद में ऐसे लोगों को सदस्य बनाया जिन्हें भ्रष्टाचार की परवाह नहीं है और जो सिर्फ ऐशो-आराम में खुश हैं।
नीति आयोग के पूर्व अध्यक्ष अमिताभ कांत ने X पर लिखा,
उन्हें यह टेंडर रद्द करके @makeinindia इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाना चाहिए—या तो महिंद्रा की XEV 9E, BE 6 या टाटा की हैरियर EV। ये उच्च श्रेणी की गाड़ियाँ हैं।
टेंडर की मुख्य बातें:
बोलियाँ जमा करने की आखिरी तारीख 6 नवंबर रखी गई है, और जो भी कंपनी बोली लगाएगी, उसे 10 लाख रुपये बयाना जमा करना होगा। बोलियाँ 7 नवंबर को खोली जाएँगी।
निविदा में यह भी अनिवार्य किया गया है कि चयनित विक्रेता को ड्राइवरों और अन्य नामित स्टाफ सदस्यों के लिए “व्यापक व्यावहारिक और सैद्धांतिक प्रशिक्षण कार्यक्रम” आयोजित करना होगा, जिसकी लागत पूरी तरह से विक्रेता द्वारा वहन की जाएगी। गाड़ियों की डिलीवरी आदेश मिलने के दो हफ्तों के भीतर कर दी जानी चाहिए, लेकिन यह समय 30 दिनों से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। साथ ही साफ कहा गया है कि डिलीवरी की तारीख बढ़ाई नहीं जाएगी।
BMW 330Li के बारे में:
BMW 330Li M Sport 3 सीरीज का लॉन्ग व्हील-बेस (LWB) वेरिएंट है, जिसे खास भारतीय बाजार के लिए डिजाइन किया गया है। यह चेन्नई प्लांट में असेंबल होती है और 2025 मॉडल में लॉन्च हुई। इसकी शुरुआती कीमत लगभग ₹62.60 लाख (एक्स-शोरूम) है, जो इसे मर्सिडीज और ऑडी A4 जैसे प्रीमियम सेडान सेगमेंट के मुकाबले लायक बनाती है।
विशेषताएँ:
- रियर सीट का कम्फर्ट: LWB होने की वजह से रियर पैसेंजर्स को अच्छा लेग रूम और हेडरूम मिलता है। यह बिजनेस क्लास जैसी सुविधा देता है, इसलिए अमीर परिवारों और एक्जीक्यूटिव्स के लिए परफेक्ट है।
- परफॉर्मेंस: इसमें 258 hp का पावरफुल इंजन है, जो सिटी ड्राइव और हाईवे ओवरटेकिंग दोनों के लिए स्मूथ और रेस्पॉन्सिव है। सॉफ्ट सस्पेंशन भारतीय सड़कों पर आरामदायक राइड देता है और बॉडी रोल कंट्रोल बैलेंस बनाए रखता है।
आइये जानते है लोकपाल के बारे में:
लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत केंद्र स्तर पर लोकपाल और राज्य स्तर पर लोकायुक्त की स्थापना की गई है। ये दोनों संस्थाएँ कानूनी रूप से बनी हैं, लेकिन इन्हें कोई संवैधानिक दर्जा नहीं मिला है। इनका मुख्य काम सरकारी अधिकारियों, मंत्रियों और कर्मचारियों के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करना और जनता की शिकायतों का समाधान करना है। इसे 2010 में अन्ना के जन लोकपाल आंदोलन के बाद संसद में पेश किया गया था।
लोकपाल का इतिहास:
भारत में संवैधानिक ओम्बुड्समैन का विचार 1960 के दशक में कानून मंत्री अशोक कुमार सेन ने संसद में पेश किया। लोकपाल और लोकायुक्त शब्द प्रसिद्ध विधिवेत्ता डॉ. एल.एम. सिंघवी ने सुझाया। 1966 में प्रथम प्रशासनिक सुधार आयोग ने केंद्रीय और राज्य स्तर पर स्वतंत्र अधिकारी बनाने की सिफारिश की। 1968 में लोकसभा में लोकपाल विधेयक पारित हुआ, लेकिन लोकसभा के विघटन के कारण यह लागू नहीं हो सका।
वर्ष 2002, 2005 और 2011 में भी विभिन्न आयोगों और समूहों ने लोकपाल की स्थापना की सिफारिश की। अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दबाव में लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक, 2013 संसद से पारित हुआ। इसे 1 जनवरी, 2014 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिली और 16 जनवरी, 2014 से लागू कर दिया गया।
हमें लोकपाल की आवश्यकता क्यों है?
