अब देश में ही बनेंगे रेयर अर्थ मैग्नेट: सरकार ने दी ₹7,280 करोड़ की योजना को मंजूरी, वैश्विक स्तर पर चीन इस क्षेत्र में अग्रणी..

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश में दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बकों (REPM) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 7,280 करोड़ रुपये की बड़ी योजना को मंजूरी दी है। यह कदम भारत को दुर्लभ मृदा खनिजों (rare earth minerals) के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने और वैश्विक बाज़ार में उसकी स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। नई योजना के तहत 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष क्षमता वाली उन्नत विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित की जाएँगी, जिससे भारत की तकनीकी क्षमताओं और आर्थिक शक्ति दोनों में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी होगी।

rare earth magnets will now be manufactured indigenously

सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा,

इस निर्णय की घोषणा करते हुए, सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले को बेहद महत्वपूर्ण और रणनीतिक बताया। उन्होंने कहा कि यह अपनी तरह की पहली पहल है, जो भारत को दुर्लभ मृदा क्षेत्र में मज़बूत बनाएगी। वैष्णव ने बताया कि भारत दुनिया के सबसे बड़े दुर्लभ मृदा भंडारों में से एक है, इसलिए यह योजना देश के लिए खास महत्व रखती है।

 

दुर्लभ मृदा धातुएँ क्या हैं?

दुर्लभ मृदा धातुएँ कुल 17 धात्विक तत्वों का समूह हैं, जिनमें 15 लैंथेनाइड तत्वों के साथ स्कैंडियम और यिट्रियम शामिल हैं। इनमें विशेष चुंबकीय, प्रकाशमान और विद्युत-रासायनिक गुण होते हैं, इसलिए इनका उपयोग इलेक्ट्रॉनिक्स, कंप्यूटर, संचार, रक्षा और स्वच्छ ऊर्जा जैसी आधुनिक तकनीकों में किया जाता है। इन्हें “दुर्लभ” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्हें खनिजों से निकालना पहले कठिन और महंगा था, और ये सामान्यतः कम मात्रा में पाई जाती हैं।

 

दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक (REPM) क्या है ?

दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बक (REPM) ऐसे अत्यंत शक्तिशाली चुम्बक होते हैं, जिन्हें नियोडिमियम, प्रेजोडिमियम और डिस्प्रोसियम जैसे दुर्लभ पृथ्वी तत्वों से बनाया जाता है, अक्सर नियोडिमियम-लोहा-बोरॉन (NdFeB) मिश्र धातु के रूप में। ये चुम्बक अपनी उच्च चुंबकीय शक्ति, लंबे समय तक चुंबकत्व बनाए रखने और अधिक तापमान सहन करने की क्षमता के कारण पारंपरिक चुम्बकों की तुलना में कहीं अधिक प्रभावी होते हैं। इसी वजह से पिछले कुछ वर्षों में इनका उपयोग इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा टर्बाइनों और आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में तेजी से बढ़ा है।

वैश्विक स्तर पर चीन इस क्षेत्र में अग्रणी है और दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के खनन में लगभग 70% तथा चुम्बक निर्माण में लगभग 90% तक योगदान देता है, जिसके कारण कई देश अब अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं।

 

दुर्लभ मृदा स्थाई चुम्बकों (REPM) का उपयोग:

REPM, जो इलेक्ट्रिक वाहनों, नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों, इलेक्ट्रॉनिक्स, एयरोस्पेस और रक्षा उद्योगों में बेहद जरूरी घटक के रूप में काम करते हैं। छोटे, हल्के और ऊर्जा-कुशल उपकरण बनाने में ये खास तौर पर उपयोगी होते हैं, जहाँ वजन, कम जगह और तापीय सहनशीलता बहुत महत्वपूर्ण होती है। इन्हें विद्युत मोटरों, सेंसरों, स्पीकरों और कई उच्च-प्रदर्शन मशीनों में व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है, जो आधुनिक तकनीक का आधार हैं।

 

भारत के पास रेयर अर्थ रिजर्व:

भारत के पास लगभग 6.9 मिलियन मेट्रिक टन रेयर अर्थ का भंडार है, लेकिन 2024 में देश सिर्फ 2,900 टन ही रेयर अर्थ निकाल पाया। FY25 में भारत ने 53,000 टन मैगनेट विदेशों से खरीदे, जिससे साफ होता है कि देश की जरूरतें बहुत ज्यादा हैं, लेकिन उत्पादन अभी बहुत कम है।

