भारत अपनी रक्षा क्षमताओं को मजबूत करने के लिए एक अत्याधुनिक हाइपरसोनिक मिसाइल, Extended Trajectory-Long Duration Hypersonic Cruise Missile (ET-LDHCM), विकसित कर रहा है। यह गुप्त परियोजना प्रोजेक्ट विष्णु के तहत डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) द्वारा संचालित की जा रही है और इसका उद्देश्य भारत की रणनीतिक सैन्य ताकत को बढ़ाना और क्षेत्रीय खतरों को रोकना है।
मिसाइल का प्रारंभिक संस्करण 8 मैक की गति से उड़ सकेगा, यानी लगभग 10,000 किमी प्रति घंटे।
प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ के बारे में-
प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की एक शीर्ष-गोपनीय पहल है, जिसका उद्देश्य उन्नत हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीकों का विकास करना है।
यह परियोजना भारत की सामरिक प्रतिरोध क्षमता को मजबूत बनाने के लिए बनाई गई है, जिससे परमाणु और पारंपरिक दोनों भूमिकाओं में सक्षम अत्यधिक गति वाली मिसाइलें तैयार की जा सकें। चीन और पाकिस्तान से उत्पन्न खतरों का मुकाबला करने पर केंद्रित यह परियोजना भारत की क्षेत्रीय आक्रामक क्षमता को सुदृढ़ करती है।
प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ की एक प्रमुख विशेषता इसका मल्टी-प्लेटफॉर्म उपयोग है, जिससे इसे थल, वायु और नौसेना प्रणालियों से लॉन्च किया जा सकता है। इसमें स्क्रैमजेट प्रणोदन, उन्नत सामग्री विज्ञान और सटीक मार्गदर्शन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का एकीकरण किया गया है।
यह पहल भारत के तकनीक-आधारित युद्ध सिद्धांत की दिशा में परिवर्तन को दर्शाती है और देश के विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोध सिद्धांत को और मजबूत करती है।
ET-LDHC हाइपरसोनिक मिसाइल प्रोजेक्ट ‘विष्णु’ के तहत विकसित की जा रही प्रमुख मिसाइल प्रणाली है। यह अत्याधुनिक हथियार प्रणाली मैक 8 (लगभग 11,000 किमी/घंटा) की रफ्तार से उड़ान भरने में सक्षम है और 1,500 किमी तक की दूरी तक सटीक प्रहार कर सकती है, जिससे वर्तमान वायु-रक्षा प्रणालियों के लिए इसे रोक पाना लगभग असंभव हो जाता है। यह मिसाइल 1,000 से 2,000 किलोग्राम तक के पारंपरिक या परमाणु वारहेड्स ले जाने में सक्षम है, जिससे इसे मिशन की जरूरतों के अनुसार कॉन्फ़िगर किया जा सकता है। स्वदेशी रूप से विकसित स्क्रैमजेट इंजन से संचालित यह प्रणाली वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग दहन के लिए करती है, जिससे ईंधन दक्षता और संचालन क्षमता में वृद्धि होती है। इसकी फ्लैट ट्राजेक्टरी और उच्च गतिशीलता इसे गहराई तक पैठने वाले और सटीक हमलों के लिए आदर्श बनाती है। मिसाइल का ढांचा ऐसे उन्नत पदार्थों से बना है जो 2,000°C से अधिक तापमान को सहन कर सकते हैं, जिससे इसे ऑक्सीकरण और संरचनात्मक क्षति से सुरक्षा मिलती है। इसके अलावा, ET-LDHC मिसाइल भूमि, वायु और नौसेना प्लेटफॉर्म से लॉन्च की जा सकती है, जो इसे उच्च संचालनिक लचीलापन प्रदान करती है।
ET-LDHCM की मुख्य विशेषताएँ
- गति (Speed): यह मिसाइल 8 मैक की गति तक पहुँचने के लिए डिज़ाइन की गई है, यानी लगभग 10,000–11,000 किमी/घंटा। यह भारत की वर्तमान सबसे तेज़ मिसाइल ब्रहमोस (Mach 3) से कई गुना तेज़ है।
- इंजन (Engine): इसमें स्वदेशी स्क्रमजेट इंजन लगाया गया है, जो वायुमंडलीय ऑक्सीजन का उपयोग कर ईंधन जलाता है और लंबी दूरी पर हाइपरसोनिक गति बनाए रखता है। DRDO ने अप्रैल 2025 में 1,000 सेकंड तक जमीन पर स्क्रमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया, जो तकनीकी दृष्टि से एक बड़ी उपलब्धि है।
- परिसीमा (Range): मिसाइल की दूरी लगभग 1,500 किमी है, जबकि सतह-से-सतह (surface-to-surface) संस्करण में इसे 2,500 किमी तक बढ़ाया जा सकता है।
- वारहेड क्षमता (Payload): यह 1,000 से 2,000 किलोग्राम वजन वाले पारंपरिक या परमाणु वारहेड ले जा सकती है।
- स्टेल्थ तकनीक (Stealth): ET-LDHCM की कम ऊँचाई की उड़ान, उच्च गति और मध्य-पथ में उछाल क्षमता इसे मौजूदा वायु रक्षा प्रणालियों के लिए पहचानना और रोकना बेहद कठिन बनाती है। इसमें हाइपरसोनिक उड़ान के दौरान उत्पन्न आयनीकृत वायु से “प्लाज़्मा स्टेल्थ प्रभाव” भी शामिल हो सकता है, जो राडार दृश्यता को और कम करता है।
- ताप प्रतिरोध: हाइपरसोनिक उड़ान के दौरान 2,000°C से अधिक गर्मी सहने के लिए इसमें अत्याधुनिक थर्मल प्रोटेक्शन सिस्टम होंगे।
- लॉन्च प्लेटफ़ॉर्म: इसे विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म से लॉन्च करने के लिए डिजाइन किया जा रहा है, जैसे कि भूमि आधारित लॉन्चर, सुखोई Su-30MKI जैसे विमान, और नौसैनिक जहाज।
ET-LDHCM की वैश्विक तुलना और भविष्य की गति क्षमता:
सूत्रों के अनुसार, ET-LDHCM का प्रारंभिक संस्करण मैक 8 की गति से उड़ान भरने में सक्षम होगा, जबकि इसके अगले संस्करणों की गति मैक 10 तक पहुंच सकती है। इस स्तर की उन्नत तकनीक पर फिलहाल दुनिया के बहुत कम देश कार्य कर रहे हैं।
रूस ने इस तरह की मिसाइल प्रणाली विकसित की है, लेकिन उसकी मिसाइल अंतिम चरण में ग्लाइड करती है, यानी वह पूरे मार्ग में हाइपरसोनिक उड़ान नहीं भरती। हालांकि, रूस अब पूर्ण हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक विकसित करने के काफी करीब है।
चीन की मिसाइल भी इसी प्रकार प्रारंभिक रॉकेट थ्रस्ट के बाद ग्लाइड करती है, और वर्तमान में रूस के साथ केवल वही देश इस तकनीक के विकास के सबसे निकट हैं।
वहीं, अमेरिका ने इस दिशा में सबसे पहले काम शुरू किया था, लेकिन उस समय आवश्यक तकनीक उपलब्ध न होने के कारण उसने यह परियोजना बीच में ही रोक दी।
