अमेरिका में H-1B वीज़ा को खत्म करने का प्रस्ताव, भारतीय पेशेवरों में बढ़ी चिंता

अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में इस वीज़ा कार्यक्रम का बचाव किए जाने के कुछ दिनों बाद ही रिपब्लिकन सांसद मार्जोरी टेलर ग्रीन ने एक नया बिल लाने की घोषणा की है, जिसका उद्देश्य H-1B कार्यक्रम को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना है।

 

यह कदम उन लाखों भारतीय पेशेवरों के लिए परेशानी का संकेत हो सकता है, जो इस वीज़ा के सबसे बड़े लाभार्थी हैं। H-1B वीज़ा अमेरिकी ग्रीन कार्ड यानी स्थायी निवास का रास्ता भी बनता है।

Proposal to abolish H-1B visa in America

ग्रीन का आरोप: “अमेरिकी कर्मचारियों की जगह ले रहे विदेशी कर्मचारी”

ग्रीन ने X (पूर्व ट्विटर) पर पोस्ट करते हुए अमेरिकी कंपनियों-खासतौर पर बिग टेक, AI, अस्पताल और बड़ी इंडस्ट्रीज़-पर H-1B का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया।

 

उन्होंने कहा, इन कंपनियों ने H-1B प्रणाली का दुरुपयोग किया है, जिससे अमेरिकी कर्मचारियों का हक छीना जा रहा है।” ग्रीन का दावा है कि उनका बिल अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देगा और टेक, हेल्थकेयर, इंजीनियरिंग और मैन्युफैक्चरिंग जैसे क्षेत्रों में विदेशी श्रमिकों पर निर्भरता घटाएगा।

 

H -1B वीज़ा कार्यक्रम क्या है?

H -1B वीज़ा एक अस्थायी वीज़ा है जो अमेरिकी कंपनियों को IT, इंजीनियरिंग और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में कुशल विदेशी पेशेवरों को नौकरी पर रखने की अनुमति देता है। 1990 में शुरू किया गया यह कार्यक्रम तब मददगार साबित होता है जब अमेरिका में योग्य कामगारों की कमी होती है। यह वीज़ा अधिकतम छह साल तक वैध रहता है, जिसके बाद धारक को या तो ग्रीन कार्ड लेना होता है या एक साल के लिए देश छोड़ना पड़ता है। हर साल 65,000 नए H -1B वीज़ा जारी किए जाते हैं और अमेरिकी मास्टर डिग्री या उससे अधिक योग्यता वालों के लिए 20,000 अतिरिक्त वीज़ा उपलब्ध रहते हैं।

भारतीय पेशेवर इस कार्यक्रम के सबसे बड़े लाभार्थी हैं, जिन्हें 2015 से हर साल 70% से ज़्यादा वीज़ा मिलते हैं, जबकि चीन लगभग 12-13% हिस्सेदारी के साथ दूसरे स्थान पर है। विश्वविद्यालयों, गैर-लाभकारी संगठनों और सरकारी शोध संस्थानों को इस सीमा से छूट दी गई है।

 

भारतीयों के लिए फायदे:

·     IT और टेक्नोलॉजी में बढ़त: 70% से ज़्यादा भारतीय पेशेवर H-1B वीज़ा पर IT और कंप्यूटर से जुड़ी नौकरियों में काम करते हैं, जिससे वे अमेरिकी टेक उद्योग के लिए बहुत जरूरी बन गए हैं।

·     स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान: अमेरिका में लगभग 22% विदेशी डॉक्टर भारतीय हैं, जो अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

·     शिक्षा और करियर अवसर: कई भारतीय छात्र पढ़ाई के बाद इसी वीज़ा से अमेरिका में काम करते हैं, जिससे उन्हें अंतरराष्ट्रीय अनुभव और बेहतर करियर अवसर मिलते हैं।

·     भारत के IT उद्योग को लाभ: अमेरिकी कंपनियों में काम करने वाले भारतीय प्रोफेशनल्स से भारतीय IT सेक्टर की आमदनी और प्रतिष्ठा दोनों बढ़ती हैं।

 

H-1B कार्यक्रम को पूरी तरह खत्म करने का प्रस्ताव

मार्जोरी टेलर ग्रीन ने कहा कि उनका प्रस्तावित बिल-

  • H-1B कार्यक्रम को पूरी तरह समाप्त करेगा
  • वीज़ा धारकों को नागरिकता का रास्ता नहीं देगा, वीज़ा समाप्त होने पर उन्हें अमेरिका छोड़ना होगा
  • अमेरिकी युवाओं के लिए रोजगार के “अमेरिकन फर्स्ट” मॉडल को प्रोत्साहित करेगा

हालांकि इस बिल में एक एकमात्र छूट दी गई है- हर साल 10,000 मेडिकल प्रोफेशनल्स (डॉक्टर और नर्स) को वीज़ा मिलेगा, लेकिन यह छूट भी 10 वर्षों में पूरी तरह खत्म कर दी जाएगी। ग्रीन के अनुसार, इस दौरान अमेरिका अपना घरेलू मेडिकल वर्कफोर्स तैयार करेगा।

 

यह महत्वपूर्ण है कि H-1B वीज़ा से आने वाले कामगारों में 70% से अधिक भारतीय होते हैं। इसलिए इस प्रस्ताव का सबसे बड़ा असर भारतीय IT और टेक प्रोफेशनल्स पर पड़ सकता है।

 

ट्रंप ने किया H-1B का बचाव: “अमेरिका के पास पर्याप्त प्रतिभा नहीं”

यह विवाद ट्रंप के एक बयान के बाद शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने H-1B कार्यक्रम का समर्थन किया था। Fox News को दिए इंटरव्यू में ट्रंप ने कहा कि अमेरिका में कई हाई-स्किल क्षेत्रों-खासतौर पर टेक और डिफेंस-में पर्याप्त घरेलू प्रतिभा मौजूद नहीं है।

जब इंटरव्यूअर ने पूछा कि क्या H-1B अमेरिकी नौकरियों और वेतन को नुकसान पहुँचाता है, तो ट्रंप ने जवाब दिया: हमें बाहर से टैलेंट लाना ही पड़ता है। अमेरिका में हर कौशल मौजूद नहीं है… आप बेरोजगारी लाइन से किसी को उठाकर मिसाइल फैक्ट्री में नहीं लगा सकते।” ट्रंप के इस बयान ने रिपब्लिकन पार्टी के भीतर भी बहस छेड़ दी।

 

क्या होगा आगे?

अगर ग्रीन का बिल औपचारिक रूप से कांग्रेस में पेश होता है, तो यह अमेरिका में:

  • इमिग्रेशन सुधार,
  • टेक टैलेंट की कमी,
  • और अमेरिकन बनाम विदेशी श्रमिक

जैसे मुद्दों पर चल रही बहस को और तेज कर देगा।

भारतीय पेशेवरों और भारतीय IT कंपनियों की नज़र अब इस बात पर टिकी है कि क्या यह बिल कांग्रेस में समर्थन पा सकेगा या सिर्फ राजनीतिक बयानभर साबित होगा।