कौन थे राजा पृथु: जिनके नाम पर गुवाहाटी के प्रमुख जीएनबी फ्लाईओवर को अब ‘महाराज पृथु फ्लाईओवर’ नाम दिया गया

असम सरकार ने गुवाहाटी के प्रमुख जीएनबी फ्लाईओवर का नाम बदलकर महाराज पृथु फ्लाईओवर’ रखने का निर्णय लिया है। इस कदम के माध्यम से 13वीं सदी के कामरूपा (वर्तमान असम) के वीर राजा महाराज पृथु की ऐतिहासिक गाथा फिर से जनता के समक्ष लाई गई है।

 

इतिहासिक पृष्ठभूमि: वर्ष 1206 में बख्तियार खिलजी ने नालंदा विश्वविद्यालय को विध्वंस के बाद बंगाल और कामरूपा की ओर लगभग 12,000 घुड़सवार और 20,000 पैदल सैनिकों के साथ हमला किया। इस संकट के समय महाराज पृथु ने विभिन्न जनजातियों और समुदायों की संयुक्त सेना का नेतृत्व करते हुए खिलजी की फौज को पूरी तरह पराजित किया।

मुख्यमंत्री का बयान:

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस ऐतिहासिक घटना का हवाला देते हुए इसे असम की अनंत वीरता गाथा’ बताया। उन्होंने कहा कि नालंदा जैसी प्राचीन सभ्यता को उजाड़ने के बाद जब खिलजी कामरूपा की ओर बढ़ा, तब महाराज पृथु ने उसकी सेना को मात दी। इस गौरवशाली विरासत को सम्मानित करने के उद्देश्य से राज्य कैबिनेट ने गुवाहाटी के सबसे लंबे फ्लाईओवर का नाम महाराज पृथु फ्लाईओवर’ रखने का प्रस्ताव मंजूर किया।

 

आइए जानते हैं कामरूप के राजा पृथु कौन थे?

राजा पृथु, जिन्हें पृथु राय भी कहा जाता है, 13वीं सदी के कामरूपा साम्राज्य के प्रतिष्ठित शासक थे, जिसका क्षेत्र आधुनिक असम में आता है। उनका शासनकाल लगभग 1195 से 1228 तक माना जाता है। हालांकि मुख्यधारा के इतिहास में उनका नाम उतना प्रचलित नहीं है, परंतु स्थानीय लोककथाओं, अभिलेखों और परंपराओं में उन्हें एक महान रक्षक और वीर नायक के रूप में याद किया गया है।

राजा पृथु का संबंध पृथु खेन वंश से था, जिसे नरकासुर के वंशज के रूप में देखा जाता है। वे कामतेश्वरी देवी, जो देवी दुर्गा का स्वरूप हैं, की भक्ति और उपासना में गहरे विश्वास रखते थे। उनके शासनकाल में उन्होंने जलपाईगुड़ी (उत्तर बंगाल) और रंगपुर (आज का बांग्लादेश) क्षेत्रों में किले और मंदिरों का निर्माण कर राज्य की सुरक्षा और धार्मिक प्रतिष्ठा दोनों को सुदृढ़ किया।

राजा पृथु ने बख्तियार खिलजी को किया परास्त

1205 ईस्वी के अंत में बख्तियार खिलजी लगभग 12,000 घुड़सवार सैनिकों के साथ कामरूप पर आक्रमण करने आया, जहां उस समय राजा पृथु राय का शासन था। सीमा के पास पहुंचकर खिलजी ने एक स्थानीय सरदार से मित्रता की, जिसे इस्लाम में धर्मांतरित कर अली नाम दिया गया। अली आगे चलकर खिलजी की सेना का मार्गदर्शक बना।

खिलजी की सेना ने कामरूप के जंगलों और गाँवों में घुसपैठ शुरू की और गाँवों को लूटा, लेकिन स्थानीय जनता राजा पृथु के समर्थन में एकजुट रही। इसके जवाब में राजा पृथु की सेना ने निर्णायक प्रतिकार किया। राजा पृथु स्वयं युद्धभूमि में उतरे और वीरता के साथ खिलजी की सेना को रोकने में सफल रहे।

जैसे-जैसे संघर्ष बढ़ा, खिलजी को अपनी हार का आभास हुआ। अली ने उसे छोड़ दिया और खिलजी केवल कुछ सौ सैनिकों के साथ भागने में सफल हुआ। अंततः पराजित बख्तियार खिलजी बंगाल पहुँचा और कुछ वर्षों बाद अपमानजनक पराजय के बोझ तले उसकी मृत्यु हो गई।

