मेक्सिको ने भारत और चीन से आयातित वस्तुओं पर टैरिफ बढ़ाया

मेक्सिको की सीनेट ने हाल ही में भारत और चीन से आने वाले कई उत्पादों पर अधिकतम 50% तक आयात शुल्क लगाने की मंजूरी दी है। यह नीति 1 जनवरी 2026 से लागू होने जा रही है, जिसमें देश का उद्देश्य अपने स्थानीय उद्योगों को बढ़ती प्रतिस्पर्धा से सुरक्षा देना है। यह बदलाव दर्शाता है कि मेक्सिको अब एशियाई देशों के साथ अपने आर्थिक संबंधों को नए दृष्टिकोण से पुनर्संतुलित करना चाहता है। नई शुल्क संरचना घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने और आयात पर निर्भरता को नियंत्रित करने की दिशा में एक मजबूत कदम मानी जा रही है।

Mexico raises tariffs on goods imported from India and China

मेक्सिको की नई टैरिफ व्यवस्था के प्रमुख बिंदु

 

मेक्सिको ने दिसंबर 2025 में एशियाई देशों से आयात पर शुल्क बढ़ाने का बड़ा निर्णय लिया। यह कदम स्थानीय उद्योगों को प्रतिस्पर्धात्मक दबाव से राहत देने और आर्थिक संतुलन को पुनः आकार देने की व्यापक रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। 1 जनवरी 2026 से लागू होने वाले इन शुल्कों का सीधा प्रभाव भारत, चीन और कई अन्य एशियाई निर्यातकों पर पड़ेगा।

 

मेक्सिको के निचले सदन में प्रस्ताव पेश होने के बाद इसे विस्तृत चर्चा के लिए सीनेट में भेजा गया। 11 दिसंबर 2025 को सीनेट ने इस बिल पर मतदान किया, जिसमें 76 सदस्यों ने समर्थन, 5 ने विरोध, और 35 ने मतदान से दूरी बनाई। 

 

  • नए शुल्क ढांचे का दायरा: नई नीति के तहत आयात शुल्क 5% से 50% के बीच तय किए गए हैं। सर्वाधिक 50% शुल्क केवल कुछ चुनिंदा श्रेणियों पर लगाया जाएगा, जबकि इस नीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू इसका व्यापक दायरा है। संशोधित टैरिफ सूची में 1,400 से अधिक टैरिफ लाइनों को शामिल किया गया है। इनमें कई प्रमुख श्रेणियाँ हैं— ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स, टेक्सटाइल और परिधान, प्लास्टिक उत्पाद, स्टील और धातु संबंधी वस्तुएँ, जूते व फुटवियर, घरेलू उपकरण और इलेक्ट्रॉनिक आइटम। 
  • किस देशों पर लागू होगा नया शुल्क: नई टैरिफ व्यवस्था मुख्य रूप से उन देशों को लक्षित करती है जिनके साथ मेक्सिको का कोई मुक्त व्यापार समझौता (FTA) नहीं है। इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं— भारत, चीन, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड, इंडोनेशिया और कई अन्य दक्षिण-पूर्व एशियाई देश। इन देशों को अब मेक्सिको भेजे जाने वाले उत्पादों पर अधिक शुल्क वहन करना होगा, जिससे उनके निर्यात पर लागत दबाव बढ़ेगा।
  • कौन से देश प्रभावित नहीं होंगे: जिन देशों के साथ मेक्सिको पहले से व्यापारिक समझौते कर चुका है, उन्हें इस नीति से छूट मिलेगी। विशेष रूप से अमेरिका और कनाडा, जो USMCA समझौते के सदस्य हैं, इस नए शुल्क से पूरी तरह बाहर हैं। इसके अलावा लैटिन अमेरिका, यूरोप और कुछ प्रशांत राष्ट्रों के साथ भी कई मुक्त व्यापार समझौते प्रभावी हैं, जिससे उनके उत्पादों पर अतिरिक्त शुल्क नहीं लगेगा।

 

