अंडमान बेसिन के अपतटीय खंड में प्राकृतिक गैस की खोज

हाल ही में, ऑयल इंडिया लिमिटेड (OIL) ने अंडमान शैलो ऑफशोर ब्लॉक में अपने दूसरे अन्वेषण कुएँ में प्राकृतिक गैस पाए जाने की पुष्टि की है। यह खोज देश की ऊर्जा सुरक्षा को मज़बूत करने के लिए एक बड़ी उपलब्धि के रूप में देखी जा रही है।

 

इस खोज के मुख्य बिंदु

 

  • स्थान: ऑयल इंडिया लिमिटेड ने पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अंतर्गत विजयपुरम-2 नामक अपने दूसरे अन्वेषण कुएँ में प्राकृतिक गैस की उपस्थिति की घोषणा की है। यह खोज अंडमान के उथले अपतटीय ब्लॉक AN-OSHP-2018/1 में की गई है। यह ब्लॉक अंडमान बेसिन के जलक्षेत्र में स्थित है, जिसे वर्षों से हाइड्रोकार्बन अध्ययन के लिए एक अग्रणी क्षेत्र माना जाता रहा है।
  • महत्व: प्राकृतिक गैस की पुष्टि भारत के व्यापक ऊर्जा सुरक्षा लक्ष्यों के लिए महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में वर्तमान अन्वेषण अभियान के दौरान यह पहला हाइड्रोकार्बन संकेत है। यह खोज प्रवास मार्गों और हाइड्रोकार्बन स्रोतों और ड्रिलिंग रणनीतियों को आकार देने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • भविष्य के कदम: ऑयल इंडिया ने गैस की उत्पत्ति को बेहतर ढंग से समझने के लिए गैस समस्थानिक अध्ययन सहित आगे के परीक्षणों की योजना बनाई है।

 

अंडमान उथला अपतटीय ब्लॉक क्या है?

  • अंडमान उथला अपतटीय ब्लॉक, अंडमान बेसिन के अंदर एक निर्दिष्ट क्षेत्र है, जिसे तेल और गैस अन्वेषण के लिए चिन्हित किया गया है।
  • इस ब्लॉक को AN-OSHP-2018/1 कहा जाता है। यह ऑयल इंडिया लिमिटेड को अन्वेषण गतिविधियों के लिए आवंटित क्षेत्रों में से एक है।
  • अपतटीय ब्लॉकों को आमतौर पर उनकी गहराई और भूवैज्ञानिक विशेषताओं के आधार पर उथले, गहरे पानी या अति-गहरे पानी के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • अंडमान उथला अपतटीय ब्लॉक उथली श्रेणी में आता है, जो आमतौर पर 200 मीटर से कम पानी की गहराई को दर्शाता है।
  • ये अपतटीय ब्लॉक महाद्वीपीय शेल्फ के पास उथले पानी में फैले हुए हैं। इस ब्लॉक में अन्वेषण भारत के व्यापक ऊर्जा योजना का हिस्सा है।

 

अंडमान बेसिन कहा स्थित हैं?

  • अंडमान बेसिन अंडमान सागर में स्थित है, जो बंगाल की खाड़ी के पूर्वी विस्तार का हिस्सा है। यह भारत के एक केंद्र शासित प्रदेश, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास स्थित है।
  • यह बेसिन अपतटीय जल में फैला हुआ है, जिसमें उथले और गहरे दोनों क्षेत्र शामिल हैं। अंडमान बेसिन भारतीय प्लेट और बर्मा प्लेट के अवतलन क्षेत्र के साथ अपनी विवर्तनिक संरचना के कारण एक अद्वितीय भूभाग है।
  • अंडमान बेसिन लगभग 47,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है, हालाँकि भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों के आधार पर अनुमान अलग-अलग हैं।
  • यह बेसिन आकार में लम्बा है और अंडमान द्वीप समूह के समानांतर उत्तर-दक्षिण दिशा में फैला हुआ है। 
  • इसमें कटकों और भ्रंशों द्वारा अलग किए गए कई उप-बेसिन शामिल हैं। कुछ भागों में तलछट की मोटाई बहुत अधिक पाई जाती है, जो प्राकृतिक गैस और तेल भंडारों के लिए अनुकूल है।

