बांग्लादेश के अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस ने एक बार फिर विवाद खड़ा कर दिया है। उन्होंने एक पाकिस्तानी जनरल को उपहार के रूप में ऐसा नक्शा भेंट किया जिसमें पूर्वोत्तर भारत के हिस्सों को बांग्लादेश का भाग दिखाया गया था। नक्शे में असम और अन्य पूर्वोत्तर भारतीय राज्य बांग्लादेश में शामिल दिखाए गए, जिससे पूरे क्षेत्र में नाराज़गी फैल गई।
पाकिस्तानी जनरल को विवादित उपहार:
यह घटना उस समय हुई जब पाकिस्तान की जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा ढाका दौरे पर थे। यूनुस के आधिकारिक एक्स अकाउंट पर साझा की गई तस्वीर में उन्हें जनरल मिर्ज़ा को “Art of Triumph: Bangladesh’s New Dawn” नामक पुस्तक भेंट करते हुए देखा गया।
यह पुस्तक 2024 के छात्र आंदोलन का प्रतीक मानी जाती है, जिसने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार के पतन में भूमिका निभाई थी। इसमें प्रकाशित नक्शे में बांग्लादेश को असम और अन्य पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों सहित दिखाया गया, जिसने सोशल मीडिया और राजनीतिक विश्लेषकों के बीच कड़ी प्रतिक्रिया और विरोध को जन्म दिया।
विदेशी नेताओं को उपहार में दी गई किताब:
‘ढाका ट्रिब्यून’ के अनुसार, अब तक यह किताब 12 से अधिक विदेशी नेताओं और अधिकारियों को उपहार स्वरूप दी जा चुकी है। इनमें प्रमुख नाम हैं:
- पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन
- इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी
- पूर्व कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो
- ब्राजील के राष्ट्रपति लूला डिसिल्वा
- पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन
Book gifted to foreign leaders
‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की अवधारणा को दर्शाता नक्शा:
यह विवादित नक्शा तथाकथित ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ (Greater Bangladesh) की अवधारणा को दर्शाता है, जिसे ढाका स्थित इस्लामी समूह ‘सुल्तानत-ए-बांग्ला’ द्वारा प्रचारित किया गया है।
इस समूह के अनुसार, ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की सीमाएं मौजूदा बांग्लादेश से आगे बढ़कर भारत के पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा के कुछ हिस्सों और म्यांमार के अराकान क्षेत्र तक फैली हुई हैं।
यह नक्शा अप्रैल 2025 में ढाका विश्वविद्यालय में आयोजित प्रदर्शनी में पहली बार सार्वजनिक रूप से देखा गया था। यह प्रदर्शनी पोइला बोइशाख (बांग्ला नववर्ष) के अवसर पर आयोजित की गई थी।
- इस्लामी समूह सुल्तानत-ए-बांग्ला: ‘सल्तनत-ए-बांग्ला’ को ‘तुर्की यूथ फेडरेशन’ नाम एक तुर्की NGO का सपोर्ट है। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस के आने के बाद तुर्की-बांग्लादेश संबंध मजबूत हुए हैं। तुर्की के NGO की एक्टीविटीज और मिलिट्री कोऑपरेशन में भी इजाफा हुआ है।
इस मुद्दे को बाद में अगस्त 2025 में भारतीय संसद के राज्यसभा में कांग्रेस सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला ने उठाया था। इससे पहले, 2024 में यूनुस के करीबी सहयोगी नाहिदुल इस्लाम ने भी एक समान नक्शा ऑनलाइन प्रसारित किया था, जिसमें पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और असम को बांग्लादेश के हिस्से के रूप में दिखाया गया था।
मुहम्मद यूनुस ने पहले भी दिए विवादित वक्तव्य:
