राजस्थान के मुख्यमंत्री ने तीन विधायकों के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोपों की जांच के आदेश दिए

हाल ही में राजस्थान सरकार ने तीन विधायकों पर लगे गंभीर आरोपों को लेकर सख्त रुख अपनाया है। इन विधायकों पर विकास कार्यों के लिए मिलने वाली विधायक निधि जारी कराने के बदले कमीशन मांगने के आरोप सामने आए हैं। राज्य सरकार ने पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। जांच के निष्कर्ष आगे की कार्रवाई की दिशा तय करेंगे।

Rajasthan CM orders probe into bribery allegations against three MLAs

राजस्थान में विधायकों पर लगे आरोप: पूरे प्रकरण की पृष्ठभूमि

  • दिसंबर 2025 में राजस्थान की राजनीति में उस समय हलचल मच गई, जब तीन मौजूदा विधायकों पर रिश्वत से जुड़े गंभीर आरोप सार्वजनिक हुए। यह मामला तब चर्चा में आया जब एक मीडिया जांच और कथित स्टिंग ऑपरेशन के जरिए यह दावा किया गया कि कुछ जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्रों के विकास कार्यों के लिए मिलने वाली निधि जारी करने के बदले धन की मांग कर रहे थे। 
  • एक प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्र ने रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसमें वीडियो फुटेज और बातचीत के अंशों का हवाला दिया गया। रिपोर्ट के अनुसार, विधायकों पर यह आरोप लगाया गया कि वे ठेकेदारों और बिचौलियों से कमीशन मांग रहे थे। बदले में विकास कार्यों को स्वीकृति देने और विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास योजना की राशि जारी कराने का आश्वासन दिया जा रहा था। इस रिपोर्ट के बाद मामला तेजी से राजनीतिक और सार्वजनिक बहस का विषय बन गया।
  • इन आरोपों में तीन अलग-अलग राजनीतिक पृष्ठभूमि के विधायक शामिल बताए गए। इनमें खींवसर से भारतीय जनता पार्टी के विधायक रेवंतराम डांगा, हिंडौन से कांग्रेस विधायक अनीता जाटव और भरतपुर जिले की बयाना सीट से निर्दलीय विधायक ऋतु बनावत का नाम सामने आया। तीनों विधायकों का सार्वजनिक रूप से उल्लेख होने के कारण मामला और अधिक संवेदनशील हो गया।
  • मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि विकास कार्यों के लिए स्वीकृत की जाने वाली राशि के एक हिस्से को कमीशन के रूप में मांगा जा रहा था। यह कथित मांग कार्य की कुल लागत के अनुपात में बताई गई। मुख्य रिपोर्ट के बाद सोशल मीडिया पर कुछ वीडियो और पोस्ट तेजी से वायरल होने लगे। इनमें कथित तौर पर फंड स्वीकृति से जुड़ी बातचीत दिखाई गई। 

 

राज्य सरकार की प्रतिक्रिया और उठाए गए ठोस कदम

  • मीडिया में आरोप सामने आने के बाद 14 दिसंबर 2025 को राजस्थान सरकार ने पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच के निर्देश दिए। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के निर्देश पर चार सदस्यीय जांच समिति बनाई गई। इस समिति की अगुवाई राज्य के मुख्य सतर्कता आयुक्त कर रहे हैं, जो गृह विभाग में अतिरिक्त मुख्य सचिव भी हैं। उनके साथ विभिन्न महत्वपूर्ण विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल किए गए हैं। 
  • समिति को पंद्रह दिनों के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपने का निर्देश दिया गया है। जांच प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिए सरकार ने आरोपित तीनों विधायकों की विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास योजना से जुड़े खातों को अस्थायी रूप से स्थगित कर दिया। 
  • मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से कहा कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति अपनाती है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि पद या प्रभाव के आधार पर किसी को संरक्षण नहीं मिलेगा। यदि जांच में दोष सिद्ध होता है, तो संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
  • सरकार ने मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को जांच में पूरा सहयोग देने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही, राज्य के मुख्य सचेतक ने विधानसभा अध्यक्ष को पत्र लिखकर मामले को विधानसभा की आचार समिति को सौंपने का अनुरोध किया है। इससे विधायी स्तर पर भी जवाबदेही सुनिश्चित करने की कोशिश की जा रही है।
  • जांच के दौरान सभी प्रशासनिक गतिविधियों को विशेष निगरानी में रखा गया है। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे प्रत्येक कदम का विस्तृत रिकॉर्ड रखें और जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करें। सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि पूरी प्रक्रिया कानून और निर्धारित नियमों के अनुरूप ही आगे बढ़ेगी।

 

विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि क्या हैं?

