परवेज़ मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान के परमाणु हथियारों का नियंत्रण अमेरिका को सौंप दिया: पूर्व सीआईए अधिकारी का चौंकाने वाले खुलासे-

अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के पूर्व अधिकारी जॉन किरियाको ने पाकिस्तान को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। हाल ही में किरियाको ने ANI से बातचीत में उन्होंने बताया कि 2002 में पाकिस्तान में तैनात रहते हुए उन्हें अनौपचारिक रूप से बताया गया कि पेंटागन पाकिस्तान के परमाणु शस्त्रागार को नियंत्रित करता है। उनके अनुसार, परवेज मुशर्रफ (पाकिस्तान के  पूर्व राष्ट्रपति) ने हथियार नियंत्रण अमेरिका को सौंप दिया, क्योंकि उन्हें यह डर था कि परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथ लग सकते हैं।

Pervez Musharraf handed over control of Pakistan nuclear weapons to the US

अमेरिका ने मुशर्रफ को लाखों डॉलर की मदद देकर खरीद लिया था:

 

किरियाकू ने बातचीत में बताया कि अमेरिका ने मुशर्रफ को लाखों डॉलर की मदद देकर ‘खरीद’ लिया था। मुशर्रफ के शासनकाल में अमेरिका को पाकिस्तान की सुरक्षा और सैन्य गतिविधियों तक लगभग पूरी पहुंच थी। उन्होंने बताया, “हमने लाखों डॉलर की सैन्य और आर्थिक मदद दी। बदले में मुशर्रफ ने हमें सब कुछ करने दिया।”

किरियाकू ने यह भी कहा कि मुशर्रफ दोहरे खेल खेलते थे। एक तरफ अमेरिका के साथ दिखावा करते और दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना और चरमपंथियों को भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियां जारी रखने की अनुमति देते थे। पाकिस्तानी सेना को आतंकवादी संगठन अल-कायदा की भी परवाह नहीं थी, उनकी असली चिंता सिर्फ और सिर्फ भारत था।

 

किरियाको ने पाकिस्तान में भ्रष्टाचार की भी पोल खोली:

किरियाको ने पाकिस्तान में व्यापक भ्रष्टाचार की भी चर्चा की। उनका कहना है कि उस समय पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो खाड़ी देशों में विलासितापूर्ण जीवन जी रही थीं, जबकि आम लोग भूख और गरीबी से जूझ रहे थे। अमेरिका ने इसी दौरान मुशर्रफ के नेतृत्व में पाकिस्तान को लाखों डॉलर मदद दी, जिससे उन्हें अमेरिका के लिए एक तरह से ‘खरीद’ लिया गया।

 

सऊदी ने हमें अब्दुल क़ादिर खान को छोड़ने को कहा’- जॉन किरियाकू:

पूर्व CIA अधिकारी जॉन किरियाकू ने खुलासा किया कि अमेरिका ने पाकिस्तानी परमाणु वैज्ञानिक अब्दुल क़ादिर खान को खत्म करने की योजना छोड़ दी, क्योंकि सऊदी अरब ने सीधे हस्तक्षेप कर उनका संरक्षण किया। क़ादिर खान पाकिस्तान के परमाणु बम के प्रमुख वास्तुकार हैं।

 

किरियाकू ने कहा, “अगर हमने इजरायली दृष्टिकोण अपनाया होता, तो हम उसे मार देते। उसे ढूँढना आसान था। लेकिन सऊदी हमारे पास आए और कहा, ‘कृपया उसे छोड़ दो। हमें अब्दुल क़ादिर खान पसंद है। हम उसके साथ काम कर रहे हैं।’”

उन्होंने इसे एक बड़ी नीतिगत गलती बताया और कहा कि व्हाइट हाउस ने CIA और IAEA को खान के खिलाफ कार्रवाई न करने का निर्देश दिया, जो सऊदी दबाव का परिणाम था। किरियाकू ने सुझाव दिया कि सऊदी अरब का खान का संरक्षण शायद अपने परमाणु महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित था, और उन्होंने सवाल उठाया कि क्या सऊदी भी स्वयं एक समान परमाणु क्षमता विकसित कर रहे थे।

