अमेरिकी मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप एक नए वैश्विक मंच पर विचार कर रहे हैं, जिसे “कोर फाइव” नाम दिया जा सकता है। इस संभावित समूह में अमेरिका, रूस, चीन, भारत और जापान को शामिल करने की चर्चा है। इन देशों को वैश्विक राजनीति और अर्थव्यवस्था के प्रमुख केंद्र के रूप में देखा जा रहा है। इस पहल का उद्देश्य यूरोप-केंद्रित G7 की भूमिका को सीमित करना बताया जा रहा है। इससे वैश्विक शासन व्यवस्था में शक्ति संतुलन बदल सकता है।
कोर फाइव (C5) ब्लॉक: वैश्विक शक्ति संरचना में संभावित पुनर्गठन
- परिकल्पना: कोर फाइव, जिसे C5 ब्लॉक भी कहा जा रहा है, एक प्रस्तावित अनौपचारिक वैश्विक समूह है। इस विचार की चर्चा दिसंबर 2025 की शुरुआत में सामने आई। इसके पीछे सोच यह है कि जिन देशों के पास वास्तविक रणनीतिक प्रभाव है, वैश्विक फैसले उन देशों द्वारा लिए जाने चाहिए।
- प्रस्ताव: C5 ब्लॉक का विचार अमेरिका की 2025 की राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के विस्तृत मसौदों से जुड़ा बताया जाता है। इस रणनीति का सार्वजनिक संस्करण 4 दिसंबर 2025 को जारी किया गया था। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, इसके विस्तारित ड्राफ्ट में वैश्विक शक्ति संतुलन को लेकर नए विकल्पों पर चर्चा की गई थी। इन्हीं चर्चाओं में कोर फाइव जैसी संरचना का संकेत मिलता है।
- प्रस्तावित सदस्य देश: इस संभावित समूह में पांच देशों को शामिल करने की बात कही गई है। इनमें अमेरिका, चीन, रूस, भारत और जापान शामिल हैं। इन सभी देशों की वैश्विक राजनीति में अलग-अलग वजहों से मजबूत पकड़ है। कोई देश विशाल आबादी के कारण प्रभावशाली है, कोई आर्थिक ताकत से, तो कोई सैन्य क्षमता और तकनीकी शक्ति से।
- रणनीतिक समन्वय का लक्ष्य: C5 ब्लॉक का मुख्य उद्देश्य प्रमुख शक्तियों के बीच सीधा और त्वरित समन्वय स्थापित करना है। विचार यह है कि वैश्विक संकटों पर लंबी कूटनीतिक प्रक्रियाओं के बजाय तुरंत संवाद हो सके। इससे गलतफहमियों को कम करने और टकराव को बढ़ने से रोकने में मदद मिल सकती है।
- संघर्ष प्रबंधन: इस मंच के जरिए बड़े देशों के बीच नियमित बातचीत का रास्ता खुल सकता है। प्रत्यक्ष संवाद से तनाव को नियंत्रित करना आसान हो सकता है। यह व्यवस्था खासतौर पर उन मुद्दों के लिए उपयोगी मानी जा रही है जहां कई महाशक्तियों के हित टकराते हैं।
- पहला संभावित एजेंडा: रिपोर्टों के अनुसार, यदि यह समूह अस्तित्व में आता है तो इसका शुरुआती फोकस मध्य पूर्व की सुरक्षा स्थिति पर हो सकता है। इसमें इजरायल और सऊदी अरब के बीच संबंधों के सामान्यीकरण जैसे संवेदनशील विषय शामिल हो सकते हैं। यह क्षेत्र लंबे समय से वैश्विक राजनीति का केंद्र रहा है।
कोर फाइव (C5) ब्लॉक के प्रस्ताव के पीछे की सोच
- महाशक्तियों के प्रभावी मंच: नीति निर्माताओं का मानना है कि आज के जटिल वैश्विक संकटों पर चर्चा के लिए छोटे और केंद्रित मंच की आवश्यकता है। बड़े समूहों में सहमति बनने में समय लगता है। पांच प्रमुख देशों का सीमित समूह तेजी से बातचीत और निर्णय ले सकता है। यह सोच 4 दिसंबर 2025 को जारी राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति के आसपास उभरकर सामने आई।
