नोएल टाटा के बेटे नेविल बने टाटा ट्रस्ट के ट्रस्टी: मेहली मिस्त्री के बाहर होने से खाली हुई थी सीट, भास्कर भट्ट और वेणु श्रीनिवासन भी बने ट्रस्टी..

टाटा समूह में नेतृत्व की नई पीढ़ी की शुरुआत हो गई है। टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन नोएल टाटा के बेटे नेविल टाटा को सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट का नया ट्रस्टी नियुक्त किया गया है। 32 वर्षीय नेविल अब ट्रस्ट्स के सबसे युवा सदस्य बन गए हैं। उनकी नियुक्ति तीन साल की अवधि के लिए की गई है। इसके साथ ही, टाटा समूह के अनुभवी भास्कर भट को भी ट्रस्टी बनाया गया है। यह वही संस्था है जो टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में 27.98% हिस्सेदारी रखती है और समूह की सबसे बड़ी परोपकारी इकाई मानी जाती है।

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नेविल टाटा कौन है ?

नेविल टाटा, टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा और आलू टाटा (दिवंगत साइरस मिस्त्री की बहन) के तीन बच्चों में सबसे छोटे हैं। उनकी उम्र 32 साल है और उन्होंने बेयस बिज़नेस स्कूल से पढ़ाई की है।

वे 2016 में ट्रेंट कंपनी से जुड़े, जिसके अध्यक्ष उनके पिता नोएल टाटा हैं। ट्रेंट में उन्होंने पहले पैकेज्ड फूड और बेवरेज का कारोबार संभाला और बाद में ज़ूडियो नामक कपड़ों के ब्रांड का नेतृत्व किया, जो आज देश के सबसे तेजी से बढ़ते फैशन ब्रांड्स में से एक है। नेविल JRD टाटा ट्रस्ट, टाटा सोशल वेलफेयर ट्रस्ट और RD टाटा ट्रस्ट के बोर्ड में शामिल हैं। आगे चलकर उन्हें सर रतन टाटा ट्रस्ट (SRTT) में भी जोड़ा जा सकता है।

 

भास्कर भट्ट कौन है ?

भास्कर भट, 71 वर्ष के अनुभवी उद्योगपति हैं, जिन्होंने IIT मद्रास और IIM अहमदाबाद से पढ़ाई की है। उन्होंने अपना करियर 1978 में गोदरेज एंड बॉयस से शुरू किया था और बाद में टाटा वॉच प्रोजेक्ट से जुड़े, जो आगे चलकर टाइटन कंपनी बनी।

भट 2002 से 2019 तक टाइटन के प्रबंध निदेशक (MD) रहे। उनके नेतृत्व में टाइटन ने सिर्फ घड़ियों तक सीमित न रहकर आभूषण, चश्मे, परफ्यूम, एक्सेसरीज़ और साड़ियों के कारोबार में भी कदम रखा। उनके कार्यकाल में टाइटन का बाजार मूल्य बढ़कर करीब 13 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जिससे यह टाटा समूह की दूसरी सबसे बड़ी सूचीबद्ध कंपनी बन गई।

 

वेणु श्रीनिवासन बने ट्रस्ट के उपाध्यक्ष:

बयान में बताया गया है कि वेणु श्रीनिवासन को भी तीन साल की अवधि के लिए ट्रस्टी नियुक्त किया गया है। यह फैसला सभी कानूनी और नियामक नियमों के अनुसार लिया गया है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने नियमों में बदलाव किया था, जिसके बाद अब किसी भी ट्रस्टी की आजीवन नियुक्ति नहीं हो सकती। इसी कारण, नोएल टाटा के करीबी माने जाने वाले श्रीनिवासन का कार्यकाल घटाकर तीन वर्ष का कर दिया गया है। उन्हें सर दोराबजी टाटा ट्रस्ट का उपाध्यक्ष भी बनाया गया है।

 

महाराष्ट्र सरकार का नया अध्यादेश:

महाराष्ट्र सरकार ने 30 अगस्त 2025 को महाराष्ट्र लोक न्यास (संशोधन) अध्यादेश, 2025 जारी किया। इस अध्यादेश में कहा गया है कि कई ट्रस्टों के दस्तावेज़ों में ट्रस्टियों की नियुक्ति और उनके कार्यकाल को लेकर स्पष्ट नियम नहीं हैं। इस कारण धर्मादाय आयुक्त और अदालतों में बार-बार विवाद होते हैं, जिससे ट्रस्टों का कामकाज और लाभार्थियों का हित प्रभावित होता है।

इस समस्या को दूर करने के लिए अध्यादेश में नई धारा 30A जोड़ी गई है। इसके तहत अब ट्रस्टों में स्थायी (आजीवन) ट्रस्टी की नियुक्ति सीमित कर दी गई है। 1 सितंबर से लागू इस नए नियम के अनुसार, किसी भी ट्रस्ट में स्थायी ट्रस्टियों की संख्या कुल ट्रस्टियों के एक-चौथाई (¼) से ज़्यादा नहीं हो सकती, चाहे पहले के नियम या आंतरिक फैसले कुछ भी रहे हों।

 

टाटा ट्रस्ट में नई नियुक्तियों के मायने क्या है ?