उन्होंने इसे हाल ही में हुए सऊदी–पाकिस्तान रक्षा समझौते से जोड़ते हुए कहा कि हो सकता है कि रियाद अब अपने निवेश की माँग कर रहा हो।

 

जॉन किरियाकू का खुलासा: 2002 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के कगार पर-

पूर्व CIA अधिकारी जॉन किरियाकू ने बताया कि 2002 में भारत और पाकिस्तान युद्ध के बहुत करीब थे। उन्होंने कहा कि उस समय इस्लामाबाद से अमेरिकी अधिकारियों और उनके परिवारों को निकाल लिया गया था, और अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को यह आशंका थी कि दोनों देश सशस्त्र संघर्ष में उतर सकते हैं।

किरियाकू ने 2001 के संसद हमले के बाद भारत द्वारा शुरू किए गए ऑपरेशन पराक्रम का जिक्र किया। उन्होंने दावा किया कि अमेरिकी उप विदेश मंत्री ने दिल्ली और इस्लामाबाद का दौरा कर दोनों देशों के बीच समझौता करवाया, जिससे युद्ध टल सका।

2008 के मुंबई हमलों पर उन्होंने कहा कि उन्हें कभी नहीं लगा कि यह अल-कायदा का काम था। उनका मानना था कि ये पाकिस्तान समर्थित आतंकी समूह थे, और बाद में यह साबित हुआ कि पाकिस्तान ही भारत में आतंकवाद फैलाने में सक्रिय था, जबकि कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।

 

अमेरिका की पाखंडपूर्ण विदेश नीति: जॉन किरियाकू:

पूर्व CIA अधिकारी जॉन किरियाकू ने अमेरिकी विदेश नीति की पाखंडपूर्ण प्रकृति पर जोर दिया, कहते हुए कि अमेरिका चुनिंदा लोकतंत्रों का समर्थन करता है, जबकि तानाशाहों के साथ आराम से काम करता है। उन्होंने कहा, “हम यह दिखावा करते हैं कि हम लोकतंत्र और मानवाधिकारों का आदर्श हैं, लेकिन सच यह है कि हम केवल वही करते हैं जो उस समय हमारे हित में है।”

किरियाकू ने कहा कि अमेरिका–सऊदी अरब संबंध पूरी तरह लेन-देन आधारित हैं। उन्होंने याद किया कि सऊदी गार्ड ने उनसे कहा, “आप केवल भाड़े के कर्मचारी हैं। हमने आपको यहाँ भेजा है ताकि आप हमारी रक्षा करें।” अमेरिका सऊदी से तेल खरीदता है और सऊदी हमारी हथियार खरीदते हैं।

 

परवेज मुशर्रफ के खिलाफ देशद्रोह का मामला:

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ के खिलाफ यह मामला नवंबर 2007 में संविधान निलंबित करने के उनके फैसले से जुड़ा था। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 6 के तहत ‘उच्च राजद्रोह’ का आरोप लगाया गया, जिसे पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएल-एन) की सरकार ने 2013 में दायर किया। और मुशर्रफ पर मार्च 2014 में औपचारिक रूप से आरोप तय किए गए।

 

मेडिकल ग्राउंड पर देश छोड़ना: मुकदमे की सुनवाई के दौरान, मुशर्रफ ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए कई सुनवाई में शामिल होने से इनकार किया। मार्च 2016 में, उन्हें चिकित्सा उपचार के लिए देश छोड़ने की अनुमति मिली और वे दुबई चले गए। अदालत में पेश होने में लगातार विफलता के कारण, मई 2016 में उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया।

17 दिसंबर 2019 को विशेष अदालत ने मुशर्रफ को दोषी पाया और उन्हें मौत की सजा सुनाई, जो पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार किसी सैन्य शासक को देशद्रोह का दोषी ठहराए जाने वाली घटना थी।

 

लाहौर उच्च न्यायालय का फैसला:

जनवरी 2020 में लाहौर उच्च न्यायालय ने इस फैसले को असंवैधानिक घोषित किया। इसके बावजूद, जनवरी 2024 में, मुशर्रफ के निधन के लगभग एक साल बाद, पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने लाहौर उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द कर दिया और विशेष अदालत द्वारा दी गई मौत की सजा को बरकरार रखा।

