संसदीय समिति की सिफारिश: फेक न्यूज लोकतंत्र के लिए खतरा, मीडिया संस्थानों में अनिवार्य फैक्ट-चेक पर जोर

संसद की एक स्थायी समिति ने फर्जी खबरों को गंभीर चिंता का विषय बताया है। समिति ने कहा है कि फेक न्यूज न केवल सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा है, बल्कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी प्रभावित करती है। इस चुनौती से निपटने के लिए समिति ने दंडात्मक प्रावधानों में बदलाव, जुर्माने बढ़ाने और जवाबदेही तय करने की सिफारिश की है।

साथ ही सभी मीडिया संस्थानों में तथ्य-जांच तंत्र (Fact-checking mechanism) और आंतरिक लोकपाल की स्थापना को अनिवार्य करने की मांग भी की गई है।

parliamentary committee's recommendation fake news is a threat to democracy

समिति ने दी अन्य अहम सिफारिशें: फर्जी खबरों के बढ़ते खतरे को देखते हुए एक उच्चस्तरीय समिति ने मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण को लेकर कई अहम सुझाव दिए हैं।

  • समिति की सिफारिशों के अनुसार, संपादकीय नियंत्रण की जिम्मेदारी संपादकों और विषय प्रमुखों पर होगी, जबकि संस्थागत स्तर पर होने वाली विफलताओं के लिए मालिकों और प्रकाशकों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
  • इसके साथ ही समिति ने कहा कि फर्जी खबरें फैलाने में शामिल कंपनियों और प्लेटफॉर्म्स को भी जिम्मेदार माना जाए। इसके लिए मौजूदा नियमों और दंडात्मक प्रावधानों में संशोधन कर उन्हें और कड़ा बनाने की जरूरत है।
  • समिति ने यह भी स्पष्ट किया कि इन बदलावों को लागू करने से पहले मीडिया संगठनों और अन्य हितधारकों के बीच व्यापक सहमति बनाना आवश्यक है, ताकि किसी पक्षपात के बिना प्रभावी समाधान सामने लाया जा सके।

 

शीतकालीन सत्र में पेश किये जाने की संभावना:

यह मसौदा रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को सौंपी गई है और संभावना है कि इसे संसद के शीतकालीन सत्र 2025 में पेश किया जाएगा, ताकि संसद के सदन में इस पर व्यापक चर्चा हो सके।

पैनल ने इसे इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को भी भेजा है, क्योंकि यह मंत्रालय भी मीडिया और सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र से संबंधित नीतियों और नियमों की निगरानी करता है। इसका उद्देश्य दोनों मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करना और फर्जी खबरों के खिलाफ प्रभावी कदम उठाना है।

 

समिति ने डिजिटल फेक न्यूज रोकने पर दिया जोर:

समिति ने कहा कि अधिकांश हितधारकों ने आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79 के “सुरक्षित बंदरगाह” (सेफ हार्बर प्रोविजन) प्रावधान पर चिंता जताई है, जो डिजिटल प्लेटफॉर्म्स को तीसरी पार्टी की सामग्री के दायित्व से मुक्त करता है।

डिजिटल समाचार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का राजस्व मॉडल अक्सर सनसनीखेज और फर्जी सामग्री को बढ़ावा देता है, और उनके एल्गोरिदम ऐसी सामग्री को और फैलाते हैं। समिति ने बताया कि एल्गोरिदम की यह पूर्वाग्रह फर्जी खबरों के वायरल होने का कारण बनता है। इसके चलते समिति ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से अंतर-मंत्रालयी समन्वय तंत्र स्थापित करने का आग्रह किया है।

 

भारत में बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका जैसी स्थिति नहीं बनने देंगे:

सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में बीजेपी सांसद दुबे ने सत्तारूढ़ गठबंधन को निशाना बनाते हुए एक फर्जी खबर का स्क्रीनशॉट साझा किया। उन्होंने कहा कि उनकी समिति ने लोकसभा अध्यक्ष को रिपोर्ट सौंपकर गलत सूचना के खिलाफ सख्त कदम उठाने की सिफारिश की है। सांसद ने कहा कि भारत को बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका और थाईलैंड जैसी स्थिति नहीं बनने देंगे और लोगों को गुमराह करने वाले राष्ट्र-विरोधी एजेंडों पर अंकुश लगाया जाएगा। कोई भी खबर तथ्यात्मक होनी चाहिए।

फेक न्यूज से निपटने के लिए बहुपक्षीय सहयोग की सिफारिश:

सीमा पार की फर्जी खबरों से निपटने के लिए समिति ने बहुपक्षीय सहयोग की सिफारिश की है। समिति ने कहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर अंतर-मंत्रालयी सहयोग और अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ तालमेल जरूरी है। सरकार अन्य देशों की सर्वोत्तम प्रथाओं का पालन कर सकती है, जैसे चुनाव संबंधी गलत सूचना पर फ्रांस का कानून।

