बांग्लादेश के रणनीतिक महत्व वाले शहर चटगांव में अमेरिकी सैन्य गतिविधियों की बढ़ती मौजूदगी ने क्षेत्रीय हलचल तेज कर दी है। भारत और म्यांमार की सीमाओं के करीब स्थित यह इलाका सुरक्षा और भू-राजनीति दोनों दृष्टि से बेहद संवेदनशील माना जाता है।
ताजा घटनाक्रम में अमेरिकी वायुसेना का C-130J सुपर हरक्यूलिस विमान रविवार को शाह अमानत अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (चटगाँव, बांग्लादेश) पर उतरा। यह आमतौर पर जापान के योकोटा एयरबेस से संचालित होता है।

बांग्लादेश में अमेरिका के लगातार सैन्य अभ्यास से बढ़ी हलचल:
चटगांव में अमेरिकी सेना की मौजूदगी अब केवल औपचारिक दौरों तक सीमित नहीं रही है। हाल के महीनों में यहां टोही मिशन से लेकर संयुक्त सैन्य अभ्यास तक कई गतिविधियां दर्ज की गई हैं।
इसी साल बांग्लादेश और अमेरिका ने “ऑपरेशन पैसिफिक एंजेल-25” और “टाइगर लाइटनिंग-2025” जैसे अभ्यास इसी क्षेत्र में आयोजित किए। सूत्रों का कहना है कि हाल ही में अमेरिकी सैनिकों की एक टुकड़ी के आगमन के बाद एक और संयुक्त प्रशिक्षण अभियान की तैयारियां चल रही हैं।
बांग्लादेश में शुरू हुआ एक और सैन्य अभ्यास:
बांग्लादेश एयर फोर्स (BAF) और अमेरिकी पैसिफिक एयर फोर्स (PACAF) के बीच चार दिवसीय संयुक्त सैन्य अभ्यास ‘ऑपरेशन पैसिफिक एंजेल 25-3’ 15 सितंबर से शुरू हो गया है।

इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य मेडिवैक (रेस्क्यू ऑपरेशन) समन्वय, एयरक्राफ्ट मेंटेनेंस, एयरोनॉटिकल ऑपरेशंस, पैराशूट व लिटर रिगिंग, रोटरी-विंग होइस्ट ऑपरेशंस, समुद्री व बाढ़ प्रतिक्रिया, कॉम्बैट रबर रेडिंग क्राफ्ट (CRRC), जंगल सर्वाइवल और एक्सीडेंट सीन मैनेजमेंट जैसे क्षेत्रों पर रहेगा। इसके अलावा, मानवीय सहायता और आपदा प्रबंधन (HA/DR) को लेकर भी विशेष अभ्यास किया जाएगा।
इस अभ्यास में अमेरिकी वायुसेना के दो C-130J ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट और एक MI-17 हेलिकॉप्टर भाग ले रहे हैं। कुल 150 बांग्लादेशी एयर फोर्स कर्मी और 92 अमेरिकी PACAF सदस्य इस अभ्यास में शामिल होंगे।
बंगाल की खाड़ी में अमेरिकी मौजूदगी बढ़ी, क्षेत्रीय चिंताएं गहराईं:
बंगाल की खाड़ी और उसके आसपास अमेरिकी सैन्य गतिविधियों में लगातार बढ़ोतरी देखी जा रही है, जिससे भारत के पूर्वोत्तर और म्यांमार तक असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है। रिपोर्टों के मुताबिक, वाशिंगटन और बीजिंग दोनों ही म्यांमार के विद्रोही गुटों को साधने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे पूरे क्षेत्र में शक्ति संतुलन पर नया दबाव बन सकता है।
चटगांव से म्यांमार तक, एशिया में बढ़ रही अमेरिका-चीन की खींचतान:
चटगांव की गतिविधियां केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं हैं। म्यांमार में चल रहे गृहयुद्ध में सक्रिय काचिन इंडिपेंडेंस आर्गेनाइजेशन (KIA) जैसे विद्रोही समूह दुर्लभ खनिजों पर नियंत्रण रखते हैं। चीन इन पर अपने बेल्ट एंड रोड निवेश के माध्यम से प्रभाव बढ़ाना चाहता है, जबकि अमेरिका इन संसाधनों को चीन से दूर रखने का प्रयास कर रहा है।
भारतीय खुफिया एजेंसियां भी इन हालात पर नज़र रख रही हैं, क्योंकि म्यांमार में विद्रोहियों की गतिविधियां भारत के पूर्वोत्तर की स्थिरता को प्रभावित कर सकती हैं।
बांग्लादेश पर क्यों टिका अमेरिका का ध्यान?
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक बीते कुछ समय से बांग्लादेश में अमेरिकी दिलचस्पी असामान्य रूप से बढ़ी है। इसके पीछे सबसे अहम कारण यह माना जा रहा है कि वॉशिंगटन नहीं चाहता कि ढाका पूरी तरह बीजिंग के खेमे में चला जाए। साथ ही, बंगाल की खाड़ी और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच बांग्लादेश की रणनीतिक स्थिति अमेरिका को एक ऐसा ठिकाना मुहैया करा सकती है, जहां से वह भारत और चीन दोनों की गतिविधियों पर नजर रख सके।
अमेरिका सेंट मार्टिन द्वीप पर बनाना चाहता था सैन्य अड्डा:
बांग्लादेश के गठन के बाद से ही सेंट मार्टिन द्वीप उसकी राजनीति और रणनीति दोनों में अहम भूमिका निभाता रहा है। बंगाल की खाड़ी के करीब होने और म्यांमार से लगी समुद्री सीमा के कारण यह छोटा-सा प्रवाल द्वीप न सिर्फ क्षेत्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय ताकतों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। अमेरिका और चीन दोनों ही इसे अपनी मौजूदगी मज़बूत करने का संभावित ठिकाना मानते रहे हैं।
जून 2023 में प्रधानमंत्री शेख हसीना ने आरोप लगाया था कि अमेरिका चाहता था- अगर बांग्लादेश नेशनल पार्टी (BNP) चुनाव जीतती है- तो वह सेंट मार्टिन द्वीप को अमेरिकी सैन्य अड्डे के रूप में इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दे। उनका यह बयान उस समय राजनीतिक हलकों में खासा चर्चा का विषय बना।
कहाँ है, सेंट मार्टिन द्वीप और क्यों इसे अमेरिका चाहता है?
