प्लास्टिक प्रदूषण संधि वार्ता बिना किसी समझौते के समाप्त हुई

वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए प्रस्तावित ऐतिहासिक संधि पर सहमति बनाने के प्रयास शुक्रवार को विफल हो गए। संयुक्त राष्ट्र के जिनेवा कार्यालय में 185 देशों के वार्ताकार 11 दिनों तक लगातार चर्चा में जुटे रहे और गुरुवार की समयसीमा से आगे बढ़ते हुए पूरी रात वार्ता चली, लेकिन कोई आम सहमति नहीं बन पाई।

मतभेद का मुख्य कारण यह था कि कुछ देश प्लास्टिक उत्पादन को सीमित करने जैसे ठोस और साहसिक कदम उठाने के पक्ष में थे, जबकि तेल-उत्पादक देश केवल कचरा प्रबंधन पर केंद्रित सीमित दृष्टिकोण अपनाने की वकालत कर रहे थे। इस लंबे संवाद में प्लास्टिक प्रदूषण के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा हुई, लेकिन गहरे मतभेद के चलते संधि पर मुहर नहीं लग सकी।

 

प्लास्टिक प्रदूषण पर वैश्विक संधि के प्रयास विफल

रिपोर्ट के अनुसार, वार्ताकार किसी समझौते पर नहीं पहुंच सके क्योंकि मुख्य विवाद इस बात पर बना रहा कि संधि के बाद प्लास्टिक उत्पादन में हो रही तेज़ वृद्धि को नियंत्रित किया जाए या नहीं। प्लास्टिक निर्माण में प्रयुक्त विषैले रसायनों पर वैश्विक स्तर पर प्रतिबंध लगाने और प्लास्टिक प्रदूषण पर कानूनी रूप से बाध्यकारी नियंत्रण लागू करने के मुद्दों पर भी आम सहमति नहीं बन पाई।

रिपोर्ट में बताया गया कि जिनेवा स्थित संयुक्त राष्ट्र केंद्र में हुई यह वार्ता अंतिम दौर की थी, जिसका उद्देश्य महासागरों सहित विभिन्न स्थानों पर प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए पहली कानूनी रूप से बाध्यकारी संधि करना था। हालांकि, पिछले वर्ष दक्षिण कोरिया में हुई बैठक की तरह, इस बार भी वार्ता बिना किसी समझौते के समाप्त हो गई।

मुख्य विवाद के मुद्दे:

  • नए प्लास्टिक के उत्पादन पर सीमा तय करने का प्रस्ताव सबसे बड़ा विवाद का कारण रहा।
  • कई देश और पर्यावरण संगठन इस पर कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधान चाहते थे।
  • तेल-उत्पादक देश और अमेरिका (डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन के तहत) इस सीमा का विरोध करते हुए इसे घटते ईंधन मांग की भरपाई के लिए एक महत्वपूर्ण बाजार मानते हैं।
  • इन देशों का जोर था कि संधि उत्पादन के बजाय कचरा प्रबंधन और पुनर्चक्रण पर केंद्रित हो।
  • नवीनतम मसौदे में कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधानों की कमी और प्लास्टिक उत्पादन पर अनुच्छेद हटाए जाने को लेकर कड़ी आलोचना हुई।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया:

  • फ्रांस की पारिस्थितिकी मंत्री एग्नेस पनियर-रूनाशे ने नतीजों की कमी पर नाराजगी जताई और इसे “क्रोध पैदा करने वाला” बताया।
  • डेनमार्क के पर्यावरण मंत्री मैग्नस होनिके (EU की ओर से) ने आरोप लगाया कि कुछ देश समझौते को सक्रिय रूप से रोक रहे हैं।
  • पनामा के प्रतिनिधि जुआन कार्लोस मोंटेरे गोमेज़ ने मसौदा पाठ को “समर्पण” करार दिया।
  • माइक्रोनेशिया के वार्ताकार डेनिस क्लेयर ने इसे “एक कदम पीछे” बताया।
  • हालांकि, वार्ता अध्यक्ष लुइस वायस वाल्डिविएसो ने भविष्य में समझौते के लिए लंबित मुद्दों के महत्व पर जोर दिया।

ग्लोबल प्लास्टिक संधि क्या है?

ग्लोबल प्लास्टिक संधि एक अंतरराष्ट्रीय पहल है, जिसे संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UNEA) ने 2022 में प्लास्टिक प्रदूषण की बढ़ती समस्या से निपटने के लिए शुरू किया। इसका उद्देश्य प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र उत्पादन, उपयोग, पुनर्चक्रण और निपटान के प्रबंधन के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी प्रावधान स्थापित करना है।

मुख्य लक्ष्य:

  • प्लास्टिक उत्पादन में कमी कर नए प्लास्टिक की आपूर्ति को नियंत्रित करना।
  • पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को बढ़ावा देकर कचरे को न्यूनतम करना।
  • प्लास्टिक से जुड़े हानिकारक रसायनों के प्रबंधन के लिए कदम उठाना।
  • खुले में प्लास्टिक कचरा फेंकने और जलाने जैसी हानिकारक प्रथाओं को समाप्त करना।

