रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड 2025: ‘एजुकेट गर्ल्स’ बनी यह सम्मान पाने वाली पहली भारतीय संस्था

गाँवों में स्कूल से वंचित बेटियों को शिक्षा से जोड़ने वाली एनजीओ एजुकेट गर्ल्स’ को वर्ष 2025 का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है। यह जानकारी रेमन मैग्सेसे पुरस्कार फाउंडेशन ने दी। एजुकेट गर्ल्स ग्लोबली’ यह सम्मान पाने वाला पहला भारतीय गैर-सरकारी संगठन बना है। हालांकि, भारत के कई व्यक्तियों को पहले यह पुरस्कार मिल चुका है। संस्था ने यह सम्मान प्राप्त कर इतिहास रचा है। फाउंडेशन ने इसकी सराहना करते हुए कहा कि “सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करने, निरक्षरता को समाप्त करने और युवतियों को उनकी पूर्ण क्षमता हासिल करने के लिए सशक्त बनाने” में इसका योगदान उल्लेखनीय रहा है।

magsaysay award 2025

एजुकेट गर्ल्स: सफीना हुसैन का शिक्षा से बदलाव का अभियान

 

एजुकेट गर्ल्स की स्थापना साल 2007 में सफीना हुसैन ने की थी। लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ाई करने और सैन फ्रांसिस्को में काम करने के बाद उन्होंने भारत लौटकर महिला शिक्षा पर ध्यान केंद्रित किया। उनका लक्ष्य था, उन समुदायों तक पहुँचना, जहाँ लड़कियों को स्कूल तक पहुँच ही नहीं मिल पाती थी।

शुरुआत राजस्थान से हुई, जहाँ संगठन ने गाँव-गाँव जाकर बच्चियों का स्कूलों में दाखिला सुनिश्चित किया। धीरे-धीरे यह पहल पूरे भारत के सबसे पिछड़े इलाकों तक फैल गई।

 

नवाचार और उपलब्धियां

 

  • 2015में एजुकेट गर्ल्स ने शिक्षा क्षेत्र का दुनिया का पहला डेवलपमेंट इम्पैक्ट बॉन्ड (DIB) लॉन्च किया। इसमें निवेशक शिक्षा परियोजनाओं को फंड करते हैं और तय नतीजे आने पर उन्हें रिटर्न मिलता है।
  • पायलट प्रोजेक्ट 50 गाँवों से शुरू होकर अब 30,000 से अधिक गाँवों तक पहुँच चुका है।
  • संगठन नेप्रगति’ ओपन-स्कूलिंग कार्यक्रम भी शुरू किया, जिससे 15–29 वर्ष की लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई पूरी करने का अवसर मिला। पहले बैच में 300 छात्राएँ थीं, जो अब बढ़कर 31,500 से ज्यादा हो चुकी हैं।

 

अब तक का असर

  • 30,000+ गाँवों में सक्रिय उपस्थिति
  • 55,000 से अधिक सामुदायिक स्वयंसेवक (टीम बालिका)
  • 20 लाख से अधिक लड़कियाँ स्कूल वापस लाई गईं
  • 24 लाख से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई बेहतर हुई

भविष्य का लक्ष्य: एजुकेट गर्ल्स का विज़न है कि अगले कुछ वर्षों में यह पहल 1 करोड़ से अधिक बच्चों तक पहुँचे और शिक्षा की ताकत से गरीबी और अशिक्षा के चक्र को तोड़ा जा सके।

 

सफीना हुसैन को उनके काम के लिए देश-विदेश में सम्मान-

 

  • WISE अवॉर्ड (2014 और 2023): शिक्षा में योगदान के लिए.
  • स्कोल अवॉर्ड (2015): सामाजिक उद्यमिता के लिए.
  • एनडीटीवी-वूमेन ऑफ वर्थ अवॉर्ड (2016).
  • नीति आयोग वीमेन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अवॉर्ड (2017).
  • ईटी प्राइम वीमेन लीडरशिप अवार्ड (2019)

 

67वीं रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड सेरेमनी:  

2025 के सभी विजेताओं को यह प्रतिष्ठित सम्मान 7 नवंबर 2025 को फिलीपींस की राजधानी मनीला के मेट्रोपॉलिटन थिएटर में आयोजित 67वीं रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड सेरेमनी में औपचारिक रूप से प्रदान किया जाएगा। इस अवसर पर उन्हें मेडल और सर्टिफिकेट दिए जाएंगे।

 