इस ऐतिहासिक विजय से राजा पृथु ने न केवल कामरूप की सुरक्षा सुनिश्चित की, बल्कि खिलजी के साम्राज्यवादी सपनों का हमेशा के लिए अंत कर दिया।

 

Raja Prithu After whom Guwahati's major GNB flyover is now named as Maharaj Prithu Flyover

राजा पृथु द्वारा बख्तियार खिलजी की पराजय से संबंधित ऐतिहासिक साक्ष्य:

ब्रिटिश इतिहासकार का उल्लेख: कैम्ब्रिज हिस्ट्री ऑफ इंडिया (भाग III) में ब्रिटिश सिविल सेवक वोल्सले हैग ने उल्लेख किया है कि कामरूप के राजा पृथु ने न केवल बख्तियार खिलजी, बल्कि हसनुद्दीन इवाज (दिल्ली सुल्तान गयासुद्दीन का प्रतिनिधि) को भी पराजित किया था।

1206 ई. का कनाई वारसी शिलालेख:

  • यह शिलालेख तुर्क आक्रमण और उनके विनाश की ऐतिहासिक पुष्टि करता है।
  • शिलालेख में लिखा है: “तुम्गा युग्मित मधुमं त्रयोदश कटमारूपं समागत्य तुर्मक्ष ख्यायमद्यं”, जिसका अर्थ है: “शक वर्ष में चैत्र के तेरहवें दिन, कामरूप में प्रवेश करने वाले तुर्कों का विनाश हुआ।”

कनकलाल बरुआ का विवरण (1933 की पुस्तक में):

  • राजा पृथु ने बख्तियार खिलजी के उत्तरी गुवाहाटी की ओर बढ़ते समय पुल के पत्थरों को हटवा दिया, जिससे मार्ग अवरुद्ध हो गया।
  • पीछे की सड़क भी काट दी गई, जिससे खिलजी की आपूर्ति और संचार बाधित हो गया।
  • हताशा में उन्होंने नदी पार करने का प्रयास किया, लेकिन अधिकांश सैनिक मारे गए; केवल कुछ ही बच पाए।

राजा पृथु की उदारता और सामाजिक दृष्टिकोण

राजा पृथु की वीरता के साथ उनकी उदारता भी उल्लेखनीय थी। उन्होंने बख्तियार खिलजी की सेना के पकड़े गए सैनिकों को दंडित करने के बजाय क्षमा किया और उन्हें समाज में पुनर्स्थापित किया। इस अवसर पर उन्हें जीविका के साधन उपलब्ध कराए गए, ताकि वे सम्मानपूर्वक जीवन यापन कर सकें।

इन सैनिकों को “गौड़ीय” नाम दिया गया, क्योंकि वे बंगाल (गौड़) से आए थे। यही घटना असम में इस्लामी बसावट की शुरुआत के रूप में मानी जाती है और यह राजा पृथु की दूरदर्शिता और मानवीय दृष्टिकोण का प्रतीक बनी।

 

कामरूप (असम) का ऐतिहासिक परिचय:

असम का इतिहास हजारों साल पुराना है और प्राचीन काल में इसे प्रागज्योतिषपुर के नाम से जाना जाता था। इसका उल्लेख रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों में भी मिलता है। कालांतर में यही क्षेत्र कामरूप के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ऐतिहासिक दृष्टि से, कामरूप का पहला उल्लेख चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में समुद्रगुप्त के इलाहाबाद स्तंभ में अवशेष राज्य के रूप में मिलता है। वर्तमान में यह क्षेत्र असम राज्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

13वीं शताब्दी की शुरुआत में कामरूप पर खेन वंश के शासक राजा पृथु राय का शासन था। राजा पृथु स्वयं को हेलासुर वंश का उत्तराधिकारी मानते थे और देवी कामतेश्वरी (दुर्गा का अवतार) के उपासक थे। खेन वंश के शासक दक्षिणी तट के निवासी थे और पाल वंश के पतन के बाद उन्होंने सत्ता संभाली। उनके शासनकाल में कामता साम्राज्य की स्थापना हुई।

इतिहास में इस क्षेत्र के नाम और पहचान में समय-समय पर बदलाव हुआ, जिसमें कामरू, कामरुद, कामता, कोच और कोच हाजो जैसी टीमें शामिल रही। इस समृद्ध और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य पर कई आक्रमण हुए, जिनमें सबसे प्रमुख बख्तियार खिलजी का था।

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