चीन द्वारा सोमवार 15 जुलाई से लिथियम बैटरी उत्पादन में उपयोग की जाने वाली मुख्य टेक्नोलॉजी के निर्यात को नियंत्रित करने वाले नए प्रतिबंध लगाए हैं ।
चीन लगातार लंबे समय से दुनिया भर में उभर रहे इलेक्ट्रिक वाहनों एवं नवीनीकरण ऊर्जा यानी क्लीन एनर्जी के क्षेत्र में काम आने वाली बैटरी टेक्नोलॉजी को नियंत्रित करने में लगा हुआ है|
कल ही हमारे एक दूसरे चैनल द्वारा आपके साथ ये जानकारी साझा की गई थी कि चीन कैसे ररेयर अर्थ मैग्नेट को एक टूल की तरह इस्तेमाल करने में लगा हुआ है|
दरअसल ई वी, स्वच्छ ऊर्जा, सैटेलाइट ,टरबाइन इन सभी क्षेत्रों से जुड़ें कुछ खास तत्व या मिनरल औद्योगिक स्तर पर काम में लिए जाते हैं और इन सभी के सप्लाई चेन को चीन अपनी तरह से नियंत्रित करता आया है|
तो अब लीथियम प्रोडक्शन पर खास बदलाव क्या किया गया है .
इसके बारे में जानना जरूरी हो जाता है चीन के निर्यातकों को अब इन तकनीकों को जो कि बैटरी टेक्नोलॉजी से लीथियम से जुड़ी हुई है इनको विदेश में निर्यात करने से पहले सरकारी अनुमोदन चीन के मंत्रालय से प्राप्त करना होगा |
इसके लिए चीन के वाणिज्य मंत्रालय द्वारा दिए गए एक बयान जो की ”संवेदनशील क्षेत्रों” में इस तकनीक के बढ़ते प्रयोग को नियंत्रित करने के लिए दिया गया है | इसपर एक नजर ।
मंत्रालय द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है की ये सैंक्शन वर्गीकरण उनके द्वारा किए जा रहे तकनीकी विकास का एक हिस्सा हैं |
इस बदलाव के जरिए चीन लीथियम आयरन फॉस्फेट (LFP) और लीथियम मैगनीज आयरन फॉस्फेट (LMIP) बैटरी कैथोड्स के निर्माण और साथ ही लीथियम निष्कर्षण और उसे प्रयोग में लाने के लिए रिफाइन करने की तकनीक पर अब चीन का सीधा नियंत्रण हो चुका है|
बात की जाए कि किन देशों को इससे फर्क पड़ने वाला है तो उसमें अमेरिका और भारत का नाम सबसे आगे है| अमेरिका के साथ लंबे समय से चीन तकनीकी वोर लगा हुआ है और फिर चाहे रेयर अर्थ मेटल हो या फिर टैरिफ अपने अनुसार नीतिनिर्माण में भागीदार बनना चाह रहा है| ये दूर से देखें तो एक नए लाइसेंस राज़ का उजागर होना प्रतीत हो रहा है|
अमेरिकी वाहन निर्माता और ऊर्जा भंडारण कंपनियों जिनमें से ज्यादातर चीन में परिष्कृत तत्वों पर निर्भर थी उन पर इनपुट लागत में वृद्धि और उत्पादन में देरी का होना यह एक गंभीर समस्या का सामने आ जाना प्रतीत हो रहा है|

आपको बता दें कि जिन लीथियम आयरन फॉस्फेट और लिथियम मैगनीज आयरन फॉस्फेट की हमने चर्चा ऊपर की ये देश में ई वी रेवोल्यूशन लाने वाले ई वी कार, बस ट्रक और यहाँ तक की टू वीलर की बैटरी निर्माण में प्रयोग होने वाला एक अभिन्न तत्व है| स्पष्ट है कि इसके महत्त्व को इस चीज़ से समझा जा सकता है के बिना एलएफपी और एलएफ बीके औद्योगिक स्तर पर ईवी निर्माण संभव ही नहीं है|
भारत की बात की जाए तो भारत केथोड़ बैटरी मशीनरी सहित लीथियम आयन बैटरी और अन्य मशीनरी के लिए मुख्य रूप से चीन पर निर्भर है और ये नए नियम ज़ाहिर तौर पर उन क्षेत्रों में संभावित विलंब और लागत में परिवर्तन उत्पन्न करते हुए साबित हो सकते हैं|
भारत की न्यू ईवी पॉलिसी या स्वच्छ ऊर्जा 2030 तक के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो औद्योगिक और विनिर्माण क्षेत्र में एक क्रांति की जरूरत है वहाँ पर चीन एक बाधा साबित होता हुआ दिख रहा है|
वाहन निर्माता कंपनी लगातार कीमतों में बढ़ोतरी से बचने के लिए मोटरों पर लगने वाले आयात शुल्क को कम करने की मांग कर रहे हैं|
चीन द्वारा चुम्बकों के निर्यात पर प्रतिबंध से भारतीय वाहन उत्पादन कंपनी को बड़ा झटका लगा है, और उसी के चलते निर्माता उत्पादन प्रोत्साहन के लिए स्थानीय सामग्री संबंधी आसान मानदंडो की मांग कर रही है मोटरों के आयात की बढ़ी हुई लागत का बोझ उपभोक्ताओं पर पड़ने की प्रबल संभावना है|
और इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए भारत की चीन पर निर्भरता एक रणनीतिक जोखिम भी पैदा करती है|
हालांकि अमेरिकी कंपनी बहुत जल्द ही इसपर क़ाबू पाने में आपको जुटती नज़र आ जाएंगी | जैसे ऐपल द्वारा रेयर अर्थ मैगनेट ख़रीदने के लिए 500 मिलियन डॉलर का सौदा कैलिफोर्निया की MP MATERIALS CORP के साथ कर लिया गया है |
एमपी मटेरियल्स, जो ऐतिहासिक माउंटेन पास साइट का स्वामित्व और संचालन करती है, निष्कर्षण से लेकर शोधन और चुंबक उत्पादन तक पूरी तरह से एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला प्रदान करती है।
भारतीय माइनिंग कंपनी वेदांता द्वारा भी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड के माध्यम से रेयर अर्थ और लिथियम प्रोडक्शन को बनाने पर कार्य शुरू कर दिया गया है लेकिन अभी इसमें 5 साल का समय लग सकता है ॰
भारतीय बाजार की ऑटो सेक्टर कंपनी टाटा मोटर्स ,महिंद्रा एंड महिंद्रा ,एथर एनर्जी ,बजाज और ओला ईवी सेक्टर पर विशेष पकड़ बनाए हुए है ॰
ऐसे मैं चीन द्वारा आवश्यक तकनीकों और मिनरल्स पर पकड़ को बनाना निश्चित तौर पर भारतीय बजरी पर नकारात्मक प्रभाव लेकर के आने वाला है ॰
चीन अपने इस जियो पोलिटिकल टूल के ज़रिए मांगे मनवाने और अपने प्रभुत्व को और मजबूत करने के लिए आगे आया है ॰
भारत सरकार द्वारा हाल ही में रेयर अर्थ मैग्नेट्स प्रोडक्शन पर इंसेंटिव स्कीम की घोषणा पिछले हफ़्ते की गई है (1345 करोड़) ऐसे में देखना होगा कि विकल्प के तौर पर भारत किसे अपनाता है |