 

तेल अन्वेषण के लिए अंडमान बेसिन का महत्व

  • सीमांत हाइड्रोकार्बन क्षमता: अंडमान बेसिन को महत्वपूर्ण हाइड्रोकार्बन क्षमता वाला एक सीमांत क्षेत्र माना जाता है। भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों से संकेत मिलता है कि इस बेसिन में मोटी तलछटी परतें हैं, जिनमें से कुछ 4,000 मीटर से भी अधिक गहरी हैं, जिनमें तेल और प्राकृतिक गैस होने की संभावना है। इस क्षेत्र में अन्वेषण भारत को कृष्णा-गोदावरी और मुंबई अपतटीय जैसे पारंपरिक बेसिनों के अलावा नए भंडारों की खोज करने का अवसर प्रदान करता है।
  • ऊर्जा सुरक्षा में योगदान: अंडमान बेसिन में संसाधनों का विकास भारत की तेल आयात पर निर्भरता को कम कर सकता है, जो वर्तमान में कच्चे तेल की खपत का 80% से अधिक है। सीमांत बेसिनों से घरेलू उत्पादन, आपूर्ति और कीमतों को स्थिर करने में मदद करता है। सरकारी पूर्वानुमानों के अनुसार, यह बेसिन भारत की बढ़ती ऊर्जा मांग को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जिसके 2030 तक 30% बढ़ने का अनुमान है।
  • रणनीतिक स्थान: यह बेसिन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के पास, अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग लेन के करीब स्थित है। यह रणनीतिक स्थिति भविष्य में अपतटीय परिचालनों और हाइड्रोकार्बन के संभावित निर्यात के लिए आसान रसद की सुविधा प्रदान करती है। भारत इसका उपयोग दक्षिण पूर्व एशिया और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने, बुनियादी ढाँचे के विकास हेतु कर सकता है।

 

अंडमान बेसिन में तेल अन्वेषण को बढ़ावा देने की सरकारी पहले

  • हाइड्रोकार्बन अन्वेषण और लाइसेंसिंग नीति (HELP): इसे 2016 में पुरानी नई अन्वेषण लाइसेंसिंग नीति (NELP) के स्थान पर लागू किया गया था। HELP ने तेल, प्राकृतिक गैस, शेल गैस और कोल बेड मीथेन सहित सभी हाइड्रोकार्बन के लिए एकल लाइसेंस प्रदान करके एक अधिक उद्योग-अनुकूल वातावरण तैयार किया। 
  • ओपन एकरेज लाइसेंसिंग नीति (OALP): OALP के तहत, कंपनियाँ पूरे वर्ष अपनी पसंद के अन्वेषण ब्लॉक चुन सकती हैं। यह निवेशकों को लचीलापन और अनुकूलित निवेश की रणनीति बनाने में सहायता करती है। इसमें कंपनी को तेल, गैस के विपणन और मूल्य निर्धारण में स्वतंत्रता प्राप्त होती  है।
  • डीप अंडमान अपतटीय सर्वेक्षण: 2020 में, ऑयल इंडिया लिमिटेड ने डीप अंडमान अपतटीय सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में ज्वालामुखियों और बाराटांग संरचनाओं की पहचान की गई, जो हाइड्रोकार्बन की उपस्थिति का संकेत देते हैं। सर्वेक्षण ने भविष्य की अन्वेषण और ड्रिलिंग गतिविधियों के मार्गदर्शन के लिए आवश्यक भूवैज्ञानिक जानकारी प्रदान की।
  • राष्ट्रीय डेटा रिपॉजिटरी (NDR): राष्ट्रीय डेटा रिपॉजिटरी (एनडीआर) एक एकीकृत प्लेटफ़ॉर्म है जिसमें सभी भारतीय तलछटी बेसिनों से व्यापक अन्वेषण और उत्पादन डेटा शामिल है। 2020 के सर्वेक्षण परिणामो को वर्ष 2023 में इस प्लेटफ़ॉर्म में जोड़ा गया था। यह रिपॉजिटरी कंपनियों को सूचित निवेश निर्णय लेने में मदद करती है।
  • अन्वेषण के लिए प्रोत्साहन: HELP और OALP नीतियों में गहरे पानी और अति-गहरे पानी के ब्लॉक जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों के लिए रॉयल्टी प्रोत्साहन शामिल हैं। ये प्रोत्साहन कंपनियों पर वित्तीय दबाव कम करने और चुनौतीपूर्ण इलाकों में अन्वेषण को प्रोत्साहित करने में सहायक होते हैं।

