“जापान के टोकारा द्वीपों में 900 से ज़्यादा भूकंप: आखिर क्यों बार-बार आते हैं जापान में भूकंप?”

जापान भूकंपों की दृष्टि से दुनिया के सबसे संवेदनशील देशों में से एक है। इसका भूगोल ही इसकी नियति तय करता है — जापान चार बड़ी टेक्टोनिक प्लेटों (Pacific, Philippine Sea, Eurasian और North American) के संगम पर बसा है। ये प्लेटें लगातार आपस में टकराती और खिसकती रहती हैं, जिससे वहाँ भूकंप की स्थित बन जाती है।

इसके अलावा, जापान ‘प्रशांत महासागर के रिंग ऑफ फायर’ (Ring of Fire) का हिस्सा है — यह दुनिया का सबसे सक्रिय भूकंपीय क्षेत्र है, जहाँ धरती के भीतर की प्लेट्स सबसे ज्यादा हलचल करती हैं। यही कारण है कि जापान में हर साल औसतन 1500 से ज्यादा भूकंप आते हैं, जिनमें से अधिकतर हल्के होते हैं, लेकिन कुछ जानलेवा भी साबित होते हैं।

ताज़ा घटनाक्रम में जापान के टोकारा द्वीप समूह (Tokara Islands) में पिछले दो हफ्तों में 1000 से अधिक बार भूकंप दर्ज किए गए हैं। जापान की मौसम एजेंसी के अनुसार यह भूकंपीय सक्रियता 21 जून से शुरू हुई और अब तक लगातार दर्ज की जा रही है।

जापान में बार-बार क्यों आते हैं भूकंप ? कारण सहित विस्तार से जानते है-

      1. टेक्टोनिक प्लेट्स की टकराहट:

        जापान को बार-बार आने वाले भूकंपों का देश कहा जाए तो गलत नहीं होगा। पिछले कुछ वर्षों में यहां इतनी बार भूकंप आए हैं कि यह सवाल आम हो गया है: “आख़िर जापान में ही बार-बार भूकंप क्यों आता है?” इसका उत्तर जापान की भूगर्भीय स्थिति और टेक्टोनिक प्लेट्स की गतिविधियों में छिपा है।

        जापान चार प्रमुख टेक्टोनिक प्लेटों — पैसिफिक प्लेट, फिलीपींस प्लेट, यूरेशियन प्लेट और नॉर्थ अमेरिकन प्लेट — के संगम स्थल पर स्थित है। ये प्लेटें लगातार टकराती, खिसकती और एक-दूसरे के नीचे सरकती रहती हैं। इस टकराव से ज़मीन के अंदर तनाव उत्पन्न होता है और जब यह तनाव बाहर निकलता है, तो वह भूकंप के रूप में प्रकट होता है। इस प्रक्रिया को प्लेट टेक्टोनिक्स कहा जाता है।

        रिंग ऑफ फायर का प्रभाव:

        जापान प्रशांत महासागर के “रिंग ऑफ फायर” में स्थित है, जो एक घोड़े की नाल के आकार का क्षेत्र है और लगभग 40,000 किलोमीटर तक फैला हुआ है। यह क्षेत्र विश्व के कुल 90% भूकंप और 75% सक्रिय ज्वालामुखियों का घर है। रिंग ऑफ फायर में न्यूजीलैंड, अलास्का, रूस, अमेरिका, पेरू, कनाडा, पापुआ न्यू गिनी, और ताइवान जैसे देश भी आते हैं। यहां पर टेक्टोनिक प्लेटें लगातार टकराती हैं या एक-दूसरे के नीचे चली जाती हैं, जिससे बड़े पैमाने पर भूकंप और ज्वालामुखीय विस्फोट होते हैं।

        ज्वालामुखीय गतिविधि और भूगर्भीय अस्थिरता

        जापान में 100 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं। समुद्र के नीचे बनने वाला दबाव, टेक्टोनिक मूवमेंट और मैग्मा की आवाजाही यहां की भूगर्भीय अस्थिरता को और बढ़ा देते हैं। जब ज्वालामुखी फटता है या मैग्मा ऊपर की ओर दबाव डालता है, तो इसके आसपास की चट्टानें हिलती हैं, जिससे भूकंप या फिर बड़ी ज्वालामुखीय सुनामी तक उत्पन्न हो सकती है।

        इसके अलावा, जापान में कई सबडक्शन ज़ोन (जहाँ एक टेक्टोनिक प्लेट दूसरी के नीचे जाती है) और डीप सी ट्रेंचेस (गहरे समुद्री खड्ड) मौजूद हैं, जो इसे भूकंपों का प्राकृतिक केंद्र बना देते हैं।

        भूकंप और सुनामी का संबंध-

        भूकंप, जिसे भूचाल भी कहते हैं, पृथ्वी की सतह की अचानक और तेज़ हिलने की प्रक्रिया है, जो टेक्टोनिक प्लेटों की हलचल या ज्वालामुखी गतिविधियों के कारण होता है। जब यह कंपन समुद्र के नीचे होता है, तो यह समुद्री जल को विस्थापित करता है और सुनामी उत्पन्न होती है। “सुनामी” एक जापानी शब्द है, जिसका अर्थ है “बंदरगाह लहर”।