करीब तीन वर्ग किलोमीटर में फैला यह द्वीप कॉक्स बाजार-टैंकफ प्रायद्वीप से लगभग नौ किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। स्थानीय लोग इसे नारिकेल जिंजीरा और दारुचिनी द्वीप के नाम से भी जानते हैं। यह बांग्लादेश का एकमात्र प्रवाल द्वीप है, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ मछली पकड़ने, नारियल व धान की खेती और समुद्री शैवाल के निर्यात के लिए भी मशहूर है। यहां करीब 3,700 लोग रहते हैं, जिनकी आजीविका इन्हीं पर निर्भर है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अमेरिका इस द्वीप पर अपना ठिकाना बनाकर न केवल चीन की बढ़ती सक्रियता को चुनौती दे सकता है, बल्कि बंगाल की खाड़ी में अपनी सैन्य पकड़ भी मजबूत कर सकता है। यदि यह योजना सफल होती है, तो अमेरिका को चीन पर दबाव बनाने का एक नया रणनीतिक मोर्चा मिल जाएगा।
सेंट मार्टिन द्वीप न सौंपने की कीमत, हसीना को गंवानी पड़ी थी सत्ता
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने अपनी सत्ता से बेदखली के पीछे सीधे तौर पर अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया है। उनका दावा है कि अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए सेंट मार्टिन द्वीप पर सैन्य अड्डा बनाने की इच्छा जताई थी, लेकिन उनकी सरकार ने यह मांग ठुकरा दी। हसीना के मुताबिक, इसी फैसले की वजह से उन्हें सत्ता गंवानी पड़ी।
भारत क्यों रख रहा है चटगांव पर पैनी नजर?
भारत चटगांव में बढ़ती गतिविधियों पर नज़दीकी नज़र बनाए हुए है, क्योंकि यह इलाका उसके पूर्वोत्तर राज्यों और म्यांमार की सीमाओं के बेहद करीब है। किसी भी बाहरी सैन्य ताकत की मौजूदगी यहां सीधे भारत की सुरक्षा को प्रभावित कर सकती है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ बाहरी शक्तियां बांग्लादेश को अपने प्रभाव बढ़ाने के ठिकाने के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं, जिसका असर भारत तक पड़ना तय है।
भारत के लिए क्यों अहम है, चटगांव:
चटगांव की नज़दीकी भारत के रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ट्राई-कमांड अंडमान और निकोबार द्वीप समूह से इसे और भी संवेदनशील बनाती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि भारत बांग्लादेश के साथ एक मजबूत सहयोगात्मक ढांचा खड़ा करता है, तो वह बंगाल की खाड़ी में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने के साथ-साथ समुद्री हितों की रक्षा और संभावित विरोधियों की रोकथाम भी सुनिश्चित कर सकता है।
चटगांव क्यों है खास, आइये जानते है-
- पूर्वोत्तर राज्यों के लिए बंगाल की खाड़ी से सीधा प्रवेश द्वार।
- चटगांव से बंगाल की खाड़ी और त्रिपुरा की दूरी मात्र 25 किमी।
- भारत को पूर्वोत्तर से जोड़ने वाले चिकन नेक का न्यूनतम चौड़ाई केवल 22 किमी।
- चटगांव पर मजबूत पकड़ भारत की चिकन नेक पर निर्भरता को कम करेगी।
- बंगाल की खाड़ी में चीन की बढ़ती उपस्थिति का संतुलन बनाने के लिए अहम।
भारत के लिए चटगांव का आर्थिक महत्व:
- चटगांव बंदरगाह के उपयोग से पूर्वोत्तर राज्यों में आने-जाने वाले माल की परिवहन लागत कम होगी।
- बंदरगाह भारत के हल्दिया से लगभग 625 किमी समुद्री दूरी पर स्थित।
- सिलिगुड़ी कॉरिडोर के जरिए पूर्वोत्तर तक माल पहुँचाने में लगने वाली दूरी होगी लगभग 1625 किमी, जबकि चटगांव बंदरगाह से यह काफी कम।
- इस बंदरगाह का उपयोग भारत के साथ-साथ नेपाल और भूटान के ट्रांजिट ट्रेड के लिए भी किया जा सकता है।
क्या भारत को चिंता करनी चाहिए?
चटगांव भारत-म्यांमार सीमा के निकट स्थित होने से सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। आशंका है कि दक्षिण एशिया से बाहर की शक्तियाँ बांग्लादेश को आधार बनाकर क्षेत्र में प्रभाव बढ़ाने का प्रयास कर सकती हैं। अगस्त 2024 में पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के सत्ता से हटने वाले आंदोलन में अमेरिका की भूमिका को लेकर भी आरोप लगे थे, इसलिए भारत को सतर्क रहने की जरूरत है।