RBI ने चेक क्लियरेंस का दूसरा चरण स्थगित किया

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपने सतत चेक क्लियरिंग सिस्टम के दूसरे चरण को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया है ताकि बैंकों को अपनी परिचालन तत्परता बढ़ाने और आंतरिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के लिए अधिक समय मिल सके। इसी के साथ RBI ने चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) के समय में संशोधन किया है। अब से चेक प्रस्तुत करने का समय अब सुबह 9:00 बजे से दोपहर 3:00 बजे तक है, जबकि बैंकों के लिए पुष्टिकरण सुबह 9:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक है।

RBI postpones second phase of cheque clearance

फेज-2 को टालने के पीछे RBI का निर्णय

  • भारतीय रिज़र्व बैंक ने फेज-2 को आगे बढ़ाने का फैसला नहीं लिया नए चरण में चेक की डिजिटल इमेज प्राप्त होने के तीन घंटे के भीतर उसे स्वीकार या अस्वीकार करना अनिवार्य था। इसके लिए बैंकों को अपने आईटी सिस्टम, आंतरिक प्रक्रियाओं और कर्मचारी प्रशिक्षण में बड़े बदलाव करने पड़ते। कई बैंकों के लिए इतनी कम समय-सीमा पर काम करना तत्काल संभव नहीं था।
  • फेज-1 के लागू होने के बाद, जो 2 जनवरी 2026 तक निर्धारित था, कुछ बैंकों को शुरुआती समस्याओं का सामना करना पड़ा। दिनभर लगातार चेक प्रोसेसिंग के दौरान सत्यापन में देरी, सिस्टम समन्वय की दिक्कतें और ऑपरेशनल बाधाएँ सामने आईं। इन अनुभवों से यह स्पष्ट हुआ कि सभी संस्थानों को समान स्तर की दक्षता तक पहुँचने में समय लगेगा।
  • RBI के लिए सबसे अहम उद्देश्य भुगतान प्रणाली की विश्वसनीयता और स्थिरता बनाए रखना है। यदि फेज-2 को जल्दबाज़ी में लागू किया जाता, तो अधूरी तैयारी के कारण बैंक और ग्राहक दोनों भ्रमित हो सकते थे। किसी भी तकनीकी गड़बड़ी से चेक सेटलमेंट में अविश्वास पैदा होने का जोखिम था, जिसे RBI टालना चाहता था।
  • फेज-2 के तहत सभी बैंकों को रीयल-टाइम प्रोसेसिंग के लिए अपने सिस्टम को पूरी तरह सक्षम बनाना था। इसमें स्वचालन, निरंतर निगरानी और तेज़ निर्णय प्रणाली शामिल है। RBI ने माना कि छोटे और मध्यम आकार के बैंक इस बदलाव के लिए अतिरिक्त समय चाहते हैं ताकि वे अपने सिस्टम को सुरक्षित तरीके से अपग्रेड कर सकें और समुचित परीक्षण कर सकें।

 

भारत में चेक क्लियरिंग प्रणाली

  • भारत में चेक क्लियरिंग प्रणाली को पारंपरिक बैच आधारित प्रक्रिया के स्थान पर अपनाया गया है। पहले चेक दिन में तय सत्रों में ही प्रोसेस होते थे, जिससे समय अधिक लगता था। अब बैंक पूरे कार्यदिवस के दौरान लगातार चेक की स्कैनिंग, प्रस्तुति और सत्यापन कर सकते हैं। इस बदलाव से चेक क्लियरिंग प्रक्रिया अधिक तेज, सुरक्षित और भरोसेमंद बन गई है।
  • इस परिवर्तन को लागू करने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) को निरंतर मॉडल में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया, जिसके 13 अगस्त 2025 को RBI ने आधिकारिक परिपत्र जारी किया। इसका उद्देश्य चेक भुगतान को डिजिटल माध्यम से सरल बनाना और कागजी प्रक्रिया पर निर्भरता कम करना है। 
  • नई प्रणाली को बैंकों के लिए सुगम बनाने हेतु इसे दो चरणों में लागू किया गया।
    • पहला चरण (4 अक्टूबर 2025 से 2 जनवरी 2026) में चेक दिन भर प्रोसेस किए जाते हैं। बैंकों को उसी दिन शाम 7 बजे तक चेक की पुष्टि करनी होती है। यदि समय पर पुष्टि नहीं होती, तो चेक को स्वतः सेटलमेंट के लिए स्वीकृत मान लिया जाता है। 
    • दूसरा चरण में समय-सीमा और सख्त हो जाती है। अब चेक प्रस्तुत होने के T+3 घंटे के भीतर पुष्टि अनिवार्य है। इससे देरी की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।
  • नई व्यवस्था में बैंक सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक एक ही निरंतर सत्र में चेक प्रस्तुत करते हैं। ड्रॉई बैंक पूरे दिन चेक स्वीकार या अस्वीकार करते रहते हैं। सफल सेटलमेंट के बाद एक घंटे के भीतर राशि खातों में जमा हो जाती है। इससे उपभोक्ताओं को तुरंत धन उपलब्ध होता है।
  • इस प्रणाली से अगले दिन की प्रतीक्षा समाप्त हो गई है। अब चेक कुछ घंटों में ही क्लियर हो जाता है। इससे तरलता में सुधार, जोखिम में कमी और व्यापारिक लेनदेन में गति आती है। छोटे व्यवसायों और आम नागरिकों को इसका सीधा लाभ मिलता है।
  • निरंतर चेक क्लियरिंग प्रणाली रियल-टाइम मैसेजिंग, स्वचालित प्रोसेसिंग और मजबूत डिजिटल ढांचे पर आधारित है। इसमें NPCI के प्लेटफॉर्म और उन्नत बैंकिंग सिस्टम की अहम भूमिका है। यह पहल भारत की डिजिटल बैंकिंग क्षमता को और सशक्त बनाती है।

 

चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) क्या हैं?

