बॉम्बे हाईकोर्ट ने रिलायंस पर कथित गैस चोरी मामले में CBI से जवाब मांगा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (RIL) पर ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉर्पोरेशन (ONGC) के वेल्स से करीब 1.55 अरब डॉलर (लगभग 13,700 करोड़) मूल्य की प्राकृतिक गैस चोरी के आरोपों की जांच के लिए दाखिल याचिका पर CBI और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है

reliance gas theft case

जस्टिस ए.एस. गडकरी और रंजीत सिंह राजा भोंसले की खंडपीठ ने यह नोटिस 4 नवंबर को जारी किया, जबकि अगली सुनवाई 18 नवंबर को निर्धारित की गई है। याचिकाकर्ता जितेंद्र पी. मारू ने रिलायंस चेयरमैन मुकेश धीरूभाई अंबानी सहित कंपनी के निदेशकों पर चोरी, आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के आरोप लगाए हैं।

क्या है मामला

यह विवाद आंध्र प्रदेश तट के कृष्णा-गोदावरी (KG) बेसिन से जुड़ा है। आरोप है कि रिलायंस ने अपने डीप-सी वेल्स से साइडवेज ड्रिलिंग (बगल से खुदाई) करते हुए ONGC के ब्लॉक्स में घुसकर बिना अनुमति गैस निकाली।

याचिकाकर्ता का कहना है कि यह एक मैसिव ऑर्गनाइज्ड फ्रॉड” है, जिसकी जानकारी ONGC अधिकारियों ने 2013 में सरकार को दी थी। रिपोर्ट के बावजूद अब तक कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं हुई।

 

रिलायंस का पक्ष

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि गैस माइग्रेटरी’ थी — यानी वह खुद प्राकृतिक रूप से उनके ब्लॉक्स में आ गई थी, जिसे निकालना कंपनी का अधिकार था।
हालांकि, डे-गॉलीयर एंड मैक-नॉटन (D&M) नामक स्वतंत्र एजेंसी की जांच में पाया गया कि गैस का यह स्थानांतरण प्राकृतिक नहीं था। इसके बाद केंद्र सरकार ने रिलायंस को भारी राशि की वसूली का नोटिस भेजा।

 

गैस चोरी विवाद की टाइमलाइन

  • 2000: RIL को KG-D6 ब्लॉक मिला, जो ONGC के KG-D5 और G-4 ब्लॉक्स के पास था।
  • 2009: रिलायंस ने KG-D6 से गैस उत्पादन शुरू किया।
  • 2013: ONGC ने रिलायंस पर गैस माइग्रेशन का शक जताया।
  • 2014: A.P. शाह कमेटी ने ₹13,700 करोड़ की अनधिकृत निकासी की पुष्टि की।
  • 2016: सरकार ने रिलायंस को नोटिस भेजा।
  • 2018: अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता में रिलायंस को अस्थायी राहत मिली।
  • फरवरी 2025: दिल्ली हाईकोर्ट ने यह राहत खारिज करते हुए RIL को भुगतान का आदेश दिया।
  • नवंबर 2025: बॉम्बे हाईकोर्ट ने अब इस मामले में CBI और केंद्र को नोटिस जारी किया है।

 

कोर्ट में क्या हुआ

सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील राजेंद्र देसाई और कुमाल भनगे ने दलील दी कि यह केवल सिविल विवाद नहीं बल्कि एक आपराधिक मामला है, जिसमें चोरी और विश्वासघात की धाराएं लगाई जानी चाहिए। कोर्ट ने CBI और केंद्र को निर्देश दिया कि वे सभी संबंधित दस्तावेजों के साथ अपना पक्ष प्रस्तुत करें। राज्य सरकार की ओर से एडिशनल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर माधवी एच. म्हात्रे मौजूद थीं।

 

नोटिस का मतलब

किसी हाईकोर्ट द्वारा नोटिस जारी किया जाना इस बात का संकेत है कि कोर्ट ने याचिका को प्राथमिक रूप से गंभीर माना है। हालांकि, यह आदेश जांच शुरू करने का निर्देश नहीं होता।
CBI को अब अगली सुनवाई तक अपना जवाब दाखिल करना होगा। उसके बाद ही कोर्ट तय करेगा कि जांच का आदेश दिया जाए या नहीं।

 

आगे की संभावनाएं

अगर बॉम्बे हाईकोर्ट जांच का निर्देश देता है, तो यह रिलायंस के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है। कंपनी को न केवल भारी वित्तीय नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, बल्कि क्रिमिनल लायबिलिटी भी तय हो सकती है। वहीं, ONGC को संभावित रूप से ₹13,700 करोड़ से अधिक की रिकवरी मिल सकती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला ऊर्जा क्षेत्र में कॉर्पोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता पर बड़ा सवाल खड़ा करता है।