        जब समुद्र के नीचे प्लेटें टकराती हैं या ज्वालामुखी फटता है, तो समुद्र की ज़मीन ऊपर या नीचे खिसकती है, जिससे पानी अचानक उठता है और सुनामी लहरें बनती हैं। ये लहरें गहरे समुद्र में तेज़ गति से चलती हैं और जैसे-जैसे किनारे की ओर बढ़ती हैं, वे अधिक ऊंची हो जाती हैं और तबाही मचा देती हैं।

        हालांकि, हर भूकंप सुनामी नहीं लाता। यह इस पर निर्भर करता है कि समुद्र की ज़मीन कितनी विस्थापित हुई, भूकंप की गहराई क्या थी, और समुद्र तल की संरचना कैसी है

        भूकंप के प्रभाव:

        जमीन का हिलना: भूकंप का सबसे आम प्रभाव जमीन का हिलना है। यह कंपन इतना तीव्र हो सकता है कि इमारतों को नुकसान पहुंचा सकता है या उन्हें ध्वस्त कर सकता है.

        दरारें: भूकंप के कारण जमीन में दरारें भी पड़ सकती हैं। ये दरारें इतनी गहरी हो सकती हैं कि उनमें चलना मुश्किल हो सकता है.

        भूस्खलन: भूकंप के कारण भूस्खलन भी हो सकते हैं। भूस्खलन तब होता है जब जमीन का एक बड़ा हिस्सा ढलान से नीचे खिसकता है, जिससे भारी नुकसान हो सकता है.

        सुनामी: समुद्र के नीचे आने वाले भूकंप के कारण सुनामी भी आ सकती है। सुनामी एक बड़ी समुद्री लहर है जो तटीय क्षेत्रों में तबाही मचा सकती है.

        जापान में भूकंप के आंकड़े और प्रभाव

        • जापान में हर साल औसतन 1,500 भूकंप आते हैं, जो पूरे विश्व के कुल भूकंपों का लगभग 18% है।
        • जापान की जनसंख्या लगभग 12.5 करोड़ है, जो इतनी अधिक भूकंपीय गतिविधियों के चलते निरंतर जोखिम में रहती है।
        • जनवरी 2024 में जापान के नोटो प्रायद्वीप में आए भीषण भूकंप में लगभग 600 लोगों की मौत हुई और भारी तबाही हुई थी।
        • इससे पहले 2011 में जापान में 9.0 तीव्रता का भूकंप आया था, जिसके चलते विनाशकारी सुनामी आई। इससे लगभग 18,000 लोगों की जान गई थी, और फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में दुर्घटना हुई थी, जिसे चेरनोबिल के बाद सबसे गंभीर परमाणु आपदा माना जाता है।

        जापान का अत्याधुनिक भूकंप मॉनिटरिंग सिस्टम

        जापान ने अपनी संवेदनशीलता को देखते हुए दुनिया की सबसे उन्नत भूकंप और सुनामी चेतावनी प्रणाली विकसित की है। जापान की मेट्रोलॉजिकल एजेंसी (JMA)कई  स्तरों पर देश को 24×7 मॉनिटर करती है और भूकंपीय संकेत मिलते ही तीन मिनट के भीतर चेतावनी जारी कर सकती है।

        देशभर में स्थापित सिस्मिक स्टेशन, सेंसर, और रीजनल मॉनिटरिंग यूनिट्स की बदौलत हर गतिविधि पर बारीकी से नजर रखी जाती है। यही कारण है कि जापान भले ही भूकंप का केंद्र हो, लेकिन इसकी तैयारियों के चलते जान-माल का नुकसान अपेक्षाकृत कम होता है।

        भविष्य की चेतावनी और अनुमान

        • जापान सरकार के मुताबिक, आने वाले 30 वर्षों में 75-82% संभावना है कि देश में एक और विनाशकारी भूकंप आएगा।
        • संभावित नुकसान: यदि यह अनुमान सही साबित होता है, तो इससे लगभग 2.98 लाख लोगों की मौत हो सकती है और 2 ट्रिलियन डॉलर (₹167 लाख करोड़ रुपये) का आर्थिक नुकसान हो सकता है।

        निष्कर्ष:
        जापान में बार-बार भूकंप आना इसकी भौगोलिक और भूगर्भीय संरचना का परिणाम है। ‘रिंग ऑफ फायर’, टेक्टोनिक प्लेटों की गतिशीलता, ज्वालामुखीय गतिविधियाँ और समुद्री दबाव — ये सब मिलकर जापान को भूकंपों की प्रयोगशाला जैसा बना देते हैं। टोकारा द्वीपों में हाल में दर्ज हुई भूकंपीय श्रृंखला इसका ताज़ा प्रमाण है। हालांकि जापान ने विज्ञान, तकनीक और तैयारी के माध्यम से इस प्राकृतिक चुनौती का साहसिक रूप से सामना करना सीखा है, लेकिन खतरा अभी भी पूरी तरह टला नहीं है।