पाकिस्तान ने अमेरिका को खनिजों की पहली खेप भेजी: पासनी पोर्ट भी देना चाहता है पाकिस्तान, PTI ने उठाये सवाल..

पाकिस्तान ने पहली बार अमेरिका को दुर्लभ खनिजों की एक खेप भेजी है। यह खेप पिछले महीने अमेरिका की कंपनी यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स (USSM) के साथ हुए 50 करोड़ डॉलर के समझौते के तहत भेजी गई है। इस खेप में नीयोडिमियम (neodymium) और प्रैसीओडिमियम (praseodymium) शामिल है. साथ में एंटिमनी (antimony), तांबे का कॉन्सन्ट्रेट (copper concentrate) भी एक्सपोर्ट किया गया है.

 

पाकिस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने इस डील पर सवाल उठाया है। पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की पार्टी ने कहा कि सरकार को इस गुप्त समझौते को सार्वजनिक करना चाहिए साथ ही PTI ने इसे पाकिस्तान के हितों के खिलाफ करार दिया है।

pakistan sends first consignment of minerals to america

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने कहा,

“यह सुरक्षित और विविधीकृत सप्लाई चेन स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो दोनों देशों को लाभपहुंचाएगा।”

 

USSM CEO स्टेसी डब्ल्यू हेस्टी ने कहा, 

पहली डिलीवरी ” USSM और पाकिस्तान के फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन के बीच सहयोग का एक रोमांचक अध्याय खोलती है, जिसका उद्देश्य व्यापार का विस्तार करना और दोनों देशों के बीच मित्रता को गहरा करना है।”

 

अमेरिका-पाकिस्तान में कैसी डील हुई है?

अमेरिकी कंपनी यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स(USSM) ने सितंबर में पाकिस्तान के साथ देश में खनिज प्रोसेसिंग और विकास के लिए लगभग 500 मिलियन डॉलर के निवेश का समझौता किया था। इसी समझौते को आगे बढ़ाने के लिए पाकिस्तान ने अमेरिका को अपनी पहली खनिज खेप भेजी है।

इसे पाकिस्तान के फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन (FWO) के सहयोग से भेजा गया। USSM ने इसे पाकिस्तान-अमेरिका रणनीतिक साझेदारी में एक महत्वपूर्ण कदम बताया और कहा कि इससे पाकिस्तान में दुर्लभ खनिज खोजने और प्रोसेस करने की पूरी वैल्यू चेन स्थापित करने में मदद मिलेगी।

 

पिछले महीने दुर्लभ खनिज गिफ्ट किये गए थे:

पिछले महीने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ और सेना प्रमुख आसिम मुनीर ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से वॉशिंगटन में मुलाकात की थी। इस दौरान उन्होंने ट्रंप को एक बॉक्स गिफ्ट किया, जिसमें दुर्लभ खनिज और कीमती पत्थर थे। पाकिस्तान के बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में इन खनिजों का बड़ा भंडार है, जिसकी कुल संपत्ति करीब 6 खरब डॉलर आंकी गई है, जो इसे दुनिया के सबसे संसाधन संपन्न देशों में से एक बनाता है। लेकिन अब तक इनका व्यावसायिक इस्तेमाल बहुत कम हुआ है।

 

इस डील से पाकिस्तान को कितना होगा फायदा?

पाकिस्तान को इस समझौते से आर्थिक फायदा हो सकता है, लेकिन इसका वास्तविक असर अभी साफ नहीं है। इससे पहले पाकिस्तान ने चीन के साथ भी ऐसा ही समझौता किया था, लेकिन समय के साथ कई कंपनियां रिकोडिक खदान परियोजना से बाहर हो गईं।

अब अमेरिका के जुड़ने के बाद यह देखना होगा कि पाकिस्तान चीन और अमेरिका दोनों के साथ अपने रिश्ते कैसे संभालता है। अमेरिका ने अपने “अनलीशिंग अमेरिकन एनर्जी” कार्यक्रम के तहत जरूरी खनिजों के लिए 1 बिलियन डॉलर की फंडिंग योजना बनाई है, जिससे पाकिस्तान को निवेश मिल सकता है। हालांकि, इन समझौतों से सुरक्षा और पर्यावरण पर पड़ने वाले असर पर पाकिस्तान ने अभी गंभीरता से विचार नहीं किया है।

 

चीन को होगा सबसे अधिक नुकसान:

अमेरिका-पाकिस्तान के इस डील से सबसे अधिक नुकसान चीन को ही होने वाला है। बीजिंग ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) में अरबों डॉलर निवेश किए हैं। इसके अलावा हाईवे, बंदरगाहों और एनर्जी प्लांट्स का निर्माण किया है। वह जॉइंट वेंचर के माध्यम से पाकिस्तान के खनन ब्लॉकों को भी नियंत्रित करता है।

