सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार नवंबर महीने में भारत की खुदरा महंगाई दर में मामूली उछाल दर्ज किया गया। यह दर सालाना आधार पर 0.71 प्रतिशत पर पहुंच गई। अक्टूबर में खुदरा महंगाई 0.25 प्रतिशत के ऐतिहासिक निचले स्तर पर थी। नवंबर के आंकड़े बताते हैं कि कीमतों में दबाव थोड़ा बढ़ा है। यह वृद्धि सीमित जरूर है, लेकिन उपभोक्ता मांग और कीमतों के रुझान को समझने के लिए अहम मानी जा रही है।
नवंबर 2025 में खुदरा महंगाई के रुझान
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के अनुसार नवंबर 2025 में खुदरा महंगाई दर 0.71 प्रतिशत दर्ज की गई। यह बढ़ोतरी अक्टूबर 2025 के 0.25 प्रतिशत के स्तर से 46 आधार अंक अधिक है। आंकड़े संकेत देते हैं कि कीमतों में थोड़ी तेजी आई है, हालांकि समग्र महंगाई अब भी नियंत्रित दायरे में बनी हुई है।
- पिछले एक वर्ष में महंगाई के रुझान में उल्लेखनीय गिरावट देखने को मिली है। नवंबर 2024 में खुदरा महंगाई लगभग 5.48 प्रतिशत थी। इसके मुकाबले नवंबर 2025 में यह 0.71 प्रतिशत पर आ गई है। यह तेज गिरावट अर्थव्यवस्था में व्यापक स्तर पर घटते मूल्य दबाव को दर्शाती है।
- खाद्य महंगाई, जिसे उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक के जरिए मापा जाता है, नवंबर 2025 में भी नकारात्मक बनी रही। यह दर –3.91 प्रतिशत दर्ज की गई। हालांकि यह अक्टूबर के –5.02 प्रतिशत की तुलना में कुछ कम नकारात्मक है। पूरे वर्ष 2025 में कुल महंगाई को नीचे रखने में खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट का बड़ा योगदान रहा है।
- नवंबर 2025 के आंकड़े ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच महंगाई के अलग रुझान भी दर्शाए गए हैं। ग्रामीण इलाकों में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 0.10 प्रतिशत हो गई। अक्टूबर में यह –0.25 प्रतिशत थी। वहीं शहरी क्षेत्रों में महंगाई में ज्यादा तेजी देखी गई। यहां दर 0.88 प्रतिशत से बढ़कर 1.40 प्रतिशत पर पहुंच गई। यह अंतर उपभोग की आदतों और खर्च के ढांचे में भिन्नता को दर्शाता है।
- खाद्य वस्तुओं के अलावा CPI के अन्य हिस्सों में भी अलग-अलग रुझान सामने आए। नवंबर 2025 में आवास महंगाई लगभग स्थिर रही और 2.95 प्रतिशत पर बनी रही। शिक्षा से जुड़ी महंगाई घटकर 3.38 प्रतिशत हो गई। स्वास्थ्य क्षेत्र में भी मामूली राहत दिखी और दर 3.60 प्रतिशत पर आ गई।
- परिवहन और संचार से जुड़ी महंगाई नवंबर में 0.88 प्रतिशत दर्ज की गई, जो अपेक्षाकृत कम रही। इसके उलट ईंधन और बिजली की महंगाई में कुछ बढ़ोतरी देखने को मिली। यह दर पिछले महीने की तुलना में बढ़कर 2.32 प्रतिशत हो गई।
नवंबर 2025 में महंगाई बढ़ने के कारण
- खाद्य कीमतों में गिरावट की रफ्तार धीमी: नवंबर 2025 में खुदरा महंगाई में आई बढ़ोतरी का सबसे बड़ा कारण खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट की गति का कम होना रहा। पूरे वर्ष खाद्य कीमतें लगातार नीचे बनी हुई थीं। नवंबर में यह गिरावट जारी रही, लेकिन पहले जैसी तेज नहीं रही। जब भोजन की कीमतें उतनी तेजी से नहीं गिरतीं, तो कुल महंगाई दर अपने आप ऊपर की ओर खिसक जाती है, भले ही कीमतें पिछले साल से कम हों।
