अगर आप डायबिटीज, हृदय रोग, कैंसर या मोटापे जैसी पुरानी बीमारियों से जूझ रहे हैं, तो अमेरिका की यात्रा अब पहले जितनी आसान नहीं रही। अमेरिकी विदेश विभाग ने हाल ही में अपने सभी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों को नया निर्देश जारी किया है, जिसके तहत गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं वाले व्यक्तियों को वीज़ा जारी करने में अधिक सतर्कता बरतने को कहा गया है।
‘पब्लिक चार्ज’ नीति के तहत नई सख्ती
यह फैसला अमेरिका की “पब्लिक चार्ज” नीति पर आधारित है, जिसका उद्देश्य उन लोगों को रोकना है जो अमेरिका जाकर सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं या कल्याण योजनाओं पर निर्भर हो सकते हैं।
नए दिशा-निर्देशों के अनुसार, वीज़ा अधिकारी अब आवेदक की स्वास्थ्य स्थिति, उम्र, आर्थिक क्षमता और आत्मनिर्भरता का गहराई से मूल्यांकन करेंगे। अगर अधिकारी को लगता है कि कोई व्यक्ति भविष्य में महंगे इलाज या दीर्घकालिक चिकित्सा सहायता के लिए सरकारी संसाधनों पर निर्भर हो सकता है, तो उसका वीज़ा अस्वीकृत किया जा सकता है।
किन बीमारियों पर सख्ती बढ़ेगी
अमेरिकी अधिकारियों को विशेष रूप से निम्नलिखित स्वास्थ्य स्थितियों पर ध्यान देने के निर्देश दिए गए हैं —
- हृदय रोग: महंगा इलाज और लगातार देखभाल की आवश्यकता
- डायबिटीज: नियमित दवाइयों और इंसुलिन पर निर्भरता
- कैंसर: कीमोथेरेपी और रेडिएशन जैसे दीर्घकालिक खर्चे
- सांस संबंधी समस्याएं: अस्थमा और ऑक्सीजन पर निर्भरता
- न्यूरोलॉजिकल बीमारियां: अल्जाइमर और पार्किंसन जैसी स्थितियों में लंबी देखभाल
- मानसिक स्वास्थ्य: डिप्रेशन या सिज़ोफ्रेनिया जैसी स्थितियों में थेरेपी की आवश्यकता
- मोटापा: ब्लड प्रेशर और स्लीप एप्निया जैसी बीमारियों का खतरा
- शारीरिक विकलांगता: आत्मनिर्भरता में कमी और सीमित रोजगार क्षमता
वीज़ा अधिकारी अब यह तय करेंगे कि आवेदक भविष्य में “पब्लिक चार्ज” यानी सरकारी बोझ बन सकता है या नहीं।
अब वीज़ा प्रक्रिया में और सख्त जांच
नए नियमों के तहत आवेदकों से पहले की तुलना में अधिक विस्तृत चिकित्सकीय और आर्थिक जानकारी मांगी जाएगी।
- क्या व्यक्ति का इलाज महंगा और दीर्घकालिक है?
- क्या वह अपने खर्चे स्वयं उठा सकता है?
- क्या उसके परिवार में किसी सदस्य को विशेष देखभाल की आवश्यकता है?
- क्या आवेदक नौकरी या पेशे में सक्रिय रह सकता है?
पहले केवल संक्रामक बीमारियों जैसे टीबी या एचआईवी की जांच जरूरी थी, लेकिन अब पुरानी बीमारियों का पूरा इतिहास देखा जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञों ने जताई चिंता
कई विशेषज्ञों ने इस नीति पर आपत्ति जताई है। चार्ल्स व्हीलर, लीगल इमिग्रेशन नेटवर्क के वरिष्ठ वकील, का कहना है कि वीज़ा अधिकारी चिकित्सक नहीं होते, इसलिए वे किसी बीमारी की गंभीरता या उसके खर्च का सही आकलन नहीं कर सकते।
वहीं, सोफिया जेनोवेस, जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की इमिग्रेशन वकील, ने कहा कि — “हर व्यक्ति के स्वास्थ्य में कुछ न कुछ चुनौतियाँ होती हैं। यदि इन कारणों से वीज़ा अस्वीकृत होने लगे तो कई योग्य लोग अमेरिका की यात्रा से वंचित रह जाएंगे।”
किसे सबसे अधिक असर झेलना पड़ सकता है
हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि यह नियम अस्थायी वीज़ा (जैसे पर्यटक या छात्र वीज़ा) पर लागू होगा या नहीं, लेकिन कानूनी रूप से यह सभी वीज़ा श्रेणियों — B1/B2 (व्यवसाय/पर्यटन) और F-1 (छात्र) वीज़ा सहित — पर प्रभाव डाल सकता है।
इससे सबसे ज्यादा प्रभावित वे परिवार होंगे जिनमें वृद्ध माता-पिता, विकलांग बच्चे, या क्रॉनिक बीमारियों से ग्रस्त सदस्य हैं।
संभावित प्रभाव और जोखिम
- वीज़ा अस्वीकृति दर में वृद्धि: विशेषज्ञों का अनुमान है कि भारत सहित कई देशों से वीज़ा अस्वीकृति के मामलों में 25–30 प्रतिशत तक बढ़ोतरी हो सकती है।
- स्वास्थ्य सेवाओं से दूरी: कई अप्रवासी परिवार इलाज कराने से बचेंगे ताकि उनका मेडिकल रिकॉर्ड वीज़ा पर असर न डाले। इससे बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है।
- बच्चों पर नकारात्मक असर: माता-पिता अपने अमेरिकी नागरिक बच्चों को भी सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं से दूर रख सकते हैं, जिससे बच्चों की पोषण और चिकित्सा सुरक्षा प्रभावित होगी।
- आर्थिक असर: अमेरिका के आईटी, हेल्थ और इंजीनियरिंग क्षेत्रों में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों को वीज़ा कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उत्पादकता पर असर पड़ेगा।
भारत पर सीधा प्रभाव
भारत दुनिया में डायबिटीज़ के सबसे अधिक मरीजों वाला देश है। अंतरराष्ट्रीय डायबिटीज़ फेडरेशन की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में भारत में लगभग 10 करोड़ लोग डायबिटीज़ से पीड़ित थे, जो 2045 तक 13 करोड़ से अधिक हो सकते हैं। ऐसे में यह नई अमेरिकी नीति भारतीय पेशेवरों के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
निष्कर्ष:
अमेरिकी प्रशासन का कहना है कि यह कदम सरकारी स्वास्थ्य खर्चों को कम करने के लिए उठाया गया है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इससे लाखों अप्रवासी परिवारों के लिए नई बाधाएँ खड़ी होंगी। यह नीति न केवल स्वास्थ्य के आधार पर भेदभाव का संकेत देती है, बल्कि अमेरिका जैसे आप्रवासी-प्रधान देश की मानवीय छवि पर भी सवाल खड़े करती है।