खराब प्रशासन किसी देश की नींव को दीमक की तरह कमजोर कर देता है, और उसका सबसे बड़ा कारण है भ्रष्टाचार। ज़्यादातर भ्रष्टाचार विरोधी संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से काम नहीं कर पातीं, इसलिए वे प्रभावी नहीं होतीं। यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी CBI को “पिंजरे का तोता” और “अपने मालिक की आवाज़” कहा है, जिससे उसकी सीमित स्वतंत्रता साफ झलकती है। कई एजेंसियाँ केवल सलाह देने वाले निकाय हैं, जिनकी राय पर शायद ही अमल किया जाता है।
इसके अलावा, इन संस्थाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी भी है, क्योंकि उन पर निगरानी रखने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं है। ऐसे में, एक स्वतंत्र लोकपाल संस्था का गठन भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो लगातार बढ़ते भ्रष्टाचार से निपटने की दिशा में एक उम्मीद की किरण साबित हो सकती है।
लोकपाल की संरचना:
लोकपाल एक बहु-सदस्यीय संस्था है, जिसमें एक चेयरपर्सन और अधिकतम 8 सदस्य होते हैं। चेयरपर्सन पूर्व मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश, या सत्यनिष्ठ और अनुभवी व्यक्ति होना चाहिए।
सदस्यों में आधे न्यायिक और कम से कम 50% अनुसूचित जाति/जनजाति/अल्पसंख्यक/महिला होने चाहिए। न्यायिक सदस्य सुप्रीम कोर्ट या उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश होते हैं, जबकि गैर-न्यायिक सदस्य प्रशासन, वित्त, कानून और प्रबंधन में कम से कम 25 वर्षों का अनुभव रखते हैं। चेयरपर्सन और सदस्यों का कार्यकाल 5 वर्ष या 70 वर्ष की आयु तक होता है।
नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा चयन समिति की सिफारिश पर होती है, जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, विपक्ष नेता, मुख्य न्यायाधीश और एक प्रख्यात न्यायविद शामिल होते हैं। इसके अलावा, चयन समिति कम से कम 8 लोगों की खोजबीन समिति (सर्च पैनल) भी बनाती है।
लोकपाल एवं लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2016:
लोकपाल और लोकायुक्त (संशोधन) विधेयक, 2016 संसद द्वारा जुलाई 2016 में पारित किया गया था, ताकि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 में कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए जा सकें। इसके तहत अगर लोकसभा में विपक्ष का कोई मान्यता प्राप्त नेता नहीं है, तो सबसे बड़े विरोधी दल का नेता लोकपाल चयन समिति में शामिल होगा। सरकारी अधिकारियों को अब अपनी संपत्ति और कर्ज की घोषणा देने के लिए पहले तय 30 दिन की सीमा नहीं है; वे इसे सरकार द्वारा तय समय और तरीके से देंगे। यह संशोधन ट्रस्टियों और बोर्ड सदस्यों को भी अपनी और पति/पत्नी की संपत्तियों की घोषणा के लिए अधिक समय देता है, जब वे बड़े सरकारी या विदेशी फंड प्राप्त करते हैं।
लोकपाल द्वारा भ्रष्टाचार मामलों पर की गई कार्रवाईयाँ:
अधिकारिक रिपोर्टों के अनुसार, 2019 से सितंबर 2025 तक लोकपाल को 6,955 शिकायतें मिलीं। इनमें से 90% से अधिक आवेदन खारिज किए गए क्योंकि वे गलत प्रारूप या प्रक्रियागत खामियों वाले थे। केवल 289 मामलों में प्रारंभिक जांच की गई और सिर्फ 7 मामले ही अभियोजन तक पहुंचे।
सिर्फ 3% शिकायतें राजनीतिक नेताओं के खिलाफ थीं। पिछले साल प्रधानमंत्री के खिलाफ तीन शिकायतें आईं, जिनमें से एक को “अटकलें और राजनीतिक दुष्प्रचार” मानकर खारिज कर दिया गया। लगभग 21% शिकायतें केंद्रीय अधिकारियों (ग्रुप A-D) के खिलाफ और 35% केंद्रीय निकायों के प्रमुख या सदस्यों के खिलाफ थीं। अब तक, लोकपाल की सिफारिशों के तहत कोई मामला साबित नहीं हुआ है।
मौजूदा लोकपाल सदस्य:
लोकपाल में कुल आठ पद स्वीकृत हैं, लेकिन फिलहाल इसमें सात सदस्य काम कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर मौजूदा अध्यक्ष हैं। हालाँकि, न्यायमूर्ति खानविलकर और अन्य सदस्य मंगलवार को BMW कारों के लिए निविदा पर टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे।
छह अन्य सदस्य हैं:
- न्यायमूर्ति संजय यादव, इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश
- न्यायमूर्ति ऋतु राज अवस्थी, कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश
- न्यायमूर्ति एल. नारायण स्वामी, कर्नाटक हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश
- सुशील चंद्रा, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त
- पंकज कुमार, गुजरात के पूर्व मुख्य सचिव
- अजय टिकरे, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के पूर्व सचिव
प्रधानमंत्री के कारों में भी हुए है बदलाव:
प्रधानमंत्री की कारों में समय-समय पर बदलाव किए गए हैं। पहले प्रधानमंत्री एंबेसडर कार का इस्तेमाल करते थे, लेकिन मनमोहन सिंह के कार्यकाल में इसे बदलकर हाई-सिक्योरिटी BMW कारों का इस्तेमाल शुरू किया गया। वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब करीब ₹10 करोड़ कीमत वाली रेंज रोवर सेंटिनल कार में सफर करते हैं। इसके अलावा, उन्होंने पहले BMW 760Li सिक्योरिटी एडिशन, मर्सिडीज-मेबैक S650 गार्ड, और टोयोटा लैंड क्रूज़र जैसी कारों का भी उपयोग किया है, जिसकी कीमत लगभग ₹2 करोड़ से थोड़ी ज़्यादा है।
निष्कर्ष:
इस मामले से स्पष्ट है कि लोकपाल जैसी भ्रष्टाचार विरोधी संस्था के काम में भी पारदर्शिता और जवाबदेही जरूरी है। बड़े व्यय के फैसले जनता के विश्वास को प्रभावित कर सकते हैं, इसलिए लोकपाल को अपने निर्णयों और खर्चों में पूरी पारदर्शिता बनाए रखनी चाहिए।