- सब्जियों और जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं का असर: नवंबर में कुछ सब्जियों और अन्य नाशवान उत्पादों की कीमतों में बढ़ोतरी देखी गई। लंबे समय तक कमजोर रहने के बाद इन वस्तुओं के दाम में हल्का सुधार हुआ। सब्जियां उपभोक्ता खर्च में अहम भूमिका निभाती हैं। इनके दाम बढ़ते ही खुदरा महंगाई पर सीधा असर पड़ता है। इसी वजह से कुल महंगाई दर में ऊपर की ओर दबाव बना।
- ईंधन और बिजली की लागत में वृद्धि: महंगाई में बढ़ोतरी के पीछे ईंधन और बिजली से जुड़ी लागत भी एक अहम कारण रही। नवंबर में ईंधन की कीमतों में कुछ बढ़त दर्ज की गई। इससे परिवहन खर्च बढ़ा और घरों के ऊर्जा बिल भी महंगे हुए। जब ईंधन महंगा होता है, तो उसका असर अन्य वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों पर भी पड़ता है। यह प्रभाव धीरे-धीरे पूरे मूल्य सूचकांक में शामिल हो जाता है।
खुदरा महंगाई: अवधारणा, मापन और प्रभाव
- अर्थ: भारत में खुदरा महंगाई उस दर को दर्शाती है, जिससे आम परिवारों द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं के दाम समय के साथ बढ़ते हैं। इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के माध्यम से मापा जाता है। जब कीमतें बढ़ती हैं, तो मुद्रा की क्रय शक्ति घटती है। इसका सीधा असर घरों के मासिक बजट और जीवन स्तर पर पड़ता है।
- महंगाई का मापन कैसे होता है? खुदरा महंगाई के आंकड़े राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय तैयार करता है। यह कार्यालय सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। हर महीने ग्रामीण, शहरी और संयुक्त स्तर पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी किया जाता है। इन आंकड़ों से पूरे देश में कीमतों के रुझान की स्पष्ट तस्वीर मिलती है।
- आधार वर्ष की भूमिका: वर्तमान में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की गणना के लिए वर्ष 2012 को आधार माना जाता है। आधार वर्ष वह समय होता है, जिससे वर्तमान कीमतों की तुलना की जाती है। आधार वर्ष स्थिर होने से महंगाई की दिशा और तीव्रता को समझना आसान हो जाता है।
- महंगाई दर की गणना: महंगाई दर को आमतौर पर सालाना आधार पर मापा जाता है। इसमें एक वर्ष के उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की तुलना पिछले वर्ष की समान अवधि से की जाती है। प्रतिशत में निकला यह अंतर यह बताता है कि कीमतें कितनी बढ़ीं या घटीं।
- CPI टोकरी की संरचना: उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की टोकरी में खाद्य वस्तुओं का हिस्सा सबसे अधिक होता है। भोजन और पेय पदार्थों का वजन लगभग आधे के करीब है। इसके बाद शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और संचार जैसी सेवाएं आती हैं। आवास, ईंधन, रोशनी, कपड़े और जूते भी इसमें शामिल हैं।
- मांग से जुड़ी वजहें: जब बाजार में मांग आपूर्ति से तेज बढ़ती है, तब कीमतें ऊपर जाती हैं। आय में वृद्धि, सरकारी खर्च में इजाफा और नकदी की अधिक उपलब्धता ऐसी स्थिति पैदा करती है। इसे मांग आधारित महंगाई कहा जाता है।