भारतीय जिन्हें मिला है रेमन मैग्सेसे पुरस्कार

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार कई भारतीयों को उनके कार्यों के लिए प्रदान किया गया है:

  • विनोबा भावे (1958): भूदान आंदोलन (भूमि दान) के लिए सम्मानित।
  • चित्तामणि देशमुख (1959): भारत के आर्थिक विकास और सार्वजनिक सेवा में नेतृत्व के लिए सम्मानित।
  • मदर टेरेसा (1962): कोलकाता में गरीबों और बीमारों के बीच मानवीय कार्यों के लिए पुरस्कृत।
  • सत्यजीत रे (1967): सिनेमा और संस्कृति में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए सम्मानित।
  • एला भट्ट (1977): स्व-नियोजित महिला संघ (SEWA) के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता में अग्रणी कार्य के लिए पुरस्कृत।
  • रवीश कुमार (2019): पत्रकारिता के लिए।
  • अरविंद केजरीवाल (2006): पारदर्शिता और सूचना के अधिकार (RTI) आंदोलन को बढ़ावा देने के लिए सम्मानित।
  • एजुकेट गर्ल्स (2025): ग्रामीण भारत में लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के अभिनव प्रयासों के लिए यह पुरस्कार प्राप्त करने वाला पहला भारतीय एनजीओ।

 

क्या है रेमन मैग्सेसे पुरस्कार?

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की स्थापना वर्ष 1957 में फिलीपींस सरकार और अमेरिका के रॉकफेलर ब्रदर्स फंड के ट्रस्टियों द्वारा की गई थी। इसे औपचारिक रूप से 1958 से प्रदान किया जाने लगा। इस पुरस्कार को एशिया का “नोबेल पुरस्कार” भी कहा जाता है, क्योंकि यह एशिया में उत्कृष्ट नेतृत्व, ईमानदारी और सामाजिक योगदान को मान्यता देता है।

पिछले छह दशकों में 300 से अधिक व्यक्तियों और संगठनों को यह सम्मान मिल चुका है। यह पुरस्कार हर वर्ष 31 अगस्त को फिलीपींस के पूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की जयंती पर घोषित किया जाता है। विजेताओं का चयन रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड फाउंडेशन (RMAF) का न्यासी बोर्ड करता है, जो गोपनीय नामांकन प्रक्रिया और गहन जांच के बाद अंतिम निर्णय लेता है।

पुरस्कार स्वरूप विजेताओं को एक पदक और प्रमाणपत्र प्रदान किया जाता है। पदक पर रेमन मैग्सेसे की उभरी हुई छवि दाईं ओर अंकित होती है। यह सम्मान नवंबर माह में फिलीपींस की राजधानी मनीला में आयोजित एक औपचारिक समारोह में प्रदान किया जाता है।

 

कौन थे, रेमन मैग्सेसे :

रेमन डेल फिएरो मैग्सेसे फिलीपींस के सातवें राष्ट्रपति थे, जिन्होंने 30 दिसंबर 1953 से 17 मार्च 1957 तक देश का नेतृत्व किया। राष्ट्रपति बनने से पहले वे सैन्य गवर्नर और राष्ट्रीय रक्षा सचिव के रूप में कार्य कर चुके थे। उनका जीवन 17 मार्च 1957 को एक हवाई दुर्घटना में दुखद रूप से समाप्त हुआ। उनकी स्मृति में 1957 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की स्थापना की गई, जो एशिया में असाधारण कार्य करने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित करता है।

  • जन्म और शिक्षा: रेमन मैग्सेसे का जन्म 31 अगस्त 1907 को फिलीपींस में हुआ था।
  • सैन्य करियर: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने गुरिल्ला नेता के रूप में महत्वपूर्ण योगदान दिया और बाद में ज़म्बालेस प्रांत के सैन्य गवर्नर नियुक्त किए गए।
  • राजनीतिक करियर: उन्होंने लिबरल पार्टी के सदस्य के रूप में दो कार्यकाल तक कांग्रेस में सेवा की और तत्पश्चात राष्ट्रीय रक्षा सचिव बने।
  • राष्ट्रपति पद: 1953 में नैशनलिस्ट पार्टी से चुनाव जीतकर वे फिलीपींस के राष्ट्रपति बने। वे 20वीं सदी में जन्मे पहले और स्पेनिश औपनिवेशिक शासन के बाद जन्म लेने वाले पहले राष्ट्रपति थे।
  • पुरस्कार की स्थापना: उनकी मृत्यु के बाद, 1957 में उनके नाम पर रेमन मैग्सेसे पुरस्कार की स्थापना की गई। यह पुरस्कार एशिया में निस्वार्थ सेवा और असाधारण नेतृत्व की भावना को सम्मानित करता है। इसे प्रायः “एशिया का नोबेल पुरस्कार” भी कहा जाता है।