- बहुध्रुवीय दुनिया की स्वीकार्यता: मध्य 2020 के दशक तक दुनिया पहले जैसी पश्चिम-केंद्रित नहीं रही है। कई अधिकारी मानते हैं कि शक्ति अब अलग-अलग क्षेत्रों में बंटी हुई है। ऐसे में नया मंच वास्तविक राजनीतिक और सैन्य प्रभाव को दर्शाएगा। पुराने समूह अक्सर साझा समृद्धि या उदार मूल्यों पर आधारित रहे हैं। C5 का विचार शक्ति संतुलन की मौजूदा स्थिति को प्राथमिकता देता है।
- आर्थिक और तकनीकी समन्वय की जरूरत: नीति निर्धारकों की चिंता केवल सुरक्षा तक सीमित नहीं है। वे वैश्विक व्यापार और तकनीक से जुड़े जोखिमों को भी लेकर सतर्क हैं। 2025 के बाद खनिज संसाधन, सेमीकंडक्टर और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तकनीकें रणनीतिक महत्व रखती हैं। सप्लाई चेन में किसी भी बाधा का असर पूरी दुनिया पर पड़ सकता है। इसी कारण तकनीकी सुरक्षा और औद्योगिक सहयोग को नए सिरे से संगठित करने की जरूरत महसूस की जा रही है।
- यूरोप केंद्रित मंचों से दूरी: C5 ब्लॉक का विचार पारंपरिक यूरोप-केंद्रित मंचों के प्रभाव को कम करने की दिशा में देखा जा रहा है। दिसंबर 2025 में सामने आए अमेरिकी रणनीतिक दस्तावेजों में यूरोप की बजाय महाशक्तियों के प्रबंधन पर अधिक जोर दिखता है। इस बदलाव ने कई यूरोपीय देशों को चिंतित किया है। उन्हें आशंका है कि G7 और नाटो जैसे मंचों की भूमिका सीमित हो सकती है।
प्रस्तावित C5 देशों का महत्व
- संयुक्त राज्य अमेरिका: 2025 में अमेरिका की आबादी लगभग 33.5 करोड़ मानी जाती है। यह विशाल जनसंख्या एक मजबूत श्रम बाजार और बड़े उपभोक्ता आधार को आधार प्रदान करती है। अमेरिका की अर्थव्यवस्था आज भी दुनिया में सबसे बड़ी है। 2025 में उसका नाममात्र जीडीपी 30 ट्रिलियन डॉलर से अधिक आंका गया है। सेवाएं, तकनीक, विनिर्माण और वित्त इसके मुख्य आधार हैं। C5 में अमेरिका की मौजूदगी वैश्विक वित्त और सुरक्षा व्यवस्था को दिशा देने की क्षमता जोड़ती है।
- चीन: चीन की आबादी 2024 तक करीब 1.40 अरब है। 2025 में उसका नाममात्र जीडीपी लगभग 19.2 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान है। क्रय शक्ति समता के आधार पर चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। 2025 में इसका पीपीपी जीडीपी 39 ट्रिलियन डॉलर से अधिक माना जाता है। विशाल जनसंख्या और औद्योगिक क्षमता चीन को किसी भी रणनीतिक मंच पर अनिवार्य बनाती है।
- भारत: 2025 में भारत की आबादी लगभग 1.46 अरब है। यह भारत को दुनिया का सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बनाती है। बड़ा कार्यबल और बढ़ता मध्यम वर्ग आर्थिक विस्तार को गति देता है। 2025 में भारत का नाममात्र जीडीपी लगभग 4.19 ट्रिलियन डॉलर आंका गया है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार भारत 2025 और 2026 में 6 प्रतिशत से अधिक की दर से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में शामिल रहेगा। यह गति भारत की रणनीतिक भूमिका को मजबूत करती है।