 

तेल अन्वेषण में शामिल चुनौतियाँ

  • कठिन भूवैज्ञानिक परिस्थितियाँ: अंडमान बेसिन की भूवैज्ञानिक संरचनाएँ जटिल हैं। भ्रंश, दरारें और गहरी तलछटी परतें ड्रिलिंग को तकनीकी रूप से चुनौतीपूर्ण बनाती हैं। इन परिस्थितियों में हाइड्रोकार्बन भंडारों का सटीक पता लगाने के लिए उन्नत भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण और विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
  • गहरे पानी में अन्वेषण के जोखिम: बेसिन के कई हिस्से 1,000 मीटर से अधिक गहराई वाले गहरे पानी वाले क्षेत्रों में स्थित हैं। इन क्षेत्रों में ड्रिलिंग उच्च जोखिम वाली और महंगी है। कठोर समुद्री परिस्थितियाँ, तेज़ धाराएँ और अप्रत्याशित मौसम परिचालन की कठिनाई को बढ़ाते हैं।
  • उच्च परिचालन लागत: अंडमान बेसिन जैसे सीमांत क्षेत्रों में अन्वेषण में महत्वपूर्ण वित्तीय निवेश शामिल है। विभिन्न प्रकार की लागतों में ड्रिलिंग, उपकरण, भूकंपीय सर्वेक्षण और रसद शामिल हैं, गहरे पानी में संचालन से खर्च और बढ़ जाता है। ये उच्च प्रारंभिक लागतें छोटी कंपनियों को हतोत्साहित कर सकती हैं, जिससे अन्वेषण की प्रगति धीमी हो सकती है।

 

आगे की राह

  • कंपनियों को विस्तृत भूकंपीय और भूवैज्ञानिक सर्वेक्षणों में निवेश करना चाहिए। भूकंपीय इमेजिंग, उपग्रह डेटा और 3D मॉडलिंग को एकीकृत करने से बेसिन के भूविज्ञान की व्यापक समझ मिल सकती है।
  • कंपनियों को आधुनिक रिग, दूर से संचालित वाहनों और मज़बूत सुरक्षा प्रणालियों में निवेश करना चाहिए, जो कठोर समुद्री परिस्थितियों और तेज़ धाराओं में भी काम कर सकें। इस तरह के तकनीकी उन्नयन से परिचालन दक्षता और सुरक्षा बढ़ सकती हैं।
  • अंडमान बेसिन के आसपास के समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा के लिए और उनके अन्वेषण के लिए एक स्थायी दृष्टिकोण आवश्यक है। इसके लिए कंपनियों को कड़े पर्यावरणीय नियमों को अपनाना चाहिए।
  • भारत को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के बीच रणनीतिक साझेदारी, तकनीकी विशेषज्ञता, पूँजी निवेश और नवीन समाधान पर विचार करना चाहिए। इसके लिए नीति निर्माताओं और अनुसंधान संस्थानों के बीच समन्वित प्रयास करके अन्वेषण की स्थिति को मज़बूत किया जाना चाहिए।