मेक्सिको के संरक्षणवादी रुख के आर्थिक कारण

  • कम लागत वाले एशियाई उत्पादों से बढ़ती चुनौती: पिछले एक दशक में चीन, भारत, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड जैसी एशियाई अर्थव्यवस्थाएँ अत्यंत प्रतिस्पर्धी विनिर्माण केंद्र बनकर उभरी हैं। इनके उत्पाद कम लागत में तैयार होते हैं और वैश्विक बाजारों में आसानी से जगह बना लेते हैं। मेक्सिको में ऑटोमोबाइल, टेक्सटाइल, स्टील और प्लास्टिक जैसे क्षेत्र लगातार इन आयातों से दबाव महसूस कर रहे थे। सरकार का मानना है कि उच्च शुल्क लगाने से विदेशी उत्पादों की लागत बढ़ेगी और इस प्रकार स्थानीय उद्योग पुनः प्रतिस्पर्धी स्थिति में आ सकेंगे।
  • घरेलू विनिर्माण को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता: मेक्सिको की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ वर्षों से धीमी गति से चल रही है। बैंक ऑफ़ मेक्सिको द्वारा जारी 2025 के शुरुआती अनुमानों में कहा गया कि 2025 में आर्थिक वृद्धि लगभग 0.8% रहने की संभावना है। 2026 में यह दर केवल 1.65% तक पहुँच सकती है। इस धीमी वृद्धि को देखकर सरकार ने शुल्क वृद्धि की। बढ़े हुए शुल्क घरेलू कंपनियों को अपने संयंत्रों को विस्तार देने, उत्पादन क्षमता बढ़ाने और स्थानीय रोजगार सृजन के लिए प्रेरित करेंगे।
  • राजस्व बढ़ाकर राजकोषीय अंतर कम करना: नई टैरिफ व्यवस्था का एक बड़ा उद्देश्य अतिरिक्त सरकारी राजस्व जुटाना है। अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2026 में बढ़े हुए शुल्कों से लगभग 3.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर (करीब 70 अरब मैक्सिकन पेसो) का राजस्व इकट्ठा किया जा सकता है। जिसे बजट घाटा कम करने और सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे, सामाजिक योजनाओं तथा औद्योगिक विकास कार्यक्रमों को समर्थन देने के लिए इस्तेमाल की जाएगी।
  • चीन से बढ़ते व्यापारिक असंतुलन पर चिंता: मेक्सिको और चीन के बीच व्यापार में असंतुलन लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। हाल के वर्षों में चीन से मेक्सिको को होने वाला निर्यात 71 अरब अमेरिकी डॉलर के आसपास पहुँच गया है, जिससे चीन को भारी व्यापार अधिशेष मिला है। मेक्सिको का तर्क है कि यह असंतुलन स्थानीय उद्योगों की प्रतिस्पर्धा क्षमता कमजोर करता है और घरेलू औद्योगिक मूल्य श्रृंखलाओं के विस्तार में बाधा बनता है।
  • अमेरिकी व्यापार प्राथमिकताओं के साथ तालमेल: मेक्सिको की विदेश व्यापार नीति का सबसे बड़ा स्तंभ संयुक्त राज्य अमेरिका है। अमेरिका मेक्सिको का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है। दोनों देशों की आर्थिक नीतियाँ USMCA समझौते से जुड़ी हैं। मेक्सिको निकट भविष्य में होने वाली USMCA की निर्धारित समीक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनी व्यापारिक नीतियों में ऐसा बदलाव ला रहा है जो अमेरिकी प्राथमिकताओं के साथ सामंजस्य दिखाए।

 

भारत पर मैक्सिको के टैरिफ़ निर्णय का प्रभाव

  • हाल के वर्षों में भारत और मैक्सिको के बीच व्यापार लगातार बढ़ा है और दोनों देशों ने आपसी आर्थिक संबंधों को मज़बूत करने पर जोर दिया है। 2019–20 में लगभग 7.9 बिलियन डॉलर का व्यापार 2023–24 में बढ़कर 8.4 बिलियन डॉलर से अधिक हो गया। इस सकारात्मक रुझान के बीच भारत को लगभग 6 बिलियन डॉलर का अधिशेष भी मिला, जिससे मैक्सिको भारत के लिए लैटिन अमेरिका में एक महत्वपूर्ण भागीदार बन गया। हालांकि, नए टैरिफ़ ढांचे के लागू होने से यह विकास गति धीमी पड़ सकती है और कई क्षेत्रों में व्यापारिक लाभ सीमित हो सकते हैं।
  • नए टैरिफ़ का सबसे अधिक असर उन भारतीय उद्योगों पर पड़ेगा, जो मैक्सिको को विनिर्मित उत्पाद भेजते हैं। जिन वस्तुओं को स्पष्ट रूप से लक्ष्य किया गया है, उन पर अधिक शुल्क लगने से भारतीय सामान की लागत बढ़ जाएगी। विशेष रूप से भारतीय कारों और ऑटो घटकों पर बढ़े हुए शुल्क बाजार हिस्सेदारी पर सीधा असर होगा, क्योंकि मैक्सिको को भेजी जाने वाली भारतीय वाहनों की खेप लगभग 1 बिलियन डॉलर के आसपास आंकी जाती है। शुल्क बढ़ने से इन उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता कम होना तय है।
  • भारत का मैक्सिको को कुल निर्यात 2024 में करीब 5.6 बिलियन डॉलर तक पहुँचा, जबकि मैक्सिको ने भारत से लगभग 9 बिलियन डॉलर का आयात किया। लागू होने वाले शुल्क सीधे उन सेक्टरों को प्रभावित करेंगे जिनकी लागत संवेदनशील है। टेक्सटाइल, प्लास्टिक, स्टील, इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के निर्यात पर 2026 में टैरिफ लागू होने के बाद मांग घट सकती है। जिन कंपनियों ने मैक्सिको को वृद्धि का प्रमुख बाजार माना था, वे अब अपनी रणनीति बदलकर अन्य बाजारों की तलाश कर सकती हैं।

 

कई भारतीय कंपनियाँ मैक्सिको में निवेश कर चुकी हैं, विशेष रूप से आईटी, फ़ार्मास्युटिकल और ऑटो पार्ट्स जैसे क्षेत्रों में। इन कंपनियों ने मैक्सिको को उत्तरी और मध्य अमेरिकी बाज़ारों तक पहुँचने के एक महत्वपूर्ण उत्पादन केंद्र के रूप में विकसित किया लेकिन अब प्रस्तावित टैरिफ़, विशेषकर ऑटो पार्ट्स पर, और भविष्य में दवाइयों पर संभावित शुल्क की चर्चा, इन निवेशों के लिए अस्थिरता का माहौल बना सकते हैं। इससे न केवल मौजूदा उत्पादन प्रभावित हो सकता है बल्कि विस्तार योजनाएँ भी धीमी पड़ सकती हैं।

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