- लागत बढ़ने से उत्पन्न दबाव: उत्पादन लागत बढ़ने पर भी महंगाई बढ़ती है। कच्चे माल के महंगे होने, मजदूरी बढ़ने और आपूर्ति बाधित होने से कीमतें चढ़ती हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में उछाल भी इसका बड़ा कारण बनता है।
- संरचनात्मक और बाहरी कारण: कमजोर आपूर्ति श्रृंखला, भंडारण की कमी और बिचौलियों की अधिक संख्या कीमतें बढ़ाती है। इसके अलावा रुपये में गिरावट से आयात महंगा होता है। इससे आयातित महंगाई का दबाव बनता है।
- मौसमी प्रभाव: अनियमित बारिश या सूखे जैसी स्थितियां कृषि उत्पादन को प्रभावित करती हैं। चूंकि खाद्य वस्तुओं का वजन अधिक है, इसलिए मौसम का असर सीधे खुदरा महंगाई पर दिखाई देता है।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर कम खुदरा महंगाई के प्रभाव
- मौद्रिक नीति पर असर: भारतीय रिज़र्व बैंक अपनी ब्याज दर नीति तय करते समय महंगाई की चाल पर करीबी नज़र रखता है। वर्ष 2025 में खुदरा महंगाई लंबे समय तक निर्धारित दायरे के भीतर रही। नवंबर में यह दर बहुत नीचे बनी रही। ऐसी स्थिति में केंद्रीय बैंक द्वारा ब्याज दरों में नरमी लाने के संकेत मिलते है। कम दरों से कर्ज सस्ता होता है। इससे उद्योगों को निवेश के लिए प्रोत्साहन मिलता है। घरों के लिए ऋण लेना भी आसान होता है। जब महंगाई नियंत्रित रहती है, तो अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए मौद्रिक नीति अपेक्षाकृत उदार रखी जाती है।
- उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति: कम महंगाई का सीधा लाभ आम लोगों को मिलता है। जब कीमतें धीरे धीरे बढ़ती हैं, तो आय का वास्तविक मूल्य सुरक्षित रहता है। नवंबर 2025 में कीमतों में हल्की वृद्धि ने परिवारों को राहत दी। रोजमर्रा की वस्तुएं पहले की तुलना में ज्यादा महंगी नहीं हुईं। इससे लोग समान आय में अधिक सामान और सेवाएं खरीद पाए। खासकर गरीब और निम्न मध्यम वर्ग के लिए यह स्थिति मददगार रही। भोजन, परिवहन और बिजली जैसे जरूरी खर्चों पर दबाव कम हुआ।
- निवेश और व्यापारिक माहौल: व्यापार जगत अपने फैसले भविष्य की लागत और मांग को देखकर करता है। जब महंगाई कम और स्थिर रहती है, तो अनिश्चितता घटती है। कंपनियां लंबी अवधि की योजना बनाने में सहज महसूस करती हैं। पूंजी निवेश और विस्तार के फैसले आसान होते हैं। हालांकि बहुत कम महंगाई कभी-कभी कमजोर मांग का संकेत भी देती है। ऐसी स्थिति में कुछ कंपनियां उत्पादन बढ़ाने या नई भर्तियां करने से पहले बाजार की स्थिति को परखती हैं।
- सरकारी वित्त पर प्रभाव: कम महंगाई सरकार के बजट प्रबंधन को भी प्रभावित करती है। वर्ष 2025 में उपभोग को बढ़ाने के लिए कर दरों में नरमी की गई। इससे अल्पकाल में राजस्व पर दबाव पड़ा। कीमतें धीमी गति से बढ़ने पर नाममात्र जीडीपी की वृद्धि भी सीमित रहती है। जब जीडीपी अपेक्षा से कम बढ़ती है, तो आयकर और कॉरपोरेट कर संग्रह पर असर पड़ सकता है। फिर भी यदि उपभोक्ता खर्च बढ़ता है, तो अर्थव्यवस्था को सहारा मिलता है।