यह पहली बार नहीं है जब मुहम्मद यूनुस ने भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को लेकर टिप्पणी की हो। अप्रैल 2025 में चीन यात्रा के दौरान, उन्होंने कहा था – “भारत के सात राज्य, यानी देश का पूर्वी भाग, पूरी तरह स्थलवेष्ठित (Landlocked) हैं। उनके पास समुद्र तक पहुंचने का कोई रास्ता नहीं है।”
भारत की प्रतिक्रिया:
यूनुस के इस बयान के बाद भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने इसकी कड़ी निंदा की थी और प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र ‘कनेक्टिविटी हब’ है, जो बिम्सटेक (BIMSTEC) देशों को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बिम्सटेक में बांग्लादेश, भूटान, भारत, म्यांमार, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड शामिल हैं। जयशंकर ने जोर देकर कहा कि पूर्वोत्तर भारत न केवल भारत के लिए बल्कि पूरे दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के आर्थिक और सांस्कृतिक संपर्क का प्रमुख केंद्र है।
क्या है भारत का ‘चिकन नेक’: जिसको लेकर बांग्लादेश करता रहता है बयानबाजी:
भारत के ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ को ही आमतौर पर चिकन नेक कहा जाता है। यह नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह इलाका आकार में बेहद संकरा है- एक तरह से देश के नक्शे में गले जैसा दिखता है। यह कॉरिडोर भारत के लिए रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही वह एकमात्र मार्ग है जो पूरे उत्तर-पूर्वी भारत को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ता है।
पश्चिम बंगाल में स्थित यह पतली भूमि लगभग 60 किलोमीटर लंबी और मात्र 21 किलोमीटर चौड़ी है। इसी रास्ते से होकर भारत के आठ पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा मुख्यभूमि से जुड़े हैं।
सिलीगुड़ी कॉरिडोर से न सिर्फ सड़क और रेल मार्ग गुजरते हैं, बल्कि चाय, तेल, और पर्यटन जैसे कई उद्योगों का व्यापार भी इसी रास्ते से होता है। यही वजह है कि पाकिस्तान, चीन और बांग्लादेश इस क्षेत्र पर लगातार नजर बनाए रखते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह इलाका किसी भी तरह से भारत के नियंत्रण से बाहर हो जाए, तो देश का पूरा उत्तर-पूर्वी हिस्सा मुख्यभूमि से कट सकता है जो एक गंभीर रणनीतिक संकट होगा।
भारतीय सेना के लिए रणनीतिक अहमियत:
यह कॉरिडोर भारतीय सेना के लिए भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यही रास्ता अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम जैसे संवेदनशील सीमावर्ती इलाकों में सैनिकों की आवाजाही और आपूर्ति का प्रमुख मार्ग है। भारत-चीन सीमा तनाव के दौरान इस क्षेत्र से बड़ी मात्रा में रसद और साजो-सामान भेजा जाता है। हिमालय की तलहटी में स्थित यह इलाका बांग्लादेश और नेपाल की सीमाओं के बेहद करीब है, जिससे इसकी सामरिक अहमियत और बढ़ जाती है।
बांग्लादेश के पास भी है, दो ‘चिकन नेक’ क्षेत्र:
बांग्लादेश में भी दो ऐसे संवेदनशील गलियारे हैं जिन्हें भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर की तरह ही सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
पहला है चटगांव कॉरिडोर, जो देश के सबसे बड़े बंदरगाह शहर चटगांव को मुख्य भूभाग से जोड़ता है। लगभग 28 किलोमीटर लंबी यह संकरी भूमि की पट्टी बांग्लादेश की आर्थिक धमनियों में से एक है। यदि यह इलाका किसी भी कारण से अवरुद्ध हो जाए, तो चटगांव पूरी तरह से बाकी देश से कट जाएगा, जिससे बांग्लादेश के 90% से अधिक निर्यात-आयात पर गंभीर असर पड़ेगा।