मुशर्रफ का निधन 5 फरवरी 2023 को लंबी बीमारी के बाद दुबई में हुआ, और मृत्यु के समय वह स्व-निर्वासन में रह रहे थे।

 

असीम मुनीर के अमेरिका के हाथों “बिकने” के आरोप- जनता ने सेल्समैन का टैग दिया:

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर पर हाल के वर्षों में अमेरिका के हाथों ‘बिकने’ के आरोप लगे हैं। इन आरोपों का मुख्य कारण पाकिस्तान के आर्थिक संकट और अमेरिका के साथ उसके संबंधों में आए बदलाव हैं।

 

इन आरोपों के मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:

  • दुर्लभ-पृथ्वी खनिज समझौता: सितंबर 2025 में पाकिस्तान ने अमेरिकी कंपनी ‘यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स’ (USSM) के साथ दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों के निर्यात के लिए $500 मिलियन का अनुबंध किया। इसे पाकिस्तान की सेना की इंजीनियरिंग शाखा ‘फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन’ (FWO) ने अंतिम रूप दिया। इस डील के कारण मुनीर पर अपने देश के प्राकृतिक संसाधनों को अमेरिका को बेचने का आरोप लगा, खासकर जब डोनाल्ड ट्रम्प के साथ उनकी मुलाकात की तस्वीरें सामने आईं।
  • बलूचिस्तान और पीओके का कथित सौदा: कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और सोशल मीडिया पर दावा किया गया कि मुनीर और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने बलूचिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में दुर्लभ-पृथ्वी खनिजों का सौदा अमेरिका से किया। इन दावों को पाकिस्तान के भीतर और बाहर राजनीतिक प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा।
  • विदेशी दौरों का राजनीतिकरण: मुनीर के अमेरिका के बार-बार दौरे सवालों के घेरे में रहे। आलोचकों का कहना है कि इन दौरों के जरिए वे अमेरिका से आर्थिक और राजनीतिक समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे पाकिस्तान में सेना की शक्ति बढ़ती है।
  • घरेलू आलोचना: पाकिस्तान के विपक्षी दलों और कुछ राजनेताओं ने मुनीर के इन कदमों की कड़ी आलोचना की। अक्टूबर 2025 में, सीनेटर एमाल वली खान ने मुनीर को “सेल्समैन” कहा और इन समझौतों के बारे में संसद में जानकारी देने की मांग की।

 

कौन थे अब्दुल कादिर खान?

जन्म और प्रारंभिक जीवन: अब्दुल कादिर खान का जन्म 1936 में भोपाल, भारत में हुआ था। विभाजन के बाद 1952 में वे अपने परिवार के साथ पाकिस्तान चले गए। उन्हें दुनिया के सबसे कुख्यात परमाणु तस्करों में से एक माना जाता है, जिन्होंने उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया जैसे देशों को परमाणु तकनीक प्रदान की।

 

पाकिस्तान का परमाणु कार्यक्रम:

  • 1975 में, उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम के लिए अपनी सेवाएँ देने की पेशकश की।
  • उन्होंने यूरेनियम संवर्धन (एनरिचमेंट) के लिए ब्लू प्रिंट प्रदान किए और 1976 में पाकिस्तान परमाणु ऊर्जा आयोग के परमाणु हथियार कार्यक्रम में शामिल हो गए।
  • उनके प्रयासों के कारण पाकिस्तान 1998 में परमाणु परीक्षण करने में सफल रहा।

 

विवाद और आरोप:

  • उन पर परमाणु प्रौद्योगिकी के प्रसार के लिए गुप्त अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क चलाने का आरोप था।
  • 2004 में, उन्होंने ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को तकनीक पहुँचाने की बात स्वीकार की, जिसके बाद उन्हें हाउस अरेस्ट में रखा गया।

 

मृत्यु और विरासत: डॉ. खान का निधन 10 अक्टूबर 2021 को इस्लामाबाद में 85 वर्ष की आयु में हुआ। उनका जीवन विवादास्पद रहा: पाकिस्तान में उन्हें राष्ट्रीय नायक माना गया, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें परमाणु हथियारों के प्रसार के लिए जिम्मेदार ठहराया गया।

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