हुकबलाहप विद्रोह (1946–1954): रेमन मैग्सेसे पर जनसंहार के आरोप

 

हुकबलाहप विद्रोह (Hukbalahap Rebellion) 1946 से 1954 तक फिलीपींस में हुआ एक किसान विद्रोह था। इसकी अगुवाई हुकबोंग बायन लाबन सा हापोन (Hukbalahap – “जापान विरोधी पीपुल्स आर्मी”) के पूर्व लड़ाकों ने की थी। यह संगठन द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ गुरिल्ला संघर्ष के लिए बनाया गया था। स्वतंत्रता (1946) के बाद फिलीपींस सरकार में भ्रष्टाचार, दमन और कृषि असमानताओं ने किसानों में असंतोष को बढ़ाया, जिससे यह विद्रोह शुरू हुआ।

 

कारण:

  • केंद्रीय लुज़ोन में ज़मींदारी व्यवस्था और कृषि असमानताएँ।
  • स्वतंत्रता के बाद सरकार में भ्रष्टाचार और किसानों की उपेक्षा।
  • जापान विरोधी लड़ाई से लौटे हुक लड़ाकों का संगठित स्वरूप।

 

विद्रोह का स्वरूप: हुकबलाहप लड़ाकों ने फिलीपींस सरकार के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ा। यह विद्रोह धीरे-धीरे एक किसान आंदोलन से साम्यवादी विद्रोह में बदल गया।

 

विद्रोह का अंत:

  • रेमन मैग्सेसे की भूमिका: रेमन मैग्सेसे, जो पहले रक्षा सचिव और बाद में राष्ट्रपति बने, ने विद्रोह को समाप्त करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सैन्य दबाव और राजनीतिक सुधार दोनों को साथ लेकर रणनीति अपनाई।
  • सैन्य सुधार और सफलता:
    • फिलीपींस की सेना का पुनर्गठन और पेशेवर प्रशिक्षण।
    • किसानों की समस्याओं का समाधान, जिससे हुकों का जनसमर्थन घटा।
  • नेतृत्व का आत्मसमर्पण: लगातार सैन्य अभियानों से कमजोर हुए हुकों के नेता लुइस तारुक ने 1954 में आत्मसमर्पण किया। इसके साथ ही विद्रोह का औपचारिक अंत हुआ।

 

जनसंहार के आरोप: कुछ वामपंथी इतिहासकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता आरोप लगाते हैं कि मैग्सेसे का एंटी-हुक अभियान अंधाधुंध हिंसा से भरा था, जिसमें अक्सर निर्दोष नागरिकों को भी निशाना बनाया गया।

 

रेमन मैग्सेसे की मृत्यु:

रेमन मैग्सेसे का राष्ट्रपति कार्यकाल, जो मूल रूप से 30 दिसंबर 1957 को समाप्त होना था, एक दुखद विमान दुर्घटना के कारण समय से पहले समाप्त हो गया।

16 मार्च 1957 को वे मनीला से सेबू के लिए रवाना हुए, जहाँ उन्होंने USAFFE के पूर्व सैनिकों के सम्मेलन और तीन शैक्षणिक संस्थानों—यूनिवर्सिटी ऑफ़ द विसायस, साउथवेस्टर्न कॉलेज और यूनिवर्सिटी ऑफ़ सैन कार्लोस—के दीक्षांत समारोहों को संबोधित किया। इसी दिन यूनिवर्सिटी ऑफ़ द विसायस ने उन्हें डॉक्टर ऑफ लॉ की मानद उपाधि भी प्रदान की।

उसी रात लगभग 1:00 बजे, वे राष्ट्रपति के विमान माउंट पिनातुबो (C-47) से मनीला लौट रहे थे। लेकिन 17 मार्च 1957 की सुबह विमान लापता हो गया। बाद में यह पुष्टि हुई कि विमान सेबू के माउंट मनुंगगल में दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इस हादसे में केवल पत्रकार नेस्टर माटा जीवित बचे, जबकि राष्ट्रपति मैग्सेसे मात्र 49 वर्ष की आयु में दुनिया से विदा हो गए।