लोकसभा में शुक्रवार को कर्मचारियों के काम–काज से जुड़े दबाव को कम करने के लिए एक अहम निजी विधेयक पेश किया गया। NCP सांसद सुप्रिया सुले ने 1 दिसंबर से शुरू हुए व्यस्त शीतकालीन सत्र के दौरान ‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ रखा है। यह बिल बताता है कि हर कर्मचारी को काम खत्म होने के बाद पूरी तरह डिस्कनेक्ट होने का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि उसकी निजी ज़िंदगी और मानसिक स्वास्थ्य सुरक्षित रह सके।
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025 क्या है?
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025 एक ऐसा प्रस्तावित कानून है जिसका उद्देश्य कर्मचारियों को ऑफिस समय के बाद काम से जुड़े कॉल, मैसेज या ईमेल का जवाब देने की मजबूरी से मुक्त करना है। बिल कहता है कि किसी भी कर्मचारी को छुट्टियों या काम के घंटों के बाद आधिकारिक संदेशों का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
बिल के मुख्य प्रावधान:
- ऑफिस समय के बाद जवाब देने की कोई मजबूरी नहीं: कर्मचारी चाहें तो कॉल, ईमेल या मैसेज का जवाब न दें।
- कोई सज़ा नहीं: जवाब न देने पर किसी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- सभी तरह के संचार शामिल: फोन कॉल, टेक्स्ट मैसेज, ईमेल, वीडियो कॉल—सब पर यह अधिकार लागू होगा।
- आपात स्थिति के नियम: अगर किसी कंपनी को जरूरी हालात में संपर्क करना हो, तो इसके लिए नियोक्ता और कर्मचारी पहले से सहमति बनाएं।
- कंपनी पर जुर्माना: इस अधिकार का उल्लंघन करने पर संगठन से कुल कर्मचारी वेतन का 1% तक जुर्माना वसूला जा सकता है।
बिल में आपात स्थितियों से निपटने के नियम:
बिल में आपात स्थितियों से निपटने के लिए एक स्पष्ट व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव किया गया है। इसके तहत, एक विशेष समिति बनाई जाएगी जो यह तय करेगी कि ऑफिस समय के बाहर कर्मचारियों से कब और किन परिस्थितियों में संपर्क किया जा सकता है। नियोक्ता सिर्फ उसी समय कर्मचारियों से बात कर सकते हैं, जिस पर पहले से दोनों पक्षों की सहमति बनी हो। साथ ही, यदि कोई कर्मचारी अपनी इच्छा से कार्यालय समय के बाद काम करता है, तो उसे सामान्य वेतन दर पर ओवरटाइम भुगतान पाने का अधिकार भी मिलेगा।
विधेयक को लेकर तर्क:
विधेयक के पीछे तर्क यह है कि आज के समय में लगातार उपलब्ध रहना आधुनिक कार्यस्थल की एक आम आदत बन गई है। सुप्रिया सुले का कहना है कि डिजिटल तकनीक काम में लचीलापन तो देती है, लेकिन इसके कारण एक ऐसी संस्कृति भी बन गई है जिसमें कर्मचारियों पर देर रात तक ईमेल चेक करने या संदेशों का जवाब देने का दबाव रहता है।
बिल के साथ दिए गए बयान में बताया गया है कि ऐसे व्यवहार से कर्मचारियों में नींद की कमी, मानसिक थकान और दिमाग पर ज़रूरत से ज्यादा बोझ पड़ता है, जिसे शोध में “टेलीप्रेशर” या “इंफो-ओबेसिटी” यानी “सूचना-मोटापा” कहा गया है।
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025 के पास होने की सम्भावना::
प्राइवेट मेंबर बिल वह होता है जिसे कोई ऐसा सांसद संसद में पेश करता है जो मंत्री नहीं होता, चाहे वह सत्ता पक्ष का हो या विपक्ष का। भारतीय संसद में शुक्रवार का दिन आमतौर पर ऐसे निजी विधेयकों पर चर्चा के लिए तय होता है, लेकिन ये बिल बहुत कम ही पास हो पाते हैं। आजादी के बाद से अब तक केवल 14 प्राइवेट मेंबर बिल ही दोनों सदनों से पारित होकर राष्ट्रपति की मंजूरी हासिल कर पाए हैं, और 1970 के बाद से अब तक कोई भी ऐसा बिल संसद से पारित नहीं हुआ है।
राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025 भी एक प्राइवेट मेंबर बिल है, जिसे NCP सांसद सुप्रिया सुले ने पेश किया है।
सुले द्वारा प्रस्तुत अन्य प्रस्ताव:
सुप्रिया सुले ने सदन में दो और निजी सदस्य विधेयक भी पेश किए। पहला पितृत्व और पितृत्व लाभ विधेयक, 2025 है, जिसमें पिता को शुरुआती बचपन के समय सवेतन अवकाश देने और बच्चों की देखभाल की साझा ज़िम्मेदारी को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है।