फिलहाल IREL अकेली सरकारी कंपनी है जो रेयर अर्थ की खनन और प्रसंस्करण (रिफाइनिंग) का काम करती है। सरकार को उम्मीद है कि नई योजना के जरिए भारत पहली बार पूरी रेयर अर्थ वैल्यू चेन देश में ही तैयार कर पाएगा यानी खनन से लेकर हाई-टेक उत्पाद बनाने तक।

 

योजना का उद्देश्य:

इस योजना का मुख्य उद्देश्य भारत को महत्वपूर्ण खनिजों और दुर्लभ-पृथ्वी स्थायी चुम्बकों के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है। इसके तहत देश में सुरक्षित और स्थायी सप्लाई चेन विकसित की जाएगी, ताकि भारत को इन खनिजों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर न रहना पड़े। जब स्थानीय स्तर पर उत्पादन बढ़ेगा, तो उद्योगों को लगातार, सुरक्षित और सस्ती सामग्री उपलब्ध हो सकेगी, जिससे घरेलू तकनीक और उभरते उद्योगों को बड़ा सहारा मिलेगा। अश्विनी वैष्णव के अनुसार, यह पहल भारत में आधुनिक और मज़बूत विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र तैयार करेगी, जो देश की तकनीकी क्षमता और औद्योगिक शक्ति को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाने में मदद करेगी।

 

योजना का कार्यान्वयन:

इस योजना के तहत देश में ऐसी उन्नत विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित की जाएँगी, जो पूरी प्रक्रिया संभालेंगी जैसे- दुर्लभ मृदा ऑक्साइड को धातु में बदलना, फिर उन धातुओं से मिश्रधातु बनाना और अंत में तैयार दुर्लभ-पृथ्वी स्थायी चुम्बक (REPM) तैयार करना। सरकार इस क्षमता को पाँच कंपनियों या प्राप्तकर्ताओं के बीच बांटेगी, जिन्हें वैश्विक स्तर की प्रतिस्पर्धी बोली प्रक्रिया के जरिए चुना जाएगा। हर चयनित कंपनी को 1,200 मीट्रिक टन प्रति वर्ष तक उत्पादन क्षमता दी जाएगी।

योजना को पूरी तरह लागू करने में सात साल का समय लगेगा। पहले दो साल इन विनिर्माण इकाइयों की स्थापना में जाएंगे, और उसके बाद पाँच साल तक कंपनियों को उनकी आरईपीएम बिक्री पर प्रोत्साहन दिए जाएंगे। कुल 7,280 करोड़ रुपये की योजना में लगभग 6,450 करोड़ रुपये कंपनियों को उनकी बिक्री के आधार पर प्रोत्साहन के रूप में मिलेंगे, जबकि 750 करोड़ रुपये उत्पादन सुविधाएँ बनाने के लिए पूंजीगत सब्सिडी के रूप में दिए जाएँगे। इससे देश में 6,000 मीट्रिक टन प्रति वर्ष की बड़ी उत्पादन क्षमता विकसित होगी।

 

सरकार के इस कदम के मायने:

सरकार की यह योजना कई तरह से भारत के लिए महत्वपूर्ण है। अभी तक भारत अपनी ज़रूरत के दुर्लभ-पृथ्वी स्थायी चुम्बकों (REPM) के लिए आयात पर निर्भर है, और इनमें से ज़्यादातर चीन से आते हैं। नई योजना के जरिए देश में पहली बार इन चुम्बकों की पूरी तरह एकीकृत विनिर्माण सुविधाएँ तैयार की जाएँगी। इसका मतलब है कि अब भारत खुद इन चुम्बकों का उत्पादन करेगा, जिससे कई फायदे होंगे:

  • रोज़गार के नए अवसर मिलेंगे।
  • आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम होगा।
  • 2070 तक नेट ज़ीरो उत्सर्जन लक्ष्य हासिल करने में मदद मिलेगी, क्योंकि REPM का इस्तेमाल इलेक्ट्रिक वाहनों, पवन ऊर्जा टर्बाइनों और अन्य हरित तकनीकों में होता है।

 

निष्कर्ष:

दुर्लभ मृदा स्थायी चुम्बकों के निर्माण को प्रोत्साहित करने वाली यह महत्वाकांक्षी योजना न केवल भारत की तकनीकी और औद्योगिक आत्मनिर्भरता को मजबूत करेगी, बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में देश की भूमिका को भी सुदृढ़ बनाएगी। यह पहल न केवल भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगी, बल्कि देश के दीर्घकालिक आर्थिक व पर्यावरणीय लक्ष्यों को हासिल करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।