  • चेक ट्रंकेशन सिस्टम (CTS) भारत में अपनाई गई एक आधुनिक चेक क्लियरिंग प्रणाली है। इस व्यवस्था में भौतिक चेक को आगे भेजने की आवश्यकता नहीं रहती। जिस शाखा में चेक जमा किया जाता है, वहीं उसे रोक दिया जाता है। इसके बाद केवल चेक की डिजिटल छवि को क्लियरिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भेजा जाता है। इससे समय की बचत होती है और जोखिम भी कम होता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने पहली बार वर्ष 2010 में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में CTS लागू किया। इसके सफल प्रयोग के बाद RBI ने 2013 में इस प्रणाली को पूरे देश में विस्तारित कर दिया। इस कदम ने भारत की बैंकिंग प्रणाली को तेज, पारदर्शी और तकनीक-आधारित बनाया।
  • CTS पूरी तरह इमेज-आधारित प्रोसेसिंग पर कार्य करता है। बैंक उच्च गुणवत्ता वाले स्कैनर का उपयोग करते हैं, जो RBI द्वारा निर्धारित इमेज स्टैंडर्ड्स को पूरा करते हैं। स्कैन की गई चेक छवि इतनी स्पष्ट होती है कि सभी विवरण आसानी से पढ़े जा सकते हैं। 
  • इस प्रणाली में MICR कोड की अहम भूमिका होती है। MICR के माध्यम से बैंक और शाखा की पहचान स्वतः हो जाती है। इसके साथ ही क्लियरिंग हाउस में स्वचालित सॉर्टिंग सिस्टम का उपयोग किया जाता है, जो चेक को सही बैंक तक तुरंत पहुंचाता है। इससे प्रक्रिया तेज और सटीक बनती है।
  • CTS में सुरक्षा के लिए Public Key Infrastructure (PKI) तकनीक अपनाई जाती है। प्रत्येक बैंक चेक की डिजिटल छवि पर डिजिटल हस्ताक्षर करता है। ये हस्ताक्षर यह प्रमाणित करते हैं कि चेक सही बैंक द्वारा प्रस्तुत किया गया है और इसमें किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं हुई है। 
  • CTS के अंतर्गत उपयोग की जाने वाली डिजिटल चेक इमेज को भारतीय कानून में पूरी मान्यता प्राप्त है। परक्राम्य लिखत अधिनियम (Negotiable Instruments Act) इलेक्ट्रॉनिक चेक इमेज के आधार पर क्लियरिंग की अनुमति देता है। इसके साथ ही बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे चेक इमेज को निर्धारित अवधि तक सुरक्षित रूप से संग्रहित रखें।

 

लाभ और व्यापक प्रभाव

  • कंटीन्यूअस चेक क्लियरिंग सिस्टम (Continuous CTS) ने चेक से भुगतान पाने वाले ग्राहकों के अनुभव को पूरी तरह बदल दिया है। अब चेक जमा करने के बाद लंबा इंतज़ार नहीं करना पड़ता। फंड्स जल्दी खाते में क्रेडिट हो जाते हैं, जिससे रोज़मर्रा की ज़रूरतें आसानी से पूरी होती हैं। पहले चेक के गुम होने, देरी होने या बार-बार पूछताछ की समस्या आम थी। नई व्यवस्था में डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग के कारण ऐसे जोखिम काफी कम हो गए हैं। इससे लोगों का भरोसा चेक माध्यम पर बना रहता है, भले ही डिजिटल भुगतान का दौर चल रहा हो। 
  • बैंकों के लिए यह प्रणाली लागत बचत का बड़ा साधन बनी है। अब भौतिक चेक को एक शहर से दूसरे शहर ले जाने की जरूरत नहीं रहती। इससे परिवहन खर्च, सुरक्षा लागत और समय तीनों की बचत होती है। साथ ही, मैन्युअल प्रोसेसिंग घटने से मानव संसाधन पर दबाव कम हुआ है। इसके अलावा, कंटीन्यूअस CTS से फ्रॉड कंट्रोल मजबूत हुआ है।
  • इस नई क्लियरिंग व्यवस्था का असर केवल बैंक और ग्राहक तक सीमित नहीं है। तेज़ सेटलमेंट से व्यापारिक लेन-देन में नकदी प्रवाह सुधरता है। छोटे और मध्यम उद्यमों को समय पर भुगतान मिलने से उनकी कार्यशील पूंजी मजबूत होती है। कागज़ के उपयोग में कमी आने से पर्यावरणीय लक्ष्य भी पूरे होते हैं। कम कागज़, कम परिवहन और कम ईंधन खपत से कार्बन उत्सर्जन घटता है।