दूसरा प्रस्ताव सामाजिक सुरक्षा संहिता में संशोधन से जुड़ा है, जिसका लक्ष्य गिग और प्लेटफ़ॉर्म आधारित काम करने वाले श्रमिकों को एक अलग श्रेणी के रूप में पहचान देना है, ताकि उन्हें न्यूनतम वेतन, तयशुदा कार्य समय, सामाजिक सुरक्षा लाभ और उचित अनुबंध जैसे अधिकार मिल सकें।
अन्य सांसदों द्वारा पेश प्राइवेट बिल:
- मेन्स्ट्रुअल बेनिफिट्स बिल, 2024: कांग्रेस सांसद कडियम काव्या
- पत्रकार सुरक्षा बिल: निर्दलीय सांसद विशाल पाटिल
- मृत्युदंड समाप्ति संबंधी बिल: DMK सांसद कनिमोझी करुणानिधि
संसद का शीतकालीन सत्र 2025:
संसद का शीतकालीन सत्र 2025, 1 दिसंबर से 19 दिसंबर तक चलेगा और इसमें कुल 15 बैठकें होंगी। यह संसद के नियमित तीन सत्रों में सबसे छोटा सत्र होता है, लेकिन इसमें कई जरूरी कानूनों, राष्ट्रीय मुद्दों और लंबित विधेयकों पर चर्चा और पारित करने का काम किया जाता है। भारत में संसद के तीन मुख्य वार्षिक सत्र होते हैं:
- बजट सत्र: जो फरवरी से मार्च तक चलता है और सबसे लंबा व महत्वपूर्ण माना जाता है;
- मानसून सत्र: जो जुलाई-अगस्त में होता है और नए कानून बनाने पर केंद्रित रहता है;
- शीतकालीन सत्र: जो आमतौर पर नवंबर-दिसंबर में होता है और साल के अंतिम विधायी कामकाज को पूरा करता है।
- विशेष सत्र: कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में विशेष सत्र भी बुलाए जाते हैं, जिनका उद्देश्य अत्यावश्यक या विशेष मुद्दों पर चर्चा करना होता है।
दुनिया में राइट टू डिस्कनेक्ट की स्थिति:
दुनिया के कई देशों ने पहले ही राइट टू डिस्कनेक्ट को लागू किया हुआ है। फ्रांस ने 2017 में सबसे पहले यह अधिकार दिया, जिसके तहत कंपनियों को ऑफिस समय के बाद ईमेल और कामकाजी संदेशों के लिए स्पष्ट नीतियाँ बनाना अनिवार्य किया गया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम और पुर्तगाल जैसे देशों ने भी नियम लागू किए और उल्लंघन करने पर जुर्माना लगाने की व्यवस्था की। वर्तमान समय में लगभग 13 देशों में राइट टू डिस्कनेक्ट लागू है।
कार्य-जीवन संतुलन (Work-Life Balance):
कार्य-जीवन संतुलन का मतलब है कि आप अपने काम की जिम्मेदारियों और अपने निजी जीवन—जैसे परिवार, आराम, शौक और खुद की देखभाल—के बीच एक अच्छा और स्वस्थ संतुलन बना सकें। जब कोई व्यक्ति अपने समय को इस तरह संभाल पाता है कि न तो काम प्रभावित हो और न ही निजी जीवन, तब उसे कार्य-जीवन संतुलन कहा जाता है। यह संतुलन पाने से तनाव कम होता है, काम की क्षमता बढ़ती है और मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य भी बेहतर बना रहता है।
कार्य-जीवन असंतुलन का असर:
कार्य-जीवन असंतुलन का असर समय के साथ बहुत नकारात्मक हो सकता है। लगातार काम का दबाव बढ़ने से तनाव बढ़ता है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर, मधुमेह और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएँ होने का खतरा बढ़ जाता है। लंबे समय तक ऐसा असंतुलन रहने पर व्यक्ति बर्नआउट का शिकार हो सकता है, जिसके लक्षण हैं—थकान, काम के प्रति नकारात्मकता और काम की क्षमता में कमी।
निजी जीवन की अनदेखी करने से रिश्तों पर भी बुरा असर पड़ता है। इसके अलावा, यह असंतुलन धीरे-धीरे काम को लेकर नाराज़गी की भावना पैदा कर सकता है, जिससे व्यक्ति काम को बोझ की तरह महसूस करने लगता है।
भारत की स्थिति:
भारत में काम के घंटे दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अधिक हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार, भारत में औसत कार्य सप्ताह लगभग 46.7 घंटे का है, जबकि अमेरिका में यह 38 घंटे, जापान में 36.6 घंटे और ब्रिटेन में 35.9 घंटे प्रति सप्ताह है। इस लिहाज से भारत उन 15 देशों में शामिल है जहाँ सबसे लंबे कार्य सप्ताह होते हैं। ILO की 2024 रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में लगभग 70% कर्मचारी ऑफिस समय के बाद भी काम से जुड़े संदेश देखते हैं, जो बर्नआउट और तनाव बढ़ने का एक प्रमुख कारण बनता है।
निष्कर्ष:
‘राइट टू डिस्कनेक्ट बिल, 2025’ कर्मचारियों को ऑफिस समय के बाद काम के दबाव से मुक्त कर उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। यह कार्य-जीवन संतुलन को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम है।