इस संधि पर बातचीत में सदस्य देश, पर्यावरण संगठन और उद्योग से जुड़े हितधारक शामिल होते हैं, जो वैश्विक मानक और नीतियां तय करने पर काम कर रहे हैं। इसके लागू होने के बाद यह संधि टिकाऊ प्लास्टिक उपयोग की दिशा में बदलाव लाने और प्लास्टिक प्रदूषण से जुड़े पर्यावरणीय संकटों को कम करने में अहम भूमिका निभाने की उम्मीद है।

 

ग्लोबल प्लास्टिक संधि की आवश्यकता:

प्लास्टिक प्रदूषण का संकट तेजी से बढ़ रहा है। 2000 में वार्षिक प्लास्टिक उत्पादन 234 मिलियन टन था, जो 2019 में बढ़कर 460 मिलियन टन हो गया और 2040 तक इसके 700 मिलियन टन तक पहुंचने की आशंका है। वर्तमान में केवल 10% प्लास्टिक कचरे का पुनर्चक्रण होता है, जबकि शेष कचरा पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और जलवायु को नुकसान पहुंचा रहा है।

  • इस संधि का उद्देश्य प्लास्टिक उत्पादन में कमी, हानिकारक रसायनों के उन्मूलन और टिकाऊ कचरा प्रबंधन के लिए बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित करना है।

मुख्य कारण:

  • पर्यावरणीय प्रभाव: हर साल लाखों टन प्लास्टिक कचरा महासागरों में पहुंचकर समुद्री और स्थलीय पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। यह वन्यजीवों को हानि पहुंचाता है और प्राकृतिक आवासों को नष्ट करता है। प्लास्टिक के विघटन में 20–500 साल लगते हैं, जबकि 2023 तक केवल 10% कचरे का पुनर्चक्रण हुआ (द लांसेट)।
  • मानव स्वास्थ्य: सूक्ष्म प्लास्टिक पीने के पानी, भोजन और यहां तक कि सांस लेने वाली हवा में भी पाए गए हैं। ये हानिकारक रसायन ले जा सकते हैं और गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा करते हैं।
  • आर्थिक लागत: प्लास्टिक प्रदूषण पर्यटन, मत्स्य उद्योग और सफाई कार्यों पर भारी लागत डालता है, जिससे हर साल अरबों डॉलर का नुकसान होता है।
  • सतत विकास: प्लास्टिक प्रदूषण को नियंत्रित करना सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इसके लिए टिकाऊ उत्पादन और उपभोग, कचरे में कमी और सर्कुलर इकोनॉमी को बढ़ावा देना जरूरी है।
  • वैश्विक सहयोग: प्लास्टिक प्रदूषण एक वैश्विक समस्या है, जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समन्वित कार्रवाई आवश्यक है। यह संधि देशों को एक साझा ढांचा, सर्वोत्तम प्रथाओं का आदान-प्रदान और प्रभावी समाधान लागू करने का अवसर देगी।
  • जलवायु परिवर्तन से जुड़ाव: 2020 में प्लास्टिक का योगदान वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 6% था और 2050 तक इसमें 20% वृद्धि की संभावना है (लॉरेंस बर्कले नेशनल लेबोरेटरी)।

इन चुनौतियों का सामूहिक समाधान करके, यह संधि पर्यावरण, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभाव को कम करने और एक टिकाऊ भविष्य की दिशा में मार्ग प्रशस्त करने का लक्ष्य रखती है।

 

ग्लोबल प्लास्टिक संधि पर भारत का रुख और प्रदूषण नियंत्रण के प्रयास-

ग्लोबल प्लास्टिक संधि वार्ता में भारत ने प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर के उत्पादन पर नियंत्रण लगाने के प्रस्ताव का विरोध करते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसे कदम उसके विकास अधिकारों और आर्थिक हितों के लिए बाधक हो सकते हैं। भारत का मानना है कि संधि का फोकस उत्पादन सीमित करने के बजाय प्लास्टिक प्रदूषण के प्रभावी प्रबंधन पर होना चाहिए। देश ने 2022 से 19 सिंगल-यूज़ प्लास्टिक वस्तुओं पर प्रतिबंध लगाया है और एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) लागू कर निर्माताओं को पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने की जिम्मेदारी दी है। साथ ही, पैकेजिंग मानकों को सख्त किया गया है, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिए प्रमाणन प्रणाली लागू की गई है और नियम तोड़ने पर दंड का प्रावधान किया गया है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स में संशोधन के जरिए कचरा प्रबंधन को मजबूत किया गया है, जबकि अनिवार्य जूट पैकेजिंग अधिनियम (2010) के तहत कृत्रिम पैकेजिंग पर निर्भरता कम करने के प्रयास जारी हैं।

 

प्लास्टिक प्रदूषण संधि के लिए आगे का रास्ता

प्लास्टिक प्रदूषण संधि के लिए आगे का रास्ता फिलहाल अनिश्चित है, क्योंकि जिनेवा में हुई वार्ता गतिरोध में समाप्त हुई। स्विट्ज़रलैंड ने अगले चरण में इसी तरह की एक और वार्ता के मूल्य पर सवाल उठाते हुए ‘टाइम-आउट’ लेने का सुझाव दिया। वहीं, कई देशों ने अब तक हुई प्रगति का हवाला देते हुए जल्द से जल्द वार्ता फिर शुरू करने की वकालत की। 100 से अधिक देश व्यापक समझौते करने के लिए तैयार हैं और अब वे संयुक्त राष्ट्र से अलग किसी अन्य मंच पर ऐसे समझौते कर उन्हें लागू करने की दिशा में कदम उठा सकते हैं।