  • विधायक स्थानीय क्षेत्र विकास निधि एक ऐसी व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य जमीनी स्तर पर विकास को गति देना है। इस तरह की पहल सबसे पहले वर्ष 2001–02 में कर्नाटक में शुरू हुई थी। बाद में अन्य राज्यों ने भी इसे अपनाया। 
  • इस निधि का प्रमुख लक्ष्य उन विकास कार्यों को पूरा करना है, जो सामान्य सरकारी बजट में शामिल नहीं हो पाते। विधायक अपने क्षेत्र की जरूरतों के अनुसार सड़क, सामुदायिक भवन, पेयजल, प्रकाश व्यवस्था जैसे कार्यों की अनुशंसा कर सकते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर छोटे लेकिन जरूरी कार्यों को प्राथमिकता मिलती है।
  • हर राज्य को इस निधि की राशि और उपयोग की शर्तें तय करने का अधिकार होता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में वित्त वर्ष 2025–26 से प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र के लिए सालाना पाँच करोड़ रुपये निर्धारित किए गए हैं। इस राशि का उपयोग नए निर्माण कार्यों के साथ-साथ मौजूदा सार्वजनिक संपत्तियों की मरम्मत और रखरखाव के लिए भी किया जा सकता है।
  • यह निधि राज्य सरकार के नियमित बजट का विकल्प नहीं है। राज्य बजट बड़े कार्यक्रमों और नीतियों पर केंद्रित रहता है। वहीं, विधायक निधि क्षेत्र विशेष की छोटी कमियों को पूरा करने में मदद करती है। इससे विकास अधिक संतुलित बनता है।
  • विधायक स्वयं किसी भी परियोजना को लागू नहीं करते। वे केवल कार्यों की सिफारिश करते हैं। संबंधित सरकारी विभाग प्रस्तावों की जांच करते हैं। स्वीकृति मिलने के बाद वही विभाग कार्यों को पूरा कराते हैं। इससे प्रशासनिक नियंत्रण और पारदर्शिता बनी रहती है।
  • हर राज्य अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार राशि तय करता है। उत्तर प्रदेश में वर्ष 2020 से प्रति विधायक तीन करोड़ रुपये सालाना की व्यवस्था रही है। राजस्थान में वर्ष 2021 में यह राशि 2.25 करोड़ से बढ़ाकर पाँच करोड़ रुपये की गई थी। 
  • विधायक निधि की अवधारणा संसद सदस्यों के लिए चलने वाली सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना से मिलती-जुलती है। यह केंद्र सरकार की योजना है, जो वर्ष 1993–94 में शुरू हुई थी। दोनों योजनाओं का मूल लक्ष्य स्थानीय विकास को सशक्त बनाना है।

 

विधायकों पर आरोपों के कानूनी निहितार्थ

  • कानून के समक्ष समानता का सिद्धांत: भारत में जनप्रतिनिधि कानून से ऊपर नहीं होते। सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च 2024 में स्पष्ट किया कि सांसद और विधायक रिश्वत लेने जैसे मामलों में किसी विशेष संरक्षण के पात्र नहीं हैं। अदालत ने यह साफ कहा कि संविधान में मिले विशेषाधिकार भ्रष्ट आचरण को ढाल प्रदान नहीं करते। यदि कोई जनप्रतिनिधि सार्वजनिक कर्तव्य निभाने के बदले लाभ मांगता है, तो उसे सामान्य नागरिक की तरह कानूनी जांच का सामना करना होगा।
  • संवैधानिक विशेषाधिकारों की सीमा: संविधान के अनुच्छेद 105 और 194 विधायकों और सांसदों को सदन में दिए गए वक्तव्यों और मतदान से जुड़ी सुरक्षा देते हैं। लेकिन इन प्रावधानों का अर्थ यह नहीं है कि वे आपराधिक कृत्यों से मुक्त हैं। अदालत ने स्पष्ट किया कि रिश्वत या अवैध लाभ का मामला विधायी कार्य से बाहर है।
  • भ्रष्टाचार निवारण कानून की भूमिका: भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों की जवाबदेही तय करता है। वर्ष 2018 में इसमें बदलाव कर दायरा और मजबूत किया गया। अब न केवल रिश्वत लेना, बल्कि रिश्वत मांगना भी अपराध की श्रेणी में आता है। यह कानून जनप्रतिनिधियों पर भी लागू होता है। इस अधिनियम के तहत दोष सिद्ध होने पर कम से कम तीन वर्ष और अधिकतम सात वर्ष तक की कैद का प्रावधान है। इसके साथ आर्थिक दंड भी लगाया जा सकता है। 
  • जनप्रतिनिधित्व कानून और अयोग्यता: लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 विधायकों की योग्यता और अयोग्यता तय करता है। इसके अनुसार यदि किसी विधायक को भ्रष्टाचार जैसे गंभीर अपराध में दोषी ठहराया जाता है, तो उसकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। साथ ही भविष्य में चुनाव लड़ने पर भी रोक लग सकती है। यह प्रावधान लोकतंत्र की शुचिता बनाए रखने में सहायक है
  • लोकायुक्त की निगरानी: लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के तहत राज्यों में लोकायुक्त की व्यवस्था की गई है। यह संस्था विधायकों और मंत्रियों के खिलाफ शिकायतों की जांच कर सकती है। इससे निगरानी का एक अतिरिक्त स्तर जुड़ता है।

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