नई नियुक्तियों का मतलब है कि अब अनुभवी नेता और नई पीढ़ी दोनों मिलकर टाटा ट्रस्ट के कामकाज और ज़िम्मेदारियों को संभालेंगे। इससे यह सुनिश्चित होगा कि ट्रस्ट कानूनी नियमों का पालन करते हुए निरंतरता और स्थिरता बनाए रखे। ये बदलाव टाटा परिवार की परोपकारी और व्यावसायिक विरासत को आगे बढ़ाने की दिशा में एक अहम कदम हैं और यह दिखाते हैं कि ट्रस्ट अभी भी भारत के सबसे बड़े उद्योग समूहों में से एक के संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

 

दो गुटों के बीच चल रही लड़ाई के बाद आया फैसला:

यह फैसला टाटा ट्रस्ट्स के दो गुटों के बीच चल रही खींचतान खत्म होने के कुछ दिनों बाद आया है। एक गुट का नेतृत्व नोएल टाटा कर रहे थे, जबकि दूसरा गुट दिवंगत रतन टाटा के करीबी मेहली मिस्त्री के साथ था। यह विवाद उन ट्रस्टों के प्रबंधन को लेकर था, जिनकी टाटा संस में करीब 66% हिस्सेदारी है। हालिया घटनाक्रमों से पता चलता है कि नोएल इन परोपकारी संस्थाओं पर अपना नियंत्रण मज़बूत कर रहे हैं। बाद में मिस्त्री को प्रमुख ट्रस्टों से हटा दिया गया और उन्होंने इस फैसले को बिना किसी कानूनी चुनौती के स्वीकार कर लिया।

 

टाटा ट्रस्ट्स के भीतर नोएल टाटा का बढ़ता प्रभाव:

नोएल टाटा का टाटा ट्रस्ट्स में प्रभाव लगातार बढ़ रहा है। उनके बेटे नेविल टाटा का शामिल होना ट्रस्ट्स में अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी संभालने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। यह कदम उत्तराधिकार और लंबे समय तक परोपकारी व कारोबारी कामकाज के प्रबंधन की दिशा में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। टाटा ट्रस्ट्स के पास टाटा समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस में सबसे बड़ी हिस्सेदारी है, और उसका बोर्ड पूरे टाटा समूह के संचालन व दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाता है।

 

टाटा ट्रस्ट के बारे में:

टाटा ट्रस्ट की स्थापना 1892 में हुई थी। यह भारत की सबसे पुरानी और एशिया की सबसे बड़ी परोपकारी संस्थाओं में से एक है। ट्रस्ट का उद्देश्य जिन समुदायों की यह सेवा करता है, उनके जीवन में स्थायी और सकारात्मक बदलाव लाना है। यह समानता, लचीलापन और साझा प्रगति को बढ़ावा देने के लिए काम करता है।

संस्थापक जमशेदजी टाटा के विज़न से प्रेरित होकर, टाटा ट्रस्ट देश में स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, जल व स्वच्छता, और ग्रामीण-शहरी आजीविका जैसे क्षेत्रों में सुधार लाने के लिए काम करता है। यह संस्थानों का निर्माण, सरकारी प्रणालियों को मज़बूत करने, और सामाजिक-आर्थिक विकास को तेज़ करने पर ध्यान देता है। टाटा ट्रस्ट परंपरा और नवाचार के बीच एक सेतु की तरह काम करता है। यह सहयोग और जमीनी प्रयासों को प्रोत्साहित करता है, परिवर्तनकर्ताओं को सशक्त बनाता है, और पूरे भारत में लाखों लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में योगदान देता है।

 

निष्कर्ष:

इन नई नियुक्तियों से टाटा समूह में नेतृत्व की नई पीढ़ी के साथ अनुभव का संतुलन स्थापित हुआ है। नेविल टाटा की एंट्री जहां अगली पीढ़ी की भागीदारी का संकेत है, वहीं भास्कर भट का जुड़ना ट्रस्ट के कामकाज में मजबूती और स्थिरता लाएगा। यह कदम टाटा ट्रस्ट्स के भविष्य को नए दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ाने की दिशा में अहम माना जा रहा है।