इसके अलावा, सीमा पार गलत खबरों से निपटने के लिए एक छोटा लेकिन समर्पित अंतर-मंत्रालयी कार्यबल बनाया जा सकता है, जिसमें कानूनी विशेषज्ञों के साथ सूचना एवं प्रसारण, विदेश मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालयों के प्रतिनिधि शामिल हों।

 

संसदीय समितियाँ क्या है?:

संसदीय समितियाँ सांसदों का एक पैनल होती हैं, जिन्हें सदन या अध्यक्ष/सभापति नियुक्त करते हैं। ये समितियाँ अध्यक्ष/सभापति के निर्देशन में काम करती हैं और अपनी रिपोर्ट सदन या अध्यक्ष/सभापति को प्रस्तुत करती हैं।

  • भारत में संसदीय समितियों की उत्पत्ति ब्रिटिश संसद से हुई है।
  • ये समितियाँ अनुच्छेद 105 (सांसदों के विशेषाधिकार) और अनुच्छेद 118 (संसद के कार्य संचालन के नियम बनाने का अधिकार) से अपना अधिकार प्राप्त करती हैं।

 

आवश्यकता:

कानून बनाने की प्रक्रिया जटिल होती है और संसद के पास हर विधेयक पर विस्तृत चर्चा के लिए पर्याप्त समय नहीं होता। राजनीतिक ध्रुवीकरण और सामंजस्य की कमी से बहसें अक्सर अनिर्णायक बन जाती हैं। इसलिए, विधायी कार्य का बड़ा हिस्सा संसदीय समितियों में ही निपटता है।

 

फेक न्यूज़ पर नियंत्रण की आवश्यकता क्यों है?

  1. सूचना का अधिकार (RTI): फेक न्यूज़ नागरिकों के सूचना के अधिकार को कमजोर करती है। सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले में इसे मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी है।
  2. लोकतंत्र के लिए खतरा: फेक न्यूज़ मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित कर सकती है, दंगे भड़का सकती है और सामाजिक अशांति पैदा कर सकती है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रियाएं कमजोर होती हैं।
  3. सूचना के बुलबुले (Information Bubbles): ऑनलाइन प्लेटफार्मों के एल्गोरिद्म अक्सर पूर्वाग्रहों (जैसे नस्लवाद, स्त्री-विरोध, सांप्रदायिकता) को और मज़बूत करते हैं। इससे जनमत विकृत हो जाता है।

 

फेक न्यूज़ को नियंत्रित करने की चुनौतियाँ

  1. इंटरनेट का तेजी से बढ़ता प्रसार: 2023 में भारत की 55% आबादी इंटरनेट से जुड़ी थी (IAMAI रिपोर्ट)। इससे गलत सूचना के प्रसार की गति और पैमाना दोनों बढ़ गए हैं।
  2. डिजिटल निरक्षरता: भारत के केवल 38% घर डिजिटल साक्षर हैं। इस कारण अधिकतर नागरिक फेक न्यूज़ को पहचान नहीं पाते और तथ्य सत्यापित नहीं कर पाते।
  3. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा: फेक न्यूज़ पर नियंत्रण के प्रयासों से दुरुपयोग और सेंसरशिप का खतरा रहता है।

 

फेक न्यूज़ रोकने के लिए उठाए गए कदम

  1. सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021: इन नियमों के तहत ऑनलाइन न्यूज़ पब्लिशर्स और करंट अफेयर्स से जुड़ी सामग्री प्रकाशित करने वालों के लिए कंटेंट रेगुलेशन का ढांचा तैयार किया गया है। इसमें क्यूरेटेड ऑडियो-वीज़ुअल कंटेंट पर भी निगरानी रखी जाती है।
  2. भारतीय न्याय संहिता (धारा 35): इस धारा के तहत झूठी जानकारी या अफवाह फैलाना, चाहे वह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ही क्यों न हो, अगर उसका उद्देश्य जनहानि या सामाजिक अशांति फैलाना है तो यह अपराध माना जाएगा।
  3. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (धारा 66D): इस धारा में कंप्यूटर संसाधनों का इस्तेमाल कर प्रतिरूपण (Personation) द्वारा धोखाधड़ी करने पर दंड का प्रावधान है। इसमें ऑनलाइन माध्यम से फर्जी पहचान बनाकर गलत सूचना फैलाने वालों को सज़ा दी जा सकती है।

 

निष्कर्ष:

फर्जी खबरों और गलत सूचना का अनियंत्रित प्रसार न केवल सार्वजनिक व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के लिए खतरा है, बल्कि व्यक्तिगत प्रतिष्ठा, व्यापारिक लेनदेन, शेयर बाजार और मीडिया की विश्वसनीयता को भी गंभीर रूप से प्रभावित करता है। इसे नियंत्रित करना एक वैश्विक चुनौती बन चुकी है, जिसके लिए ठोस और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।