 

अमेरिका क्यों खोज रहा पूरी दुनिया में नए स्रोत:

कंपनी ने कहा कि यह समझौता खनिज क्षेत्र में पूरे वैल्यू चेन में सहयोग का रोडमैप तैयार करता है और इससे जरूरी खनिजों के बाजार में मौजूद एकाधिकार पर निर्भरता कम हो सकती है। दरअसल, अमेरिका इन दिनों दुर्लभ खनिजों (रेयर अर्थ मैटेरियल) के मामले में चीन पर अपनी निर्भरता घटाना चाहता है और इसलिए पूरी दुनिया में नए स्रोत खोज रहा है।

 

पासनी पोर्ट भी देना चाहता है पाकिस्तान:

फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान अमेरिका को पासनी पोर्ट देने का प्रस्ताव दे रहा है। इसका मकसद अमेरिका को पाकिस्तान के खनिज संसाधनों जैसे तांबा, एंटीमोनी और दुर्लभ खनिजों तक पहुंच देना है।

पासनी पोर्ट चीन के ग्वादर पोर्ट से सिर्फ 100 किलोमीटर दूर और ईरान के चाबहार पोर्ट के पास स्थित है, जिसमें भारत का भी बड़ा निवेश है। इस प्रोजेक्ट की अनुमानित लागत 1.2 अरब डॉलर है और इसमें रेल नेटवर्क का निर्माण भी शामिल है। हालांकि, ब्लूप्रिंट में अमेरिकी सैन्य इस्तेमाल या बेस बनाने की अनुमति नहीं है, लेकिन पाकिस्तान समेत दक्षिण एशिया में इसे लेकर चिंता है।

 

पाकिस्तान द्वारा इस समझौते की मुख्य वजह:

पाकिस्तान ने यह समझौता अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किया है। देश में खनिज भंडार का पूरा सर्वेक्षण अभी नहीं हुआ है, और पहले चीन ने भी यहां निवेश की कोशिश की थी, लेकिन बलूचिस्तान में विरोध के कारण वह सफल नहीं हो पाया। अब पाकिस्तान अमेरिका को शामिल कर रहा है ताकि उसे आर्थिक और सुरक्षा सहयोग मिल सके। माना जा रहा है कि पाकिस्तान बड़े देशों को अपनी जमीन पर निवेश की अनुमति देकर अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है, भले ही इसके लिए उसे अपनी संप्रभुता पर कुछ समझौता क्यों न करना पड़े।

 

पाकिस्तान के लिए चीन को दरकिनार करना मुश्किल:

पाकिस्तान अब मुश्किल स्थिति में है- उसे अमेरिका से नजदीकी बढ़ानी है, लेकिन चीन को नाराज भी नहीं करना चाहता। पासनी बंदरगाह ग्वादर के बहुत पास है, जहां चीन ने भारी निवेश किया है, इसलिए चीन अमेरिका को वहां किसी भी तरह की सैन्य या रणनीतिक पहुंच नहीं देने देगा।

बलूचिस्तान में बढ़ते हमलों की वजह से चीन पहले से ही सतर्क है। पाकिस्तान इस समय अमेरिका के साथ अपने रिश्ते सुधारने की कोशिश कर रहा है ताकि आर्थिक मदद और निवेश मिल सके, लेकिन ऐसा करते हुए वह चीन के भरोसे को खोने का खतरा उठा रहा है। हाल में पाकिस्तान ने चीन के J-35 लड़ाकू विमान खरीदने से भी इनकार किया, जो अमेरिकी प्रभाव को दिखाता है।

 

PTI की मांग क्या है?

द डॉन के अनुसार, इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (PTI) ने पाकिस्तान सरकार से अमेरिका और अमेरिकी कंपनियों के साथ हुए सभी समझौतों को सार्वजनिक करने की मांग की है।

पार्टी के सूचना सचिव शेख वकास अकरम ने कहा कि सरकार को इन गुप्त सौदों का पूरा ब्योरा जनता और संसद के सामने रखना चाहिए। पीटीआई का कहना है कि ऐसे महत्वपूर्ण समझौते बिना संसद और राष्ट्र को शामिल किए नहीं किए जाने चाहिए, क्योंकि ये पाकिस्तान के हितों से जुड़े हुए हैं।

 

PTI ने दिया 400 साल पुराना उदाहरण:

PTI ने पाकिस्तान सरकार को चेतावनी देते हुए 400 साल पुराना उदाहरण दिया। पार्टी ने कहा कि जैसे मुगल बादशाह जहांगीर ने अंग्रेजों को व्यापार की इजाजत दी थी और उसके बाद धीरे-धीरे पूरा भारत अंग्रेजों का गुलाम बन गया, वैसे ही अब अमेरिका के साथ किया जा रहा यह समझौता भी खतरनाक साबित हो सकता है। उन्होंने याद दिलाया कि उस समय यह डील सर टॉमस रो ने की थी, और नतीजा पूरे मुगल साम्राज्य के पतन के रूप में सामने आया था।

  • टॉमस रो एक अंग्रेज राजनयिक और व्यापारी था, जिसे 1615 में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम ने मुगल बादशाह जहांगीर के दरबार में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले आधिकारिक दूत के रूप में भेजा था।

 

पासनी पोर्ट की तुलना सूरत बंदरगाह से:

शेख वकास अकरम ने पाकिस्तानी नेताओं से कहा कि वे 1615 में मुगल बादशाह जहांगीर द्वारा सूरत बंदरगाह पर अंग्रेजों को व्यापार की अनुमति देने के फैसले से सबक लें, क्योंकि उसी गलती की वजह से बाद में अंग्रेजों ने पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा कर लिया था। पीटीआई ने इतिहास की इस घटना को याद दिलाते हुए पाकिस्तान सरकार को चेतावनी दी है।

 

रेयर अर्थ मिनरल्स (दुर्लभ मृदा खनिज) क्या हैं?

रेयर अर्थ मिनरल्स ऐसे प्राकृतिक खनिज होते हैं जिनमें रेयर अर्थ एलिमेंट्स (REEs) यानी 17 धात्विक तत्व पाए जाते हैं। इनमें 15 लैंथनाइड्स, साथ ही स्कैंडियम (Sc) और यिट्रियम (Y) शामिल हैं। ये तत्व तकनीकी उपकरणों और आधुनिक उद्योगों के लिए बहुत जरूरी हैं।

क्यों कहलाते हैं “रेयर?

ये तत्व पृथ्वी की पपड़ी में पर्याप्त मात्रा में तो हैं, लेकिन बहुत फैले हुए (dispersed) रूप में पाए जाते हैं, जिससे इन्हें आर्थिक रूप से निकालना मुश्किल होता है। इसी वजह से इन्हें “रेयर अर्थ” कहा जाता है।

 

मुख्य विशेषताएँ:

  • सभी REEs रासायनिक रूप से एक जैसे होते हैं और एक साथ पाए जाते हैं, इसलिए इन्हें अलग करना कठिन होता है।
  • इनमें खास तरह के चुंबकीय, फ्लोरोसेंट और विद्युत चालक गुण होते हैं, जो इन्हें आधुनिक तकनीक के लिए बेहद उपयोगी बनाते हैं।

 

महत्व और उपयोग: रेयर अर्थ मिनरल्स आज की हाई-टेक दुनिया की रीढ़ हैं। ये चीजों को छोटा, तेज और ऊर्जा-कुशल बनाते हैं।

  • इलेक्ट्रॉनिक्स: मोबाइल, लैपटॉप, टीवी आदि में।
  • ऊर्जा: विंड टर्बाइन और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मोटरों में।
  • चिकित्सा: MRI और मेडिकल उपकरणों में।
  • अन्य: लेज़र, कैटलिस्ट, और LED लाइट्स में।

 

मुख्य स्रोत और उनके प्रकार:

  • बास्टनासाइट (Bastnäsite): यह एक फ्लोरोकार्बोनेट है और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का एक प्रमुख स्रोत है।
  • मोनाजाइट (Monazite): यह एक फास्फेट खनिज है जो थोरियम, लैंथेनम और सेरियम जैसे तत्वों का महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • लोपाराइट (Loparite): यह क्षारीय आग्नेय चट्टानों में पाया जाता है और दुर्लभ पृथ्वी तत्वों का एक स्रोत है।

 

प्रमुख भंडार वाले देश:

  • चीन: दुनिया के कुल दुर्लभ पृथ्वी खनिजों का एक बड़ा हिस्सा चीन के निक्षेपों से आता है, जिसमें बयान ओबो प्रमुख है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: कैलिफोर्निया में माउंटेन पास जैसे बास्टनासाइट भंडार यहाँ पाए जाते हैं।
  • ऑस्ट्रेलिया: दुर्लभ पृथ्वी तत्वों के प्रमुख भंडारों में से एक है।
  • रूस: यहाँ लोपेराइट के महत्वपूर्ण भंडार हैं।

 

निष्कर्ष:

अमेरिका को दुर्लभ खनिज भेजकर पाकिस्तान ने रणनीतिक कदम उठाया है, लेकिन विपक्ष ने इसे देशहित के खिलाफ बताया है। बाकी आगे आने वाला समय बताएगा की यह कदम पाकिस्तान के लिए कितना लाभकारी सिद्ध होगा।