- जापान: जापान की जनसंख्या करीब 12.4 करोड़ है। देश में वृद्ध होती आबादी की चुनौती मौजूद है। इसके बावजूद जापान की अर्थव्यवस्था अत्यंत विकसित और विविध बनी हुई है। 2025 में उसका नाममात्र जीडीपी लगभग 4.18 ट्रिलियन डॉलर रहने का अनुमान है। उच्च प्रति व्यक्ति उत्पादकता, तकनीक और औद्योगिक नवाचार जापान को C5 में स्थिरता और विशेषज्ञता प्रदान करते हैं।
- रूस: रूस की आबादी लगभग 14.3 करोड़ है। आर्थिक आकार अन्य C5 देशों से छोटा है। 2026 के अनुमान में उसका नाममात्र जीडीपी करीब 2.5 ट्रिलियन डॉलर होने का अनुमान है। तेल और गैस निर्यात में रूस की भूमिका अहम है। उसकी सैन्य क्षमता और ऊर्जा आपूर्ति वैश्विक कूटनीति में उसे प्रभावशाली बनाती है।
प्रस्तावित C5 ब्लॉक के सामने प्रमुख चुनौतियाँ
- आंतरिक रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता: C5 ब्लॉक की सबसे बड़ी कठिनाई इसके सदस्य देशों के बीच मौजूद गहरे मतभेद हैं। अमेरिका और चीन के बीच व्यापार, तकनीक, ताइवान और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को लेकर लंबे समय से प्रतिस्पर्धा चल रही है। यह तनाव 2018 के बाद और स्पष्ट हुआ। भारत और चीन के संबंध भी पूरी तरह सामान्य नहीं हैं। 2020 के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हुई झड़पों ने भरोसे को कमजोर किया है। वहीं रूस और अमेरिका के रिश्ते यूक्रेन संघर्ष के बाद लगाए गए प्रतिबंधों के कारण तनावपूर्ण बने हुए हैं। ऐसे हालात में आपसी विश्वास बनाना और साझा निर्णय लेना आसान नहीं है।
- समान राजनीतिक मूल्यों का अभाव: C5 में शामिल देशों की राजनीतिक व्यवस्थाएं एक-दूसरे से काफी अलग हैं। अमेरिका और भारत चुनावी लोकतंत्र के तहत काम करते हैं। चीन एकदलीय समाजवादी प्रणाली का पालन करता है। रूस में सत्ता अत्यधिक केंद्रीकृत है। जापान संवैधानिक राजशाही और संसदीय व्यवस्था पर आधारित है। इन भिन्न प्रणालियों के कारण मानवाधिकार, संप्रभुता, कानून का शासन और वैश्विक मानकों पर दृष्टिकोण अलग-अलग हैं।
- मौजूदा वैश्विक संस्थाओं की भूमिका पर असर: C5 जैसे नए मंच के गठन से G7, G20 और संयुक्त राष्ट्र जैसी संस्थाओं की अहमियत कम होने का खतरा है। G20 पहले ही दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व करता है और 2024 तक वैश्विक जीडीपी के 85 प्रतिशत से अधिक हिस्से को कवर करता है। यदि एक समानांतर और सीमित समूह बनाया जाता है, तो समावेशी मंचों की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं।
- साझेदार देशों की नाराजगी: अमेरिका के पारंपरिक सहयोगी, विशेषकर यूरोपीय देश, C5 को अपने महत्व में कमी के रूप में देख सकते हैं। जर्मनी, फ्रांस और यूनाइटेड किंगडम जैसे देश लंबे समय से G7 के माध्यम से वैश्विक नियम तय करने में भूमिका निभाते आए हैं। नए कोर समूह से बाहर रहना इन देशों में कूटनीतिक असंतोष पैदा कर सकता है। इसी तरह दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देश भी शक्ति के अत्यधिक केंद्रीकरण को लेकर चिंतित हो सकते हैं।
इन सभी चुनौतियों के कारण C5 ब्लॉक के भीतर स्थायी सहमति बनाना कठिन हो सकता है। जब हित, मूल्य और प्राथमिकताएं अलग हों, तो साझा दिशा तय करना समय और धैर्य की मांग करता है। यही कारण है कि इस प्रस्ताव को लेकर समर्थन के साथ-साथ संदेह भी बना हुआ है।
