RBI ने रेपो रेट घटाया: होम लोन की EMI होगी सस्ती, जानिए कैसे होगा फायदा

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने शुक्रवार, 5 दिसंबर को एक बड़ा फैसला लेते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती का ऐलान किया है। अब नया रेपो रेट 5.25% हो गया है। यह निर्णय मुद्रास्फीति में ऐतिहासिक गिरावट और रुपये में लगातार कमजोरी को देखते हुए लिया गया है।

 

यह घोषणा संजय मल्होत्रा की अगुवाई वाली मौद्रिक नीति समिति (MPC) की तीन दिवसीय बैठक के बाद की गई, जो 3, 4 और 5 दिसंबर को आयोजित हुई थी।

RBI reduces repo rate

इस साल की कुल कटौती

इस साल अब तक रेपो रेट में कुल 125 बेसिस पॉइंट की कटौती की जा चुकी है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) से मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति अक्टूबर में गिरकर 0.25% पर आ गई, जो RBI के निर्धारित 2% से 6% के लक्ष्य बैंड से बहुत नीचे है।

 

बदलती आर्थिक परिस्थितियों और भविष्य के अनुमानों का विस्तृत मूल्यांकन करने के बाद, MPC ने सर्वसम्मति से नीतिगत रेपो रेट को 25 बेसिस पॉइंट घटाकर 5.25% करने का फैसला लिया, जो तुरंत प्रभाव से लागू हो गया है।

 

रेपो रेट क्या होता है?

रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर व्यावसायिक बैंक सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर RBI से पैसा उधार लेते हैं। जब रेपो रेट ऊंचा होता है तो बैंकों के लिए उधार लेना महंगा हो जाता है, जबकि कम दर पर उन्हें सस्ते में पैसा मिल जाता है।

 

सरल शब्दों में कहें तो रेपो रेट एक तरह से बैंकों के लिए उधार लेने की कीमत है। जब RBI यह दर घटाता है तो बैंक कम ब्याज पर पैसा ले सकते हैं और फिर वे अपने ग्राहकों को भी कम ब्याज पर लोन दे सकते हैं।

 

RBI रेपो रेट क्यों बदलता है?

केंद्रीय बैंक का मुख्य उद्देश्य आर्थिक स्थिरता बनाए रखना है, यानी मुद्रास्फीति को नियंत्रित करते हुए विकास को भी बढ़ावा देना। रेपो रेट में बदलाव से बाजार में तरलता, उधारी की लागत और समग्र आर्थिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

 

जब महंगाई बढ़ती है तो RBI रेपो रेट बढ़ा देता है ताकि बाजार में पैसे का प्रवाह कम हो और कीमतें नियंत्रित हों। इसके विपरीत, जब महंगाई कम होती है या अर्थव्यवस्था को गति देनी होती है तो रेपो रेट घटाया जाता है।

 

रेट कट का क्या मतलब है?

रेपो रेट में बदलाव का असर सबसे तेजी से फ्लोटिंग रेट वाले लोन पर पड़ता है। जब RBI रेपो रेट घटाता है तो बैंक सस्ते में पैसा उधार ले सकते हैं और अपनी उधारी दरें कम कर देते हैं। इससे EMI घट जाती है और ग्राहक अपना लोन जल्दी चुका सकते हैं।

 

जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंकों की उधारी लागत बढ़ जाती है, जिससे लोन पर ब्याज दरें बढ़ती हैं। नतीजतन, या तो EMI बढ़ जाती है या फिर EMI की रकम वही रखने पर लोन की अवधि बढ़ जाती है।

 

किन लोन पर पड़ता है सबसे ज्यादा असर?

होम लोन: रेपो रेट में बदलाव का सबसे ज्यादा असर होम लोन पर पड़ता है क्योंकि इनकी अवधि लंबी होती है और ये फ्लोटिंग रेट पर आधारित होते हैं। अगर आपने 50 लाख रुपये का होम लोन लिया है तो रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती से आपकी मासिक EMI में कुछ हजार रुपये की बचत हो सकती है।

 

ऑटो और पर्सनल लोन: ये सीधे तौर पर रेपो रेट से जुड़े नहीं होते, लेकिन बैंकों की समग्र फंड लागत के आधार पर इनमें भी संशोधन किया जाता है। रेपो रेट में कटौती के बाद बैंक इन लोन की ब्याज दरें भी कम कर सकते हैं।

 

MSME लोन: कई छोटे व्यवसाय फ्लोटिंग रेट वाले क्रेडिट पर निर्भर रहते हैं, इसलिए उनके लिए RBI की दर में बदलाव काफी महत्वपूर्ण होता है। इससे उनकी ब्याज लागत कम होगी और व्यवसाय चलाना आसान होगा।

 

आम आदमी को क्या फायदा?