दूसरा संवेदनशील क्षेत्र रंगपुर डिवीजन के दक्षिण में स्थित गलियारा है, जो भारत के मेघालय और पश्चिम बंगाल के दक्षिण दिनाजपुर के बीच फैला हुआ है। यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से इतना नाजुक है कि इसके बाधित होने पर बांग्लादेश का एक बड़ा हिस्सा अपने मुख्य भूभाग से अलग-थलग पड़ सकता है।
इन दोनों गलियारों का सामरिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि ये न केवल देश की आर्थिक गतिविधियों की रीढ़ हैं, बल्कि सुरक्षा और संपर्क व्यवस्था के लिए भी जरूरी हैं। असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में बांग्लादेश को चेतावनी दी थी कि यदि वह भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर ध्यान केंद्रित करता रहा, तो उसे अपने ही इन ‘चिकन नेक’ क्षेत्रों की नाजुकता को नहीं भूलना चाहिए।
भारत-बांग्लादेश संबंधों में तनाव, जबकि पाकिस्तान से बढ़ती नजदीकी:
पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के तख्तापलट के बाद से भारत और बांग्लादेश के संबंधों में लगातार तनाव बना हुआ है। दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक विश्वास में कमी देखी जा रही है।
इसके विपरीत, बांग्लादेश और पाकिस्तान के रिश्तों में उल्लेखनीय सुधार आया है। अंतरिम नेता मुहम्मद यूनुस बीते एक वर्ष में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से दो बार मुलाकात कर चुके हैं।
- नवंबर 2024 में, 1971 के बाद पहली बार एक पाकिस्तानी कार्गो जहाज चटगांव बंदरगाह पहुंचा, जिसे दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों में नई शुरुआत के रूप में देखा गया।
- अप्रैल 2025 में, ढाका में 15 साल बाद दोनों देशों के विदेश सचिवों की बैठक हुई, जिसमें द्विपक्षीय सहयोग को पुनर्जीवित करने पर चर्चा हुई।
उच्च-स्तरीय कूटनीतिक दौरे:
पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार ने 27–28 अप्रैल 2025 को ढाका का दौरा किया। यह 2012 के बाद पहली उच्च-स्तरीय यात्रा थी। इस दौरान दोनों देशों ने आपसी सहयोग और क्षेत्रीय साझेदारी को मजबूत करने पर विस्तृत चर्चा की।
भारत के लिए इसका प्रभाव:
- भारत इन घटनाक्रमों पर बारीकी से नज़र रख रहा है, क्योंकि एक समय के “पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान” के बीच सहयोग से भारत के लिए रणनीतिक चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- हालांकि, बांग्लादेश के विदेशी मामलों के सलाहकार ने कहा है कि भारत के साथ संबंध अभी भी मज़बूत हैं, लेकिन कुछ विश्लेषकों को यह संतुलन बनाए रखने में जोखिम नज़र आ रहा है।
हालिया पाकिस्तानी जनरल का ढाका दौरा: उद्देश्य और वार्ताएं-
पाकिस्तान की जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा 24 अक्टूबर को 6 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल के साथ ढाका पहुंचे। इस दौरे का मुख्य उद्देश्य रक्षा और सुरक्षा सहयोग को मजबूत करना था।
ढाका प्रवास के दौरान जनरल मिर्ज़ा ने अंतरिम प्रमुख सलाहकार मुहम्मद यूनुस सहित बांग्लादेश के शीर्ष सैन्य और नागरिक अधिकारियों से मुलाकात की। बैठकों में रक्षा, सुरक्षा, व्यापार और निवेश के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई।
जनरल मिर्ज़ा ने कहा कि पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच पुराने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध रहे हैं और वे इन रिश्तों को और मजबूत करना चाहते हैं। दोनों पक्षों ने व्यापार, संपर्क और क्षेत्रीय साझेदारी बढ़ाने की संभावनाओं पर भी चर्चा की। जनरल मिर्ज़ा ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान और बांग्लादेश एक-दूसरे की सहायता और सहयोग के लिए तैयार हैं।
