भारत सरकार डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने के लिए बड़ा कदम उठा रही है। नई राष्ट्रीय डेटा सेंटर नीति 2025 के तहत, डेटा सेंटर डेवलपर्स को 20 साल तक टैक्स में छूट देने की योजना है, बशर्ते वे क्षमता बढ़ाने, ऊर्जा बचत और रोजगार सृजन के लक्ष्यों को पूरा करें। इस पहल का मकसद भारत को क्लाउड, AI और डिजिटल सेवाओं का वैश्विक हब बनाना है, ऐसे समय में जब देश में डेटा स्टोरेज और कंप्यूटिंग की मांग तेजी से बढ़ रही है। नई राष्ट्रीय डेटा सेंटर नीति 2025 का मसौदा अब हितधारकों और विशेषज्ञों के सुझाव लेने के लिए साझा किया गया है.

मसौदे में मुख्य प्रस्ताव:
- कर छूट: डेटा सेंटर डेवलपर्स को 20 साल तक टैक्स में छूट दी जा सकती है, बशर्ते वे क्षमता बढ़ाने, ऊर्जा दक्षता सुधारने और रोजगार सृजन के लक्ष्यों को पूरा करें।
- GST इनपुट टैक्स क्रेडिट: निर्माण सामग्री, कूलिंग सिस्टम, एचवीएसी और इलेक्ट्रिक उपकरण जैसी पूंजीगत वस्तुओं पर टैक्स क्रेडिट का लाभ मिलने की संभावना।
- विदेशी कंपनियों के लिए सुविधा: जो विदेशी कंपनियां कम से कम 100 मेगावॉट क्षमता का संचालन या पट्टा लेंगी, उन्हें भारत में स्थायी प्रतिष्ठान का दर्जा मिल सकता है।
- AI और डिजिटल विकास: योग्य कंपनियों को उनके डेटा सेंटर वाले शहर में ही एआई विकास केंद्र या ग्लोबल कैपेसिटी सेंटर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा।
भूमि और बिजली की चुनौतियों का समाधान, हरित ऊर्जा को बढ़ावा:
मसौदा नीति में यह भी बताया गया है कि सरकार डेटा सेंटर उद्योग की सबसे बड़ी समस्याओं “भूमि और बिजली” को हल करने की योजना बना रही है।
- भूमि की समस्या: राज्यों को प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे डेटा सेंटर पार्कों के लिए औद्योगिक क्षेत्र, आईटी केंद्र या विनिर्माण क्लस्टरों के पास जमीन उपलब्ध कराएँ।
- बिजली की उपलब्धता: आईटी मंत्रालय, विद्युत मंत्रालय और संबंधित एजेंसियों के साथ मिलकर सुनिश्चित करेगा कि डेटा सेंटर को भरोसेमंद बिजली मिले।
- हरित ऊर्जा: डेवलपर्स को नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जैसे ऊर्जा भंडारण नियम और छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों की स्थापना।
इसके क्या है मायने ?
भारत का डेटा सेंटर उद्योग तेजी से बढ़ रहा है। 2019 से 24 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर के साथ बढ़ रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार, 2027 तक 795 मेगावॉट नई क्षमता जुड़ने की संभावना है, जिससे देश की कुल क्षमता 1,825 मेगावॉट हो जाएगी। वर्तमान में डेटा सेंटर की क्षमता का 75-80% इस्तेमाल हो रहा है, यानी मांग आपूर्ति से कहीं ज्यादा है।
होंगे नए रोज़गार सृजित:
इस पहल से न केवल बड़े शहरों में, बल्कि टियर-2 और टियर-3 शहरों में भी नए रोजगार सृजित होंगे। इसके साथ ही एआई, क्लाउड कंप्यूटिंग और साइबर सुरक्षा जैसी उन्नत तकनीकों में देश की घरेलू क्षमता और विशेषज्ञता मजबूत होगी, जिससे युवा प्रतिभाओं के लिए अवसर भी बढ़ेंगे।
भविष्य में डेटा सेंटर निवेश और क्षमता बढ़ने की उम्मीद:
डिजिटल सेवाओं, क्लाउड कंप्यूटिंग और AI की बढ़ती मांग के कारण इस क्षेत्र में लगातार निवेश बढ़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में वार्षिक निवेश 1-1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 12,870 करोड़ रुपये) है। 2024 में देश की डेटा सेंटर क्षमता लगभग 1.1 गीगावाट है और 2030 तक लगभग 3 गीगावाट तक पहुँचने की उम्मीद है।
भारत का डाटा सेंटर बाज़ार तेज़ी से बढ़ने की ओर:
भारत का डाटा सेंटर बाज़ार तेज़ी से विस्तार कर रहा है। वर्ष 2023 में इसकी कुल कीमत 4.5 अरब अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी, जो अनुमान के अनुसार 2032 तक बढ़कर 11.6 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकती है। इस दौरान बाज़ार की सालाना औसत वृद्धि दर (CAGR) 10.98% रहने का अनुमान है। यह वृद्धि देश में बढ़ती डिजिटल सेवाओं की मांग, क्लाउड टेक्नोलॉजी के तेज़ी से अपनाए जाने और डेटा स्टोरेज समाधान की बढ़ती आवश्यकता को दर्शाती है।

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भारतीय डेटा सेंटर बाज़ार में प्रमुख कंपनियाँ:
- CTRLS डाटासेंटर लिमिटेड
- अर्शिया लिमिटेड
- NTT ग्लोबल डेटा सेंटर्स एंड क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- सिफी टेक्नोलॉजीज लिमिटेड
- सिस्को सिस्टम्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
- माइक्रोसॉफ्ट कॉर्पोरेशन
- रिलायंस कम्युनिकेशंस लिमिटेड (रिलायंस डेटा सेंटर)
डेटा सेंटर विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकारी योजनाएँ:
भारत सरकार डेटा सेंटर उद्योग को मज़बूत बनाने के लिए कई योजनाएँ और नीतियाँ ला रही है। इनका उद्देश्य निवेशकों को आकर्षित करना, कंपनियों को प्रोत्साहन देना और आधुनिक डेटा सेंटर बनाना है।
- डेटा सेंटर प्रोत्साहन योजना (DCIS): इस योजना के तहत कंपनियों को टैक्स और दूसरे लाभ दिए जाएंगे। साथ ही उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा कि वे सर्वर, स्टोरेज, नेटवर्क, बिजली और कूलिंग जैसे उपकरण भारत में बने (घरेलू) सामान से खरीदें।
- डेटा सेंटर आर्थिक क्षेत्र (DCEZ): सरकार देश में चार बड़े “डेटा सेंटर ज़ोन” बनाने की योजना बना रही है। इन खास क्षेत्रों में बने डेटा सेंटर को अतिरिक्त सुविधाएँ और लाभ मिलेंगे, ताकि वे और तेज़ी से विकसित हो सकें।
डेटा सेंटर(Data Center) क्या है?
डेटा सेंटर एक इमारत, इमारत के भीतर विशेष क्षेत्र, या इमारतों का समूह होता है, जहाँ कंप्यूटर सिस्टम, सर्वर, दूरसंचार और डेटा स्टोरेज उपकरण रखे जाते हैं। ये केंद्र व्यवसायों और सेवाओं के लिए जरूरी IT संचालन को लगातार चलाने में मदद करते हैं। इसके लिए बिजली की आपूर्ति, इंटरनेट कनेक्शन, एयर कंडीशनिंग, अग्नि सुरक्षा और अन्य सुरक्षा व बैकअप सुविधाएँ होती हैं। बड़े डेटा सेंटर इतने बड़े होते हैं कि उनका बिजली उपयोग एक मध्यम शहर जितना हो सकता है।
इसकी आवश्यकता क्यों है:
भारत में इंटरनेट, मोबाइल ऐप्स, क्लाउड सेवाएँ और डिजिटल प्लेटफॉर्म तेजी से बढ़ रहे हैं। इन सबको काम करने के लिए बड़ी मात्रा में डेटा स्टोरेज और तेज़ कंप्यूटिंग की जरूरत होती है। अगर डेटा सेंटर पर्याप्त और मजबूत न हों, तो डिजिटल सेवाएँ सुचारू रूप से नहीं चल पाएँगी। इसलिए, बढ़ती डिजिटल मांग को पूरा करने के लिए नई और मजबूत डेटा सेंटर इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना जरूरी है।
डेटा सेंटर का इतिहास:
डेटा सेंटर की शुरुआत 1940 के दशक में बड़े कंप्यूटर कमरों से हुई। 1980 और 1990 के दशकों में जैसे-जैसे कंप्यूटिंग और इंटरनेट बढ़ा, डेटा सेंटर उद्योग भी विकसित हुआ। डॉट-कॉम बुलबुले और क्लाउड कम्प्यूटिंग के दौर में बड़े और कुशल डेटा सेंटर बने। 2010 के दशक में वैश्विक डेटा सेंटर बाज़ार तेजी से बढ़ा, AI और मशीन लर्निंग की मांग बढ़ने से और जोर मिला। अमेरिका सबसे बड़ा डेटा सेंटर बाजार है, और भविष्य में इसकी बिजली खपत और विस्तार दोनों बढ़ने की संभावना है।
निष्कर्ष:
नई राष्ट्रीय डेटा सेंटर नीति 2025 भारत की डिजिटल क्षमता को मजबूत करने और देश को वैश्विक तकनीकी केंद्र बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह नीति न केवल डेटा सेंटर उद्योग को प्रोत्साहित करेगी, बल्कि रोजगार सृजन, ऊर्जा दक्षता और तकनीकी नवाचार को भी बढ़ावा देगी। हितधारकों और विशेषज्ञों से सुझाव लेकर इसे और व्यावहारिक और प्रभावी बनाने की प्रक्रिया देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था को स्थायी विकास की ओर अग्रसर करेगी।