रेपो रेट में कटौती का सीधा मतलब है कि अगर आपने फ्लोटिंग रेट पर लोन लिया है तो आपकी EMI घटेगी। मान लीजिए आपने 30 लाख रुपये का होम लोन 20 साल के लिए लिया है और ब्याज दर 8.5% है। अगर बैंक रेपो रेट कट का पूरा फायदा देता है तो आपकी ब्याज दर घटकर 8.25% हो सकती है। इससे आपकी मासिक EMI में करीब 400-500 रुपये की बचत होगी और पूरे लोन पर लाखों रुपये की बचत होगी।

 

अगर आप नया लोन लेने की सोच रहे हैं तो यह अच्छा समय है क्योंकि ब्याज दरें अपेक्षाकृत कम हैं।

 

बचत पर क्या असर होगा?

रेपो रेट में बदलाव का असर जमा दरों पर भी पड़ता है, हालांकि यह सीधा नहीं होता। जब रेपो रेट बढ़ता है तो बैंक अधिक पैसा जुटाने के लिए फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) और रिकरिंग डिपॉजिट (RD) पर ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं।

 

इसी तरह, जब रेपो रेट घटता है तो FD और RD की दरें भी कम हो जाती हैं। इससे बचतकर्ताओं को बाजार से जुड़े या वैकल्पिक निवेश विकल्प तलाशने के लिए प्रेरित होना पड़ता है।

 

बचतकर्ताओं के लिए सुझाव: अगर आपके पास FD है तो रेपो रेट में कटौती के बाद नए FD पर ब्याज दरें कम मिलेंगी। इसलिए अगर आप अभी FD कराना चाहते हैं तो जल्दी कर लें। साथ ही, म्यूचुअल फंड, बॉन्ड या अन्य निवेश विकल्पों पर भी विचार करें।

 

महंगाई में आई गिरावट

RBI ने यह कदम मुख्य रूप से महंगाई में भारी गिरावट को देखते हुए उठाया है। अक्टूबर में खुदरा मुद्रास्फीति घटकर 0.25% पर आ गई, जो RBI के 2-6% के लक्ष्य से काफी नीचे है। यह एक ऐतिहासिक निचला स्तर है।

 

महंगाई कम होने का मतलब है कि आम लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी। अब RBI अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पैसे की लागत कम कर रहा है ताकि उधारी और निवेश बढ़े।

 

रुपये की कमजोरी का भी रखा ध्यान

हालांकि महंगाई कम है, लेकिन रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। डॉलर के मुकाबले रुपया नए निचले स्तर पर पहुंच रहा है। RBI को इसे भी संतुलित करना होता है। रेपो रेट में कटौती से अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी, लेकिन साथ ही रुपये पर दबाव भी बढ़ सकता है।

 

आगे क्या उम्मीद करें?

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर महंगाई इसी तरह नियंत्रित रही तो आने वाले महीनों में RBI और भी कटौती कर सकता है। इससे लोन और सस्ते होंगे और अर्थव्यवस्था को और गति मिलेगी।

 

हालांकि, RBI को वैश्विक आर्थिक स्थिति, तेल की कीमतें, और घरेलू मांग जैसे कई कारकों को भी ध्यान में रखना होगा। अगले कुछ महीने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण होंगे।

 

निष्कर्ष:

RBI की रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती आम लोगों, खासकर लोन लेने वालों के लिए राहत की खबर है। होम लोन, ऑटो लोन और व्यावसायिक लोन सस्ते होंगे। हालांकि बचतकर्ताओं को FD पर कम ब्याज मिलेगा, लेकिन समग्र रूप से यह कदम अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक है।

 

अगर आप लोन लेने की सोच रहे हैं तो यह अच्छा समय है। और अगर आपके पास पहले से लोन है तो अपने बैंक से संपर्क करके EMI में कमी के बारे में पूछें।